क्या आचार्य प्रशांत एनलाइटन (प्रबुद्ध) हैं?

Acharya Prashant

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क्या आचार्य प्रशांत एनलाइटन (प्रबुद्ध) हैं?

प्रश्नकर्ता: प्र: तो आचार्य जी, अंजन, अंजनों के घर्षन से निरंजन निकल रहा है, ऐसा कुछ हो रहा है?

आचार्य प्रशांत: निरंजन क्या है कि जो निकलेगा?

प्र: या फिर मतलब उसमें...

आचार्य प्रशांत: निरंजन कुछ है कि जो निकलेगा?

प्र: यहाँ पर आप इतनी देर से एक्सप्लेन (समझा) कर रहे थे कि राम निरंजन है और अंजन से वह बाहर है और ऊपर है। मगर हम तो अंजन में ही हैं सब।

आचार्य प्रशांत: अंजन को अंजन जानना होता है। इसका अर्थ ये थोड़ी है कि अंजन से बाहर कुछ है। हमने क्या ये कहा निरंजन को जानना है? जानने के लिए भी क्या उपलब्ध है, सिर्फ़ और सिर्फ़?

प्र: अंजन।

आचार्य प्रशांत: हाँ, तो अंजन को जानना ही निरंजन है। बोधोहं, दैट रियलाइज़ेशन इज़ दैट (वह बोध ही 'वह' है) । दैट इज़ नॉट एन एंटिटी, दैट इज़ रियलाइज़ेशन (वह कोई इकाई नहीं है, वह बोध है) । रियलाइज़ेशन कोई एंटिटी थोड़ी ही होता है। बोध कोई इकाई नहीं हैं, वस्तु नहीं है, विचार नहीं है, कोई विषय नहीं है। जस्ट रियलाइज़ेशन, आउट एण्ड आउट रियलाइज़ेशन (सिर्फ़ बोध) । अन्डरस्टैण्ड (समझ) ।

प्र: सो अंडरस्टैंडिंग हैप्पन्स इन डिफ्रेन्ट डाइमेंशन (तो समझ एक अलग आयाम में होती है) ?

आचार्य प्रशांत: *यस अंडरस्टैंडिंग इज़ अ डिफ्रेन्ट डाइमेंशन। इट इज़ द डाइमेंशन इन विच यू चूज़ टू नॉट टू बी एन्गेज्ड, एज़ लौंग एज़ यू आर एन्गेज्ड, सीकिंग प्लेज़र एण्ड सिक्योरिटी, अन्डरस्टेन्डिंग बिकम्स डिफिकल्ट*। (हाँ, समझना एक अलग आयाम है। ये वह आयाम है जहाँ पर तुम चुनते हो उससे न जुड़ने को। जब तक तुम उससे सुख और सुरक्षा की उम्मीद लगाए हो तब तक समझना मुश्किल हो जाता है) ।

प्र: सो इट्स अ ट्रांसम्यूटेशन ऑफ़ (तो यह रूपांतरण है) ।

आचार्य प्रशांत: बड़ा शब्द ला रहे हो आप, फिर फँस जाओगे। मत लाओ। ट्रांसम्यूटेशन , ये वो...

प्र: घर्षण।

आचार्य प्रशांत: घर्षण तो सब अंजनों में होता रहता है, वह आप देखो कि हाँ, सारे अंजन एक दूसरे से माथाफोड़ी करते रहते हैं हर समय। ऐसे शब्द लाया करो—माथाफोड़ी। मैं आपसे बात इसीलिए कर पा रहा हूँ क्योंकि ये सब बड़े-बड़े शब्द मैं पीछे छोड़ आया। इससे आप बस उलझोगे।

देखो, मैं आपके पास क्या लेकर आया हूँ, झुन्नूलाल। वह आपके काम आएगा। मैं उसकी जगह अगर कुछ बहुत भारी ले आऊँ तो आपके काम नहीं आएगा। तो ये सारे अंजन एक दूसरे से क्या करते हैं? हाँ, बोलिए, जूतमपैजोर, माथाफोड़ी, गालीगलौज। अब समझ में आएगा, अब हम उससे।

प्र: रिलेट (सम्बन्ध) कर सकते हैं।

आचार्य प्रशांत: अब मैं आपसे बोलूँ कि ये हमने जो करा है न कि हमने निरंजन को अंजन बना दिया है, ये वास्तव में एनथ्रोपोमोरफाइजेशन (मानवरूपीकरण) है, तो आपको क्या समझ में आएगा? मैं बोल दूँ दिस इज़ एक्च्युअली द प्रॉब्लम ऑफ रिफिकेशन कंटेंड इन एडिफिकेशन (यह वास्तव में उपदेश में पुनःकरण की समस्या है) और मैंने बिलकुल सही बोला है, दिस इज़ रिफिकेशन , पर आपको क्या समझ में आएगा?

