प्रेम पाओ, प्रेम बाँटो || आचार्य प्रशांत, यीशु मसीह पर (2014)

Acharya Prashant

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प्रेम पाओ, प्रेम बाँटो || आचार्य प्रशांत, यीशु मसीह पर (2014)

“And though I bestow all my goods to feed the poor and though I give my body to be burnt and have not charity, it profiteth me nothing.”

(Corinthians 13:3 )

(और यद्यपि मैं अपने सभी सामानों को गरीबों को खिलाने के लिए देता हूँ और हालांकि मैं अपने शरीर को जलाने के लिए देता हूँ और दान नहीं करता हूँ, इससे मुझे कुछ भी लाभ नहीं होता )

(१ कोरिंथियन १३:३)

आचार्य प्रशांत : बाँटना सिर्फ प्रेम में शोभा देता है । बिना प्रेम के अगर तुमने किसी को कुछ दिया, तो पक्का है कि कुछ वापसी की उम्मीद कर रहे हो । पक्का है कि कुछ बदले में चाहिए ! और इसलिए तुम्हें उससे कुछ मिलेगा नहीं, अपने बाँटने से । मज़ेदार बात है ना?

जिन्हें चाहिए कि मैं दे रहा हूँ तो बदले में कुछ मिले, उन्हें कुछ नहीं मिलता । और जो बिना अपेक्षा के देते हैं, उन्हें बहुत कुछ मिल जाता है । मतलब समझना । तुम अगर अपेक्षा कर के दोगे तो मिलेगा तुम्हें, क्या मिलेगा ? जो तुमने अपेक्षा की थी वो मिल जायेगा । तुमने रूपये की अपेक्षा की थी, मिल गया । तुमने ये अपेक्षा की थी कि वो एहसान माने? वो भी मिल गया । लेकिन ये जो मिला है इसकी कोई क़ीमत नहीं है । जो मिल सकता था तुम्हें वो बहुत बड़ा था । वो क्या था? कि अगर तुमने दिया प्रेम में, बाँटा; क्योंकि अब इतना मिल गया है कि अब बँटेगा ही, तो तुम्हें और मिलेगा ।

बाँटने का लाभ क्या है? बाँटने का लाभ ये है कि जो बाँटता है उसको और मिलता है, कि वो और बाँटे ।

ये नियम है मन का । जो बाँटेगा उसकी धार कभी सूखेगी नहीं । उसे पीछे से और मिलता ही जायेगा, मिलता ही जायेगा, कि ले तू बाँट रहा है तो और ले ।

देखो, तुम्हारी दुनिया के नियम और अस्तित्व के नियम बड़े अलग-अलग हैं । तुम्हारी दुनिया के जो नियम हैं ना, वो तो बड़े काल्पनिक हैं, मन ने यूँ ही गढ़ लिए हैं । तुम्हारी दुनिया के नियम कहते हैं कि जितनी चादर हो उतने पाँव फैलाओ । और अस्तित्व कहता है, तुम पाँव खूब फैलाओ, चादर अपने आप बढ़ती जाएगी ।

अस्तित्व कहता है, तुम पाँव फैलाओ, चादर बढ़ जाएगी ।

एक बड़ी मज़ेदार सूफ़ी कहानी है, जो कहती है कि – एक सूफ़ी था, मस्त । फाँका मस्त । फाँका मस्त समझते हो? गरीब है, उसी में मस्त है । हाँ, वो खूब मिलता-जुलता था लोगों से, प्रेम का व्यवहार रखता था । तो एक दफ़ा बैठा खाना खा रहा था और रोटी के बर्तन में कुल दो रोटियाँ रखी थी । एक उसके लिए, एक उसकी बीवी के लिए । एक दोनों ने खा ली थी आधी आधी बाँट कर के, दूसरी खाने जा रहे थे । कि तभी दो तीन मेहमान आ गए । और इसने उनको देखा और गदगद हो गया । बोला, धन्यभाग, खाते समय तुम आये, बैठो । उनके लिए एक पतली सी दरी बिछा दी, बैठो… बैठो…बैठो । खाना खा के ही जाना ।

अब बीवी उसकी शक्ल देख रही है । कहती है, खाना खा कर के जाना ! ना आटा है, ना तेल है, ना सब्ज़ी है, क्या खिलाने वाला है ये? एक रोटी रखी है बर्तन में । और वो कह रहा है, अरे! बैठो बैठो बैठो, आज तो भोज है । बीवी उसको किनारे ले गयी, बोली क्या कर रहे हो? क्या चाहते हो? एक रोटी में कितने लोगों को खिलाओगे? वो बोला, एक काम करो, एक कपड़ा ले के आओ और बरतन का मुँह ढक दो । बीवी ने कहा, ये वही है जो मैं इसे समझती हूँ !

