सर, लड़कियाँ आक्रामक लड़के ही क्यों चुनती हैं?

Acharya Prashant

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सर, लड़कियाँ आक्रामक लड़के ही क्यों चुनती हैं?
आपको कैसे पता कि वो लड़का बुरा है कि गलत है? हो सकता है गलत हो, पर क्या आपको अपनी ज़िंदगी में सदा पता रहा है कि क्या अच्छा है? क्या बुरा? जब आपको नहीं पता क्या अच्छा है, क्या बुरा तो आपको कैसे पता कि उस लड़की ने जिसको चुना है बहुत बुरा है? क्या अच्छे-बुरे की आपकी पहचान, ठोस है बिल्कुल? वो लड़की भी उतनी ही गलत है, जितने गलत आप हो। और जैसे आप ठीक हो सकते हो, बिल्कुल वही विधि है, उस लड़की को भी ठीक करने की। दोनों को अपने आप से एक बार ये पूछना पड़ेगा कि ये जो हम कर रहे हैं, क्यों कर रहे हैं? भीतर कौन सी चीज़ है जो हमसे ये काम करवा रही है? यह सारांश प्रशांतअद्वैत फाउंडेशन के स्वयंसेवकों द्वारा बनाया गया है

प्रश्नकर्ता: नमस्कार, आचार्य जी। बहुत भाग्यशाली हूँ, सर आप मुझे देख पा रहे हैं। सर, मेरा सवाल लड़कियों के (सभी श्रोतागण हँसते हुए), सर एक्चुअली (असल में) मैं कॉलेज में हूँ, और मैं मास्टर्स कर रहा हूँ। सर मेरा सवाल लड़कियों के आकर्षण को लेकर के है। उनको जो आकर्षण लड़कों की तरफ होता है, मैंने ऑब्ज़र्व (निरीक्षण) किया है कि वो ज़्यादातर बुरे लड़कों की तरफ ही आकर्षित होती है, जो गलत लड़के होते हैं ज़्यादातर और सर एक शब्द बहुत सुनाई में आता है, आज के ज़माने में कि डॉमिनेन्ट (प्रभावी) लड़के पसंद आते हैं।डॉमिनेन्ट जो कि हावी होते हैं सामने वाले पर।

आचार्य प्रशांत: पहले आपने क्या बोला था? गोरे लड़कों की तरफ?

प्रश्नकर्ता: सर, बुरे। बुरे और गलत। वो ज़्यादातर बुरे लड़कों की तरफ आकर्षित होती हैं जो कि गलत होते हैं ज़्यादातर। सर, एक और चीज़ जो वर्ड (शब्द) आता है, वो आता है डॉमिनेन्ट लड़कों की तरफ ज़्यादा आकर्षित होती है। जो ज़्यादातर इनय्हुमेन बिहेवियर (अमानवीय व्यवहार) दिखाते हैं। जिनमें थोड़ी सी दूसरों की तरफ भावनाएँ कम होती है। जो इनय्हुमेन, किसी की उड़ाना, चीज़ें करना, टीचरों की उड़ाना। इन चीज़ों से वो शायद ज़्यादा आकर्षित होती हैं, मैंने ऑब्ज़र्व किया है। एक और चीज़ देखी है कि जो उनकी कदर नहीं करता वो उनकी तरफ ज़्यादा आकर्षित होती हैं रादर देन चुजिंग राइट परसन (सही व्यक्ति चुनने के बजाए)। और एक नार्मल जो लड़की होता है, वो हमेशा एक बुरे लड़के की तरफ ज़्यादा जाती है। सर इसमें मेरा ये सवाल था कि ये जो मेरा ऑब्जर्वेशन है, ये गलत है या फिर ऑब्जर्वेशन जो है वो सही है?

