पेट चल रहा, मन जल रहा || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

Acharya Prashant

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पेट चल रहा, मन जल रहा || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

आचार्य प्रशांत: ऐसे तरीक़े से कमाकर क्या करोगे जिसमें तुम्हारा मन टिकना ही नहीं चाहता? पेटभर चलता रहेगा, मन जलता रहेगा, ऐसे जीना है? पेट फूल जाएगा, मन राख हो जाएगा, ऐसे जीना है?

ऐसे नहीं देखा जाता रोज़गार को या आमदनी के स्रोत को कि पहले कुछ कमाने लगें फिर कमाई के आधार पर अपनी रुचियाँ ढूँढेंगे, अपना प्रेम ढूँढेंगे। ऐसे नहीं होता, उल्टा होता है; पहले ढूँढो कि क्या करते हुए शान्त हो जाते हो। पहले ढूँढो कि क्या है जो तुम्हारे मन को रोशनी देता है, तृप्त कर देता है और फिर ये ढूँढो कि ऐसे काम से पैसा कैसे कमा सकते हैं।

वो काम कुछ भी हो सकता है, मैं तो कह रहा हूँ तुम्हें पतंग उड़ाना अच्छा लगता है तो फिर ढूँढो कि पतंगबाज़ी से निर्वाह कैसे होगा। और जब मैं कह रहा हूँ कि पतंग उड़ाना अच्छा लगता है तो उसका मतलब ये नहीं है कि उससे तुम्हें प्रतिस्पर्धा का मज़ा मिलता है, रोमांच आता है इत्यादि।

काम वो होना चाहिए जो बिलकुल भिगा दे। जिसे डूबकर ही कर सको। कर्म माने गति; मन की गति, तन की गति और गति का तो एक ही उद्देश्य है, अगति तक पहुँचना, शान्ति तक पहुँचना।

तो वो काम कुछ भी हो सकता है, अगर वो काम तुम्हारे मन का है तो उसके बाद सृजनात्मकता इसमें लगाओ कि काम तो अब यही करेंगे, और कुछ नहीं करने वाले, ये करते-करते क्या विधि लगाएँ कि कुछ पैसा भी मिल जाए। कुछ पैसा ‘भी’ मिल जाए। कुछ पैसा?

श्रोतागण: भी मिल जाए।

आचार्य: भी मिल जाए। काम से जो मूलत: मिलना है वो तो मिल ही रहा है, मूलत: क्या चाहिए काम से?

श्रोता: शान्ति।

आचार्य: शान्ति, तो सबसे पहले ये देखना है कि काम से शान्ति मिलनी चाहिए, जब स्पष्ट हो जाए कि काम से शान्ति तो मिलती-ही-मिलती है तब ये सवाल पूछो अपनेआप से कि क्या करें कि अब इस काम से?

श्रोता: पैसा भी मिल जाए।

आचार्य: पैसा भी मिल जाए, उसके लिए कुछ उपाय करो। और पक्का जानो कि जो काम तुम्हें शान्ति देता हो उस काम को तुम उत्कृष्टता के साथ कर पाओगे, अच्छे से कर पाओगे, एक्सीलेन्स के साथ।

और जो कुछ भी तुम उत्कृष्टता के साथ कर पा रहे हो उसके लिए तुम्हें कुछ-न-कुछ आमदनी तो मिल ही जाएगी। तुम अगर कोई भी काम बहुत अच्छे से कर लेते हो तो फिर तरीक़े निकाले जा सकते हैं उस काम के माध्यम से कमाने के। हो सकता है बहुत न कमा पाओ, मैं नहीं तुम्हें अरबपति बनने का फ़ॉर्मूला (सूत्र) बता रहा हूँ लेकिन इतना तो कमा ही लोगे कि राज़ी-खुशी जी लोगे, पेट पालने की दिक्क़त नहीं आने वाली। एकबार को सोचिए कि अगर आप पर कोई लालच न हो, अगर आप पर कोई सामाजिक या पारिवारिक ज़िम्मेदारी न हो, तो आप क्या काम करना चाहेंगे। एक स्वस्थ व्यक्ति हैं आप और आपसे कहा जा रहा है कि काम इसलिए नहीं करो कि पैसा मिलेगा, काम इसलिए भी नहीं करो कि इज़्ज़त मिलेगी। पैसा हम तुमको दिये देते हैं, लो। और हम तुमको ये भी आश्वस्त किये देते हैं कि समाज में तुम्हारी एक प्रतिष्ठा भी रहेगी, लो।

जो-जो उद्देश्य हो सकते हैं आमतौर पर नौकरी करने के वो सारे उद्देश्य हम तुम्हारे पूरे ही किये देते हैं, लो। अब बताओ अब कौनसा काम करना चाहोगे। तुम्हें नौकरी से पैसा मिलता था वो हमने पहले ही दे दिया, तुम्हें नौकरी से सुरक्षा की भावना आती थी वो हमने तुम्हे पहले ही दे दी, प्रतिष्ठा पहले ही दे दी, सामाजिक ताल्लुकात वो हमने तुमको पहले ही दे दिये।

सब दे दिया, अब तुम ख़ाली हो, ख़ाली बैठे-बैठे तुम्हें सब मिल गया अब बताओ अब करना क्या चाहोगे। तब जो तुम करना चाहो समझ लो वो असली काम है और वही तुम्हें करना चाहिए।

तब तुम कहोगे कि अब मुझे जो भी करना है वो लालच या डर के कारण करना नहीं, लालच तो सब पूरे हो गये और डर किसी बात का बचा नहीं, तो अब जो मैं कर रहा हूँ वो इसीलिए कर रहा हूँ क्योंकि मेरा दिल कह रहा है। वो पता करो, और तब मैं कह रहा हूँ कि तुम देखोगे कि दुनिया में कितना कुछ है जो तुम्हारी सहभागिता माँग रहा है। है न? फिर तुम उसको ठीक करने निकलोगे, फिर तुम न जाने कितने ऐसे मिशन (अभियान) हैं जिनको सहारा देने निकलोगे, वो असली काम होगा फिर। और वो काम न जाने कितने हैं, उन सारे कामों को तीन ही शब्दों में अगर बाँध दोगे तो धोखा हो जाएगा।

ये मत सोच लेना कि अध्यात्म का मतलब है कि सत्य की सेवा। ‘सत्य की सेवा’ सुनने में ऐसा लगता है कि मन्दिर में पुजारी की नौकरी हो। और सत्य की सेवा अगर तुम्हें वास्तव में करनी है तो सत्य की सेवा करने के हज़ारों रास्ते हैं और वो सारे रास्ते देखने में आध्यात्मिक प्रतीत भी नहीं होते। हिमालय पर पॉलीथिन का जो बोझ है, बहुत आवश्यकता है कि उसको हटाया जाए, और जो ये काम करेगा वो पूरी तरीक़े से आध्यात्मिक आदमी होगा, आध्यात्मिक काम है ये। ये सत्य की सेवा ही है, करो, निकलो इसको करने।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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