प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, संत विरह का गीत क्यों गा रहा है?
आचार्य प्रशांत: ये सवाल सबका होना चाहिए। अगर हम इसमें गहराई से गये तो पहला सवाल होना चाहिए था कि विरह-वेदना तो हमें होनी चाहिए उनको क्यों हो रही है? वो क्यों कहते हैं कि तू चला गया, तेरे वियोग में तड़प रहा हूँ। क्यों कहते हैं?
प्रश्नकर्ता: क्योंकि मज़ा पाने का नहीं है, खोने का है।
प्रश्नकर्ता: जब मिल जाएँगे, तब विलय होगा और जब तक नहीं मिले हैं, तब तक विरह महसूस होगा।
आचार्य प्रशांत: समझना, इस बात को। संत अकेला होता है जिसे सत्य के प्रति विरह-वेदना होती है। आमतौर पर जैसे हम होते हैं, हमें कोई तकलीफ़ नहीं होती कि हमसे सत्य छूटा हुआ है। हम तो सत्य से विमुख रहकर भी खिलखिलाते रहते हैं। संत अकेला होता है जो ज़ार–ज़ार होता है। संसारी तो मस्त है। उसको आप दो कुर्सियाँ, थोड़ा फर्नीचर, एक फ्रिज, एक नौकरी, एक बीवी, एक ए.सी दिला दीजिए, वो खुश है। संत अकेला है जो बैठा रोता है, वो रात भर रोता है। सोचने में ऐसा लगेगा कि नहीं नहीं, संत को तो आनंद होना चाहिए, क्योंकि वो संत है। संत को तो आनंदित होना चाहिए, संसारी को रोना चाहिए। ऐसा नहीं होता। संसारी तो डूबा हुआ है, बेहोशी में। वो अपनी बेहोशी में है तर, उसे कोई तकलीफ़ महसूस नहीं होती। वो अपनी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में खपा हुआ है। उसे बिलकुल नहीं लगता कि उसने कुछ खो दिया है या लगता भी है तो वो उस प्रतीति को दबा देता है। संत होता है जिसे ये बात उभर कर सामने आती है।
दुखिया दास कबीर। कबीर है जो रो रहे हैं। जागे और रोए। जो जगा है वही रोएगा, जो सो रहा है वो क्या रोएगा! आमतौर पर हम सोए हुए हैं। संतों की एक छवि है कि संत बड़ा आनंदमग्न रहेगा, हर्षित- प्रफुल्लित रहेगा, ये छवि ठीक नहीं है। संत से ज़्यादा गहरी वेदना का अनुभव कोई नहीं करता। आज कोई तो मुझसे कह रहा था कि उसको तो जो भी जगा है, उसको ही सर्वप्रथम पीड़ा का अनुभव होता है। आम आदमी कहाँ परमात्मा के याद में तड़पता है कि गीत गाता है। वो तड़पता भी है तो किसकी याद में? अगली गाड़ी की याद में। वो तड़पता भी है तो किसकी याद में? किसी की जिस्म की याद में। तड़पता भी है तो किसकी याद मे?, आठ लाख का घाटा हो गया, बहुत तड़प रहा है, या किसी ने आकर अपमान कर दिया, वो बहुत तड़प रहा है। अपने आसपास किसी को देखा है कि वो तड़प रहा है क्योंकि उसे सत्य नहीं मिला?
एक कागज़ लेकर जाओ, जहाँ भी रहते हो, वहाँ ज़रा उसको लोगों से भरवाओ कि बताओ किसकी याद सताती है? बताओ किसकी कमी है? और दिखा देना लाकर के कि कोई उसमें लिख दे — ‘सत्य।‘ वो उसमें क्या-क्या लिखेंगे — पैसा। तो आम आदमी को कोई तकलीफ़ नहीं है। उसकी तकलीफ़ें जो हैं, वो दूसरे तरीके की हैं। मच्छर काट लिया। ठीक।
बुल्लेशाह अकेले हैं जिनको ये तकलीफ़ है। ये जो तकलीफ़ है ये बड़े जो सौभाग्यवान होते हैं उनको ही मिलती है। इस तकलीफ़ में दो बातें एक साथ होती हैं। पहला, ये एहसास कि दूर हूँ। दूसरा, उसकी प्रतीति जिससे दूर हूँ। क्योंकि यदि उसका पता न हो जिससे दूर हो, तो ये भी कैसे कहोगे कि दूर हो। संत का सौभाग्य ये होता है कि उसे पता होता है कि उससे दूर हो गया है। हमें पता ही नहीं है किससे दूर हो गये हैं। हमें नहीं पता है। संत का सौभाग्य होता है उसे पता होता है कि वो किससे दूर हो गया है। वो सत्य के सम्पर्क में होता है। ये उसका आनंद है। ये उसका आनंद है। और उसका रोना ये होता है कि वो पूर्णतया उससे मिल क्यों नहीं जाता, जिसको वो जान गया है। ये उसकी वेदना है।
