प्रश्नकर्ता: एक जानकार हैं, स्कूल टीचर हैं। तो आपसे इस तरीक़े से वार्तालाप होगी, मैंने उनको बताया था तो मैंने कहा कुछ परेशानी है? बताऍं। तो उन्होंने कहा— मैं स्कूल टीचर हूँ और स्कूल टीचर से कोई शादी नहीं करना चाहता। मेरी शादी कब होगी? क्षमा चाहती हूँ उनके सवाल हैं ये। तो उन्होंने ये पूछा और तो सवाल यही है कि ये जो यूट्यूबर्स एंड इंस्टाग्रामर्स के पास तो
आचार्य: नहीं यूट्यूबर्स, इंस्टाग्रामर्स के पास शादियों के प्रस्ताव आते रहते होंगे वो एक बात है अपने में। पर ये जो महाशय हैं, ये शादी करने के लिए टीचर बने थे क्या? मैं ये जो द्वेष है, आग लगी है भीतर वो बिलकुल समझ पा रहा हूँ कि मैं एक अच्छा काम कर रहा हूँ
ये पुरुष हैं न सज्जन?
प्र: हाँ जी,
आचार्य: मैं एक अच्छा काम कर रहा हूँ, कोई लड़की मुझसे शादी नहीं करना चाहती, कोई लड़की मुझसे शादी नहीं करना चाहती। मैं अच्छा काम कर रहा हूँ, टीचिंग इज़ अ नोबल प्रोफेशन। और लोग घटिया काम कर रहे हैं, आपने अभी यूट्यूबर्स, इंस्टाग्रामर्स बोल दिया कि ये लोग हैं ये ऐसे ही फ़ालतू का कुछ भी करते रहते हैं और इनके पास पैसा भी बहुत है और इनको लड़कियाँ वगैरह भी बहुत मिल जाती हैं, ऐसा होता होगा। लेकिन मैंने अभी कहा न कि अध्यात्म सबसे पहले खुद को देखता है तो मैं तो इनसे पूछ रहा हूँ कि आप शादी करने के लिए टीचर बने थे क्या? और अगर शादी ही करना आपके लिए इतनी बड़ी बात है तो टीचर काहे को बने? टीचर काहे को बने? कुछ और बन जाते।
इतने काम हैं दुनिया में, इतने धन्धे हैं, सब लोग कर रहे हैं आप वो कर लेते कुछ भी। ये काहे को किया? आपको किसने रोका है, इंस्टाग्रामर बनने से अगर आपको लड़की ही चाहिए तो? मैं ये मान रहा हूँ कि इंस्टाग्रामर बनकर लड़की मिलती होगी, आप जिस तरीके से सवाल ला रहे हैं, मिलती होगी। अगर मिलती है तो इंस्टाग्रामर ही बन जाओ। तो इनके लिए तो उत्तर यही है कि आप इस्तीफ़ा दे दीजिए, आप इंस्टाग्रामर बन जाइए। जिस तरह की बातें कर रहे हैं वो काफ़ी मनोरंजक हैं कि लड़की चाहिए, तो इंस्टाग्राम में इनकी रील्स वगैरह जो होंगी वो चल भी जाऍंगी ख़ूब।
कुछ नहीं करना है, वहाँ जाकर छाती पीटनी है, मैं टीचर हूँ, लड़की नहीं मिल रही है, कोई मिल जाए, कोई मिल जाए। दो मिलियन लाइक आ जाऍंगे तुरन्त । इस तरह के मसाले की वहाँ बहुत ज़रूरत रहती है।
शिक्षक होना बहुत ऊॅंची बात है, बहुत ज़िम्मेदारी की बात है। शिक्षक इन बातों पर नहीं रो सकता। आप जब शिक्षक बनें तो बहुत सोच-समझकर, बहुत विचार से बनें। टीचर होना कोई जॉब नहीं है, कोई पेशा, धन्धा, प्रोफेशन, व्यवसाय नहीं है। और अगर आप उसे एक व्यवसाय की तरह देखेंगे तो फिर दिल वैसे ही जलेगा, जैसे अभी जल रहा है।
क्योंकि देखिये, शिक्षक करोड़पति तो नहीं होते। मैं कोटा फैक्ट्रीज़ की बात नहीं कर रहा हूँ कि जहाँ पर आप आईआईटी, जेईई की कोचिंग देनी शुरू कर दें वो तो टीचर हैं भी नहीं, वो तो ऐसे ही हैं सर्कस ट्रेनर्स हैं। वरना शिक्षक कोई करोड़पति होने के लिए तो नहीं बनता न।
करोड़पति होने के लिए तो आप धन्धा करिये। आप सीमेंट का धन्धा करिये, आप बालू का धन्धा करिये, आप इलेक्ट्रिकल एप्लायंसेस का धन्धा करिये, आप कपड़ों का धन्धा करिये, आप रेस्टरां खोलिये। आप, ये सब चीज़ें होती हैं जो आपको पैसा दिलाती हैं।
आप शिक्षक बनते हो तब, जब आप कहते हो ऊँची चेतना बड़ी बात है, मैं उसकी ओर बढ़ रहा हूँ और अपने साथ-साथ औरों को भी बढ़ाना चाहता हूँ। तो मैं चाहता हूँ मेरे सामने साठ छात्र बैठें और मैं उन्हें अपने साथ आगे की ओर लेकर चलूँगा। ये होता है शिक्षण। अब ये तो होने नहीं पाता, उल्टे होता ये है कि जब किसी को कोई और नौकरी नहीं मिल रही होती तो ये (शिक्षक) बन जाता है फिर हम इस तरह की शिकायतें करते हैं। मुझे मालूम है अगर मैं जो बोल रहा हूँ वो सुनेंगे, उन्हें बुरा लगेगा। मैं चाहता हूँ उन्हें थोड़ा बुरा लगे। बुरा तो उन्हें वैसे भी रोज़-रोज़ लग रहा है, लड़की तो मिल नहीं रही। तो थोड़ा और बुरा लग जाएगा तो क्या हो जाएगा?
