आचार्य प्रशांत: आनंद फ़िल्म में राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन की जो आपसी नोंक-झोंक होती थी, बड़ी दिलचस्प थी — कि ज़िंदगी तुमको बड़ी चाहिए कि लंबी चाहिए। ‘बाबू मोशाय, ज़िंदगी बड़ी चाहिए या लंबी चाहिए?’
लंबी चाहिए तो खूब नकारात्मकता से भरे रहो। जितना तुम शक्की रहोगे, प्रकृति ने संयोग ऐसा बैठाया है कि तुम्हें उतनी तरक्की मिलेगी, ज़बरदस्त तरीके की तरक्की मिलेगी! लेकिन जितना शक्की रहोगे, जीवन की गुणवत्ता, क्वालिटी ऑफ लाइफ़ उतनी बुरी रहेगी। तुम देख लो कि तुमको आनंद के पचास साल चाहिए या शक, संदेह, संशय से भरे हुए सौ साल। ये तो चुनाव है जो हर व्यक्ति को करना ही पड़ेगा।
शक में सुरक्षा है, आनंद में एक असुरक्षित मौज है। अब तुम बता दो कि तुमको सुरक्षित वेदना चाहिए या असुरक्षित मौज चाहिए, जो तुम्हें चाहिए हो ले लो। लेकिन ये समझ लेना कि शक करना या निराशा से भरे रहना या आशंकाओं से घिरे रहना व्यर्थ नहीं होता, प्रकृति में उसकी उपयोगिता है। तुम्हारे शरीर को बचाए रखने में उसकी उपयोगिता है इसीलिए इस तरह की वृत्तियाँ इतनी ज़्यादा व्यापक पाई जाती हैं।
जिस आदमी को देखो वही आशंकित है, डरा हुआ है, संदेह से भरा हुआ है। कोई वजह होगी न कि हर आदमी की यही हालत है। हर आदमी की हालत इसलिए है क्योंकि हमारे जीन्स (वंशाणु) ऐसे हैं। अब तुम देख लो कि तुमको बोध पर चलना है या जीन्स पर चलना है। जीन्स पर चलोगे तो लंबा जिओगे बेटा! बोध पर चलोगे तो कुछ पता नहीं कितना जिओगे, कुछ पता नहीं कि रूपया-पैसा कितना कमाओगे, कुछ पता नहीं कि सामाजिक सम्मान वगैरह कितना मिलेगा, जगत की दृष्टि में कितने सफल और कितने सबल कहलाओगे; पर मौज आएगी।
अब मौज का कोई विज्ञापन क्या बताए तुमको, जिनको पसंद होती है वो उसके लिए जान देने को तैयार हो जाते हैं। जिनको मौज पसंद नहीं होती, उनके मन में ज़बरदस्ती थोड़े ही प्रेम जगाया जा सकता है कि मौज बड़ी बात है, मौज बड़ी बात है! जिन्हें मौज पसंद होती है उनके सामने तुम लाख बोलो, ‘भेड़िया आया! भेड़िया आया!’ वो कहेंगे,
”तुलसी भरोसे राम के, निर्भय होके सोय। अनहोनी होनी नहीं, होनी होय सो होय”।।
‘आता होगा भेड़िया!’ और ऐसा नहीं कि भेड़िया नहीं आएगा, ऐसा नहीं कि राम भेड़िए को रोक लेंगे, कहेंगे, ‘देखो, मेरा तुलसी सो रहा है भेड़िए, इसके पास मत जाना!’ ये मतलब नहीं है।
मतलब ये है कि जब आएगा भेड़िया तब आएगा, जब तक नहीं आ रहा तब तक काहे को परेशान होते रहें। मरना तो एक दिन है ही, सब कतार में लगे हुए हैं। क्या रातों की नींद खराब करते रहें, क्या परेशान होते रहें कि कहीं इधर से दुशमन न आ जाए, कहीं उधर से खतरा न आ जाए, कहीं यहाँ नुकसान न हो जाए। अब आएगा तो आएगा!
ये बिलकुल मत सोच लेना कि राम के भरोसे है तुलसी, तो राम खड़े हुए हैं धनुष-बाण लेकर, अब जो ही भेड़िया आ रहा है उसको फटसे तीर मार देते हैं; ये सब कुछ नहीं!
राम का आशीर्वाद ये नहीं है कि वो धनुष-बाण लेकर के तुम्हारी सुरक्षा के लिए खड़े हो जाएँगे। राम का आशीर्वाद ये है कि तुम्हारे मन से भेड़िए का डर निकल जाएगा। ‘आएगा तो आएगा!’