
प्रश्नकर्ता: सर, माई क्वेश्चन इज़, लव रिफ्लेक्ट्स द सेल्फ; “ब्यूटी ऐंड ग्रेटनेस डू नॉट कम बाय ऐक्सिडेंट। दे हैव टू बी अर्न्ड, अचीव्ड थ्रू सस्टेन्ड प्रैक्टिस। यू मस्ट पे द प्राइस।”
सर, मेरा प्रश्न है कि हम एक जॉब करते हैं तो हमें पता है कि हमने ये चुना है, बिकॉज़ ऑफ़ मनी एंड सम लाइक इंफ्लुएंस फ्रॉम फ्रेंड्स एंड फैमिली। हम अभी कुछ चेंज करने का सोच रहे हैं; मतलब हम दूसरे करियर ऑप्शंस पर एक्सप्लोर करने की कोशिश कर रहे हैं। प्रॉब्लम ये है कि मेरा अटेंशन स्पैन भी बहुत कम है। तो मैं बहुत जल्दी सोशल मीडिया की तरफ़ भी चली जाती हूँ। वहाँ जब आपकी वीडियोज़ आती हैं, फिर मैं वापस आती हूँ तो रियलाइज़ करती हूँ कि बहुत टाइम वेस्ट हो गया और जो मुझे करना था वो तो मैंने किया ही नहीं, दिन में बहुत टाइम चला गया। तो इस पर कुछ।
आचार्य प्रशांत: सोशल मीडिया एक किस्म का, एक तल का प्लेज़र दे रहा है, और हम होते तो प्लेज़र सीकिंग ही हैं न। अगर आपका काम ऐसा नहीं है जो आपको एब्ज़ॉर्ब करेगा पूरे तरह से; अगर आपको कहीं और प्लेज़र मिल रहा है, तो आप उधर जाओगे, आप नहीं रोक पाएँगे अपने आप को। काम सही चुनना पड़ेगा।
काम को अपने लिए चैलेंजिंग बनाना पड़ेगा ताकि वो आपको पूरा का पूरा सोख ले, एब्ज़ॉर्ब कर ले।
नहीं तो सोशल मीडिया देखिए बहुत एक्सपर्ट्स वहाँ बैठे हुए हैं और बहुत फाइन एल्गोरिद्म है जो काम कर रहा है, वो डिज़ाइन्ड है आपको पकड़ने के लिए। वहाँ बहुत लोगों ने बहुत दिमाग लगा कर के एल्गोरिद्म बनाया है। कंटेंट बनाने वाले लाखों लोग हैं और आपके सामने वही कंटेंट आता है जो सबसे ज़्यादा कॉम्पिटिटिव होता है। इतने लोगों ने बनाया होता है उसमें जो सबसे ज़्यादा चल रहा होता है कंटेंट वही आपके सामने आएगा। और उसमें भी जो आपको अपील करे, ऐसा पर्सनलाइज़्ड कंटेंट आपके सामने आएगा। द एल्गोरिद्म इज़ वेरी शार्प।
तो आप सोशल मीडिया पर जाओगे तो आपको प्लेज़र तो मिलेगा, क्योंकि वो बनाया ही इसलिए गया है कि वो आपको पर्सनल प्लेज़र दे। ठीक है? हाँ, ये बिल्कुल है कि उसमें आपका टाइम ख़राब होगा। बिल्कुल है कि उसमें आपको बहुत कम वैल्यू-एडिशन हो। ये भी हो सकता है कि वो एक्चुअली आपके मन के लिए, यहाँ तक कि आपकी आँखों के लिए भी ख़राब हो सकता है। सब हो सकता है। लेकिन उसकी इफेक्टिवनेस है, हम इससे इंकार नहीं कर सकते। इफेक्टिव तो है; आप उसको खोलते हो, वो आपको पकड़ लेता है।
कोई चीज़ को इतनी शार्पली डिज़ाइन्ड हो तो सबसे पहले तो आपको उसकी शार्पनेस की तारीफ़ करनी चाहिए। जिसने भी बनाई है उसने बहुत बारीकी से बनाई है। अब सवाल ये है कि अगर आपको उसको हराना है तो कैसे हराना है?