क्योंकि सर जिस तरह के रेप केसेस (बलात्कार के केस) और मर्डर केसेस (हत्या के केस) हो रहे हैं जो कि जिसमें बॉयफ़्रेंड भी इनवाल्व (शामिल) होते हैं, लिवइन पार्टनर (साथ रहने वाले) भी इनवाल्व होते हैं। मेरा सवाल ये है कि वो किसी रिलेशनशिप में जाने से पहले, ये देख क्यों नहीं पाती कि मैं जिसके साथ जा रही हूँ वो इंसान कैसा है, जिसके साथ में मैं रिलेशनशिप में जा रही हूँ वो इंसान कैसा है, वो ह्यूमन (इंसान) कैसा है। वो ये क्यों नहीं सोचती कि जबकि इतने सारे उसपर अटैक्स (आक्रमण) हो रहे हैं, दिख रहा है, हर जगह मर्डर केसेस हो रहे हैं उसके बावजूद भी।

आचार्य प्रशांत: तो ये समस्या उनकी है कि आपकी? (सभी श्रोतागण हँसते हुए।)

प्रश्नकर्ता: सर समस्या मेरी नहीं है। मैंने ये ऑब्ज़र्व किया है। तो सर, मेरा ये सवाल है एक।

आचार्य प्रशांत: तो ऑब्जर्वेशन समस्या थोड़ी बन जाता है। भाई आप ये भी तो पूछ सकते थे कि जो लड़के होते हैं वो भी फलानी किस्म की लड़कियों की ओर आकर्षित होते हैं, और इसमें फिर उनको झटके लग जाते हैं। देखो इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि जिस वजह से तुम ये नहीं जान पा रहे कि तुम अपनी बात छोड़कर लड़कियों की बात क्यों कर रहे हो? ठीक उसी वजह से लड़कियाँ ये नहीं जान पाती कि वो किसी की ओर क्यों आकर्षित हो रही हैं। आपको भी नहीं पता है कि आपके भीतर क्या है, जो ये सवाल बन कर सामने आ रहा है। क्या आपको पता है कि ये सवाल आप क्यों पूछ रहे हो?

ठीक उसी तरह से लड़कियों को भी नहीं पता होता है कि वो किसकी ओर जा रही हैं। हम तो बस किसी दिशा में बह जाते हैं ना। क्यों उस दिशा में जा रहे हैं हमें क्या पता? एक दिशा हो सकती है कि मैं किसी लड़के की ओर आकर्षित हो गई, मैं लड़की हूँ, मैं आकर्षित हो गई। और एक दिशा ये हो सकती है कि मैंने जाकर के आचार्य जी से सवाल पूछ लिया, मैं प्रश्नकर्ता हूँ, मैंने सवाल पूछ लिया। दोनों ही स्थितियों में जो काम कर रहा है, जो कर्ता है, जो डुअर (करने वाला) है, उसको ये पता थोड़ी है कि वो जो कर रहा है, वो क्यों कर रहा है।

पता होता है क्या?

अब वो एक फ़िल्म है, उसका गाना है “आग से नाता नारी से रिश्ता, काहे मन समझ ना पाया, मेरी भीगी-भीगी पलकों पे रह गए जैसे मेरे सपने बिखर के। जले मन तेरा भी किसी के मिलन को अनामिका तू भी तड़पे।” (अनामिका फिल्म का गीत।)

क्या मुझे पता है कि ये गाना मेरे लिए अचानक प्रासंगिक क्यों हो गया है? क्या मैं ये जान पा रहा हूँ? ईर्ष्या एक पुरानी वृत्ति है, और वासना भी एक बहुत पुरानी वृत्ति है। किसी की वासना, किसी के लिए ईर्ष्या बन जाती है। और क्या हो रहा है? आप खड़े हो, कोई और भी कतार में खड़ा है। जो कतार में खड़ा है, आपकी जगह वो चुन लिया गया। तो जो चुना गया है वो हमेशा कोई बद्ज़ात गलत आदमी ही लगेगा। और यही कहेगा कि ये देखो सोने जैसा कैंडिडेट छोड़कर के, धूल को चुन रही है, धूल को, बहुत पछताएगी।

क्या मुझे पता है कि मैं उस व्यक्ति को धूल क्यों बोल रहा हूँ? मैं ये नहीं कह रहा कि वो धूल नहीं है। मैं बस पूछ रहा हूँ, हो सकता है आपको पता हो, हो सकता है ना पता हो, मेरा प्रश्न है। क्या आपको पता है कि आप क्यों कह रहे हैं कि वो जो लड़की है, वो बुरे और गलत लड़कों को ही चुनती है?

