पास आए तो कुत्ता, दूर जाए तो बेवफ़ा || आचार्य प्रशांत (2021)

Acharya Prashant

11 min
104 reads
पास आए तो कुत्ता, दूर जाए तो बेवफ़ा || आचार्य प्रशांत (2021)

प्रश्नकर्ता: एक व्यक्तिगत स्थिति है। जिन्होंने पूछा उनका नाम नहीं लूँगा। कह रहीं हैं- मैं २८ साल की हूँ और शादी को दो साल हुए हैं। पति बहुत प्यार करते हैं हमारी लव मैरेज हुई थी। सालभर पहले तक राहुल (पति का नाम) बड़े एक्साइटेबल माने चंचल, जल्दी उत्तेजित हो जाने वाले, बेसब्र और लविंग थे। हम हर वीक डिनर , डेट वगैरह पर अपना जाते रहते थे। वी आर ऑलसो प्लानिंग अ बेबी। (हम एक बच्चे की भी योजना बना रहे थे।) लेकिन पिछले साल से कोरोना काल में जब हम लोगों को लम्बे समय तक एकदम इक्ट्ठे ही रहना पड़ा, तो राहुल अपने भावनाओं पर और अपनी हरकतों पर नियंत्रण खोने लगें। कामुकता बहुत बढ़ गई बहुत एक्साइटेड (उत्तेजित ) रहने लगे।

तो मेरी फ्रेंड (दोस्त) ने आपके मेडिटेशन (ध्यान) और गीता के कोर्सेज ( पाठ्यक्रमों) के बारे में बताया। तो मैंने राहुल को तीन कोर्स करवा दिये। तो कोर्सेज करने के दो महीनें के बाद से वो बहुत स्थिर शान्त हो गये हैं। अब सब ठीक है, अब वो मुझे परेशान नहीं करते। पर अब प्रॉब्लम ये है कि उन्हें अब आपके वीडियोज ही देखने में मज़ा आने लगा है। और वो मुझ पर बिलकुल ध्यान नहीं देते। तो इस प्रॉब्लम (समस्या) का कुछ बताइए?

आचार्य प्रशांत: हमारा ऐसा ही है न, हम पहली बात तो विज़्‌डम्‌ (बुद्धिमानी) की तरफ़ बढ़ेंगे नहीं। ज़िन्दगी हमारी मज़े में चल रही है, इनकी और इनकी पतिदेव की भी सालों से मज़े में चल रही थी। दोनों में से किसी ने गीता का नाम नहीं लिया। फिर समस्या आ गई, समस्या ये आ गई कि कोरोना में लॉकडाउन में दोनों को बहुत ज़्यादा साथ-साथ रहने लगा तो हस्बैंड ज़्यादा भावुक और कामुक होने लग गये।

तो इस समस्या से निपटने के लिए कहा कि गीता पर और मेडिटेशन (ध्यान) के कोर्सेज़ जो हैं वो करवा देते हैं इनको। ऐसे हम आते हैं गीता कि ओर। और गीता से हमें बस उतना ही चाहिए जितना हमारी इच्छाओं को पूरा करता रहे, उस से कम मिले तो हम शिक़ायत करेंगे कि अरे! गीता से तो हमें कुछ मिला नहीं। और बड़ी शिकायत और ज़्यादा शिकायत कर देंगे अगर जितना हम चाहते थे और जो हम चाहते थे गीता से उससे हमें ज़्यादा मिल जाए।

कितना चाहिए था? कि मेरे और मेरे पति कि जो एक नियमित ज़िन्दगी चल रही है। जैसी एक किसी भी साधारण दम्पति की होती है, वैसी ही चलती रहे। पति बहुत ज़्यादा एक्साइटेबल (उत्तेजित) न रहें, बहुत ज़्यादा कामुक न रहें, बहुत ज़्यादा न रहें सन्तुलन रहे। लेकिन अब गीता तो गीता है। कृष्ण आपसे पूछकर तो काम करेंगे नहीं। गीता ने अपना काम कर दिया। और अब शिकायत ये है कि पहले पति बहुत ज़्यादा हवसी थें और अब मुझ पर ध्यान नहीं देते। इस समस्या के लिए तो एक ही समाधान है कि आप भी गीता के तरफ़ आ जाइये।

जोड़े जब भी आते हैं या विवाहित लोग जब भी मेरे समीप आते हैं, मैं कहता हूँ देखो अगर कोर्स कर रहें हो तो कोशिश यही करो कि दोनों एक साथ कर लो। क्योंकि दोनों एक साथ नहीं करोगे, तो दोनों कि चेतना में बड़ी विषमता पैदा हो जाएगी। विषमता समझते हो? ओड-इवेन (सम-विषम) हो जाएगा। एक बहुत आगे निकल जाएगा एक बहुत पीछे रह जाएगा।

एक-दूसरे से फिर बातचीत करना थोड़ा विचित्र सा लगेगा। क्योंकि ये ज्ञान ऐसी चीज़ नहीं होती है जो एक सूचना बनकर आप के पास आ गया कि हाँ-हाँ मुझे भी अब गीता के ये अठारह श्लोक पता हैं तो ठीक है। नहीं, ये ज़िन्दगी बदल देता है। बेहतरी के लिए बदलता है। लेकिन जिस इंसान को आप पहले जानते थे, उसको ये वैसा नहीं छोड़ेगा जैसा कि वो पहले था। बन्दा ही दूसरा हो जाएगा और डरिए नहीं बन्दा बहुत बेहतर हो जाएगा।

