वक्ता: घटनाओं का विश्लेषण करके, जो भी सुन्दर आपके साथ होता है उसको नाम देकर के, आप उसकी संभावना को और कम ही कर देते हो।
रविवार को कुछ हुआ था, आप को अब उसकी चर्चा नहीं करनी चाहिए।यह एक तरीके का प्रेम -प्रसंग होता है – परम के साथ मुलाक़ात। अंग्रेज़ी में कहावत है – “डोंट किस एंड टैल । ” वो लोग अच्छे नहीं माने जाते जो सरेआम प्रेम प्रदर्शन करते हैं। परम जब आपसे मिले, मौन के क्षण हों, उनको जी लीजिए और भूल जाइए।
श्रोता १: मन भागता रहता है। वही दिक्क़त आ रही है।
वक्ता: जितना मन उसकी ओर भागेगा, मन उसके आने की संभावना को उतना कम कर देगा। आज मैंने पहली बात यही बोली। आप उसकी ओर भाग रहे हो, आपकी धारणा यह है कि वो आपको दोबारा नहीं मिलेगा।
श्रोता १: हाँ, डर लगता है।
वक्ता: आपका माननाहै कि कोई बड़ी ख़ास चीज़ हो गयी है, जिसको स्मृति के माध्यम से पकड़े रहने की ज़रूरत है। कर दिया न आपने संघर्ष।
श्रोता १: हाँ।
वक्ता: जब मिला था, तो आपकी कोशिश से मिला था?
श्रोता १: नहीं, ऐसे ही मिला।
वक्ता: तो अब आप क्यों पकड़ के रखना चाहते हो? जब उसकी मर्ज़ी होगी दोबारा आ जाएगा। आपके विश्लेषण से आया था?
श्रोता १: नहीं।
वक्ता: तो अब सवाल पूछ कर उसका विश्लेषण क्यों करना चाहते हो? वो बिना बुलाए आ गया था न?
श्रोता १: हाँ।
वक्ता: बिना सूचना दिए।
श्रोता १: हाँ।
वक्ता: उसने आपसे इतना ही माँगा था कि जब जीवन खड़ा हुआ है, मौका प्रस्तुत है, तो आप पीछे मत हटियेगा। उसने तो बस इतना ही माँगा आपसे कि – “मैं तुम्हारे सामने आ गया हूँ अब पीछे मत हटना।” तो आप बस वैसे ही रहे आइये कि – “जब तू सामने आएगा, हम हटेंगे नहीं।” बस वैसे रहे आइये। उसमें और बहुत सवाल पूछने की ज़रूरत ही नहीं है कि – “क्या हुआ था? क्यों हुआ था?”
वो है न, “प्यार को प्यार ही रहने दो, कोई नाम न दो।” आप क्यों एनालाईज़ (विश्लेषण) कर रहे हो कि – “मुझे एक प्रकार का मौन लगा था, और वैसा लगा था, ऐसा लगा था।” ?
आप वाकई बता पाओगे आपको कैसा लगा था?
श्रोता १: नहीं।
वक्ता: बल्कि आप गन्दा और कर दोगे जैसा भी लगा था। छोड़ दीजिए उसको।
‘शब्द-योग’ सत्र पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।