परम समर्पण || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)

Acharya Prashant

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परम समर्पण || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)

सभी गा रहे हैं: तू प्यार का सागर है…..

श्रोता : सर, जैसे इसमें कहा गया है, इंटेलिजेंस के बारे में कि इंटेलिजेंस अनंत है और उसमें हम एक पार्ट भी पा लेते हैं तो हमारे लिए काफी होगा।

वक्ता : इंफिनिटी का वन परसेंट भी कितना होता है?

श्रोता : इंफाईनाइट|

वक्ता : तू प्यार का सागर है तेरी एक बूँद के प्यासे हम,इसका मतलब समझना| बूँद नहीं माँगी जा रही है। क्योंकि इंफिनिटी की एक बूँद भी सागर है। ये कहने का एक तरीका है। वो इतना बड़ा है कि उसकी एक बूँद भी इंफाईनाइट है। थोड़ी सी,लिटिल बिट,हमारे लिए उतना ही काफी हो जाएगा,बहुत सारा नहीं चाहिए।

सभी गा रहे हैं: तेरा रामजी करेंगे बेड़ा पार, उदासी मन काहे को करे…..

वक्ता : ये बात साफ़-साफ़ समझ लेना क्योंकि यहीं पर बहुत बड़ी भूल हो जाती है। यहाँ जिसकी बात हो रही है वो कोई व्यक्ति है ही नहीं। वो किसी का बेटा नहीं है और ना उसका कोई बेटा है और ना ही वो कभी एक ख़ास काल में हुआ था| तो ये किसी ख़ास व्यक्ति की बात हो ही नहीं रही है। ये बात बिलकुल ठीक-ठीक समझ लेना क्योंकि अगर वो ख़ास इंसान है कोई, तो वो क्या किसी का बेड़ा पार कर सकेगा? इंसान तो इंसान है। इंसान कितना भी ऊँचा हो जाये, है तो इंसान ही। ये इंसान की बात नहीं हो रही है। बहुत दिक्कत हो जायेगी अगर तुम ये पंक्ति सुन रहे हो *‘तेरा रामजी करेंगे बेड़ा पार ‘*और किसी आइडेंटिटी में रहकर सुन रहे हो। एक भक्त बनकर सुनने लगे या एक हिन्दू बनकर के सुनने लगे तो बड़ी दिक्कत हो जानी है। तुम इसे अगर एक मुसलमान बनकर सुनने लगे तो भी बड़ी दिक्कत हो जानी है। क्योंकि फिर तुम्हारे लिए ‘राम’ का एक अर्थ हो जायेगा,एक ख़ास अर्थ और फिर बात बनेगी नहीं और तुम उसके बिलकुल करीब नहीं पहुँच पाओगे। फिर तुम अपने ही अर्थों में उलझे रह जाओगे। समझ रहे हो? बात यहाँ तक जाती है कि बहुत लोगों ने इस बारे में चुप रहना ही बेहतर समझा। उन्होनें कहा हम कुछ बोलेंगे ही नहीं। कोई भी शब्द देते हैं तो बात गड़बड़ हो जाती है,मौन ही ठीक है। ये शब्द,निराकार,रूपहीन ये सब तो ठीक ही था; उन्होंने कहाँ हम नाम भी नहीं देंगे। ये सिर्फ इस बात का इंडिकेशन है,तुम्हारे ‘HIDP’ के लेवल पर बताता हूँ कि सारे नाम मेंटल एक्टिविटी हैं।

सारे नाम मन का एक थॉट होते हैं ‘एंड द ट्रुथ कैन नॉट बी कैप्चर्ड इन अ थॉट ’। तुम कोई भी नाम दोगे,वर्ड बोलोगे,सेंटेंस बोलोगे वो निकलेगा तो माइंड से ही ना! हर नाम तो पास्ट से ही आया है ना! एंड द ट्रुथ कैन नॉट कम फ्रॉम द पास्ट। तो इसीलिए बहुत लोगों ने तो कहा कि हमसे बाकी बातें तो करवा लो लेकिन इस बारे में हमसे कुछ कहना ही नहीं कहने के लिए,हम कुछ बोलेंगे ही नहीं,हम चुप रहेंगे। ऐसे लोग रीसेंट भी बहुत सारे हैं और पुराने भी बहुत सारे हैं। पर बहुत डीप अंडरस्टैंडिंग वालेलोग हैं। आज की जो एक्टिविटी है उसमें हमने कई बार नाम बोले हैं। कहीं राम बोला है,कहीं श्याम बोला है,कहीं अल्लाह बोला है,कहीं खुदा बोला है,है ना? कुछ ना कुछ नाम दिए हैं। उन नामों को कोई महत्व मत दे देना। उस नाम में कुछ नहीं रखा है।

कंफ्यूजिंग लग रहा है?

