शिव-शक्ति नहीं , सिर्फ शक्ति || आचार्य प्रशांत, अर्धनारीश्वर पर (2016)

Acharya Prashant

2 min
535 reads
शिव-शक्ति नहीं , सिर्फ शक्ति  || आचार्य प्रशांत, अर्धनारीश्वर पर (2016)

अचार्य प्रशांत: वास्तव में जब शिव और शक्ति का निरूपण किया जाता है चित्रों में तो बड़े भ्रामक तरीके से किया जाता है। यूँ दिखा दिया जाता है—आपने अर्धनारीश्वर की मुद्राएँ देखी होंगी कि आधे शिव हैं और आधी शक्ति। यह बात बचकानी है। शक्ति ही शक्ति हैं, शिव कहीं नहीं हैं। संसार-ही-संसार है, सत्य कहीं नहीं है।

मात्र शक्ति को प्रतिबिंबित किया जाना चाहिए। शिव का कोई निरूपण हो नहीं सकता। और यदि इतना ही शौक है आपको शिव को प्रदर्शित करने का तो शक्ति के हृदय में एक बिंदु रूप में शिव को दिखा दें। शक्ति यदि पूरा विस्तार है तो उस विस्तार के मध्य में जो बिंदु बैठा हुआ है वो शिव हैं। तो यदि आपको शिव को दिखाना भी है, निरूपित भी करना है या वर्णित करना है तो शक्ति के हृदय के रूप में करें।

ये तो बड़ी अजीब बात है कि आपने दो चित्र लिए और दोनों को आधा-आधा जोड़ दिया और कह दिया यह तो अर्धनारीश्वर हो गए, यह शिव-शक्ति हो गए। शिव-शक्ति ऐसे नहीं होते। मैं फ़िर कह रहा हूँ, मात्र शक्ति-ही-शक्ति हैं।

कैसे पहुँचोगे शिव तक? शक्ति के दिल में जो बैठा है उसे शिव कहते हैं। अब पहुँचना है शिव तक तो क्या करोगे? कहिए, क्या किया जा सकता है? शक्ति को ही अंगीकार करना पड़ेगा। और शिव को तुम पाओगे कहाँ? शक्ति के हृदय में हैं वो। शक्ति के आँचल में हैं। और शक्ति माने संसार, शक्ति माने संसार के सारे पहलू, सारी ऊँच-नीच। उसके अलावा कहाँ मिलने वाले हैं?

शिव की आराधना बिना शक्ति के पूरी हो नहीं सकती। वास्तव में आराधना तो शक्ति की ही हो सकती है। और जिसने शक्ति की आराधना कर ली उसने शिव को पा लिया। और जो शक्ति को दरकिनार कर शिव की ओर जाना चाहे, वो भटकता ही रहेगा।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
Comments
Categories