और लड़की ऐसी मिल भी गई तुमको, जो ये सब देख कर आती है कि आप का ग्लैमर कितना है, आपके पास पैसा कितना है, आपके फॉलोवर्स कितने हैं तो ऐसी लड़की के साथ जियोगे कैसे? वो तुम्हारा खून पिएगी, तुम उसका खून पियोगे। तो फ़ायदा क्या है ऐसे शादी वगैरह करने का? जो-जो लड़कियाँ इनके पास इसलिए नहीं आ रही हैं क्योंकि ये टीचर हैं वो लड़कियाँ कैसी होंगी? उन्हें पति चाहिए है या एटीएम मशीन चाहिए है?
प्र: एक और मेरे हैं जो मेडिटेशन के ही उसमें हैं, कहीं काम करते हैं और मेडिटेशन लाइन में भी हैं। वो भी यही कह रहे थे कि कई लड़कियाँ जो हैं मुम्बई में रहते हैं, मुम्बई आना नहीं चाहती हैं तो इसलिए मना कर रही थीं तो रीज़न्स (कारण) अनेक हैं वही जो है ‘हाँ या न कहने के’, एवरीथिंग।
आचार्य: आप जब एक ऊॅंचा काम करें तो उसमें किसी निचली चीज़ की उम्मीद छोड़ दें। आप ये नहीं कर सकते हैं कि आप फ्लाइट में चल रहे हैं और उसके बाद शिकायत करें कि वो बीच में खिड़की पर चाय बेचने वाला नहीं आया। तो तुम्हें ये करना है तो तुम राज्य परिवहन में ही यात्रा करो। पर हमारा ऐसा ही है। हमें, हमें कोई ऊँची चीज़ मिल भी जाती है, आपको किसी ने फ्लाइट पर बैठा भी दिया तो भी आपका वहाँ मन नहीं लग रहा है। क्यों नहीं मन लग रहा? मूँगफ़ली नहीं मिल रही। एयर होस्टेस को बोला मूँगफ़ली चाहिए, मूँगफ़ली। वो कह रही है— 'सर, वी डोंट सर्व पीनट्स।'
और बड़ा बुरा लग रहा है, शिकायत कर रहे हैं। कह रहे हैं ‘देखो, यहाँ कितनी गलत बात है, हम बीच-बीच में स्टेशन पर उतरकर बोतल लेकर वो जो नल होता है जिसमें से सड़ा हुआ पानी आ रहा होता है, कॉलरा वाला। जब तक हम उसमें बोतल भरकर नहीं पीते हैं, तब तक हमारी प्यास नहीं बुझती। यहाँ इसको बोलते हैं ये आ करके पानी दे जाती है। ये कोई बात है?’ चाय वाला नहीं आया, मूँगफ़ली वाला नहीं आया, वो जो भिखारी जनरल डब्बे में घूम रहा होता है, दर्द भरे नगमें गाता हुआ, सौ तरीक़े के बैक्टीरिया, वायरस लेकर के, वो नहीं आया। तमाम लोगों का पसीना नहीं सूँघा। ये हमारी शिकायतें हैं।
ये शिकायत नहीं है साहब! आपको आज़ादी मिली है। इस तरह की लड़कियाँ अगर आपको अब रिजेक्ट कर रही हैं तो ये आपको आज़ादी मिली है लेकिन हमें पता भी नहीं होता कौनसी चीज़ माँगने वाली है, कौनसी चीज़ न माँगने वाली है। इससे बड़ा कोई वरदान मिल सकता है क्या? कि गलत आदमी खुद ही आपको अस्वीकार करता चले। इससे बड़ा कोई वरदान होता है? आप उसके चक्कर में फ़ँसते , फिर आप दो साल बाद कहते— 'ये गलत है।' और तब तक आपके पास मौका भी न बचता उसे रिजेक्ट करने का। उससे कहीं अच्छा ये नहीं हुआ है कि वो खुद ही आपके पास नहीं आया उसी ने आपको रिजेक्ट कर दिया।
आप बात समझ रहे हैं?