तो जिसने इतना दम लगाया है उसको बनाने में, कुछ उसके कम्पैरेबल आपको भी तो दम लगाना पड़ेगा न। कुछ अपनी ज़िंदगी में ऐसा खोजना पड़ेगा जो सोशल मीडिया से ज़्यादा मीनिंगफुल भी हो और चैलेंजिंग भी हो, ताकि आप ख़ुद-ब-ख़ुद अपने आपको एक सही काम को सौंप पाएँ। और ज़िंदगी में जब सही काम नहीं होता और फालतू समय होता है तो इंसान और क्या करेगा, जाकर दे देगा इंस्टाग्राम को; फिर हम शिकायत भी नहीं कर सकते न। कि खाली बैठे रहते तो कहा, कि चलो स्क्रॉलिंग ही कर लेते हैं। स्क्रॉलिंग एडीक्टिव होती है। तुम कहती हो पंद्रह मिनट स्क्रोलिंग करनी है, वो दो घंटे से आप ज़्यादा कर लेते हो।
यू मस्ट फ़र्स्ट ऑफ़ ऑल ऐक्नॉलेज द वर्क पुटन बाय द एनिमी, बाय द ऐड्वर्सरी। दुनिया का टॉप टैलेंट बैठा हुआ है इन कंपनीज़ में, जो सोशल मीडिया कंपनीज़ हैं, टॉप टैलेंट। यहाँ तक कि एआई (AI) भी अब कुछ हद तक अपने आप को एडिक्टिव बनाने की कोशिश करता है। आपने देखा है, कोई क्वेश्चन पूछते हो एलएलएम्स से, वो नीचे ख़ुद ही आपको रिकमेंड करना शुरू कर देता है, “मैं तुम्हें ये भी बताऊँ? अब मैं ये भी बताऊँ?” आपको बस येस लिखना है।
तो जैसे वहाँ स्क्रॉलिंग होती है, ठीक वैसे ही आप चैट जीपीटी या कहीं और भी जेमिनाइ वग़ैरह पर भी आप स्क्रॉलिंग कर सकते हो लगातार। और उसकी अपनी एक वैल्यू है भाई, कोई बहुत मेहनत कर रहा है। आप भी मेहनत करो। सवाल ही उठता है, वो तो मेहनत कर रहा है, उसने अपनी चीज़ बना ली और वो आपका टाइम ले रहा है। इसे अटेंशन इकॉनमी बोलते हैं।
देयर आर जस्ट टू मेनी ऑब्जेक्ट्स वायइंग फॉर योर अटेंशन, और जो आपका अटेंशन ले जाएगा, वही जीत जाएगा। तो ये अटेंशन इकॉनमी है। तो ये तो इतना दमदार है कि आकर आपका अटेंशन जीत ले गया। कुछ हम भी जीत कर दिखाएँगे। उसने तो अपना काम खूबसूरती से कर लिया, जो भी काम उसने चुना, अच्छा-बुरा जो भी चुना, उसने तो अपना काम दम लगाकर कर लिया। क्या चीज़ बना दी है वो!
चाहे वो आपका रील्स का फॉर्मैट हो, या सोशल मीडिया हो, चाहे एआई (AI) हो, क्या चीज़ बना दी उसने! उसने तो अपना काम कर दिया। और उस काम से जो उसे चाहिए, वो मिल भी रहा होगा, उसे पैसा चाहिए, सफलता चाहिए, शोहरत चाहिए, मिल रहा है उसको। हमें क्या मिल रहा है?
प्रश्नकर्ता: कुछ नहीं।
आचार्य प्रशांत: एज़ अ ओनर, प्रोड्यूसर ऑफ़ दैट मीडिया, ही इज़ गेटिंग व्हाट ही ऐम्ड फ़ॉर। लेकिन एज़ अ कंज़्यूमर ऑफ़ दैट मीडिया, व्हाट आर यू गेटिंग? तो वो तो अपना काम कर रहा है, हम भी तो अपना काम करें। और इसके लिए,
ज़िंदगी में कोई अच्छा प्रोजेक्ट चुनिए, जिसको आप दिल दे सकें, जिससे आप प्यार कर सकें, तभी आप उसे समय दे पाएँगे।
नहीं तो अपने प्रोजेक्ट को छोड़-छोड़ कर आप बार-बार?
प्रश्नकर्ता: सोशल मीडिया की तरफ़ जाएँगे।
आचार्य प्रशांत: सोशल मीडिया और दूसरे बहुत सारे होते हैं डिस्ट्रैक्शंस, आप किसी की भी ओर भागेंगे।