पत्नी से बेइज़्ज़ती पाने वालों || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

Acharya Prashant

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पत्नी से बेइज़्ज़ती पाने वालों || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

आचार्य प्रशांत: जाओ किसी भी आम लड़के से पूछ लो वह किसलिए विवाह करता है। सम्मानजनक काम करने के लिए तो वह विवाह करता नहीं। वह काम सारे ऐसे ही करता है जो अगर वह विवाह के बिना कर दे तो तुम कहोगे — जलील, लुच्चे, लफंगे गायब हो जा यहाँ से।

तो तुम अपना जो सबसे जलील रूप हो सकता है वह पत्नी के सामने नंगा करते हो। करते हो न? दुनिया में और किसी को भले ही तुम्हारे बारे में गलतफहमी हो कि तुम बड़े सम्माननीय आदमी हो, तुम्हारी पत्नी को तो गलतफहमी नहीं हो सकती। उसने तुम्हारा निरा पशु रूप देखा है, जो न माँ ने देखा है, न बाप ने देखा है, दोस्त-यारों ने भी नहीं देखा।

हमारी जो हैवानियत हमारे जीवन की स्त्रियाँ देखती हैं, हमारे सेक्सुअल पार्टनर देखते हैं वह और कोई देखता है क्या? और उसके बाद तुर्रा यह कि साहब को इज़्ज़त चाहिए। सब काम-धाम निपटा कर खड़े हो गए हैं, डकार मारी और कह रहे हैं — अब हमें सम्मान से प्रतिष्ठित करो न।

सम्मान चाहिए तुम्हें! कुछ करा है ऐसा कि सम्मान देगी तुम्हें? और अगर तुम वास्तव में सम्मान के अधिकारी होते तो तुम्हें भूख क्यों बची होती सम्मान पाने की? सम्मान का जो पात्र होता है, यह उसका अनिवार्य लक्षण है कि वह किसी से भी सम्मान माँगना बंद कर देता है। उसे फर्क ही नहीं पड़ता कौन उसे सम्मान दे रहा है, कौन नहीं दे रहा है।

वह कहता है, "हम खुद को जानते हैं, हम खुद अपना निर्णय कर सकते हैं। इतनी ईमानदारी है हममें कि हम अपने-आपको ही साफ-साफ अपनी आँख से ही देख लें। जितना हमें पता है अपने बारे में, उतना दूसरे को तो नहीं पता होगा हमारे बारे में। दूसरे के सामने तो हम कुछ क्षणों के लिए आ जाते हैं, अपने साथ तो हम चौबीस घण्टे रहते हैं। तो हम कितने पानी में हैं, दुनिया में और किसी से ज़्यादा बेहतर हमें ही पता है अपने बारे में। तो हम निर्णय करेंगे न कि हम सम्मान योग्य हैं कि नहीं हैं। और अगर हमने निर्णय कर लिया कि हम हैं सम्माननीय तो दूसरे से क्या सम्मान माँगना?"

आमतौर पर दूसरे से सम्मान माँगने की ख्वाहिश यही दर्शाती है कि आप खुद को सम्मान नहीं देते और वह भी सम्मान किस से माँग रहे हो, पत्नी से! पागल, आज तक किसी पति को पत्नी से सम्मान मिला है? वह भी कहती है, "इतना कुछ तुमने ले लिया हमसे, अब यह आखिरी चीज़ है यह मत ही माँगो, यह तो नहीं देंगे।"

हर तरह की दरिंदगी उसको दिखाते हो, हर तरह की क्षुद्रता उसको दिखाते हो। हमारा जो सबसे विकृत-विभत्स-निकृष्टम रूप होता है, वह पत्नियों के आगे प्रकट होता है। फिर तुम उनके सामने क्या बन कर खड़ा होना चाहते हो, भारत रत्न? ऋषि मनीषी हो तुम? खड़े हो गए वहाँ पर, हरिओम बोलते हुए।

अभी घण्टे भर पहले उसने तुमको देखा है, तुम्हारे पैशाचिक अवतार में, वो कैसे इज़्ज़त दे देगी तुमको?

कामवासना हमारी गहरी-से-गहरी वृत्तियों में से होती है और जो वृत्ति जितनी गहरी होगी उसमें उतनी सड़ांध होगी और वह जिसके सामने प्रदर्शित हो जाएगी, उद्घाटित हो जाएगी वह कैसे तुमको इज़्ज़त देगा भाई? इसीलिए पत्नी से तुमको ममत्व मिल सकता है, सेवा मिल सकती है, सुरक्षा मिल सकती है, सम्मान नहीं मिलेगा।

तुम एक ऐसी चीज़ से सम्मान की उम्मीद कर रहे हो जो सम्मान को केंद्र में रखकर या सम्मान को लक्ष्य बनाकर बनी ही नहीं है। तो फिर आयोजन किया गया कि चलो स्त्री से ज़बरदस्ती सम्मान लिया जाएगा। उसको यह सब बातें बता दी गई कि पति को ऐसे इज़्ज़त दो, वैसे इज़्ज़त दो। नाम भी मत लो पति का, "पिंटू के पापा!" अच्छा!

भगवान तक का नाम लिया जा सकता है, यह जो पिंटू का पापा है, लुच्चा, इसका नाम नहीं लिया जा सकता। यह सब इसीलिए है।

और मेरी बात जाँचनी हो तो अभी मैं तुम्हें एक प्रयोग बताए देता हूँ, वह कर लो।

जो लोग आएँगे और कहेंगे, "नहीं नहीं, वह तो हमारी प्यारी गुलबहार है दिल-ओ-जान है। उससे हमने कोई कामवासना के लिए थोड़े ही शादी की है।" उनसे मैं कहता हूँ, यह प्रयोग करके देख लो — विवाह के समय पर अगर लड़के-लड़की को बता दिया जाए कि एक-दूसरे के साथ जैसे रहना है रहो, जो करना है करो, पूरी छूट है। बस सेक्स नहीं कर सकते। तो तुम यह बताओ कितने विवाह होंगे? कम-से-कम लड़कों की तो कोई रुचि नहीं रह जाएगी फिर विवाह करने में।

वह बिलकुल दिल-ओ-जान से फिदा हुआ जा रहा होगा, निछावर हुआ जा रहा होगा और तभी तुम उसके कान में जाकर बता दो, "वह नहीं मिलेगा!" वह तुरंत उचक कर खड़ा हो जाएगा और कहेगा, "अरे, हटाओ यह सब आडंबर, शादी-वादी हमें करनी ही नहीं है। क्योंकि असली चीज़ तो एक ही थी जो चाहिए थी।"

अपनी समस्या के मूल में जाइए और मूल में बैठा हुआ है ⁠— अपने प्रति अज्ञान। मैं कौन हूँ, यह पत्नी कौन है जिसके साथ मैं दस साल से या पच्चीस साल से रह रहा हूँ, मेरा इसका नाता क्या है⁠ — इन विषयों पर गंभीरता से विचार करिए। इस गंभीरता से ही आत्मज्ञान के साथ-साथ थोड़े प्रेम का उदय होगा। उसके बाद आदमी-औरत का रिश्ता पशुता का नहीं रह जाएगा। उसके बाद दो लोग इंसानों की तरह आपस में बात कर सकेंगे, व्यवहार कर सकेंगे।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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