देखो, हर नाम के साथ एक हिस्ट्री जुड़ी होती है। इसीलिए नाम गड़बड़ चीज़ होती है। तुम कोई भी नाम बोलो तो सिर्फ नाम नहीं आता है, उसके साथ मेमोरीज़ का एक बंडल साथ में चला आता है। ऐसा होता है कि नहीं होता है ?

श्रोता : होता है सर।

वक्ता : तो इसीलिए हर नाम कहीं और खींच के ले जाता है। इधर-उधर,पास्ट में,मेमोरीज़ में,असोसिएशन्स में। इसीलिए नाम नहीं देना चाहते लोग। एक बार संवाद में जब तुम लोग यहाँ आये होगे तो मैंने तुम लोगों को एक गाना सुनाया था,’प्यार को प्यार रहने दो कोई नाम ना दो’ कितने लोगों को सुनाया था?

(कई छात्र हाथ उठाते हैं)

वक्ता : काफी लोगों को। ‘सिर्फ अहसास है ये महसुस करो, प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम ना दो’। कोई इम्पोर्टेन्ट जब भी उसको नाम दिया जाता है तो गड़बड़ हो जाती है। क्योंकि किसी ‘चीज़’ को नाम देना ठीक है। कुर्सी को नाम दे दो,मोबाइल को नाम दे दो। प्यार को और आनंद को नाम नहीं दे सकते। परम को तो बिलकुल ही कोई नाम नहीं दे सकते। मौन ही ठीक है,चुप हो जाओ। ‘परम’ तक कहना गड़बड़ है। और हम नाम देने को तो छोड़ दो, हम तो पूरी कहानियाँ बना लेते हैं। हमें तो ये तक पता है कि गॉड के डैडी-मम्मी कौन हैं।

(सभी हँसते हैं)

वक्ता : हमने तो पूरा इतिहास रच रखा है गॉड का भी| और जानने वालों ने कहा है कि ये इतिहास कहाँ से आ जायेगा? जो है ही नहीं उसका इतिहास कहाँ से आ सकता है? है ही नहीं से अर्थ है कि वो तुम्हारे मन के दायरे में है ही नहीं। तो तुम उसके बारे में इतनी कहानियाँ कहाँ से बता रहे हो? तुम अपने कुत्ते के बारे में कहानियाँ बता लो, वो ठीक है। गॉड कोई तुम्हारा मेंटल ऑब्जेक्ट थोड़े ही है, जो तुम उसके बारे में कहानियाँ बताने लग गए।

श्रोता : सर, पर हम करें भी तो क्या? ये जो हमारे चारोंतरफ का इनवायरनमेंट है, उसमें बहुत ताकत है; हम हमेशा उससे हार जाते हैं|