प्र: सो द प्रेजेंस हैज़ अ फैक्टर (तो उपस्थिति का कारक है) जैसे कैटलिस्ट (उत्प्रेरक) है।

आचार्य प्रशांत: वह तो आपने चुना न संगत। मेरी प्रेजेंस में कोई फैक्टर -वैक्टर नहीं है। ये सब भी ख़ूब चलता है, 'द गुरु इज़ जस्ट अ प्रजेंस अ होली प्रेजेंस ' , दिस दैट (गुरु केवल एक उपस्थिति है, एक पवित्र उपस्थिति) । कुछ नहीं है, न कोई यहाँ फील्ड (क्षेत्र) है न कोई *औरा (आभा) * है न, कुछ नहीं है।

मैं एक बात कह रहा हूँ, वह बात सुनने के लिए आप यहाँ बैठे हुए हो। आप यहाँ बैठकर भी कान में अगर अपने रुई डाल लोगे तो आपको कुछ नहीं सुनाई देगा, बात खत्म। कुछ मिस्टिकल (रहस्यमय) नहीं चल रहा है। एक बात कही जा रही है, जैसे दुनिया की सौ बातें आपके कान पर पड़ती हैं वैसे ये बात पड़ रही है। ये बात आपके काम तभी आएगी जब आप ध्यान दोगे। यहाँ कोई प्रेजेंस -वेजेन्स कुछ भी नहीं है।

मेरी प्रेजेंस से कुछ होता तो ये सारे खरगोश एनलाइटन (प्रबुद्ध) हो गए होते। खरगोश तो छोड़ दो, ये मेरा शिवा (अपने एक छात्र की ओर इशारा करते हुए) नहीं एनलाइटन हो रहा। न मैं हूँ, न ये होगा कभी, ठीक है? न ऐसा होता है? इंसान हो, इंसान की तरह रहो, इतनी छलाँगे नहीं मारनी चाहिए।

जी, क्या? (प्रश्नकर्ता से पूछते हुए)

प्र: नहीं, आइ थिंक यू आर ट्राइंग टू ब्रेक दिस ऑल वाटएवर इज़ (मेरे खयाल से आप ये सारी मान्यताएँ तोड़ना चाहते हो जो आजकल चल रहा है) ।

आचार्य प्रशांत: *डोंट ट्राय टू रीड माई माइंड, डोंट गेट इन्टू वॉट आइ एम ट्राइंग टू डू। जस्ट-सी वैदर, वैदर थिंग्स आर गुड फॉर यू। * (मेरा मन मत पढ़िए कि मैं क्या करने की कोशिश कर रहा हूँ। आप तो बस देखिए कि क्या ये आपके काम आ रहा है कि नहीं) ।

प्र: इट हैज़ बीन क्योंकि मेरे को यही कंफ्यूजन (भ्रम) था कि यू गेट क्लोज़ टू यू नो यू अज़्यूम दैट (मेरे काम आ रहा है क्योंकि मुझे बस ये समझ नहीं आता था कि कैसे किसी के करीब आकर पूछूँ) ।

आचार्य प्रशांत: इसमें न बहुत धांधली हुई है। द औरा ऑफ द गुरु, द फील्ड ऑफ द गुरु, द वेरी प्रजेंस और गुरु ऐसे बैठते हैं और ऐसे देखते हैं और आप हिप्नोटाइज़ (सम्मोहित) हो जाते हो। कोई गुरु आकर के बस आपके कन्धे पर हाथ रख देगा और आपको ऐसा लगता है भयानक ऊर्जा निकल पड़ी भीतर से। कोई सिर पर हाथ रख रहा है, कोई बस दृष्टिपात करके शक्तिपात कर देता है। कहे, 'क्या किया?' , 'एक बार देख लिया।'

आप देखिएगा तस्वीरें, ये सब गुरु लोग चल रहे होते हैं, लोग उनको छूने के लिए बेताब होते हैं। वह कहते हैं, 'स्पर्श से ऊर्जा मिल जाएगी।' काहे को ज़िन्दगी नर्क करनी है ये सब करके?