आपको कैसे पता कि वो लड़का बुरा है कि गलत है? हो सकता है गलत हो, पर क्या आपको अपनी ज़िंदगी में सदा पता रहा है कि क्या अच्छा है? क्या बुरा? जब आपको नहीं पता क्या अच्छा है, क्या बुरा तो आपको कैसे पता कि उस लड़की ने जिसको चुना है बहुत बुरा है? क्या अच्छे-बुरे की आपकी पहचान, ठोस है बिल्कुल? तो ये कैसे पता कि वो लड़की जो चुन रही है, वो गलत ही चुन रही है, कैसे पता? वो लड़की भी उतनी ही गलत है, जितने गलत आप हो। और जैसे आप ठीक हो सकते हो, बिल्कुल वही विधि है, उस लड़की को भी ठीक करने की। दोनों को अपने आप से एक बार ये पूछना पड़ेगा कि ये जो हम कर रहे हैं, क्यों कर रहे हैं? भीतर कौन सी चीज़ है जो हमसे ये काम करवा रही है?

अच्छा एक बात बताओ, ये वो लड़की है जो हमेशा गलत चुनाव करती है, ठीक है। तो क्या बोलोगे दुनिया भर के जितने ज़लील, गलीच, गँवार होते हैं, उनको चुनती है। और आपका वाक्य पूरा भी न होने पाए, वो कहे 'चुन लिया, तुझे चुन लिया, तुझे ही चुन लिया।' तो अब क्या होगा? आपके अनुसार तो दुनिया भर के जितने गलीच, और गँवार, और ज़लील होते हैं, उनको ही चुनती है वो। उतने में उसने आके क्या बोल दिया? मैंने तुझे ही चुन लिया। अब बताओ तुम्हारा क्या होगा? अब बोलो क्या होगा? वो तो गँवारों को ही चुनती थी, उसने तुम्हें ही चुन लिया है, अब क्या करोगे? या जब तक तुम नहीं चुने गए हो, सिर्फ़ तब तक ऐसा है कि जो चुना गया है, वो गँवार है। तुम्हारे अलावा जो कोई चुना जाए तो वो क्या हो गया? गँवार। और जो लड़की तुम्हें ना चुनें, वो बेवकूफ़। नहीं मैं नहीं कह रहा हूँ ऐसा है, मैं कह रहा हूँ ऐसा हो सकता है। क्योंकि इंसान तो इंसान है, लड़की-लड़का तो बाद में होते हैं हम, पहले तो मनुष्य हैं। एक मनुष्य जो गलती करता है, वही दूसरा भी करता है। शरीर का अंतर है, भीतर चेतना तो एक ही है ना।

समझ में आ रही है बात?

अभी आपकी जगह वहॉं पर किसी लड़की को बैठा दें, तो वो भी यही बोलेगी कि ये सब जो लड़के होते हैं। अरे! मैं विशुद्ध हीरा हूँ, हीरा। और बस ये उनकी तरफ चले जाते हैं, जो अदाएँ दिखाती हैं, ज़ुल्फ़ें उड़ाती हैं। मैं असली चीज़ हूँ, मेरी कोई कदर ही नहीं कर रहा। अपनी नज़र में हर कोई असली चीज़ है। अपनी नज़र में हर कोई इस पूरे ब्रह्मांड की धुरी है बिल्कुल। सब कुछ उसी के इर्द-गिर्द नाच रहा है।

आ रही ये बात समझ में?

तुम मेरी तारीफ़ कर दो, तो तुम काबिल-ए-तारीफ़। और तुम मेरी तारीफ़ न कर दो तो मैं बोलूँ गदहवा, भाग यहाँ से। माने तुम्हारी तारीफ़ भी, इस बात पर आश्रित है कि तुम्हारी दृष्टि में, मैं काबिल-ए-तारीफ़ हूँ कि नहीं। ये तो गज़ब हो गया।