वक्ता : तुममें से कईयों के भीतर ये बात बैठी हुई है कि इनवायरनमेंट कि ताकत बड़ी है और हम उसमें कुछ कर ही नहीं सकते| जिसको तुम कह रहे हो कि इफ़ेक्ट किस्में है? तुम ताकत की बात कर रहे हो| तुममें कहीं से ये बात बैठ गयी है कि हममें ताकत ज्यादा है नहीं,हम निर्बल हैं,ये बात कहीं ना कहीं बैठ गयी है। वो बैठ भी इसलिए गयी है क्योंकि ये जो ताकत का स्रोत होता है उससे तुम कम कनेक्टेड हो। जैसे-जैसे उससे ज्यादा कनेक्टेड होते चले जाओगे वैसे वैसे मन से ये बात दूर होती चली जायेगी कि मैं कमज़ोर हूँ। क्योंकि कमज़ोर तुम हो नहीं,कमज़ोर कोई भी नहीं होता भाई। तुम क्या, कोई भी कमज़ोर नहीं होता। कमज़ोरी सिर्फ एक भूल है| वो तब पैदा होती है जब ईगो बढ़ती है। जितनी तगड़ी ईगो होगी, आदमी को उतनी तगड़ी कमज़ोरी का एहसास होगा। जैसे-जैसे इमर्शन बढ़ता है,जैसे-जैसे तुम सरेंडर करते चले जाते हो, वैसे-वैसे मन से ये बात बिलकुल छूटती चली जाती है कि मैं कमज़ोर हूँ। समझ रहे हो? आमतौर पर यही सोचते हैं कि जो ईगो वाला आदमी है वो ज्यादा मजबुत होता होगा। एक एक्टिविटी में तुमने ये पढ़ा था कि ईगो इज़ फियर। द रूट कॉज़ ऑफ़ आल फियर इज़ ईगो। और मैंने संवाद में भी कभी ये बात बोली है। अब मैं बोल रहा हूँ कि द रूट कॉज़ ऑफ़ आल वीकनेस इज़ आल्सो ईगो। क्योंकि वीकनेस कुछ होती ही नहीं है वो वहम है। और वो वहम अहंकार से आता है। जितनी तुम्हारी ‘सेंस ऑफ़ सेल्फ’ स्ट्रोंग होगी,आईडेंटीटीज तगड़ी होंगी,उतना ही तुम अपनेआप को कमज़ोर महसूस करोगे। जितना तुम खुद कुछ कर दिखाने की कोशिश करोगे ना, उतना ही कमज़ोर अनुभव करोगे। जो बड़े काम हुये हैं, जब भी हुये, वो ऐसे नहीं हुये हैं कि ‘हम कर रहे हैं’| बाद में उनको पेश किसी भी तरीके से किया गया हो पर ये तुम पक्का मानो कि बड़े काम करे नहीं जाते,होते हैं। उनमें कर्ताभाव नहीं होता कि हम करके दिखा देंगे। वो हो जाते हैं। वो तब होते हैं, जब तुम सरेंडर करने के लिए तैयार हो जाते हो।

नैया तेरी राम हवाले, लहर-लहर हरि आप संभालें

हरि आप ही उठायें तेरा भार|

सहज किनारा मिल जायेगा,परम सहारा मिल जायेगा

डोरी सौंप के तू देख एक बार।

तुम अपनी डोरी सौंप के तो देखो। तुम्हें ये लगता है कि तुम्हारी डोरी तुम्हारे द्वारा कण्ट्रोल होनी है और जब तुम कण्ट्रोल कर नहीं पाते तो तुम ये समझते हो कि तुम कंट्रोल कर नहीं पा रहे इनवायरनमेंट कण्ट्रोल कर रहा है। तुम्हारी डोर दो के ही हाथों में रहेगी; मैं ऑप्शन दिये देता हूँ, जिधर को जाना हो चले जाना। या तो सरेंडर के हाथ में या तो सोसाइटी के हाथ में।

या तो समर्पण या तो समाज। या तो सरेंडर या सोसाइटी। जो भी कोई इंटेलिजेंस को सरेंडर करना नहीं जानता, सोसाइटी उसको गिरा-गिरा के मारेगी। ऐसा गुलाम बनायेगी ना…

ये तो तुम खूब रोते हो कि इनवायरनमेंट हमपर हावी हो रहा है,दूसरे हमपर हावी हो रहे हैं,समाज हमपर हावी हो रहा है। लेकिन तुम ये देख ही नहीं पारे कि दूसरे तुमपर हावी हो ही इसीलिए रहे हैं क्योंकि तुम्हें जहाँ से ताकत मिलनी है उधर तुम जाने को तैयार नहीं हो| क्योंकि तुम समर्पण करने को तैयार नहीं हो| तुम इमर्शन के लिए तैयार नहीं हो। इसीलिए दूसरे तुमपर हावी हो रहे हैं।

