सरलतम में सरलता से प्रवेश || आचार्य प्रशांत, क़ुरआन शरीफ़ पर (2014)

Acharya Prashant

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सरलतम में सरलता से प्रवेश || आचार्य प्रशांत, क़ुरआन शरीफ़ पर (2014)

श्रोता: ‘*अबोर्ड हियर आफ्टर*, एंड इन्डीड द अबोर्ड हियर आफ्टर, इज़ बेस्ट फॉर दी कांशेंशिअस।’

वक्ता: देखिये ये जो बातें उतरती हैं, कही जाती हैं, ये ध्यान की गहराई से कही जाती हैं, शब्द वहां से आते हैं, जो शब्द जिस तल से आ रहा हो, उसको उसी तल पर समझना पड़ेगा। ये शब्द ज्ञान के, ध्यान के, गहरे तल से आते हैं।

कहा जा रहा है, *एंड द लाइफ ऑफ़ दिस वर्ल्ड इज़ नथिंग बट प्ले एंड स्पोर्ट एंड इन्डीड द अबोर्ड हियर आफ्टर इज़ बेस्ट फॉर द कांशेंशिअस सो वोंट यू अंडरस्टैंड*’’ अगर इसको बहुत ध्यान से नहीं पढ़ा, तो ऐसा लगेगा जैसे कहा जा रहा है कि कोई और दुनिया है, किसी परलोक की बातें हो रही हैं।

श्रोता: अगले जन्म में।

वक्ता: किसी और जन्म की बातें हो रही हैं। मृत्योपरांत कुछ और होगा, उसकी बात हो रही है। नहीं, ये नहीं कहा जा रहा है, समझिये इस बात को। ‘*दिस वर्ल्ड’ और ‘अबोर्ड हियर आफ्टर**,*’ ये यहाँ पर की-वर्ड्स हैं। दिस वर्ल्ड से क्या आशय है? दिस वर्ल्ड से आशय है वो दुनिया, जो इन्द्रियों से प्रतीत होती है। तो कहा गया है, ये सब जो कुछ है, इसको गंभीरता से मत ले लेना। “लाइफ ऑफ़ दिस वर्ल्ड इज़ नथिंग बट प्ले एंड स्पोर्ट” इससे रास करो, प्ले एंड स्पोर्ट , तुरंत एक इनसे सम्बंधित शब्द मन में उठना चाहिये: लीला। कुरान में लीला शब्द नहीं आया है, पर इशारा ठीक उधर को ही है, लीला। ये सब कुछ उसकी लीला है, इस लीला के पीछे वही है, इस लीला ‘में’ वही है; और जब कहा जा रहा है अबोर्ड हियर आफ्टर , तो वो समय में और स्थान में किसी और जगह की बात नहीं हो रही कोई खास, विशिष्ट जगह नहीं है, जन्नत, जहाँ तुम्हें कुछ मिल जाएगा! देखो सांसारिक मन लेकर पढ़ोगे, तो संसार में तो दो ही चीजें होती हैं: समय और स्थान। सांसारिक मन लेकर पढ़ोगे तो बिलकुल ऐसा ही लगेगा कि ये पंक्तियाँ कह रही हैं कि अबोर्ड हियर आफ्टर, मतलब अब के बाद, हियर आफ्टर माने समय में और अबोर्ड माने जगह, घर।

ये समय और स्थान की बात हो ही नहीं रही है। ये पंक्तियाँ गहरे ध्यान में उतरी थीं और ध्यान में न समय होता है, न स्थान होता है; तो इनमें कहा भले ही जा रहा है कि ‘*अबोर्ड हियर आफ्टर*’, पर न वो कोई जगह है, और न वो कोई समय है, वो यहीं है और अभी है। दिस वर्ल्ड की जब बात हो रही है तो ये कहा जा रहा है, कि अगर तुमने संसार को मात्र भौतिक रूप में देखा। अबोर्ड हियर आफ्टर से आशय है, संसार को उसके वास्तविक रूप में जानना कि संसार मात्र परम की लीला है, प्ले एंड स्पोर्ट। समझ रहे हैं? नहीं समझेंगे तो इनके अर्थ में चूक हो जाएगी। आप बड़ा विपरीत अर्थ निकाल लेंगे। जो कहा ही नहीं गया वो समझ लेंगे और जो कहा गया, वो अनछुआ रह जाएगा।

श्रोता: डांस ऑफ़ रियलिटी।

वक्ता: हाँ, *डांस ऑफ़ रियलिटी*।

एक और बड़ी खुबसूरत आयत है, इसको समझिए। सरल, आमतौर पर परम के लिये, अल्लाह के लिये हमने कम ही सुना होगा। ईज़ी , वो सरल है। ईज़ी , आज हम कह रहे थे न, क्या कबीर कहते हैं? “पेय का मारग…”?