अब संस्था है। हमें अब नए लोग भर्ती करने हैं तो नई नियुक्ति माने हायरिंग के लिए हम क्या कर रहे हैं, हम लोगों तक कुछ ब्रॉडकास्ट करते हैं, लिखकर देते हैं कि हमें लोगों की आवश्यकता है तो उसमें हम पूरे काम का वर्णन ही इस तरीके से करते हैं कि गलत लोग आवेदन ही न करें। और जब कोई आता है आवेदन करने तो हम उससे इतना लम्बा-चौड़ा फॉर्म भरवाते हैं कि जो यूँ ही आ गए थे, बस चलते-फ़िरते
प्र: फॉर्म भरेंगे भी नहीं कई तो ।
आचार्य प्रशांत: वो फॉर्म देखकर ही नहीं भरेंगे। और फॉर्म भर नहीं होता। फ़िर हम कहते हैं कि तुम अगर कह रहे हो कि तुम वीडियो एडिटर हो तो अपने किए हुए कुछ काम लगाओ और पुराना काम नहीं, नया बनाकर लगाओ। आचार्य जी की वीडियोज़ में जाओ, वहाँ क्लिप बनाओ, उनको लगाकर लगाओ। हम चाहते ही नहीं हैं कि हमारे पास पाँच सौ आवेदन आयें। हम कह रहे हैं हमारे पास पच्चीस आने चाहिए लेकिन ये पच्चीस काम के होने चाहिये। तो आप ऐसे हो जाइए, ऐसे कामों में लग जाइए, आपकी शख्सियत ऐसी हो कि फ़ालतू लोग आपके पास खुद ही न आयें। या आप चाहते हैं कि मक्खी, मच्छर सब आपकी ओर आकर्षित होते रहें।
बड़ा अच्छा लगेगा।?
चार मक्खियाँ हैं, अभी एक आई थी मक्खी। बड़ा अच्छा लगेगा कि मक्खी आकर के.. आप कहें— 'देखा मैं कितना बड़ा मैग्नेट हूँ, मेरी ओर मक्खियाँ खिंची चली आती हैं। मक्खियाँ नहीं आ रही हैं आपकी ओर, अच्छी बात है न? लेकिन क्या करें, अभिलाषा अभी भी यही है कि?
प्र: कोई मक्खी आए।
आचार्य: कोई मक्खी आए। और फिर बड़े दर्द में आचार्य जी को सन्देश भेजा है कि लड़कियाँ भाव नहीं दे रहीं हैं। लड़की ही है, देवी थोड़े ही हैं, नहीं मिल रही है, अच्छी बात है नहीं मिल रही। काहे को इतने परेशान हो?
प्र: आपने कहा कि फ्लाइट में हैं और वहाँ एक्सपेक्ट (अपेक्षा) कर रहे हैं कि चाय वाला चाय चाहिए करके नहीं आ रहा है। सो ये जो डाउट है, ये बहुत ही कोरोसिव डाउट (घृणास्पद संदेह) , मतलब सिनिकल। (कुटिल) और बहुत ही कुछ करने जा रहे होते हैं, अचानक से अटैक आ जाता है तो कैसे समझें इसको?
आचार्य: क्या?
प्र: जैसे कुछ भी करने जा रहे हों न तो कई बार मन न सिनिसिज़्म (कुटिलता) कहीं-न-कहीं हो जाता है, थोड़ा-बहुत कि डाउट बहुत ज़्यादा मन में जो हैं पैदा होने लग जाते हैं उस चीज़ को लेकर। तो कैसे समझें कि ये डाउट सही है या हम डाउट कर ही क्यों रहे हैं और स्रोत क्या है?