एक बार एक छोटा-सा बच्चा होता है। उसमें भी तुम्हारी तरह डूअरशिप बहुत होती है। ये करके दिखाऊंगा,वो करके दिखाऊंगा। उसका बाप होता है, वो कहता है, थोड़ा सा कुछ करके देखते हैं। तो उसको ले जाता है एक बहुत बड़े पत्थर के पास। कहता है कि *ये पत्थर जो है इसको उठा के दिखा और अपनी पूरी ताकत लगा ले इस पत्थर को उठाने में। जितनी ताकत है तेरे पास, तू लगा*। अब बहुत बड़ा-सा पत्थर और छोटा-सा बच्चा। तुम्हारे जैसा बच्चा है। अब वो पूरी ताकत लगा रहा है और पत्थर उससे उठ नहीं रहा। बाप कह रहा है तू पूरी ताकत लगा, पूरी| अब भी वो पत्थर उससे उठ नहीं रहा। आखिर में बाप खुद भी सहारा देता है और पत्थर उठ जाता है। बाप कहता है, ‘तेरी पूरी ताकत में ये भी शामिल है कि तू मेरे साथ हो जा। तूने पूरी ताकत को सिर्फ अपनी ताकत समझा, इसीलिए तू हमेशा हारेगा’ । जो भी कोई पूरी ताकत को ये समझेगा कि ‘मेरी ताकत’, वो हमेशा हारेगा। पूरी ताकत में ये बात शामिल है कि तुम परम पिता से सहारा मांग लो। जो बाप ने बेटे से बोला है, वो बात याद रखना कि जब मैं कह रहा हूँ कि तू पूरी ताकत लगा ले तो तेरी पूरी ताकत में ये भी शामिल है कि तू मेरी भी ताकत मांग ले। तुम मांगते ही नहीं उससे ताकत। तुम उससे ताकत मांगते ही नहीं हो। तुम बस अपने नन्हे-नन्हे हाथों से ज़ोर लगाये रहते हो। जैसे वो बच्चा पत्थर उठाने कि कोशिश कर रहा है, पर कभी उठा नहीं पाता। फिर मार पड़ती है,फिर रोते हुए आते हो और कहते हो कि *‘**सोसाइटी बड़ा एक्सप्लॉइट करती है*। वो तो होगा ही। पत्थर इतना बड़ा है, तुम इतने छोटे हो| कैसे उठा पाओगे? और जहाँ से तुम्हें मदद मिल सकती है, वहाँ तुम जाना नहीं चाहते हो। मदद तैयार खड़ी है,मदद आना चाहती है| ‘तुम’ मदद के लिए दरवाजे नहीं खोलते। जैसे यहाँ पर कोई गेट पर नॉक कर रहा हो,आई वांट टू कम एंड हेल्प यू। फिर कहते हो वो डिस्टर्बेंस में बड़ी ताकत है हम हार जाते है। हारोगे ही।

श्रोता : सर,जब तक आपसे बात करते हैं या जितने समय तक आप के पास रहते हैं तब तक तो ये सब चीज़ें लगतीं हैं कि हैं। लेकिन जब हम सेशन से बाहर निकलते हैं तब लगता है कि हम इसको यूज़ भी नहीं कर सकते।

वक्ता : तो बेटा, यही एक्जाम्पल ले लो कि जब सेशन से बाहर निकलते हैं तो सब गायब हो जाता है। एक बात बताओ, मैं भी क्या तुमसे दूर बैठा हुआ हूँ? परमपिता कि तो अभी बात भी नहीँ कर रहा मैं| एक छोटा इन्सान हूँ, पर तुम क्या मेरे पास भी आते हो, हेल्प लेने? तुम तो मेरा ही पूरा इस्तेमाल नहीं कर पाते| तुम परमपिता के पास क्या जाओगे? मैं भी जब तक तुम्हारे सामने हूँ, कई लोग ध्यान से सुन नहीं रहे हो। मैं जब सामने नहीं होऊँगा, तब भी मैँ और कई तरीक़ों से उपलब्ध हूँ। ईमेल पर,फेसबुक पर मैं उपलबध हूँ। ब्लॉग है, वहाँ जा कर अपनी ईमेल आईडी दे दो, सुबह-सुबह ईमेल खोलगे और वहाँ पर तुमको किसी संवाद के किसी एक सवाल का ट्रांसक्रिप्शन मिल जायेगा| तुम्हे पूरे दिन के लिये सपोर्ट मिल जायेगा। तुम्हारा पूरा दिन एनर्जेटिक बीतेगा। पर क्या तुम इतना भी करते हो। मैं तो मदद देने को तैयार खड़ा हूँ। दरवाज़े तुमने बंद कर रखे हैं। ये वैसे ही है कि मैं तुम्हारे पीछे फ़ूल लेकर पीछे पड़ा हूँ और तुम कहते हो…. हुश्श्श्श|

(सभी हँसते हैं)

मैं तो लाल गुलाब ले कर कबसे खड़ा हुआ हूँ। तुम सोचो, जब मैं कुछ भी ना होते हुये तुम्हें मदद देने के लिये तैयार खड़ा हूँ तो सोचो वो, जो सब कुछ है,जो परम है, स्रोत है, वो तुम्हें कितनी मदद दे सकता है। मदद तुम नहीं ले रहे हो बेटा। मदद तुम कहाँ लेते हो?