सभी श्रोता: सरल है।

वक्ता: सरल है। वो सरल है, लेकिन हमें बताया ये गया है कि बहुत मुश्किल है। हमें बताया ये गया है कि संसार सरल है।

श्रोता: पेय का मार्ग कठिन है।

वक्ता: और वो मुश्किल है। हमसे कहा गया है, प्रभु को पाने के लिये बड़ी ज़बरदस्त साधना, और घोर तप करना पड़ता है। ये पागलपने की बात है। वो सरल है, वो उपलब्ध है। ये जो आवाजें हैं, ये हवा है, पत्ता-पत्ता, रेशा-रेशा, पेड़-पेड़, वो जो गा रहा है पक्षी, इतना सरल है कि सबको मिला हुआ है। इतना सरल है। इतना सरल है कि हमें यकीन ही नहीं आता कि इतना सरल है; कि जैसे बिना मांगे सब कुछ मिल जाए तो शायद हम उसको लेंगे ही नहीं। हमें क्या लगेगा? कोई बेवकूफ़ बना रहा है। वो इतना सरल है।

सरलता माने क्या? जटिलता माने क्या? सरलता, जटिलता क्या है?

श्रोता १: मन की धारणा।

श्रोता २: जो मिला हुआ ही है।

वक्ता: जैन परंपरा में, जो सिद्ध होता है, उसको कहते हैं निग्रंथ; ग्रन्थहीन हो गया, जो ग्रंथियों से मुक्त हो गया। ग्रंथि माने बाधा, ग्रंथि माने गांठ। जैसे रस्सी में गांठ एक बाधा की तरह होती है न, कि रस्सी का एक सरल बहाव है, और उसमें गांठ कैसी लगती है?

श्रोतागण: बाधा।

वक्ता: वो ग्रंथि कहलाती है। कुंदन(श्रोता को इंगित करते हुए) ने एक शब्द इस्तेमाल किया था – सुपर कंडक्टर , सरल वो है जो सुपर कंडक्टर हो गया, जो रोकता ही नहीं। तो सरलता को समझिये, प्रतिरोध रहित होना।

प्रतिरोध रहित होना ही सरलता है।

यही बात क़ुरआन हमसे कह रही है। अड़चन ना डालना ही सरलता है। बाधा ना खड़ी करना ही सरलता है। उसको अपने आप से बहने देना ही सरलता है।

श्रोता: सर, उसको अपने आप से बहने देने का क्या मतलब है?

वक्ता: इसका कोई मतलब नहीं है। वो तुमसे बहता ही है। मतलब इस बात का है कि हम उसे कैसे नहीं बहने देते। उसका मतलब तो बता सकता हूँ। उसका मतलब यही है कि तुम्हें अपना बहुत कुछ करना है। जब तुम अपना करने से मुक्त हो जाते हो, तो वो तुमसे बहता है। आ रही है बात समझ में? तो उसी बात को — बड़े सरलता की बात को — बड़े सरल तरीके से सामने रख दिया गया है।एंड वी ईज़ यु इन्टू वाट इज़ मोस्ट ईज़ी। वाट इज़ मोस्ट इजी? वो और उसकी प्राप्ति; यही सबसे सरल है।

इसीलिए, कहते हैं कि अगर उसके कोई करीब होता है तो या तो संत, या बच्चा क्योंकि दोनों में क्या होती है? सरलता। वो परम सरल है। तो उसको पाना है, तो तुम भी सरल हो जाओ। जितने सरल होते जाओगे, उसको उतना पाते जाओगे; और गाठों से, और कलह से, द्वेष से, और चालाकी से जितने भरते जाओगे, उससे उतने दूर होते जाओगे। हल्के हो जाओ, सरल हो जाओ। सीधे-साधे बिलकुल, कोई चतुराई नहीं, कोई होशियारी नहीं। वो है न, ‘मेरी सब होशियारियां ले लो, मुझको एक जाम दे दो।’

इतना ही नहीं, कहा जा रहा है- “एंड वी इज़ यु इन्टू दैट व्हिच इज मोस्ट ईज़ी”। तो वो तो ईज़ी है ही, उस तक पहुँचने का रास्ता भी?

श्रोतागण: ईज़ी होगा।

वक्ता: ईज़ी ही है। जो रास्ता कठिन दिखाई दे, उस पर चलना मत। *यु कैन ओनली बी ईज़ड इन्टू हिम। यू कैन नेवर बी*?

श्रोता: फोर्स्ड…

वक्ता: फोर्स्ड इन्टू हिम। सरल है, सरलता से ही मिलेगा; दुष्प्राप्य नहीं है। और जब प्राप्ति में बड़ा ज़ोर लगाना पड़ रहा हो, तो समझ लेना कि ये तो अहंकार ही है जो ज़ोर लगाने को उतावला है, ताकि कह सके आगे कि कर-कर के पाया। सरल है, सरलता से मिलेगा। जितना कम करोगे, उतनी आसानी से पाओगे। बड़ा उल्टा नियम है। दुनिया में क्या होता है?