और वेदना शब्द भी बड़ा सुन्दर है। थोड़े दिन पहले मैंने आपसे कहा था न,
ब्रह्म विद् ब्रह्मैव भवति।
‘वेदना’ माने जानना। वेद शब्द का अर्थ होता है जानना। ‘विद्’ से निकला है, ‘विद्’ धातु से। वेदना माने वो कष्ट जो जानने से उत्पन्न होता हो।
तो संत अकेला है जिसे आनंद और वेदना की समानान्तर रुप में होती है। और जिसे आनंद मिलेगा, उसे वेदना मिलेगी, ये जान लीजिए। आनंद, जॉय , मुफ़्त नहीं आता। वो अपने साथ बिलकुल दिल को चीर देने वाला दर्द लेकर आता है। और इसीलिए हममें से ज्यादातर लोगों को आनंद की कभी अनुभूति नहीं होती। क्योंकि हममें वो सामर्थ्य नहीं है कि हम हृदय विदारक वेदना को बर्दाश्त कर सकें। ‘हरमन हैस’ का ‘नार्सिसस ऐंड गोल्डमंड’, आप में से कुछ लोगों ने पढ़ा होगा। उसमें जो गोल्डमंड का चरित्र है, वो आनंद का प्यासा है। अन्ततः जब वो मरने लगता है, और मरता भी ऐसे ही है। जीवन उसका भटकाव में बीतता है। अन्ततः उसी भटकाव में उसकी मृत्यु होती है। जब वो मरने लगता है, तो उसका विवरण कुछ ऐसे दिया है, वो कहता है कि माँ आकर के मेरा कलेजा अपने नाखूनों से बाहर निकाले ले रही है। माँ आकर मेरा कलेजा... और वो कहता है, ‘इससे ज़्यादा आनंद मुझे कभी नहीं मिला। इससे ज़्यादा आनंद मुझे कभी नहीं मिला।‘ नार्सिसस इंटेलेक्चुअल (बुद्धिजीवी) है। बुद्धिवादी है। वो उसके पास खड़ा है, वो उससे बोलता है, ‘यही सब करते-करते तो तुम मरने को हो गये।‘ गोल्डमंड उसे जवाब देता है, ‘मेरे भाई, तुम तो मर भी नहीं पाओगे।‘
जो चीज़ सबसे ज़्यादा वेदना देती है, उसी में गहनतम आनंद भी छुपा होता है। आनंद की तलाश गोल्डमंड को तमाम स्त्रियों के पास ले जाती है। उसको लगता है शायद वहाँ मिलेगा। वो बहुतों के साथ रहता है, प्रेम के संबंध बनाता है, शारीरिक संसर्ग भी होता है और फिर वो एक दिन एक गर्भवती को जन्म देते देखता है। और तब वो कहता है कि इसके चेहरे पर अभी जो भाव है, ठीक वही भाव मैंने सम्भोग के क्षण में अपनी प्रेमिकाओं के चेहरे पर देखा है। हाँ, वो आनंदित होती हैं, ये पीड़ा से तड़प रही है। इसकी प्रसूति का वक्त है, ये पीड़ा से तड़प रही है। लेकिन वो कहता है, ‘इसके चेहरे पर ठीक वही भाव है, जो मैंने अपनी सम्भोगरत प्रेमिकाओं के चेहरे पर देखा है। आनंद और वेदना एक हैं।‘
जिन्हें वेदना बर्दाश्त नहीं, वो आनंद को भूल जाएँ। आनंद कोई हँसी-खुशी नहीं होती है कि हँस रहे हैं, ठठ्ठे मार रहे हैं आहा…हा…हा, बड़ी प्रसन्नता छाई है। आनंद तो झकझोर कर रख देता है, तोड़कर रख देता है। आनंद आपको कहीं का नहीं छोड़ता। और आनंद शब्द को हम ऐसे हल्के में इस्तेमाल कर लेते हैं। बड़ा आनंदित हुए। अरे! आनंदित होने का मतलब होता है — मौत, मरे, फूट गये, तब आता है आनंद। पूरी कीमत लेकर आता है आनंद। और जब तक आपने पूरी कीमत नहीं दी, आपको खुशी मिल जाएगी, सस्ती, आनंद नहीं। आनंद तो ऐसा होता है जैसे अपने ही खून में नहाने का मज़ा। अपने ही खून को पी जाने का नशा। ये होता है आनंद। ये होता है संत को उपलब्ध। तब संत गाता है वेदना के आनंदित गीत।
प्रश्नकर्ता: नार्सिसस में जो वर्ण है, वो यहीं से आया है? स्टोरी से आया है?