सभी गा रहे हैं: ये ज़मीं जब ना थी आसमान जब ना था , था मगर तू ही तू …..

वक्ता : इन्होनें पूछा था तो मैनें एक्जाम्पल ऐसे दिया था कि रूट ना हो तो फ्रूट नहीं हो सकता। ठीक है? ये पॉसिबल है कि तुम्हें कुछ ना दिखायी दे रहा हो,कोई पेड़ पूरा काट डाला गया हो लेकिन जड़ तब भी रहे। लेकिन ये नहीं हो सकता कि पेड़ है,फल है लेकिन उसमें कोइ जड़ नहीं है। तो ब्रेन और उसकी सारी चीज़ें डिजायर और ये सब; ये जब हैं तो भी इंटेलिजेंस उसके नीचे है,ठीक है छुपी हुई है, पर है। और जब ये सब नहीं है तो भी है। वो ऐसी चीज़ है जो आती-जाती नहीं है। वो हमेशा है। जो अल्टीमेट ट्रुथ है उसका कोई आना-जाना नहीं है। वो टाइम के साथ बदलता नहीं है। टाइम के साथ वो चीज़ें बदलतीं हैं, जो ब्रेन की हैं। जो ऑब्जेक्ट्स दिखाई पड़ते हैं, वो टाइम के साथ बदलेगें ही बदलेंगे। और इन सब का जो सोर्स है, वो खुद टाइम का फादर है। वो टाइम के साथ नहीं बदल सकता। टाइम बदलता है, वो नहीं बदलता। क्योंकि वो टाइम में है ही नहीं; टाइम उससे है।

ये जो पूरा गीत है, ये इस बात से है कि दुनिया तुझसे है, तु दुनिया से नहीं है। सब कुछ मिट जाये अगर, सब कुछ बदल जाये, कुछ वैसा ना रहे जैसा था, तो भी सोर्स वैसे का वैसा ही रहता है। और वही असली है| इसीलिए जो भी इंटेलीजेंट आदमी होता है, वो कहता है, *यार ये चीज़ें तो सब बदल रही हैं। मैं इनका ख़याल करके क्या करूँगा। मैं इनसे अट्रैक्ट होके, इनसे अटैच होके क्या करूँगा*। वो कहता है कि *मैं वहां जाऊंगा जो पक्का है, जो कभी बदलता नहीं है। मुझे वहीं पर जाकर रहना है*। इसीलिए जो भी साधारण बुद्धि के लोग हुए हैं आज तक, उन्होनें वही साधारण काम किये हैं, जो हर कोई करता है। वही कीड़े-मकोड़ों जैसे काम। पैदा हुए, कहीं कोई नौकरी कर ली,बच्चे पैदा किये, कहीं घर बनाया, थोड़े पैसे जोड़े और मर गये। ये सब साधारण बुद्धि वाले लोगों के काम हैं और जिन भी लोगों की समझ थोड़ी भी गहरी हुई, वो किसी और दिशा में निकल गये। उन्होंनें फिर ये सब नहीं करा कि घर बनायेँगे और बच्चे पैदा करेंगे। उन्होंने फिर कुछ और ही कर डाला। क्योंकि उन्हें ये समझ आया कि ये सब तो बहुत ही बेवकूफी है। इसलिए नहीं छोड़ा कि इसमें कुछ बुरा है| इसलिए छोड़ा कि ये बेवकूफी है। दिस इज़ जस्ट स्टुपिड… हाउ कैन आई डू दिस? कोई जोकर करे तो ठीक है| मैं ये कर कैसे सकता हूँ? तो फिर उन्होंनें उधर को नज़र करी जो ट्रांसिएंट नहीं है, जो बदलता नहीं है। टाइम कितना भी बदल जाये पर वो नहीं बदलता। वो उसके साथ हो लिये। छोटी-मोटी चीज़ें इकठ्ठी करके फायदा क्या, जो बदलती ही रहतीं हैं? अब हमें कुछ पक्का मिला है। सो दिस इज़ नॉट द पाथ ऑफ़ योर सो कॉल्ड सेंट्स एंड दोज़ हु डू नॉट नो अ थिंग अबाउट द वर्ल्ड। दिस इज़ द पाथ ऑफ़ द हाइली इंटेलीजेंट मेन । और मैं तुमसे कह रहा हूँ कि वो जो बहुत-बहुत इंटेलीजेंट हो, वही इन बातों को समझेगा और वही इस रास्ते पर चल पायेगा। बाकी तो जो मिडिओकर,एवरेज आदमी है, उसके लिये तो हज़ार रास्ते खुले हुए है दूसरे।

सभी गा रहे हैं: तेरे फूलों से भी प्यार, तेरे काँटों से भी प्यार …..