क्या करती लेकिन, उसने कहा जो ये चाहे ! एक कपड़ा ले के आयीं, उसका मुँह ढक दिया । उसने मेहमानो से कहा, जो चाहिए इसमें से निकालते रहो, कपड़ा मत हटाना बस । हाथ डालना, निकालते रहना । कहानी कहती है, वो खाते गए, खाते गए, बर्तन खाली नहीं हुआ । और मेहमान आये, वो भी खाते गए, बर्तन खाली नहीं हुआ । बीवी ये सब देख रही थी । कि एक तरफ तो अल्लाह को शुक्र दे रही थी, कि तेरा जादू और दूसरी ओर मन बारबार कौतूहल में भी जा रहा था, ये हो कैसे रहा है? सब जब चले गए, तो गयी, कपड़ा हटाया, कि मामला क्या है? देखती है उसमें एक रोटी रखी हुई थी । एक रोटी ।

तुम बाँटते जाओ, तुम्हें मिलता जायेगा ।

तुम बाँटने के लिए माँगों, फिर देखो तुम्हें मिलता है या नहीं ! अगर ज़िंदगी भर तुमने माँगा है और तुमने पाया है कि तुम्हारी प्रार्थना का कोई जवाब नहीं आता । तो वो इसलिए नहीं आता क्योंकि तुमने अपने लिए माँगा है । तुम बाँटने के लिए माँगो, फिर देखो कि मिलता है कि नहीं मिलता? पक्का मिलेगा । जिस क्षण तक बाँटते रहोगे उस क्षण तक पाते रहोगे ।

श्रोता: आचार्य जी, जिसे कहते हैं ना ‘मैजिक’, तो ये असली हो सकती है बात?

आचार्य जी: बेटा सांकेतिक है, इसका मतलब ये है कि काम हो जायेगा । कैसे हो जायेगा, पूछो मत । ये मत पूछो कैसे हो जायेगा । कपड़ा रखने का अर्थ ये है कि कपड़े के नीचे क्या हो रहा है ये तुम्हारी आँखे नहीं देख पाएँगी । वो तुम्हारे मन के पार की बात है, इसलिए कहा कि कपड़ा रख दो । तुम्हारी आँखें देख नहीं पाएँगी, समझ नहीं पाएंगी ये क्या हो रहा है !

श्रोता : जितने भी ऐसे करिश्माई किस्से हैं, उनमें गोपनीयता का बड़ा स्थान है ।

छुपा के रखना । तो वो इसी का सूचक है !

आचार्य जी: हाँ । मन समझ नहीं पायेगा । तुम देख भी लोगे तो कुछ समझ नहीं पाओगे, जादू और टूट जायेगा ।

श्रोता : आचार्य जी, कृष्ण और पांडव के साथ भी यही हुआ था ।

आचार्य जी: हाँ, चावल का एक दाना । बिलकुल यही कहानी है । द्रौपदी ने उससे पता नहीं कितने ब्राह्मणों को खिला दिया, एक दाना था चावल का । इन कहानियों को तथ्यों के तराज़ू पर मत तौलना, कि कैसे एक चावल से इतने लोगों को खिला दिया द्रौपदी ने? ये कहानियाँ तुम्हें तथ्य बताने के लिए नहीं हैं । ये कहानियाँ तुम्हें अस्तित्वगत ‘सत्य’ बताने के लिए हैं, बात समझना ।

‘तथ्य’ जानना है तो विज्ञान की ओर जाओ, वो बता देगा । ‘सत्य’ जानना है तो संत के पास जाओ ।

चावल के एक दाने से पाँच लोगों का पेट नहीं भर सकता, ये तथ्य है । और ये बिलकुल सटीक, ठोस तथ्य है । कोई शक़ नहीं । लेकिन श्रद्धा बड़े-बड़े कमाल कर देती है, जो हो नहीं सकता वो होने लग जाता है – ये ‘सत्य’ है । और इसका प्रमाण, तुम्हें ना आँखें देंगी, ना मन देगा, ना विज्ञान देगा ।

श्रोता : इसमें एक लाइन है – *“व्हाट* इस इम्पॉसिबल फॉर मैन इस पॉसिबल फॉर *गॉड ”* ( जो मनुष्य के लिए असम्भव है, वो ईश्वर के लिए सम्भव है।)

आचार्य जी: *“व्हाट* इस इम्पॉसिबल फॉर मैन इस पॉसिबल फॉर *गॉड ”*, ( जो मनुष्य के लिए असम्भव है, वो ईश्वर के लिए सम्भव है।) बहुत बढ़िया ।

एंड दो आई बेस्टो ऑल माई गुड्स टू फीड पुअर , एंड दो आई गिव माई बॉडी टू बी बर्न्ड , एंड हैव नॉट चैरिटी , इट प्रोफिटेथ मी नथिंग चैरिटी सफ्फेरेथ लॉन्ग एंड इस काईंड ” (और यद्यपि मैं अपने सभी सामानों को गरीबों को खिलाने के लिए देता हूँ और हालांकि मैं अपने शरीर को जलाने के लिए देता हूँ और दान नहीं करता हूँ, इससे मुझे कुछ भी लाभ नहीं होता, दान लंबे समय तक पीड़ित है और दयालु है)

