छठे महाविनाश की शुरुआत हो चुकी है!

PrashantAdvait Foundation

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छठे महाविनाश की शुरुआत हो चुकी है!

पृथ्वी पर आज तक पाँच बार महाविनाश हो चुका है। महाविनाश माने सारे जीव जंतुओं का संपूर्ण नाश।इतिहास में 5 बार पृथ्वी का तापमान बेहिसाब बढ़ा, और ग्रह पर जीवन ही समाप्त हो गया।

और अब, छठे महाविनाश की शुरुआत हो चुकी है! और इस छठे महाविनाश का कारण भी वही है जो पहले के कुछ महाविनाशों का था - पृथ्वी के वातावरण में कार्बन-डाई-ऑक्साइड का बढ़ना।

पिछले साल दुनिया भर के पचास से अधिक देशों में इस महाविनाश की शुरुआत के भयानक लक्षण देखे गए। जहाँ कभी आग नहीं लगती थी, वहाँ जंगल राख हो गए। रेगिस्तानों में बाढ़ आ गई। और भयानक तूफ़ानों में कई गुना तेज़ी आ गई।

भारत में भी 3026 लोगों की जान गई, 4 लाख से अधिक घर तबाह हुए, 70 हज़ार मवेशियों की जान गई, और 20 लाख हेक्टेयर फसल बर्बाद हुई।

हम छठे महाविनाश में प्रवेश कर रहे हैं, और इसकी वजह हम हैं।

पिछले एक दशक से आचार्य प्रशांत 'क्लाइमेट चेंज' के ख़तरों के प्रति जागरूकता फैला रहे हैं। इस दौरान वे लाखों लोगों से ज़मीन पर मिल चुके हैं, और करोड़ों से ऑनलाइन। आम आदमी इस मुद्दे की भयावहता से बेख़बर है। मानो 'क्लाइमेट चेंज' हमसे दूर की कोई बात हो।

पिछले साल भारत में क्लाइमेट से 365 में से 314 दिन चरम मौसमी घटनाएँ (extreme weather events) देखी गईं। यानी बर्दाश्त से ज़्यादा बारिश, तूफ़ान, बाढ़, गर्मी, ठंड। कुल मिलाकर: तबाही।

इसके अतिरिक्त - असम, हिमाचल में आई भारी बाढ़, फसल ख़राब होने की वजह से सब्ज़ियों के बढ़ते दाम, उत्तर भारत की भीषण गर्मी और प्रदूषण - हमारी स्मृति में अभी भी ताज़ा हैं।

➖ क्लाइमेट चेंज का विज्ञान समझिए: पृथ्वी पर मानवता जो उपभोग करती है उससे पर्यावरण में कार्बन का उत्सर्जन होता है। जो बदले में पृथ्वी का तापमान बढ़ाता है, जिसका एक परिणाम है चरम मौसमी घटनाएँ। वर्ष 2023 तक पृथ्वी का औसत तापमान 1.16 डिग्री तक बढ़ चुका है। जो कि इस तबाही का मुख्य कारण है।

➖ वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि हमें इस महाविनाश को टालना है तो तापमान में हो रही बढ़त को 1.5 डिग्री पर रोकना होगा। और ऐसा करने के लिए हमारे पास कितना समय है?

मात्र 5 साल!

➖ आँकड़े ये भी बताते हैं कि यदि मानवता ने अपनी आदतें नहीं बदलीं, उपभोग के दर को कम नहीं किया, तो तापमान में हो रही बढ़त अगले 25 साल में 2.5 से 3 डिग्री तक पहुँच सकती है।

‼️ 1.16 डिग्री की बढ़त से जो तबाही हो रही है वो हमारे सामने है, 2.5 से 3 डिग्री की बढ़त से जो होगा वो हम सोच भी नहीं सकते ‼️

कुल मिलाकर महाविनाश का समीकरण कुछ ऐसा है:

उपभोक्तावाद 🟰 ज़्यादा कार्बन उत्सर्जन 🟰 पृथ्वी के औसत तापमान में बढ़ोतरी 🟰 ऐसी तबाही जो आज से पहले हमने कभी नहीं देखी।

समय की माँग है कि 'क्लाइमेट चेंज' हर गली-नुक्कड़ की चर्चा का मुद्दा बने, हर जागरूक नागरिक के लिए चिंता का विषय बने। महत्वपूर्ण मुद्दे हम सभी के जीवन में सही स्थान पा सकें उसके लिए आवश्यक है कि मूल्यों का परिवर्तन हो, और एक आंतरिक क्रांति घटित हो।

ख़तरा इतना भयानक है। और भारत में आचार्य प्रशांत जितनी बड़ी आवाज़ें बहुत कम हैं जो हमें इस ख़तरे से बचाने का काम कर रही हैं। जो काम न मीडिया कर रहा है, न स्कूल-कॉलेज कर रहे हैं, न सरकारें कर रही हैं, वो काम करने को आचार्य प्रशांत जूझे हुए हैं।

करोड़ों लोगों तक उनकी बात पहुँची भी है, चेतना और बदलाव आए भी हैं। पर ये काम बहुत बड़ा है। हमें जल्द-से-जल्द अन्य साथियों तक भी पहुँचना है। सबको समझाना है, सबको बचाना है।

काम आसान नहीं है, इसके लिए बड़े संसाधनों की आवश्यकता है।

हमें महाविनाश से बचना है। आपकी संस्था संघर्ष में है, साथ दें। स्वधर्म निभाएँ: acharyaprashant.org/hi/contribute

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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