आचार्य प्रशांत: स्टोरी में भी ये अस्सी साल की है, वर्ण हज़ारों साल पुराना है। वर्ण से नाम दिया गया है नार्सिसस।
असल में बड़ा गहरा मज़ाक किया है हरमन हैस ने। गोपाल सीधा-सादा है। गोपाल और सिद्धार्थ दोस्त थे, एक ही गाँव से हैं। दोनों गाँव छोड़कर आते हैं। दोनों सत्य की तलाश में निकले हैं। दोनों को बुद्ध के दर्शन होते हैं। गोपाल ज़रा सीधा है। यूँ कह लें अनाड़ी। सिद्धार्थ सदा से प्रतिभाशील रहा है, दिखने में भी ज़्यादा सुंदर है। हर तरीके से अग्रणी। गोपाल सीधे-सीधे बुद्ध के चरणों में लोट जाता है कहता है, ‘आपका शिष्य हुआ।‘ सिद्धार्थ वहाँ पर ठीक-ठीक तर्क देता है, उसको पढ़ना। सिद्धार्थ का तर्क है, इफ़ आइ फॉलो यू, देन द लॉ ऑफ़ कॉज़ एंड इफेक्ट विल बी वॉयलेटेड (यदि मैं आपका अनुसरण करूँगा, तो कारण और प्रभाव के नियम का उल्लंघन होगा।) ये उसकी बात है। वो ये कह रहा है कि जब बुद्ध ने किसी का शिष्यत्व नहीं स्वीकारा, तो मैं बुद्ध का शिष्यत्व क्यों स्वीकारुँ। अपनी तरफ़ से सिद्धार्थ होशियारी करता है। असल में सिद्धार्थ नाम भी इसीलिए दिया गया है। वो जो बुद्ध होने से पहले है। तो सिद्धार्थ अपनी ओर से होशियारी करता है, और कहता है, ‘देखो, जब बुद्ध किसी के शिष्य नहीं बने, और स्वयं अपना मार्ग खोज लिया, तो मैं बुद्ध का शिष्य क्यों बनूँ?’ पर ये मज़ाक है। मज़ाक इसलिए है क्योंकि ये कहकर भी उसने बुद्ध की ही तो नकल कर ली। समझो बात को।
वो कह रहा है कि बुद्ध किसी के शिष्य नहीं बने, तो मैं बुद्ध का शिष्य नहीं बनूँगा। ये कहकर वो क्या कर रहा है? ये कहकर बुद्ध की नकल कर रहा है, वास्तव में शिष्य बन गया। लेकिन ये बात उसको तब समझ में नहीं आती है, भटकता है, बहुत ठोकरें खाता है। और अन्ततः शिष्य बनता है। किसका? ए फेरीमैन। वहाँ बैठकर के, उससे सीखता है।
प्रश्नकर्ता: ये जितने भी जितने बिलव्ड (प्रियतम) के लिए तड़प रहे हैं, उनकी तो शोभा बढ़ाती है या…
आचार्य प्रशांत: वो बिलव्ड कुछ नहीं है। एक बात ध्यान रखिएगा, भगवान कुछ नहीं होते, भक्ति सब कुछ होती है। गुरु कोई नहीं होता, शिष्यत्व सब कुछ होता है। बिलव्ड कुछ नहीं होता, लव सबकुछ होता है।
आपने बिलव्ड को कुछ बना दिया, तो फिर उसको आपने अपने कल्पना के दायरे में डाल दिया कि वो तो ऐसा है। अँधा प्यार करता है संत। वो कहता है, ‘मैं नहीं जानता वो कौन है! मैं बस इतना जानता हूँ कि प्यार है। और मेरा प्यार इस बात की गवाही है कि वो है।‘
वो ये नहीं कहता कि वो कौन है, वो तो बस इतना कहता है कि हम नहीं जानते तुम कौन हो, हम तो इतना जानते हैं कि तुमसे प्यार है। हम नहीं जानते भगवान कौन हैं। हम इतना जानते हैं हम भक्त हैं। भगवान कौन है ये जानने में कोई रुचि नहीं है हमारी। हम भक्त हैं, इतना काफ़ी है। गुरु कौन है हम जानना नहीं चाहते। गुरु को समझने में हमारी रुचि, कोई रुचि नहीं। गुरु के बारे में व्यक्तिगत सूचनाएँ इकट्ठा करने में हमारी रुचि नहीं। हम इतना जानते हैं, हम शिष्य हैं, हमें सीखना है। तो ये जिज्ञासा कोई रखने वाली नहीं है कि वो बिलव्ड कौन है! ज़रा उसके बारे में बताओ।
मैं बताऊँ, आपको बता दिया गया तो आप क्या करोगे? आप उसका चित्रान्वेशन करके, कुछ-न-कुछ गलती निकालकर, उससे बचने के उपाय ढूँढ लोगे। आपसे कहा जाएगा कि वो बड़ा सुंदर है, आप कहोगे, ‘उससे सुंदर भी कोई होगा।‘ आपसे कहा जाएगा, ‘परम बलशाली है।‘ आप कहोगे, ‘उससे बलशाली भी कोई होगा।‘ आपसे कहा जाएगा, ‘वो ऐसा-वैसा करता है,’ आप कहोगे, ‘जैसा करता है उससे बेहतर भी कुछ हो ही सकता होगा।‘ उसके बारे में जानना माने उसे अपने मन के धरातल पर उतार लेना। उसे अपने मन के धरातल पर उतारा नहीं कि उसे अपने जैसा बना लिया। अब क्या प्रेम करोगे उससे?