आचार्य: देखिये, एक मुद्दे पर मुझे आपको निराश करना पड़ेगा। किसी एक क्षण पर आपके साथ जो हो रहा है उसका समाधान उस क्षण में नहीं होता। मैं ये नहीं कर पाऊँगा कि आपके मन में जब डाउट उठे तो आप ऐसे सोच लीजिए और इससे आपका डाउट दब जाएगा और आपको शान्ति मिल जाएगी। ये सब कुछ नहीं, ये धान्धलेबाज़ी होती है। आपको ज़िन्दगी ऐसे जीनी होगी कि आपको कम-से-कम सन्देह उठें। आपकी ज़िन्दगी के आधार में ही जब स्पष्टता होगी, माने क्लैरिटी होगी, तब आपको फिर कम चीज़ों पर संशय हुआ करेगा। और फिर अगर आपको संशय होगा भी तो ज़रा ऊॅंचे स्तर का होगा।
अभी तो चूँकि हमारा जो जीवन है न, उसका आधार, उसका फाउंडेशन ही बहुत हल्का है और गहराई कुछ नहीं। तो हमें बात-बात में संशय हो जाते हैं और हमारे पास फिर कोई तरीका नहीं होता, सही-गलत में भेद करने का। और फिर आप फॅंस जाएँ और आप कहें— 'बताओ! अब इस वक्त मैं क्या करूँ?' तो ये कोई बात नहीं है न। उस वक्त पर तो यही हो सकता है कि जैसे-तैसे करके वहाँ से बाहर निकल लो। वहाँ से बाहर निकल लो, वापस आओ और सही ज़िन्दगी जीने की शुरुआत करो।
अब ये उदाहरण है कि मैं हृदय रोगी हूँ। और मुझे बोला गया है कि तेल कम खाओ, वज़न कम करो और दवाईयाँ वगैरह दी गई हैं। न मैं तेल कम कर रहा हूँ, न मैं वज़न कम कर रहा हूँ, न मैं दवाईयाँ खा रहा ठीक से। और मैंने ऐसे ही दौड़ लगा दी एक दिन, वो भी तनाव में दौड़। और क्या आ गया?
प्र: दिल का दौरा।
आचार्य: दिल का दौरा आ गया। अब उस वक्त मैं पूछ रहा हूँ कि 'बताओ-बताओ मैं क्या करूँ? बताओ मैं क्या करूँ?' अभी तो तुम कुछ मत करो क्योंकि तुम कुछ कर ही नहीं सकते। ठीक आठ सेकंड बाद तुम हो जाओगे बेहोश। और तुम क्या पूछ रहे हो?
प्र: कैसे रोकूँ?
आचार्य: मैं क्या करूँ? तुम कुछ करो, अब तो हम करेंगे, जो करेंगे। अब हम स्ट्रेचर वगैरह का इन्तज़ाम करेंगे। तुम कुछ मत करो अब, तुम क्या कर सकते हो? तो आखिरी क्षण पर पूछना कि अब मैं क्या करूँ? इसका कोई अर्थ नहीं है। फिर तो आखिरी में आप यही कर सकते हो कि जब गिर रहे हो तो कोई इमरजेंसी नम्बर हो तो डायल कर दो गिरते-गिरते। तो शायद वो आ जायें बचाने के लिए। अब आप गिर रहे हैं उस वक्त आपको याद आये कि दवाई खाने को कहा था डॉक्टर ने। और आपके पास अब बस बेहोशी छा रही है और आप जल्दी से दवाई खाने लगें, कुछ फ़ायदा होगा उससे? होगा क्या?
प्र: नहीं।
आचार्य प्रशांत: नहीं होगा न? आप गिर रहे हैं, आपको याद आया डॉक्टर ने तेल कम खाने को कहा था और आपने दोपहर के लिए लंच ऑर्डर किया हुआ है और आप उन्हें फ़ोन करके बोलें— 'ऑर्डर कैंसिल्ड।' कुछ फ़ायदा होगा? तो अब ये आखिरी क्षण पर जो उपाय पूछे जाते हैं न कि तनाव बहुत बढ़ जाए तो क्या करें? अब तो कुछ मत करो, किसी तरीके से उस क्षण को बस अब बीत जाने दो और जब वो क्षण बीत जाए, तब विचार करो कि तुम पूरी ज़िन्दगी ही गलत जी रहे हो।
बात एक क्षण की नहीं है कि एक क्षण में तनाव बढ़ गया। तुमने उस एक क्षण के पीछे न जाने कितनी ऐसी श्रृंखलाबद्ध गलतियाँ करी हैं जिनके कारण वो तनाव आया था। तो पूरी ज़िन्दगी ही बदलनी पड़ेगी, पूरा केन्द्र ही बदलना पड़ेगा, मकान की बुनियाद ही बदलनी पड़ेगी, तो मकान तो गिरेगा, मकान हम गिरने नहीं देना चाहते।
क्यों?
उसमें हम रहते हैं। सड़क पर हम आना नहीं चाहते। अध्यात्म उनके लिए है जो कम-से-कम कुछ समय के लिए आसमान की छाँव लेने को तैयार हों और आपको आनन्द ही आने लग जाए, आसमान की छॉंव में तो फिर तो कहना क्या! दिगम्बर हो गए आप।