पढ़ाई में मन क्यों नहीं लगता? || आचार्य प्रशांत (2016)

Acharya Prashant

7 min
217 reads
पढ़ाई में मन क्यों नहीं लगता? || आचार्य प्रशांत (2016)

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, परीक्षाओं में अंक अच्छे आएँ इसी कारण ही पढ़ाई करती हूँ। और इसी कारण कुछ भी गहराई से समझ नहीं पाती। कृपया इस पर प्रकाश डालें।

आचार्य प्रशांत: यही संकट है बेचारे परिणाम वादियों का – परिणाम बुरा आए तो दुःख, और परिणाम अच्छा आए तो आगत की आशंका – “अब आगे क्या होगा?” और जितना परिणाम अच्छा आता जाता है, आगे के लिए तुम्हारा पैमाना उतना ही ऊँचा होता जाता है – “इस बार छः फीट कूदे थे, अब आगे सात फीट कूदेंगे।” तो दिल तो धड़केगा न।

कोई भी परिणाम आख़िरी हुआ है तुम्हारे लिए, कि इसके आगे अब और नहीं कूदना है? तो ऊँचा कूद-कूदकर अपने लिए ही आफ़त पैदा कर रहे हो न। जितना कूदोगे, उससे ज़्यादा ही कूदना पड़ेगा।

निष्काम कर्म का यही अर्थ होता है – कर लो, बल्कि होने दो, और इस झंझट में पड़ो ही मत कि नतीजा क्या आएगा।

जो हो रहा है, वो अगर पूरेपन से हो रहा है, तो बस ठीक। अंजाम क्या आता है, परवाह किसको है?

और जो अंजाम की परवाह करेगा, वो अंजामों के अनंत चक्र में उलझा हुआ रहेगा।

कोई अंजाम कभी नहीं कहेगा कि – “मैं आख़िरी हूँ।”

तुम मर जाओगी, तो भी कोई और अंजाम आना बाकी होगा। इसीलिए ख़ूब कल्पनाएँ बैठ गई हैं कि मरने के बाद आख़िरी अंजाम मिलता है। कौन सा?

प्र: मोक्ष।

आचार्य: तो अंजामों का तो जाल ऐसा फैलाया गया है कि उससे कोई मुक्ति नहीं है। उससे यदि मुक्ति हो सकती है तो अगले अंजाम पर नहीं होगी, ठीक मुक़ाम पर होगी।

प्र: तो क्या छोड़ना होगा?

आचार्य: पकड़ा क्या है- ये बताओ। तुम लोग बात हमेशा आगे की करते हो, इधर की कभी करते ही नहीं, बिलकुल अभी की। ज़मीन की कभी बात ही नहीं करते। क्या पकड़ा है तुमने? तुम पढ़ाई कर रही हो, तुमने अभी अपनी परीक्षा के परिणाम कि बात की। तुम पढ़ाई कर रही हो अभी। तुमने हाथ में क्या पकड़ा है? क़िताब। मैं क़िताब छोड़ने को थोड़े ही कह रहा हूँ। मैं क़िताब से जुड़ी हुई चिंता छोड़ने को कह रहा हूँ।

प्र: वो तो यंत्रवत होता है आचार्य जी।

आचार्य: नहीं, ये यंत्रवत नहीं है। ऐसा इसलिए है क्योंकि तुम्हें क़िताब से कोई प्यार ही नहीं है। तुम्हें सारा मतलब परिणाम से है। और परिणाम यदि आ सके बिना क़िताब के, तो तुम क़िताब छुओ न – “पता नहीं परिणाम कब आएगा। आएगा या नहीं आएगा?”

अभी तो हाथ में क्या है? क़िताब। और क़िताब से अगर प्यार नहीं, तो ज़िंदगी से प्यार नहीं, क्योंकि ज़िंदगी तो क़िताब के साथ ही बीत रही है न।

प्र: तो आचार्य जी, क्या डरना ज़रूरी है, पर उससे घबराना नहीं है?

आचार्य: क़िताब यदि हाथ में है, तो डरते हो क्या? जो क़िताब से डरते हैं, उन्हें क़िताब से क्या समझ में आएगा? क्या आएगा? कौन-सी क़िताब ने तुम्हारा मुँह नोंच लिया है?

क़िताब डराती है क्या? नहीं, क़िताब नहीं डराती, क़िताब से जुड़ी हुई अपेक्षा डराती है। क़िताब तो कोई सीधी-साधी बात कह रही है, सामान्य ज्ञान है। तुम उस ज्ञान से पता नहीं कितनी उम्मीदें जोड़ लेते हो कि ये ज्ञान मिल गया तो तुम्हारा जीवन बन जाएगा।

कोई ज्ञान तुम्हारा जीवन नहीं बना सकता। तुम जो हो, सो हो। कोई क़िताब न आज तक लिखी गई है, न उतरी है, न लिखी जाएगी, जो तुम्हारा जीवन परिवर्तित कर दे। हाँ, कोई क़िताब ऐसी ज़रूर हो सकती है जो तुम्हें परिवर्तन की उम्मीद से आज़ाद कर दे।

उतना ठीक है।

पर तुम्हारी तो उम्मीद ही बड़ी बेहद की है। तुम कहते हो, “ये क़िताब पढ़ूँगा, इससे कैरियर बन जाएगा तो मैं चमक जाऊँगा।” तुम चमक कैसे जाओगे?

कुछ चमक रहा है?