याद है वो वीडियो जिसका शीर्षक दिया था – लव हैस ग्रेट एनर्जी एंड पेशेंस (प्रेम में बड़ी ऊर्जा और धैर्य है।) ठीक वही बात लिखी है – चैरिटी सफ्फेरेथ लॉन्ग एंड इस काईंड , चैरिटी एनविएथ नॉट (दान लंबे समय तक पीड़ित है, और दयालु है; दान ईर्ष्या नहीं है।) लव इस नॉट पोस्सेस्सिवनेस्स *(प्यार स्वामित्व नहीं है **)*, याद है? “ चैरिटी एनविएथ नॉट , चैरटी वनटेथ नॉट इटसेल्फ *(दान ईर्ष्या नहीं है; दान खुद नहीं है * ।)

प्रेम अपनी वासनाएँ पूरी करने का नाम नहीं है । प्रेम, अपने मन के उछाल का नाम नहीं है । इस नॉट पफ्ड अप , बट नॉट बिहेव इटसेल्फ अनसीमली सीकथ नॉट हर ओन , इस नॉट इसिली प्रोवोक्ड , थिन्केथ नो ईविल , रेजोयिसेथ नॉट इन इनइक्विटी , बट रेजोयिसेथ इन ट्रुथ बेअरेथ ऑल थिंग्स , बीलीवेथ ऑल थिंग्स , होपेथ ऑल थिंग्स , एंड्यूरेथ ऑल थिंग्स (फुसफुसाया नहीं है,अपने आप को अनैतिक व्यवहार नहीं करते हैं, खुद की तलाश नहीं करते हैं, आसानी से उत्तेजित नहीं होते हैं, कोई बुराई नहीं सोचते हैं;पाप में आनन्द नहीं करता, परन्तु सत्य में आनन्दित होता है;सभी चीजों को मारो, सब कुछ विश्वास करता है, सब कुछ आशा करता है, सब कुछ सहन करता है।)

अगर मुश्क़िल, मुश्क़िल लग रही है, तो इसका अर्थ यही है कि ‘प्रेम’ की कमी है क्योंकि प्रेम जब होता है तब मुश्क़िल मुश्क़िल लगती नहीं ।

अगर समय की कमी आड़े आ रही है, ऊर्जा की कमी आड़े आ रही है, ध्यान की कमी आड़े आ रही है, तो ये ना कहना कि समय ऊर्जा या ध्यान की कमी है । सीधे कहना, प्रेम की कमी है । अगर लग रहा है कि काम असम्भव है, अगर लग रहा है कि कह तो दिया सौ बार कि बाँटो, पर बाँटने के लिए कुछ है ही नहीं । तो ये ना कहना कि बाँटने के लिए कुछ नहीं है, ये कहना ‘प्रेम’ नहीं है । ‘प्रेम’ होता तो बाँटने के लिए मिल जाता ।

तुम बताना चाह रहे हो, समझाना चाह रहे हो, बाँटना चाह रहे हो, और कोई लेने को, समझने को तैयार नहीं है; तो ये ना कहना कि उसके मन में खोट है या उसकी बुद्धि नहीं चलती, या वो समझने को उत्सुक ही नहीं है, या उसका समय अभी नहीं आया है । कोई बहाना मत बनाना । सीधे कहना, अभी मैं ही नहीं पका हूँ पूरा । अभी मैंने ही इतना नहीं पाया है कि सब तक पहुँच सके ।

‘प्रेम’ शिकायत करता नहीं ।

क्या शिकायत करेगा? ‘प्रेम’ है, तो अब और चाहिए क्या? अब शिकायत के लिए बचा क्या? ऊँचे से ऊँचा जो हो सकता है वो मिल गया, अब काहे के लिए शिकायत करोगे?

प्राप्ति का शिखर होता है ‘प्रेम’ । ये पाया, वो पाया, सब पाया, और वो सब अधूरा रह गया अगर ‘प्रेम’ ना पाया । तो सब से ऊँचा ‘वो’ है, शिखर वो है । जिसको शिखर ही मिल गया अब वो नीचे वाली चीज़ों के लिए क्यूँ रोएगा? मुश्किल अगर लग रही है तो समझ लेना कि ! बड़ा खूबसूरत गाना है, कि “तेरा साथ है तो मुझे क्या कमी है, कि अंधेरों में भी मिल रही रौशनी है, मुझे हर मुश्किल अब सरल लग रही है, ये झोपड़ी भी अब महल लग रही है ।” प्रेम होता है तो मुश्किल अपने आप सरल हो जाती है । तुम्हारी मुश्किल अगर सरल नहीं हो रही है तो मुश्किल को दोष मत देना । तुम्हें अगर अभी झोपड़ी से शिकायत है, तो झोपड़ी को दोष मत देना ।

प्रेम होगा तो झोपड़ी महल जैसी लगेगी ।

तेरा साथ है तो मुझे क्या कमी है? अगर अभी कमी का एहसास बना ही हुआ है तो अर्थ इतना ही है कि साथ नहीं मिला । ‘योग’ नहीं हुआ । आत्मा तक नहीं पहुँचे ।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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