प्र: बट (लेकिन) ये भी तो मटेरियल प्रोसेस (स्थूल प्रक्रिया) है जो आप कर रहे हैं।

आचार्य प्रशांत: अरे बाबा, मटेरियल प्रोसेस (स्थूल प्रक्रिया) है, मैं आपको खाना देना चाहता हूँ, तो मैं आपके घुटने पर रोटी बाँध दूँ क्या? मटेरियल प्रोसेस है तो जो बोल रहा हूँ शब्द वह आपके कान में जाएगा न? मटेरियल के भी कुछ रूल होते हैं। मैं आपको छूकर आपको कुछ नहीं समझा सकता। आपको कुछ बोलकर ही समझा सकता हूँ, ठीक वैसे जैसे घुटने पर रोटी नहीं रख सकता।

प्र: जी।

आचार्य प्रशांत: तो गुरुदेव कुछ समझाना चाहते हैं तो मुँह से बोलें, ये छुआ-छुई क्या कर रहे हैं? कि गुरुदेव गये और उन्होंने ऐसे बाल छू दिए तो बाल छूते ही चार्ज्ड (आवेशित) हो गये। मटेरियल (पदार्थ) के भी लॉज़ (नियम) होते हैं और बाल नहीं चार्ज्ड हो जाएगा छूने से।

प्रश्नकर्ता: थॉट्स आर मटेरियल (विचार भी स्थूल पदार्थ हैं) , क्वालिटेटिवली (गुणात्मक रूप से) सेम (समान) है अगर आप छू रहे हैं।

आचार्य प्रशांत: हाँ ठीक है, थॉट्स आर मटेरियल (विचार स्थूल पदार्थ हैं) , चलिए। वह ब्रेन (मस्तिष्क) की एक्टिविटी (कार्य) है। वह ब्रेन की एक्टिविटी निकालकर आपके अन्दर कैसे डालूँ? बिलकुल ठीक है। यहाँ ब्रेन में मेरे न्यूरोनिक सर्किट फायर करते हैं और वह थॉट का प्रोसेस (प्रक्रिया) है। बिलकुल है। वह आपके अन्दर कैसे डाल दूँ? कैसे डालूँ बोलो न? जब मैं अपनी साँस भी आपको नहीं दे सकता तो मैं अपने न्यूरॉन्स के इलेक्ट्रिकल सिग्नल (संकेत) आपको कैसे दे दूँगा और जो देने का सही तरीक़ा है वह शब्द है।

प्र: जी, जी।

आचार्य प्रशांत: तो शब्द से हो तो रही है बातचीत हमारी आपकी। आपको ये सब काहे को करना है कि यहाँ वेव्स (तरंगे) थीं और उन वेव्स के समुन्दर में मेरा एनलाइटनमेंट हो गया?

प्र: क्वांटम फील्ड्स की बात हो रही है...

आचार्य प्रशांत: क्या? क्या क्वांटम ? पहले तो हमें पढ़नी पड़ेगी न क्वांटम फिजिक्स (क्वांटम भौतिकी) । क्वांटम फिजिक्स का मतलब बस इतना होता है कि यहाँ (एक कक्षा) से यहाँ (दूसरी कक्षा) के बीच में कंटीन्युटी (सततता) नहीं होती है एटॉमिक स्टेटस् (परमाणुओं की अवस्था) में। वन (एक) के बाद वन पाइंट वन (1.1) , वन पॉइंट टू (1.2) , वन पॉइंट थ्री (1.3) नहीं आता, वन के बाद सीधे टू (दो) आता है, टू के बाद सीधे थ्री (तीन) आता है।

ये क्वांटम फिजिक्स की फंडामेंटल (मौलिक) बात है। क्वांटा है, पैकेट्स , क्वांटा माने *पैकेट*। एन अमाउंट (एक मात्रा) , *क्वांटम*। तो यहाँ से यहाँ (हाथ से इशारा करते हुए) जाते हैं, यहाँ से यहाँ जाते हैं। अब बताओ क्वांटम फिजिक्स का कॉन्शियसनेस (चेतना) से क्या लेना देना? और ये सब सुपरस्टीशन (अंधविश्वास) सिर्फ़ इसलिए चलता है क्योंकि हमें क्वांटम फिजिक्स पता नहीं है और क्वांटम फिजिक्स कोई बड़ी बात नहीं है। आपने अगर फिजिक्स पढ़ी होगी नाइन्थ-टेन्थ (नौवीं-दसवींं) में, तो इलेक्ट्रॉनिक ऑर्बिट्स (इलेक्ट्रोनिक कक्षा) याद हैं? **प्र: ** जी।

