बताओ प्रतियोगी परीक्षा क्यों दे रहे हो? अगर तुम्हें साफ़-साफ़ पता हो कि तुम क्यों दे रहे हो परीक्षा तो ऐसा कैसे होगा कि तुम फिर उसमें मेहनत नहीं करोगे? या तो मेहनत करोगे पूरी या फिर परीक्षा छोड़ ही दोगे। पर तुम ये कभी पता ही करने की कोशिश नहीं करते कि तुम कोई परीक्षा लिख रहे हो तो क्यों लिख रहे हो।
तुम ख़ुद ही नहीं जानते हो कि परीक्षा क्यों लिख रहे हो तो अपने मन को कैसे समझाओगे?
इतने लोग हैं, हज़ार परीक्षाएँ लिख रहे होते हैं, उनको बैठाकर पूछना शुरू कर दो कि, “ठीक-ठीक बता कि तुझे इस संस्थान में प्रवेश क्यों चाहिए? या तुझे ये नौकरी क्यों चाहिए?” तो इधर-उधर की दो-चार सतही बातें बोलेंगे। उसके बाद फुस्स…