शरीर नहीं, कमज़ोरियाँ दिखा रहे हो || नीम लड्डू

Acharya Prashant

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शरीर नहीं, कमज़ोरियाँ दिखा रहे हो || नीम लड्डू

भई! गर्मी का मौसम हो, तुम शरीर खुला रखो बात समझ में आती है। तुम कहीं नदी में, स्विमिंग पूल (तरणताल) में नहाने जा रहे हो, तुम कपड़े उतार दो, बात समझ में आती है। या तुम सिर्फ़ अपनी सुविधा के लिए कम कपड़े पहनो तो भी बात समझ में आती है, लेकिन दूसरों की नज़रों में सेक्सी (कामुक) बनने के लिए, दूसरों का अटेंशन (ध्यान) खींचने के लिए, माने दूसरों के लिए, तुम कम कपड़े पहनो इससे तो मन का मैल और कमज़ोरी ही पता चलता है न? और ऐसों को प्रोत्साहित कौन करता है? ऐसों को प्रोत्साहित करते हैं तुम जैसे लोग! जब एक लड़की को दिख गया कि शरीर दिखाकर के किसी और लड़की का बॉयफ्रेंड बन गया तो वो कहेगी, “यह तो अच्छी स्ट्रेटजी (युक्ति) है, मुझे भी यही करना है!” और बात यह सिर्फ़ लड़कियों की नहीं है, लड़के भी तो यही करते हैं। यह जो जिमबाज होते हैं, इनमें से कुछ ही होते हैं जो सेहत की ख़ातिर जिम जाते हैं। बाकियों का तो यही रहता है कि बाजू और छाती चौड़े कर लेंगे, यह सब देखकर के लड़कियाँ आकर्षित होती हैं। एक तरह का ये पीयर प्रेशर है, कि सब नंगे हैं तो मुझे भी नँगा होना ही है।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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