प्रश्न: सर अगर हम अपने दिल की बात किसी से जा कर कहते हैं तो डर लगता है कि कहीं उसने स्वीकार नहीं किया तो क्या होगा? तो आप ही बताइये कि हम कैसे जानें कि वो क्या सोचेगी?
वक्ता: नाम क्या है? अरे लड़की का नहीं, तुम्हारा । अरुण! अब शांत हो जाओ तो कुछ कहूँ। अरुण ने कहा कि ऐसा लगता है किसी से प्रेम है पर हिम्मत नहीं पड़ती कि कुछ कहूँ। तो बताइए क्या करना चाहिए? एहसान करो अपने आप पर और उस पर कि कुछ ना कहो क्योंकि वो प्रेम है ही नहीं जो डरता हो। ये कोई नकली सी चीज़ है, कोई वासना होगी, कोई स्वार्थ होगा, इसी कारण डर है। प्रेम का अर्थ होता है अपने स्वार्थ से ऊपर उठ कर, दूसरे की भलाई, उसमें डर तो नहीं लगेगा। डर तब ज़रूर लगता है जब किसी से चोरी करने जा रहा हूँ। निश्चित रूप से कोई चाह होगी, कुछ मांगने जा रहे होगे, तब डर लग सकता है। देने में तो डर नहीं होता, मांगने में डर होता है।
हम प्रेम नहीं जानते, प्रेम के नाम पर आकर्षण जानते हैं और आकर्षण बिल्कुल मुर्दा चीज़ है। प्रेम से ज्यादा ज़िंदा कुछ नहीं और आकर्षण से ज़्यादा मुर्दा कुछ नहीं। आकर्षण तो वैसा ही है जैसा कि दो रसायन आपस में मिल जाएँ, उनमें भी आकर्षण होता है आपस में, खूब आकर्षण होता है। लोहे और चुम्बक में आकर्षण होता है, वो प्रेम तो नहीं है, वो प्रेम तो नहीं है। एक ख़ास उम्र में आते हो, शरीर में कुछ रासायनिक क्रियाएँ शुरू हो जाती हैं, हॉर्मोन्स एक्टिव हो जाते हैं, इस कारण तुम्हारा शरीर किसी दूसरे शरीर की तरफ आकर्षित होना शुरू हो जाता है। तो ये प्रेम तो नहीं है। ये तो इधर के रसायन हैं जो उधर के रसायन से मिल जाना चाहते हैं और एक केमिकल रिएक्शन हो जाए, बस यही प्रकृति की इच्छा है। इसमें प्रेम कहाँ है ? पर तुम्हारी इसमें कोई ख़ास गलती नहीं क्योंकि तुमने बचपन से और कुछ देखा ही नहीं। एक जवान लड़का, एक जवान लड़की के पास जाता है और पीछे से गाना बजना शुरू हो जाता है, दिल-विल प्यार-व्यार और तुमने समझ लिया कि यही प्यार है। ये प्यार नहीं है, फूहड़पन है। गुलाल उड़ेगा और ढपली बजेगी और लड़का और लड़की दोनों आकर्षक होंगे। तुम्हें बड़ा आनन्द आता है, तुम्हें लगता है कि शायद इसी को प्यार कहते हैं ।
श्रोता १: सर आज से आठ साल पहले अगर प्यार हुआ हो तो ?