श्रोता: करो और पाओ।

वक्ता: जितनी ज़ोर से…

श्रोता: धक्का मारो।

वक्ता: धक्का मारते हो, गाड़ी उतनी तेज चलती है। वहां का नियम उल्टा है। जितना कम करोगे, उतना ज़्यादा पाओगे। वो देने वाला ऐसा विराट है कि कहता है, करोगे, तो नहीं पाओगे। और जितना कम करोगे, उतना ज़्यादा पाओगे। एंड वी ईज़ यू इन्टू दैट व्हिच इज़ मोस्ट ईज़ी।

वो सरल, उसका मार्ग सरल।

श्रोता: से आई एम फोर्बिडन टू वर्शिप दोज़ अपॉन हूम यू कॉल अदर देन गॉड। तो क्या ‘यू इज़ मी?

वक्ता: जो तुमसे कहें कि उसके अलावा किसी और को ईष्ट मानो, उनसे कहो, ‘’नहीं, ये कभी नहीं करूँगा मैं। एक के अलावा किसी दूसरे की भी इच्छा नहीं मुझे।’’ जो तुमसे कहे कि किसी भी और रास्ते पर चल पड़ो, जो तुमसे कहे कि कुछ भी और आराधना के योग्य है, उससे कहो, ‘‘ना, झूठ, नहीं मानूंगा।’’

श्रोता: इसी की दूसरी पंक्ति कह रही है, “*आई डोंट नो, फॉलो योर डिज़ायर*”

वक्ता: उनसे कहो कि मैं तुम्हारी इच्छाओं पर नहीं चलूँगा, अन्यथा मुझे परम से निर्देश मिलने बंद हो जाएंगे। अगर मैंने दुनिया की इच्छाओं पर चलना शुरू कर दिया, तो मैं दुनिया का गुलाम हो जाऊंगा। दिन में बात की थी न कि या तो हज़ार की गुलामी स्वीकार कर लो, या एक के दास हो जाओ। तुमसे कहा जा रहा है कि जब भी कोई तुमसे खुदा के अवाला किसी और की तरफ़ जाने को कहे, तो उससे कहो कि, ‘’ना, अगर किसी और दिशा में चला तो परम रूठ जाएगा मुझसे, जो मुझे मिल रहा है वो मिलना बंद हो जाएगा।’’

इस पर लेकिन तुम्हें सवाल उठाना चाहिये, तुम्हें पूछना चाहिये कि क्या परम की दिशा के अलावा और कोई दिशा होती है?

परम में स्थापित हो जाओ, तो हर दिशा परम की दिशा है। लेकिन अगर उससे दूर हो, तो हर दिशा गलत है।

तुमसे ये नहीं कहा जा रहा है कि कुछ दिशाएँ सही हैं और कुछ दिशाएँ गलत हैं। वहीँ बैठे-बैठे जहाँ तुम बैठे हो। तुम परम में स्थापित हो, तो जिधर को भी चलोगे सही ही चलोगे।

एक जगह पर था तो उसमें मैंने लिखा था कि *डू नॉट आस्क द वे टू ट्रुथ, जस्ट वाक ट्रूली*, जस्ट वाक ट्रूली। उसमें बैठे होने के लिए कहा है कि वाक ट्रूली। जो उसमें बैठा है, वो जिधर को भी चलेगा उसकी ओर ही चलेगा। हर तरफ़ उसी को पाएगा। और जो उसमें नहीं बैठा है, वो जिधर को भी चलेगा गलत ही चलेगा। तो सवाल किसी कृत्य का नहीं है कि ऐसा करें कि वैसा करें। सवाल, होने का है, होने का है कि तुम कहाँ बैठे हो। तुम्हारा आसन कहाँ पर है। बात इतनी साधारण नहीं है कि मस्जिद में जाने वाले से कह दीजिएगा कि मंदिर जाओ तो वो कह देगा कि, ‘’नहीं अगर मंदिर चला गया तो फिर खुदा मेरी बात नहीं सुनेगा।’’ ये तो बड़े निचले तल की बात हो गई। ये नहीं कहा जा रहा है। इसका लेकिन अर्थ यही निकला जाता है। इसका अर्थ ये बिलकुल भी नहीं है कि मस्जिद जाने वाले को मना कर देना चाहिए कि, ‘’मैं ना चर्च जाऊंगा ना मंदिर जाऊँगा।’’ समझ रहे हो बात को?

इसका अर्थ ये है कि, ‘’मैं वही होऊंगा, जहाँ मुझे होना है। मैं कहाँ होऊंगा? कहाँ होऊंगा?’’

श्रोता: स्रोत में।

शब्द-योग’ सत्र पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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