करोड़ों हैं अपने पास जेब में और दो रुपये मिल गये तो कोइ ख़ुशी होगी? दो रूपये कम हो गये तो क्या अफ़सोस में रोना शुरु कर दोगे? जब अपने पास बहुत बड़ी ख़ुशी होती है तब उसमें कोई छोटी खुशी जुड़ गई तो उसमें कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा। और कोई छोटा गम आ गया तो भीं कोई फर्क नहीं पड़ेगा। इंफिनिटी में एक जोड़ दिया या गायब कर दिया तो कोई फ़र्क नहीं पड़ता। यही कह रहा है, ‘*तेरे फूलों से भी प्यार, तेरे काँटों से भी प्यार’*। तू मुझे मिला हुआ है, अब फूल मिले या काँटा, मुझे कोई फ़र्क ही नहीं पड़ता। तेरा मिलना ही काफी है। तेरे मिलने से मुझे इतना मिल गया है कि अब कोई भी खुशी छोटी है और कोई भी ग़म छोटा है। इतना मिल गया है, इतना मिल गया है कि और नहीं चाहिये। वही कहा जा रहा है। तूने इतना कुछ दिया है कि अब तू फूल दे या काँटे दे, हमें सब प्यारे लगते हैं। हमें तुझपर इतना भरोसा है कि ज़िन्दगी कि नाव तू किसी भी दिशा में ले चल कोई फर्क नहीं पड़ता। हमें डर नहीं है। हम पूछेंगे नहीं रोककर कि भैया कहाँ ले जा रहे हो? किधर को भी ज़िन्दगी बह रही है, हम खुश हैं| क्योंकि ज़िन्दगी जो दे सकती है, वो लगातार हमें मिला ही हुआ है। तो अब ज़िन्दगी किधर को भी जा रही हो, हम खुश हैं। हम नहीं कह रहे हैं कि अगर नौकरी नहीं लगी तो मेरा क्या होगा? अगर तू ना मिली, तो मेरा क्या होगा? हम नहीं कह रहे हैं कि इज्ज़त में थोड़ी कमी आ गयी है। हम नहीं कह रहे हैं कि पड़ोसी थोड़ा ज़्यादा पैसे कमा रहा है। ये सारे लक्षण उन लोगों के हैं, जो महा गरीब हैं। जिनको ज़िन्दगी से कुछ मिला नहीं है। वो कम्पैरिजन और कॉम्पिटीशन मेँ जीते हैं। वो लगातार अचीवमेंट की कोशिश करते रहते हैं और एम्बिशन को पूजते हैं।

सभी गा रहे हैं: तू श्याम मेरा, साँचा नाम तेरा …..

थोड़ा-थोड़ा फ्लेवर मिल रहा है, मैं कहना क्या चाह रहा हूँ? थोड़ा-थोड़ा? ये सब जो बातें लिखी जातीं हैं, ये ऐसे ही नहीं कोई लिख देता कि असाइनमेंट दिया गया है कि *शाम तक भाई पांच भजन लिख के दे देना*। और कोई चार -पांच फैक्ट्री लगी हुई हैं, जिसमें प्रोफेशनल भजन राइटर बैठकर भजन लिख रहे हैं। इनको कहा जाता है कि ये रेवेलेशन्स होते हैं। ये अचानक आते हैं, जैसे बैठे-बैठे कुछ तुमने अचानक गुनगुना दिया। या इतना खुश हुए कि नाचने लग गये| ये प्लानिंग से नहीं आती हैं। जैसे कि बीज का टाइम आ गया हो| वो इतना भर गया है कि उसमें से अब पौधा निकल आया। या कोई वोल्केनो,उसको धरती से, अपने सोर्स से इतना मिल रहा है कि पूरा भर गया है और अब बहने लग गया है। ये सब कुछ ऐसे आता है।

(सेशन की समाप्ति सभी के द्वारा ‘नामदेव ने बनाई, रोटी कुत्ते ने उठाई’, भजन गाने से होती है)

-‘संवाद ‘ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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