हार मोतियों का हज़ार बार भी टूटेगा तो उसे तुम हज़ार बार जोड़ोगे, बार-बार जोड़ो! सुजन अगर रूठ जाएँ, तो बार-बार मनाओ क्योंकि उनसे प्यास बुझती है।
पर जिससे प्यास बुझती ना हो, उससे बस आदतवश जुड़े हो, भ्रमवश, धारणावश जुड़े हो, इसलिए जुड़े हो कि बीस साल से जुड़े हैं तो जुड़े ही हुए हैं, कि बीस साल से ग़लत गोली खा रहे थे तो अब खाते ही रहेंगे, कि बीस साल से ग़लत रास्ते जा रहे थे तो अब जाते ही रहेंगे। ये कोई बात नहीं हुई।
तो बस यही सवाल पूछ लो कि, “जिससे अटैचड (जुड़े हुए) हैं वो प्यास बुझा भी रहा कि नहीं?” कहीं ऐसा तो नहीं कि खाली जाम ही पकड़ रखा है, बार-बार होठों से लगाते हैं। इतनी बार होठों से लगाया है कि होंठ ही कटने लगे हैं। प्याले में पानी तो नहीं हमारा अब खून बढ़ता जा रहा है – यह हुआ *अटैचमेंट*।