मैं उन लड़कियों की तरफदारी नहीं कर रहा, बिल्कुल ये होता होगा कि वो जिसको आप बोल रहे हैं डॉमिनेन्ट लड़के, अल्फा मेल (प्रभावशाली पुरुष) और क्या, बुरे-गलत जो कुछ बोला वो सब वो करती होंगी। पर मुझे तो यही स्पष्ट नहीं है कि आपको बुरे और गलत की परिभाषा स्पष्ट है क्या? क्योंकि अध्यात्म में ये सब तो अच्छा-बुरा तो चलता नहीं। विस्डम (बुद्धिमत्ता) की भाषा में क्या कहें, क्या सही, क्या गलत? वहाँ तो बस एक ही चीज़ होती है असली। क्या? जानते हो या नहीं, समझते हो या नहीं। डू यू रियलाईस (आप जान रहे हो), डू यू अंडरस्टैंड (आप समझ रहे हो)? वहाँ तो बस ये सवाल पूछा जाता है। राइट-रॉन्ग (सही-गलत) अच्छा-बुरा, गुड-बैड (अच्छा-बुरा) वर्चु-वाइज़ (नैतिक उत्तमता और बुद्धिमत्ता) ये सब तो वहाँ पर कोई मायने ही नहीं रखता। और फिर हमें इतना परेशान काहे को होना है। लड़की है, वो इतनी ही मूर्ख है कि आपके कथनानुसार, वो सब गोरिल्लों को ही चुन रही है। खुद भी गोरिल्ली होगी। तुम क्यों वहाँ पर लाइन में खड़े हो रहे हो? गोरिल्ली ने गोरिल्ला को चुन लिया और तुम्हें इस बात का बहुत अफ़सोस हो रहा है तो तुम क्या साबित कर रहे हो?

तुम वाना बी गोरिल्ला हो, बन नहीं पा रहे। मैं कह नहीं रहा कि ऐसा है, मैं कह रहा हूँ कि इस बात की संभावना खुली रखो कि ऐसा हो सकता है। देसी लंगूर, उसको बनना क्या है? पूरा समूचा फूल फ्लेजेड (पूर्ण रूप से) गोरिल्ला। और गोरिल्ली जाकर के चुन रही है, जो कह रही है ये ऑथेंटिक (प्रामाणिक) गोरिल्ले हैं उधर सारे। वही बुरे लोग, गलत लोग हो गए, चौबीस कैरेट गोरिल्ले।

वो हो सकता ऐसे हों। पर प्रश्न ये है कि क्या हमें भी वैसा होना है? हमें वैसा नहीं होना। हमें वैसा नहीं होना तो उनसे ईर्ष्या क्यों करें, हम उनकी बुराई क्यों करें, हम उनकी शिकायत भी क्यों करें? अरे! है किसी की ज़िंदगी, किसी को चुन ले कोई, हमें क्या करना है? जो जैसा होता है, वैसा ही करता है। मक्खी गुड़ में धँस रही पंख रहें लिपटाय...

“माखी गुड़ मे गड़ी रहे, पंख रहे लिपटाय। हाथ मले और सिर धुने, लालच बुरी बलाय॥” ~कबीर साहब

अब मक्खी है तो जाकर गुड़ पर ही बैठेगी, अब वहीं फँसेगी। हाथ मलें और सर धुने लालच बुरी बलाय। कोई अगर उल्टा-पुल्टा कर रहा है, तो भुगतेगा भी, हम क्यों परेशान हों, कि होना चाहिए? सवाल अगर मेरा हो तो मेरी ज़िंदगी से हो ना, मेरी ज़िंदगी से हो। पर मेरी ज़िंदगी में वास्तविक सवाल तो ये होना चाहिए कि मुझे इतना फ़र्क क्यों पड़ता है, कोई लड़की किसी लड़के के साथ चली जाती है तो?

ईमानदारी का प्रश्न बेटा ये होता। एक लड़की, एक लड़के के साथ चली जा रही है हाथ-में-हाथ डालकर, मुझे क्यों बुरा लग रहा है, क्यों लग रहा है? मैं सचमुच इतना हितैशी हूँ उस लड़की का कि मैं कहूँ अरे इसने देखो गुंडे को चुन लिया है। और आज-कल, यही सब बलात्कार करते हैं। सचमुच, निष्काम भाव से तुम कह रहे हो? तो जाकर बोल दो उसको कि बहन तेरा ये जो चुनाव है, ये तुझे भारी पड़ेगा। बोल दो जाकर, समझा दो। या बात ये है कि वो क्यों भोग रहा है, वो क्यों भोग रहा है? इधर भी तो देखो हम में क्या कमी है?