(हँसी)

क़िताब डराती सिर्फ़ इसलिए है क्योंकि तुम क़िताब से वो माँग रहे हो जो कोई क़िताब तुम्हें नहीं दे सकती।

तुम क़िताब को सहज तरीक़े से नहीं पढ़ते।

तुम क़िताब को ऐसे पढ़ते हो कि पढ़ लिया, तो परिणाम आएगा, परिणाम आया तो ये मिलेगा, ये मिला तो जीवन बनेगा।

जीवन कोई बनाने की चीज़ है?

अरे, और जो कुछ बनाना है बनाओ – कार बनाओ, रोटी बनाओ, घर बनाओ। जीवन थोड़े ही बनाया जाता है!

जब भी किसी से तुम ऐसा कुछ माँगोगे जो दे पाने की उसमें पात्रता ही नहीं, तो उसके और तुम्हारे सम्बन्ध में खटास आ जाएगी। तो क़िताब से भी तुम वही माँगते हो, जो तुम अपने प्रेमी से माँगते हो।

तुम क़िताब के माध्यम से भी पूर्णता पाना चाहते हो, और प्रेमी के माध्यम से भी।

दोनों ही नहीं दे सकते – तो पुस्तक और प्रेमी दोनों विफल रह जाते हैं, और दोनों तुम्हें डराते हैं।

और एक मोड़ पर आकर तुम दोनों को कहीं फेंक आते हो।

काम निकल गया है, उसके बाद किताबें रखते हो क्या अपने पास? ठीक उसी तरह से न-उम्मीद जब हो गए, तो प्रेमी रखते हो अपने पास? तुम कहते हो, “जो तुझसे न मिला वो अगले से मिलेगा।”

मत माँगो संसार से जो संसार तुम्हें दे नहीं सकता – न कोई क़िताब, न कोई विचार, न कोई वस्तु।

तुम्हें तुम्हारी पूर्णता कोई नहीं दे सकता।

तुम पूर्ण हो, तुम चमके हुए हो।

प्र: आचार्य जी, जीवन का उद्देश्य क्या है?

आचार्य: अगर तुम हो ही चमके हुए, तो क्या करोगे तुम उद्देश्य का? उद्देश्य का तो अर्थ ही यही हुआ कि कुछ करना बाकी है, कुछ और पाना बाकी है, और न पाया तो कुछ खोखला रह जाएगा। सब मिला ही हो, तृप्त ही हो अगर, तो जीवन जीने में कोई परेशानी? या बहुत ही मज़ा आता है इस एहसास के साथ जीकर कि बड़ी कमी है, बड़ा अधूरापन है?

कितने लोग हैं जिनको बड़ा मीठा-मीठा-सा लगता है ये सोच-सोचकर?

जीवन अपने आप में पूर्ण है।

कोई उद्देश्य है यदि उसका, तो मात्र पूर्णता की अभिव्यक्ति है।

तुम ठीक हो, बढ़िया हो, मस्त हो।

अब अपनी इस मस्ती को प्रकट होने दो – यही इस जीवन का उद्देश्य है।

मस्ती ‘प्राप्त करना’ उद्देश्य नहीं हो सकता। पूर्णता, आत्मा, सत्य, मुक्ति प्राप्त करना उद्देश्य नहीं है। मुक्त हो! अब अपनी इस मुक्ति को नाचने दो। यही उद्देश्य है। मुक्ति को दबाए रहोगे तो वो दबी रहेगी, वो तुम्हारा सम्मान करती है। तुम्हें ‘हाँ’ बोलनी होगी कि – “जो मुक्त स्वभाव है मेरा, वो अभिव्यक्त हो ज़रा।”

प्र: आचार्य जी, ऐसा क्यों होता है कि आनंदित व्यक्ति दुःख और सुख से प्रभावित नहीं होता?

आचार्य: क्योंकि वो दोनों से ही अस्पर्शित है। अनुभव हम रोकते हैं, अनुभव का हम दमन करते हैं, क्योंकि उससे हमें डर लगता है।

जब अनुभव तुम्हारे लिए बहुत मायने नहीं रखता, तब तुम अनुभव को आने देते हो। तब तुम कहते हो, “आ भी गया, तो मेरा बिगाड़ क्या लेगा? और आ भी गया, तो मुझे दे क्या जाएगा?” तो फिर दुःख हो, सुख हो, तुम कहते हो, “आओ, दोनों आओ।”

“ख़ुशी का मौका है तो हम पूरी तरह से ख़ुश हो लेंगे। हमें ये नहीं लगेगा कि ख़ुशी प्रदर्शित करना अनैतिक है। और दुखी होने का अवसर है, तो हमें ये नहीं लगेगा कि दुःख का प्रदर्शन कमज़ोरी का प्रदर्शन है कि आध्यात्मिक आदमी, सुलझा हुआ आदमी, धार्मिक आदमी रो कैसे सकता है।”

“न, हम तो ख़ूब रोएँगे। रोएँगे, पर कोई आँसूँ हमें गला नहीं रहा है। हँसेंगे, पर कोई ठहाका हमें कम्पित नहीं कर रहा है। हँस रहे हैं, और भीतर अपनी ही हँसी से अनछुए हैं। रो रहे हैं, पर रो नहीं भी रहे हैं।”

और जब तुम रो नहीं भी रहे होते हो, तब तुम्हें आज़ादी होती है पूरा रोने की।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
Comments
LIVE Sessions
Experience Transformation Everyday from the Convenience of your Home
Live Bhagavad Gita Sessions with Acharya Prashant
Categories