प्रश्नकर्ता: प्रिय आचार्य जी, प्रणाम। इस अध्याय में श्रीकृष्ण अर्जुन को दिव्य नेत्र देकर अपने विराट रूप के दर्शन देते हैं। उस पल में अर्जुन की दृष्टि के अनुसार तीन की उपस्थिति है – पहला, आदि और अंत से रहित परमात्मा की, दूसरा, देवता, मुनष्य, ऋषि, आदि की और तीसरा, इन सबको देखने वाले अर्जुन की। आचार्य जी, ये तीनों कौन हैं?
आचार्य प्रशांत: जो पहला बताया आपने, वो अद्वैत, जो दूसरे आपने दो बताए, वो द्वैत के दो सिरे, दृश्य और दृष्टा हैं। परमात्मा – अद्वैत, बाकी दृश्य और दृष्टा। जो कुछ भी दिखाई दे रहा है, वो दृश्य, जो उसको देखने वाला है, वो दृष्टा।
तो देवता, मनुष्य, ऋषि आदि दिखाई दे रहे हैं अर्जुन को, तो ये सब क्या हो गए? दृश्य। और इनको देखने वाला कौन है? दृष्टा, अर्जुन स्वयं। और दृश्य और दृष्टा के आधार में कौन बैठा है? परमात्मा। दृश्य और दृष्टा, दोनों किससे आए हैं और किसमें लीन हो जाने हैं? ये इन तीनों का किस्सा है।
कहीं चले जाओ, कुछ भी हो रहा हो, यही तीन हैं। यही त्रैत है। इन तीन में से एक असली है, वो बाकी दो को कभी उगलता है, कभी निगल लेता है। एक ही है जो असली है, बाकी दोनों उसकी लीला है। बाकी दोनों को वो कभी जन्म देता है, कभी नहीं।
हाँ, जन्म जब देगा तो इन दोनों को एक साथ देगा, जुड़वा हैं। ऐसा नहीं होगा कि उसने एक को ही जन्म दिया, सिर्फ़ दृश्य को। यही तुम्हें अभी समझा रहा था। अगर दृश्य का जन्म हुआ है तो साथ-साथ दृष्टा का भी जन्म हुआ होगा। विज्ञान उसकी बात ही नहीं करता, वो बताता ही नहीं है। वो कहता है, “नहीं-नहीं, चाँद-तारे थे बिग बैंग के बाद।” चाँद-तारे तो थे बिग बैंग के बाद, माने क्या था? दृश्य। यह तो बताते ही नहीं कि दृष्टा कौन था उनका।
और यही कृष्ण यहाँ बता रहे हैं। अर्जुन ने अभी यही देखा है। बोले, तीन होते हैं साहब हमेशा – एक तो वह बिंदु जहाँ से सबकुछ प्रकट हुआ, एक वह जो प्रकट हुआ है और एक वह भी होता है जो सबको देख रहा है। वरना कौन बताएगा कि क्या प्रकट हुआ है। जड़ और चेतन एक ही हैं न। तो जहाँ जड़ है, वहाँ पर चेतन भी होगा निश्चित रूप से। और चेतन जैसा है, उसी से जड़ का निर्धारण हो जाता है। और जड़ जैसा है, उसी से चेतन का निर्धारण हो जाता है, ये दोनों क्योंकि जुड़े हुए हैं बिल्कुल।
अगर आपको कोई यह बताए, भले वो विज्ञान हो, कि जड़-जड़ भर था, मटीरियल भर था यूनिवर्स (ब्रह्माण्ड) में, कॉन्सियसनेस (चेतना) नहीं थी पहले, तो यह बात सही नहीं है, क्योंकि पदार्थ और चेतना एक ही द्वैत के दो सिरे हैं, जुड़े हुए हैं आपस में। अगर पदार्थ है तो चेतना होगी। हाँ, वो चेतना अलग तरह की हो सकती है और वो चेतना उस पदार्थ जैसी होगी।
विज्ञान भूल क्या कर रहा है? तब के पदार्थ को आज की चेतना से देख रहा है। अरे बाबा, वो जो पदार्थ था तब बिग बैंग के बाद, उसको देखने वाली चेतना अलग थी न। तो उसको वो क्या वैसे ही दिख रहा होगा पदार्थ जैसे आज तुम्हें दिख रहा है? तुम कह रहे हो, “नहीं, साहब, उस समय पर गर्म-गर्म तारे थे बस।” उस समय जो चेतना थी, क्या उसको भी गर्म-गर्म तारे दिख रहे थे? उसे हो सकता है कुछ और दिख रहा हो। निश्चित रूप से उसे कुछ और दिखेगा क्योंकि वो चेतना आज की चेतना जैसी नहीं थी। पर विज्ञान इस बात को समझ ही नहीं रहा। समझ रहे हो?
मौलिक भूल है, वो क्या है? आप आज की चेतना का इस्तेमाल करके आज से पाँच खरब वर्ष पूर्व की घटनाओं को देख रहे हो। यह बहुत निरर्थक बात है। यह ऐसी बात है समझ लो जैसे कोई आज की प्रोग्रामिंग लैंग्वेज बताओ।
श्रोतागण: सी++
आचार्य प्रशांत: सी++ मेरे समय की है।
श्रोतागण: पायथन।
आचार्य प्रशांत: पायथन। पायथन का भी कम्पाइलर आता होगा? कम्पाइलर नहीं चलते? अब क्या चलते हैं?
श्रोतागण: इंटरप्रेटर।
आचार्य प्रशांत: तुम पायथन का इंटरप्रेटर इस्तेमाल करके ‘सी’ में लिखे हुए प्रोग्राम को कंपाइल करो तो क्या होगा? तो समझ लो कि पदार्थ में और चेतना में सॉफ्टवेयर प्रोग्राम का और कम्पाइलर का रिश्ता है। जिस भाषा में प्रोग्राम है, उसी भाषा का क्या चाहिए? *कम्पाइलर*। अगर तुम पायथन का इंटरप्रेटर इस्तेमाल करके ‘सी’ या बेसिक का प्रोग्राम रन करोगे तो क्या होगा? कुछ उलटा-पुलटा ही निष्कर्ष आएगा।
वही काम आज विज्ञान कर रहा है। आज की चेतना का इस्तेमाल करके उस समय की घटना देखने की कोशिश कर रहा है। हमें उस समय का कम्पाइलर चाहिए जो आज मिल नहीं सकता, तो हमें चुप हो जाना चाहिए। पर चुप होने में विनम्रता चाहिए, वो हमारे पास है नहीं।
प्रश्नकर्ता: इसी पर आचार्य जी एक और प्रश्न था। आप बोल रहे हैं कि उस समय की चेतना कैसे देखती होगी। चेतना के ये जो पाँच इन्द्रियाँ हैं, ये इसी तरह से काम कर रहे होंगे, ये कोई ज़रूरी है?
आचार्य प्रशांत: बिल्कुल नहीं, बिल्कुल भी नहीं। ये सब तो अभी-अभी की बात है कि आँख, कान, नाक इत्यादि। उस समय परसेप्शन (अनुभूति) का कोई और तरीका भी निश्चित रूप से हो सकता है। और वो क्या था? ये आज पता करने का तरीका नहीं है।