वो तो पक्का ही है ना कि मैं नही कह रहा हूँ कि ऐसा कुछ है। (श्रोतागण हँसते हुए) मैं तो बस बता रहा हूँ कि दुनिया में क्या चलता है, कुछ व्यक्तिगत बात नहीं कर रहा हूँ मैं।

फिर अभी वो जिसके साथ गई है उससे उसका ब्रेकअप हो जाए, तो ये जिन-जिन से उसका ब्रेकअप हो चुका है, ये सब आपस में भाईचारा गैंग बनाएँगे। मान लो उसका कुछ नाम है, कुछ नाम बताओ उसका, हाँ धनिया मान लो। ये सब वहाँ पर तुरंत डीपीएस गैंग बना देंगे, धनिया पीड़ित समाज। जिन-जिन से वो ब्रेकअप करके बैठी है वो सब आपस में भाई बन जाएँगे, ब्रो-ब्रो-ब्रो (भाई-भाई-भाई)। अभी कह रहे हो, वो बुरे और गलत लोग हैं, कल वो ब्रो बन जाएँगे, बस एक शर्त है कि उसका ब्रेकअप हो जाए धनिया से।

“साधो अपने माहिं टटोल”

धनिया को समस्या होगी, तो वो स्क्रीन पर आकर पूछेगी न, कि मैं ज़िंदगी में किसकी ओर जा रही हूँ, किसको चुन रही हूँ। मेरे फ़ैसले किस बिंदु से आ रहे हैं वो आकर खुद पूछ लेगी। हमारा प्रश्न ये होना चाहिए कि हमें क्यों इतना फ़र्क पड़ रहा है? और फ़र्क क्यों पड़ रहा है, थोड़ा सा अगर काम आँखों से हटाकर देखोगे तो स्पष्ट है — चिज्जू मेरी थी, ले कोई और गया। हमारे पहाड़ी से पूछो तो अभी गा देगा “भँवरे ने खिलाया फूल, फूल को ले गया राजकुँवर।” बड़ा अजीब लगता है न, गाना ही कैसा है ये देखो, दिल पर साँप लोट जाए एकदम। भँवरे ने खिलाया फूल और फूल को ले गया राजकुँवर। क्या इसमें मैं आध्यात्मिक पक्ष बताऊँ समस्या का? इसमें कोई आध्यात्मिक बात है?

ऑब्जर्वेशन का मतलब होता है, सबसे पहले बेटा सेल्फ़-ऑब्जर्वेशन। दुनिया को घूरने को ऑब्जर्वेशन नहीं बोलते। कि शाम को सात-आठ बजे को आतियों-जातियों को घूर रहे हैं और किसी ने पूछा क्या कर रहे हो? बोले आचार्य जी ने बोला था ऑब्जर्वेशन। तुझको तो आज पूरा ऑब्ज़र्व करके मानूँगा मैं,नख-शिख अवलोकन करूँगा, चल ज़रा घूम ऐसे थोड़ा, इधर से, उधर से तीन-सौ-साठ डिग्री अवलोकन हो गया तेरा।

सेल्फ-ऑब्जर्वेशन, आत्म अवलोकन करना पड़ता है। ये सब बातें हम बड़ी गंभीर मुद्रा बनाकर बोल देते हैं, पर बहुत आवश्यक है कि इन बातों का मज़ाक बना दिया जाए। और ये किस्मत तुम्हारी अच्छी है कि अभी तुम छात्र ही हो। और तुमसे ये सब बातें मैं कर पा रहा हूँ। नहीं तो प्रौढ़ हो जाओगे, चालीस के हो जाओगे, और बैठे होगे कहीं पर और कह रहे होगे कि आज मैंने ऑब्ज़र्वर करा, कि बॉस, जब चीफ के साथ होता है तो अलग तरीके से बात करता है। देखा है ना, गंभीर, प्रौढ़, तथाकथित मैचुअर (परिपक्व) और रेस्पॉन्सीबल (ज़िम्मेदार) लोग इसी लहज़े मे बात कर रहे होते हैं। आज मैंने ऑब्ज़र्व करा, यहीं रह जाएगा ऑब्जर्वेशन।