आचार्य प्रशांत: हाँ, दैट्स द बिगनिंग ऑफ क्वांटम फिजिक्स (ये क्वांटम फिजिक्स की शुरुआत है) । ये तो याद आ रहा है न कि जैसे सोलर सिस्टम (सौर मंडल) होता है, *प्लैनेट (ग्रह) सन (सूर्य) के अराउंड (चारों ओर) घूमते हैं, वैसे ही इलेक्ट्रॉन सब न्यूक्लियस (नाभिक) के अराउंड घूमते हैं? जो एकदम प्रिमिटिव मॉडल ऑफ न्यूक्लियस (नाभिक का आदिम मॉडल) है 'नील्स बोर' के समय का।

हाँ, वह क्वांटम ही है कि इलेक्ट्रॉन यूँ ही नहीं कहीं छितराया हो सकता, वह या तो इस ऑर्बिट में होगा या फिर इस ऑर्बिट में। इन दोनों ऑर्बिट के बीच में नहीं मिल सकता, ये है *क्वांटम फिजिक्स*। फिर आप और आगे बढ़ते हो ट्वेल्थ (बारहवीं) में, केमिस्ट्री (रसायन विज्ञान) पढी होगी, वह 'एस पी डी एफ' (ऑर्बिटल्स / कक्षाएँ) सब याद है? वह सब शेल्स (नाभिक के आस-पास मौजूद विशिष्ट ऊर्जा स्तर) याद है?

हाँ, वह क्वांटम फिजिक्स ही है। उसका बताओ कॉन्शियसनेस से क्या लेना देना? पर ख़ूब इस पर दुकानदारी चल रही है। एकदम कि 'नहीं, *यू नो कॉन्शियसनेस इज़ क्वान्टा-फोन्टा,' ऐसे लोगों का सबसे पहले फिजिक्स का एग्जाम (परीक्षा) होना चाहिए और इनके सौ में दो नम्बर भी आ जाएँ तो बात करिएगा। वाइब्रेशन (कम्पन) और पॉवर (शक्ति) फोर्स (बल) मोमेंटम (संवेग) , सब लगा दिया और ऐसा वही कर सकता है जो फिजिक्स में एकदम अनएजुकेटेड (अशिक्षित) हो। इस पर नहीं पड़ा करते हैं। बात बहुत सीधी है—जो मन से ना उतरे, माया कहिए सोय। फुल स्टॉप (पूर्ण विराम) ।

तभी तो उस दिन मैं फिदा हुआ था, मैं भी इतना पढ़कर बैठा हुआ था। मैंने कहा, "लेओ, जो मन से ना उतरे, माया कहिए सोय, बात खतम पैसा हजम, घर जाओ।" जो कुछ भी आप पकड़कर बैठे हो वही बन्धन है, उसमें और मत जोड़ो।

सिम्प्लीफाइ (सरल) करना है, कॉम्प्लेक्सिटी (जटिलता) तो बहुत आसान होती है बढ़ानी और डरना नहीं आप लोग कभी भी। आप कहो, यहाँ सब गीता पढ़ रहे हो और कहीं आप गीता का कुछ पढ़ो या उपनिषदों पर कुछ पढ़ो या वेदांत पर बड़ी-बड़ी व्याख्याएँ हैं और वहाँ कोई बड़ा भारी शब्द मिल गया ज़बरदस्त सा और आप परेशान होने लग गये, 'ये क्या आ गया, ये तो आचार्य जी ने कभी बोला ही नहीं ये शब्द, फलाना शब्द,' तो बस एक बात मन में लाना, क्या? झुन्नूलाल। दुनिया के सब बड़े-बड़े शब्दों को हमारा एक ही जवाब है, क्या? झुन्नूलाल।

झुन्नूलाल की वोकैबलरी (शब्दकोष) अनन्त है। कुछ नहीं है, हमको लगता है कि बाप रे बाप! वह थे तो इतने महान हो गये या वह है, उसने इतनी बड़ी बात कह दी। समझने का अर्थ है—सरलता। सहजता, सरलता, ये जीवन में लाने हैं। दिमाग़ में और गाँठें नहीं बाँधनी हैं।

भारी शब्द ले लो और उसको लेकर परेशान हो जाओ, 'ये भारी शब्द है, इसका मतलब क्या है? ये कहाँ से आया? क्यों आया?' , अरे, कुछ नहीं आया, वो... जो दो-चार मूल सिद्धान्त होते हैं उनकी चर्चा हम करते रहते हैं, उसके आगे हमें कुछ चाहिए भी नहीं। उन सिद्धान्तों से सब समझ में आ जाना है। और अंततः वो सिद्धान्त भी नहीं चाहिए। अंततः तो मौन है, कोई सिद्धान्त रखकर क्या करना है?

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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