परमात्मा कैसे मिले? || आचार्य प्रशांत (2019)

Acharya Prashant

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परमात्मा कैसे मिले? || आचार्य प्रशांत (2019)

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी अभी आपने बताया कि अगर निर्मल बुद्धि चाहिए तो मलिन हटा दो बुद्धि निर्मल हो जाएगी। उसकी साधना है। अगर परमात्मा की प्राप्ति चाहिए तो उसकी साधना क्या है?

आचार्य प्रशांत: परमात्मा क्यों चाहिए? शिकायत क्या है?

प्र: कोई शिकायत नहीं है।

आचार्य: कोई शिकायत नहीं है तो परमात्मा क्यों चाहिए?

प्र: हर मनुष्य का लक्ष्य होता है

आचार्य: लक्ष्य तभी बनाते होना कि जब जहाँ हो वहाँ चैन नहीं हो। तो क्या है बेचैनी?

प्र: ऐसा लगता है कि कुछ है ही नहीं जीवन में। सब मिथ्या है।

आचार्य: बहुत कुछ है जीवन में, जीवन को तो हमने भर ही रखा है बहुत चीज़ों से। उनके होते हुई भी अगर लगता है कि जीवन में कुछ भी नहीं है तो ठीक ही कहा आपने कि वो सब मिथ्या ही होगा। और अगर वो सब मिथ्या ही है तो उससे जीवन को भर क्यों रखा है?

फिर तो सत्य की उपलब्धि इसी में है कि जिसको मिथ्या जान गए हो उसको मिथ्या मार्ग जाने भी दो। मिथ्या का क्या मार्ग है? विदाई।

परमात्मा की प्राप्ति वास्तव में कोई प्राप्ति नहीं होती वो निवृत्ति होती है। व्यर्थ से निवृत्त हो गए यही है परम तत्व की प्राप्ति।

प्र: आचार्य जी अगर अर्थ दिखेगा फिर ही व्यर्थ का पता लगेगा, अर्थ का पता नहीं होगा तो व्यर्थ कैसे दिखेगा?

आचार्य: बेटा, आपको पानी चाहिए, पानी भले न मिल रहा तो, इतना तो दिख रहा है न कि मिट्टी का तेल पानी नहीं होता। तो पानी नहीं मिल रहा तो कम से कम अपने पात्र को खली तो करो, मिट्टी का तेल तो फेंको। मिट्टी का तेल अगर पकड़े रहोगे तो पानी आएगा भी तो आएगा कहाँ? पात्र तो मिट्टी के तेल से भरा हुआ है।

ये शर्त मत रख देना की अर्थ दिखेगा तब व्यर्थ को फेकेंगे। अर्थ प्रतीक्षा कर रहा है कि तुम व्यर्थ को फेंको तो हम आएं। बारिश भी हो जाए, तुम्हारा पात्र अगर गन्दगी से ही भरा हुआ है तो वो बारिश भी तुम्हारे किस काम आएगी? पानी तो खूब बरसा, तुम्हें कहाँ मिला? पहले पात्र खाली करके तो रखो। पहले व्यर्थ को फेंक के तो आओ।

इसी को श्रद्धा कहते हैं कि आगत का पता नहीं पर फिर भी वर्त्तमान में जो कूड़ा कचरा है उससे तो जुड़े नहीं रहेंगे।आगे क्या होगा देखा जाएगा।

भोजन नहीं मिलेगा तो मल तो नहीं खा लेंगे। भूखे हो तुम और घर में चारो ओर मल ही मल फैला हुआ है, तो क्या उस मल को ही सुरक्षित रखोगे, कि अगर भोजन नहीं मिला तो क्या पता ये मल ही काम आजाएगा? ऐसा तो नहीं करोगे न।

क्या करोगे?

तुम कहोगे भोजन मिले चाहे न मिले, घर से ये मल हटाओ, ये दुर्गन्ध हटाओ।

और घर की जब सफ़ाई इत्यादि कर लोगे उसके बाद भोजन मिल गया तो बहुत ही अच्छी बात, नहीं भी मिला तो कम से कम दूषण से, और दुर्गन्ध से तो मुक्ति मिली।

और कोई बड़ी बात नहीं, कोई भोजन देने तुम्हारे घर आता भी हो तो तुम्हारे घर की बदबू से डर के भाग जाता हो। घर का मल हटाओ तो भोजन आने की भी सम्भावन कुछ बढ़े। पर हमारा कहना ही कुछ और होता है, हम बहुत बड़ी शर्त रखते हैं, हम कहते हैं न, मल ही सही अभी घर में कुछ है तो। घर हमारा भरा भरा है। अगर मल भी हटा दिया तो घर कितना सूनसान हो जाएगा। अभी मल है तो आँगन गुलज़ार है, फिर तो ऐसा लगेगा जैसे रेगिस्तान। हम्म! ये कोई बात हुई?

व्यर्थ को पकड़े हुए हो कोई अर्थ ले भी आए तो तुम उसे पहचानोगे कैसे? क्योंकि तुम्हारा तो सारा मोह है व्यर्थ के साथ, तुमने तो सारा मूल्य लगा रखा है व्यर्थ का, अब अर्थ आया भी तो तुम अर्थ का मूल्यांकन कैसे करोगे? तुम कहोगे ये मूल्यवान होगा अगर ये व्यर्थ जैसा होगा। क्योंकि कौन सी चीज़ तुम्हारी दृष्टि में मूल्यवान है? व्यर्थ। तो तुम अर्थ की तुलना भी करोगे व्यर्थ से, और अर्थ व्यर्थ जैसा होगा नहीं तो तुम अर्थ को ही व्यर्थ बता करके फेंक दोगे।

व्यर्थ और अर्थ का कोई स अस्तित्व तो हो नहीं सकता, या हो सकता है? कि तुम्हारे आँगन में मल और अमृत अगल बगल रखे हों। ऐसा हो सकता है? जैसे जैसे भीतर झाड़ू पोछा करना शुरू करोगे वैसे वैसे तुम पाओगे की अमृत भी उतरने लगा है। और जैसे जैसे अमृत उतरने लगेगा वैसे वैसे झाड़ू पोछा करने कि तुम्हारी नीयत और ताकत दोनों बढ़ेंगे। हम्म! थोड़ी शुरुआत करो, प्रयोग करके देखो, अच्छा लगेगा।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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