ये ऑब्जर्वेशन नहीं है, ये डिज़ायर (कामना) है, ये कामना भर है और कुछ नहीं। ये वैसा ही ऑब्जर्वेशन है कि जैसे सुअर के सामने टट्टी पड़ी हो और वो ललचायी आँखों से ऑब्ज़र्व कर रहा हो। ये ऑब्जर्वेशन है कोई? लार चुआ रहे हो। वो भी तो ऑब्जर्व ही करता है ना। और ऑब्जर्वेशन देखना है जिस श्रेणी के ऑब्जर्वेशन की तुमने बाद में कर दी। आज कल कीड़े बहुत हो गए हैं। बरसातें अभी-अभी खत्म हुई हैं, कभी देखना छिपकली कीड़े को कैसे देखती है। मिनट-मिनट, दो-दो मिनट, पाँच-पाँच मिनट, कई बार वो उसको टक-टकी बाँधकर ऑब्ज़र्व करती है। वही जैसे आतियों-जातियों को घूरा जाता है ना, वैसे ही। वो फिर आकर बेचारी बोलती हैं, बोलती हैं हमें लगता है कि मर ही गया है ये। बोलती हैं, धड़कन रुक गई है, पलक नहीं झपक रही है ऐसे (आचार्य जी अभिनय करते हुए)। और पूछो क्या कर रहा था? बोले ऑब्जर्वेशन। आचार्य जी के साथ गीता पढ़ते हैं ना, ऑब्जर्वेशन बताया है। फ़ीता लेकर नाप ही लो (श्रोतागण हँसते हुए)।

राजदीप को अब मज़ा आया है और राजदीप को अगर मज़ा आ सकता है मतलब जवाब हिट है।

कामना से भरी आँखों से दुनिया को देखने को ऑब्जर्वेशन नहीं बोलते, कोई परपस (उद्देश्य) लेकर के किसी को देखने को, अवलोकन नहीं बोलते। अवलोकन जब भी होगा निष्काम होगा। किसी के प्रति तुममें कोई कामना है, वासना है, उद्देश्य है, परपस है तो उसको ऑब्जर्वेशन नहीं कहते। वो फिर ऑब्जर्वेशन नहीं है, उसे कहते हैं निशाना साधना। पुटिंग समबडी इन योर क्रॉस हेयरस् (किसी व्यक्ति को लक्ष्य या निशाना बनाना)। ऐसे बंदूक में देखा है ना ऐसे (आचार्य जी हाथों से समझाते हुए) उसको ऑब्जर्वेशन बोलोगे क्या? ये ऑब्जर्वेशन है क्या? ये ऑब्जर्वेशन नहीं है, ये हमले की तैयारी है, ये कामना है।

और इतनी बार मैंने बोला है हम जैसे होते हैं, बड़ा मुश्किल होता है हमारे लिए कि हम कुछ भी देखें, और उसमें हमारा कोई स्वार्थ न हों। स्वार्थ भरी आँखें निष्पक्ष देख ही नही सकतीं कुछ भी, तुम जो भी देखोगे, तुम्हें कुछ उल्टा-पुल्टा ही दिखाई देगा।

तो इसीलिए सबसे पहले आँखें साफ़ करी जाती हैं, देखने वगैरह का कार्यक्रम बाद में। मुझे बड़ा अच्छा लगता, अगर तुम्हारा सवाल, अपने बारे में होता। हाँ, उसमें तुम लड़कियों को ला सकते हो, पर अपने संदर्भ में लाते ना। अभी तो खुद तो बिल्कुल साधु हो गए, कहे मैं तो वहाँ कोने में बैठ गया हूँ और संतों की तरह बता रहे हो कि जगत की रीत आपको बता रहा हूँ।

साँच कहूँ तो मारीहै, झूठे जगपतियाय। यह जग काली कूतरी, जे छेड़े तेही खाय॥ ~कबीर साहब

अब ऐसे तो नहीं हो क्योंकि साधु अगर देखेगा कि कानी कुतरी, माने काली कुतिया, तो साधु, साधु ही रहेगा; कुतिया, कुतिया ही रहेगी। पर अगर कोई ऐसा हो जो किसी को कुतिया बोल रहा हो लेकिन उसमें उसके प्रति आकर्षण भी हो, तो स्वयं क्या है? मैं कह नहीं रहा हूँ कि ऐसा है (सभी श्रोतागण हँसते हुए), पर हमें संभावना खुली रखनी है कि ऐसा हो सकता है (सभी श्रोतागण हँसते हुए)।

प्रश्न अपने बारे में। ठीक है। दुनिया से बेखबर नहीं होना है पर दुनिया भी तो हमारे ही देखे है ना। पहले अपनी आँखें साफ़ करनी है।

ठीक है?

