प्यार है या कारोबार?

Acharya Prashant

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प्यार है या कारोबार?

आचार्य प्रशांत: प्रेम और कारोबार के नियम अलग-अलग होते हैं। कारोबार का नियम है कि अगर लिया है तो लौटाना पड़ेगा, और प्रेम का नियम होता है कि मिला हो चाहे न मिला हो, बाँटना पड़ेगा। प्रेम यह देखता ही नहीं मिला कितना और कारोबार अगर यह न देखे कि मिला कितना तो बंद हो जाएगा।

दोनों के नियमों का पालन करना सीखिए। अगर कारोबारी रिश्ता है तो जितना लिया है उसको ज़रूर लौटाइए वरना बेईमानी कहलाएगी। लेकिन उसके लिए स्वीकार करिए न कि रिश्ता कारोबारी है, व्यावसायिक है। फिर जितना लिया है पाई-पाई लौटाइए, बिलकुल, एक पैसा अपने ऊपर मत रखिएगा। और अगर रिश्ता वाकई प्रेमपूर्ण है, शुद्ध प्रेम है, तो फिर यह देखिए मत कि कितना मिला। फिर तो बस दिए जाइए, दिए जाइए, गिनिए ही मत। लेकिन यह भेद सीखिए, यह विवेक रखिए कि रिश्ता अपने आधार में, बुनियादी रूप से कारोबारी है या आत्मिक है, इन दोनों रिश्तों के नियम अलग हैं इसलिए।

कारोबार के नियम प्रेम पर लगा दोगे बहुत भूल हो जाएगी, और प्रेम के नियम कारोबार में लगा दिए तो?

कारोबार ठप्प हो जाएगा।

हम दोनों गलतियाँ करते हैं। कारोबार के नियम प्रेम पर लगाते हैं, कहते हैं, "देखो मैं तो उसे इतना प्यार करता हूँ वह मुझे प्यार करता नहीं!" कहते हैं कि नहीं कहते? यह हमारी आम शिकायत है न? कि, "मैंने इतना प्यार दिया, मुझे प्रेम मिला नहीं!" प्यार कर रहे हो, धंधा कर रहे हो? गिनती लिखते हो, तराजू रख कर के बैठे हो? कि मैं दो किलो दे रहा हूँ, सवा-दो किलो लौटा देना। लेकिन जिसको देखो यही शिकायत लेकर के घूम रहा है, दिया तो हमने बहुत प्यार, पाया कुछ नहीं। इश्क़-ए-शहीद हैं हम। हम जिंदगी में और कहीं पर शहादत दे पाएँ न दे पाएँ, इश्क़ के मैदान में सब शहीद हैं, और बड़ी रुचिकर लगती है ऐसी शहादत।

प्रेम में गिना नहीं जाता और कारोबार में बिना गिने कुछ कर मत लेना। हम कारोबार में काम कर जाते हैं बिना गिने। "हाँ-हाँ-हाँ ले जाइए, कोई बात नहीं आपकी ही दुकान है, कल दे दीजिएगा। पूछ भी नहीं रहे साफ-साफ कि कितना ले जा रहे हो और ठीक-ठीक कब लौटाओगे? यहाँ पर भावनाएँ घुसेड़ दी। कारोबार में भावनाएँ डाल दी, अब धंधा ठप्प पड़े तो किसकी गलती है? क्योंकि दोनों का तल अलग हैं, दोनों के नियम और सिद्धान्त अलग हैं।

दुनिया धूल-मिट्टी है, धूल-मिट्टी का वज़न होता है, उसे नापा जा सकता है, उसे नापा जाना चाहिए। प्रेम कहीं और की बात है, वह नापी नहीं जा सकती, उसे नापने की कोशिश भी मत करिए। हम मामला बिलकुल मिश्रित कर देते हैं, गुत्थम-गुत्था, कुछ पता ही नहीं कि कारोबार चल रहा है कि प्रेम चल रहा है, कुछ पता ही नहीं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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