वक्ता: आज से आठ साल पहले, या दो महीने पहले भी, हर केमिकल हर दूसरे केमिकल से थोड़े ही रियेक्ट करता है। तुम्हारी भी अपनी कंडीशनिंग है। तुम हर किसी की तरफ थोड़े ही ना आकर्षित होंगे। भारत में पैदा हुए हो, यहाँ गोरी चमड़ी पर बहुत ज़ोर है, अंग्रेज़ों की गुलामी। तो तुम्हारा मन पहले ही संस्कार से भरा हुआ है कि इस तरीके का शरीर दिखेगा तो उसके प्रति आकर्षित हो जाना है। दिख गया तो हो गए आकर्षित। अभी तक नहीं दिखा था, या दिखा भी था तो संस्कार ये हैं कि इतनी पढ़ी-लिखी होनी चाहिए, या इस जाति की होनी चाहिए, इस धर्म की होनी चाहिए, इस उम्र की होनी चाहिए, वो अभी तक नहीं मिली होगी। वो मिल गयी तो चल दिए उधर को। इसमें तुम कहाँ पर हो ? पूछो अपने आप से, ये वाकई प्रेम है? हमारे मन में पहले ही खाका खिंचा हुआ है कि हमें कैसे लोग आकर्षक लगते हैं। इसका प्रमाण जानना चाहते हो? जितने शादी के मैट्रिमोनियल पोर्टल्स होते हैं वो तुमसे पूछते हैं कि कैसा लड़का, कैसी लड़की चाहिए, और लोग उसमें पूरा भर देते हैं कि उन्हें कैसी लड़की या लड़का चाहिए। उन्हें ठीक-ठीक पता है: इतनी उम्र हो, इतनी आमदनी हो, घरवालों के साथ रहता है कि नहीं रहता, ये पहले से पता हो, इस धर्म का हो, इस जाति का हो, इस गोत्र का हो, खाल का रंग ऐसा हो,शाकाहारी हो कि मांसाहारी हो। तुम्हारे मन में तुम्हारे संस्कारों ने पहले ही बात बैठा दी है। उससे मिलता जुलता जैसे ही तुम्हें कोई मिलेगा, तुम निकल लोगे और कहोगे कि प्रेम हो गया है। प्रेम नहीं हो गया है, रसायनिक प्रक्रिया हो रही है। एक रसायन उत्तेजित हो रहा है दूसरे से मिल जाने के लिए। उसको प्रेम मत समझ लेना, प्रेम अलग ही चीज़ है। पहले इतना मान गए कि ये नहीं है प्रेम? इतनी जल्दी मान गए! तो जब पता ही है कि प्रेम क्या है फिर क्यों पूछ रहे हो? प्रेम तो तुम जानते ही हो। हिम्मत इसलिए नहीं पड़ रही क्योंकि तुम्हारा एक हिस्सा वो भी है, कि मैं सिर्फ कुछ पाने के लिए जा रहा हूँ और प्रमाण ये है कि जो पाने जा रहे हो वो ना मिले उससे तो छह महीने में उसे छोड़ दोगे। आकर्षण का अर्थ ही है इच्छा। हमें चाहिए होता है कुछ, वो ना मिले तो गए ।
पश्चिमी देशों में तलाक हो जाते हैं इसी बात पर कि मैंने जिससे शादी की थी वो आदमी पैंसठ किलो का था और दो साल में ये हो गया है पिच्चानवे किलो का और इस बात को एक वैध कारण माना जाता है तलाक देने का। हाँ ठीक। आपने जो पैकेज खरीदा था वो कुछ और था, दो साल में वो कुछ और निकला, हटाओ। तुम जिस चेहरे के प्रति आकर्षित हो रहे थे वो चेहरा आज बदल जाए, तुम्हारा आकर्षण खत्म हो जाना है। जिस चहरे के प्रति आकर्षित हो रहे हो, उस पर कोई तेज़ाब डाल दे, बहुत बेवक़ूफ़ घूम रहे हैं, करते हैं यही काम, हिंसक पशुओं की कमी नहीं, वो यही करते घूमते हैं, और ये काम अगर हो जाए तो जिसको अपनी प्रेमिका कह रहे हो, उसी से दूर-दूर भागोगे। ये तो हमारे प्रेम की असलियत है क्योंकि तुम्हें चाहिए ही यही, शरीर। यही शरीर अगर उजड़ जाए तो फिर कुछ नहीं बचा। ‘प्रेम क्या है?’ ये बाद में पूछना,पहले ये तो साफ़-साफ़ देखो कि ये प्रेम नहीं है। ये कुछ और हो रहा है, और ये सब जानवरों को होता है कि एक उम्र आने पर, एक मौसम आने पर, सड़क पर, प्रेम ही प्रेम !