फिर दुनिया की बात भी कर लेंगे । अब वो जो गलत और बुरे लड़के हैं, साथ दो मेरा उनको भी यहीं ले आते हैं। उन्हें अच्छा बना देंगे, नहीं? ऐसे तो वरना दुनिया अब जैसे चल रही है वैसे ही चलती रहेगी। किसी पर सिर्फ़ आरोप लगाने से क्या होगा, अगर सचमुच तुम को वो लड़की बहकी हुई लग रही है, और लड़का बुरा लग रहा है तो मेरे हाथ मज़बूत करो, उनको यहाँ लेकर के आओ ना। लड़की बहकी हुई है तो उसको होश में ले आ देंगे, लड़का बुरा है तो अच्छा हो जाएगा। यही तो गीता का कमाल है, आपको पता भी नहीं चलता, आपकी सफ़ाई हो जाती है। शिकायत नहीं करनी है फिर उनकी, क्या करना है? उनको यहाँ लेकर आना है, लाओ उनको। कुछ बोलना चाह रहे है, लगाओ।

प्रश्नकर्ता: सर एक्चुअली कॉलेज में एक चीज़ ये देखी गई है कि कुछ भी ढ़ंग की बात अगर किसी से करना चाहें तो वो लोग ही नहीं, ऐसे लोग ही नहीं मिलते हैं जिनसे कुछ ढ़ंग की बात की जाए। किसी भी चाहे वो किसी भी टॉपिक पर हो, चाहे वो एजुकेशन को ले करके हो, चाहे वो करियर को लेकर के हो।

आचार्य प्रशांत: ढ़ंग की बात जिससे कर रहे हो, उसके अनुसार की जाती है। अभी तक सत्र चल रहा था, देखो उसमें मैं किस हिसाब से बात कर रहा था ((सभी श्रोतागण हँसते हुए)। फिर तुम आ गए, तो तुम्हारे हिसाब से बात करी ना। तो वैसे ही ये सब जो बहकी लड़कियाँ और बुरे लड़के हैं, इनसे ढ़ंग की बात करो लेकिन इनके हिसाब से करो, उनकी भाषा में करो, उनके तरीकों से करो। उनके सामने तुम बैठकर के अगर हिब्रु में या ग्रीक में, या लैटिन में या संस्कृत में बात करोगे, तो कौन सुनेगा, समझेगा?

अभी उस दिन वो डला था ना कि जब सब साधारण उम्र के लोगों से बात करते हैं तो रहते हैं आचार्य जी और जब जनरेशन ज़ी से बात करते हैं तो बन जाते हैं आचार्य ज़ी। सबसे, उनके हिसाब से बात करनी होती है। पर अपना हिसाब बेटा अगर पता नहीं होगा तो क्या करोगे तुम, मेरा ही हिसाब वहाँ पर ले जाकर के दोहरा दोगे।

अब मेरा हिसाब एक तो मेरा है, दूसरा वो इस सभा के सामने का है। मेरा हिसाब भी जब मैं दूसरे लोगों के साथ होता हूँ तो बिल्कुल दूसरा होता है, वो तुमने देखा नहीं, क्योंकि वो रिकॉर्ड नहीं होता। मैं आपसे जैसे बात कर रहा हूँ, बहुत दूसरे लोग हैं, संस्था के लोग हैं, और लोग हैं, उनसे जैसे बात करता हूँ, देखोगे तो भौचक्के रह जाओगे। कहोगे ये क्या है? ये वही है? हाँ वही है।

तो अब बहकी लड़कियाँ हैं तो उनसे थोड़ा बहके तरीके से ही बात करो ना, सीखो। अब बुरे लड़के हैं तो उनसे ज़रा बुरे तरीके से ही बात करो ना, सीखो। पुल तो बनाना पड़ेगा ना। बात करने के तरीके और तेवर तो तराशने पड़ेंगे ना। या बस शिकायत करनी है। गुड गायस फ़िनिश लास्ट, बिकॉज़ आइ एम लास्ट हेंस आय एम गुड (अच्छे लोग अंतिम स्थान पर है और मैं अंतिम हूँ इसलिए अच्छा हूँ) नहीं, मैं नहीं कह रहा हूँ कि तुम गुड (अच्छे) हो।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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