*(सभी श्रोता हंसते हैं)*
वक्ता: पर वो इतने समझदार हैं कि ये ना कहें कि ये प्रेम है। वो जानते हैं कि ये क्या है। वो भी ऐसे ही भागते हैं और तुम उन्हें रोक कर दिखाओ। रोएगा, दुखी हो जाएगा। हमारे यहाँ एक कुत्ता था, उसको बाँध कर रखते थे, रात में रोये खूब, समझ में ही नहीं आया। फिर एक ने बताया कि इनका सीजन चल रहा है, रात में छोड़ दिया करो। अब ये प्रेमी कुत्ता है, सुबह वापिस आये बिल्कुल तर। जीवन आनंदपूर्ण है और हम प्रेमी हैं। हमें उससे अलग ज्यादा कुछ नहीं चाहिए, हमें भी वही सब चाहिए। प्रेम अगर मिल गया एक बार, तो किसी दूसरे की तलाश छोड़ दोगे।
प्रेम किसी व्यक्ति में निहित नहीं होता, प्रेम कोई तलाश नहीं है कि कोई मिल जाए। दूसरे की तलाश का बंद हो जाना ही प्रेम है। प्रेम का अर्थ है कि मैं इतना भर गया हूँ आनन्द से कि अब सिर्फ बाँट सकता हूँ। कोई मेरे जीवन में आकर मेरे अधूरापन को पूरा कर दे, तो इस भाव का नाम प्रेम नहीं है। हमारा भाव यही है कि तेरे बिना मैं अधूरा हूँ। इस बात का नाम प्रेम नहीं है। प्रेम वो नहीं है कि जब तुम किसी की कमी महसूस करते हो। प्रेम का अर्थ है कि मुझे तो किसी की जरूरत ही नहीं है। और तुम ऐसे भरे हुए हो कि तुम्हारे जीवन में जो भी कोई आता है, तुम उसी से प्रेमपूर्ण हो जाते हो। तुम्हें किताब से प्रेम है, तुम्हें जीवन से प्रेम है, तुम्हें प्रतिपल प्रेम है। तुम प्रेमपूर्ण हो गए हो और वो सीमित नहीं है किसी व्यक्ति या वस्तु के प्रति। प्रेम ऐसा नहीं होता कि तू तो मेरी प्रेमिका है और बाकि सारी दुनिया से मैं लड़ रहा हूँ तलवार ले कर। जब तुम प्रेम जानोगे तो प्रेम हो जाओगे। फिर पूरी दुनिया के प्रति प्रेमपूर्ण रहोगे। डर कैसा?
प्रेम का तो अर्थ है जीवन में पूरी क्रान्ति आ गयी, सब बदल गया कुछ पाने को नहीं है अब। इतना पा लिया है कि सिर्फ बाँट सकता हूँ। प्रेम याचना करने नहीं जाता कि मेरी प्रेमिका बन जाओ, ये लो फूल, और उसने मना कर दिया तो घूम रहे हैं बन कर देवदास। ये प्रेम है? और दिल धड़का जा रहा है, सहमा जा रहा है कि हाँ करेगी, या ना करेगी। और यही हाल दूसरी तरफ भी है कि पड़ोसन को तो तीन-चार प्रपोजल आ चुके हैं, मुझे एक भी नहीं। ये प्रेम है? फूहड़ता है। ये तुमने दो कौड़ी की चीज़ को बहुत अच्छा सा नाम दे दिया है, प्रेम। प्रेम तो तुम्हारी आतंरिक मौज है। जो तुम्हारे संपर्क में आएगा उसी तक पहुँचेगी। बस में जा रहे हो,बगल में कोई बैठा है, उसके साथ सम्बन्ध प्रेमपूर्ण बिताओगे। सड़क पर जानवर भी है तो उसको पत्थर नहीं मारने लगोगे, इतना ज़रूर करोगे कि भूखा है तो रोटी दे दोगे।
जब ये हो जाए कि समष्टि के प्रति ही बाँटने का भाव आ जाए, तो समझना कि प्रेम है। और जब तक प्रेम व्यतिगत है, पर्सनल है, किसी ख़ास आदमी के प्रति है, तो समझना कि ये प्रेम नहीं है आकर्षण है। जब तक बेचैनी है, रो रहे हो और तड़प रहे हो, विरह की आग जलाए देती है, वो प्रेम नहीं है, वो कुछ और चल रहा है। प्रेम में कोई आग नहीं होती।
श्रोता २: जिस लड़की से मैं प्यार करता हूँ अगर कोई उसको कुछ बोल दे, तो मैं उससे लड़ने को तैयार हो जाता हूँ। क्या यह प्रेम नहीं?
वक्ता: वो तो लड़ोगे ही। तुम जिसको प्रेम कह रहे हो उसका अर्थ है दावेदारी। कोई चीज़ तुम्हारी हो गई। जो चीज़ तुम्हारी हो जाए उसमें तुम बर्दाश्त थोड़े ही करोगे कि उस पर कोई उँगली उठाये। क्या तुम्हें अच्छा लगता है जब कोई तुम्हारी बाइक को ख़राब बोलता है? क्या तुम्हें अच्छा लगता है जब कोई तुम्हारी पैंट को खराब बोलता है? तो जैसे अपनी पैंट की परवाह करते हो, वैसे ही अपनी प्रेमिका की परवाह कर रहे हो। मेरी है ! ये पैंट मेरी है, ये प्रेमिका मेरी है, तो परवाह कर रहे हो। इस परवाह का नाम प्रेम नहीं है। ये माल्कियत है। ये दावेदारी है ।
‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।