दिक़्क़त ये है कि हमें कई बार बेहतर से बेहतर लगता है परिचित। मतलब समझो। हमें बेहतर इंसान नहीं चाहिए होता, हमें परिचित इंसान चाहिए होता है। फिर हम कहते हैं नहीं-नहीं तुम पहले जैसे थे दोबारा वैसे ही हो जाओ। क्योंकि तुम पहले जैसे थे उसको मैं जानती थी, उसके साथ मुझे सुविधा थी, उसकी मुझे आदत लगी हुई थी। अब तुम भले ही बेहतर हो गये हो, लेकिन मुझे सुहाते नहीं। क्योंकि मुझे तो अपने ही स्तर का कोई चाहिए न।

ऐसे नहीं करते हैं, आपके पति हैं मैं मान रहा हूँ कि आपको प्रेम होगा उनसे। प्रेम में ऐसे नहीं करते। कि पति “आउट ऑफ़ कंट्रोल” (नियंत्रण से बाहर) है तो उसको गीता कि ओर भेज दिया और अब गीता पढ़कर उसमें अब कुछ समझ-बूझ आ गयी तो कह रहे हैं कि आचार्य जी आपके कोर्सेज़ कर के मेरे पति अब मुझ पर ध्यान नहीं देते हैं। ‘ध्यान नहीं देते हैं’, माने क्या ध्यान नहीं देते हैं? ध्यान न देना माने क्या? कि पहले कि तरह जंगली बर्ताव नहीं करते, कूद नहीं पड़ते तुम्हारे ऊपर। और कूद पड़े तो कुत्ता, न कूदे तो बेवफ़ा। वो चैन कैसे लेगा।

जब कूद पड़ रहा था तब आपको ही समस्या थी। इन्हीं शब्दों में पत्नियाँ अक्सर पतियों को सम्बोधित करती हैं, कुत्ता। जब देखो मौका पाकर माँस पर नोचने के लिए कूद पड़ता है। अच्छा! बड़ा बुरा आदमी है,बड़ा बुरा आदमी है। अब पति अध्यात्म की ओर मुड़ गया, कृष्ण से कुछ बातें पूछने लगा, गीता से कुछ समझ हासिल कर ली। तो कह रहे हैं देखो बेवफ़ा हो गया है अब ये। पहले वाला नहीं रहा, पहले वाली बात नहीं रही, पहले वाली गर्मी नहीं रही रिश्ते में। फिर काउंसलर्स (सलाहकार) आते हैं, कहते हैं- हाउ टु ब्रिंग द स्पार्क बैक इन टु योर सेक्स लाइफ? (अपनी सेक्स लाइफ़ में फिर से जोश कैसे लाएँ?) हाउ टु रिजुविनेट द रिलेशनशिप? (अपने रिश्ते को फिर से जीवंत कैसे करें?) इस तरह का खूब छपता है। वो यही है। पति ने गीता पढ़ ली है, पत्नी ने उपनिषद पढ़ लिये हैं।

मेरा आशय ये बिलकुल नहीं है कि जो गीता पढ़ लेगा या उपनिषद् पढ़ लेगा उसका अपने साथी में इंट्रेस्ट या रूचि समाप्त हो जाएगी। ऐसा नहीं होता बाबा। मूर्खता में रूचि समाप्त हो जाती है, व्यक्ति में रूचि नहीं समाप्त हो जाती। अगर वाकई उन्हें गीता समझ में आयी है। अभी मैं ये बस मेरा मान्यता है, एजम्सप्न (मान्यता)है कि उन्हें समझ में आ गया है मेरा कोर्स। अगर वाकई उन्हें गीता समझ में आयी है तो गीता कहीं से संसार से भागने का सन्देश नहीं देती है।

गीता ये नहीं कह रही है कि अब पत्नी है तो उसको छोड़ दो, उसको देखो मत। हाँ, गीता इतनी अक्ल ज़रूर पैदा कर देती है कौनसी चीज़ काम की है, कौनसी चीज़ व्यर्थ है। मूर्खताओं के प्रति एक अरुचि पैदा कर देती है गीता, पत्नी के प्रति नहीं पैदा कर देती है अरुचि। हाँ, पत्नी अब मूर्खता पर मूर्खता कर रही हो तो फिर क्या करेगा पति?

मैं जानता नहीं हूँ आपके घर में क्या चल रहा है, मैं आपके और आपके पति के बीच समीकरण क्या है वो भी नहीं जानता। बिलकुल ऐसा हो सकता है कि आपके पति को गीता समझ में ही न आयी हो और वो घर में यूँही कोई प्रपंच कर रहें हैं। वो भी हो सकता है उसकी भी सम्भावना है। पर अभी ये मैंने जैसा कहा मानकर चल रहा हूँ कि पति को गीता समझ में आ गयी है, कुछ हद तक कम-से-कम। पुरी तो किसी को क्या आसानी से समझ में आयेगी।

आप भी गीता की ओर बढ़िये और ये सन्तुलन वगैरह व्यर्थ के शब्द हैं। आप कह रहीं हैं देखिये, पति दिन में चार बार आकर मुझे पकड़ लेते थे। ये तो बात ठीक नहीं है न। भई पति की भूख चार दफ़े की थी। आप कह रहीं हैं दो दफ़े ठीक होता है या एक दफ़े ठीक होता है दिन में। आपकी भूख एक या दो बार की है। आप मुझे बताइये किस आधार से आपने ये कह दिया कि चार गलत हैं और दो सही है। आप कह रहीं हैं चार भी गलत है और शून्य भी गलत है या एक भी गलत है मान लो अभी एक। आप कह रहीं हैं चार भी गलत है और एक भी गलत है दो सही है। ये कौनसा फार्मूला है? मुझे समझाइए।

ये कहाँ से आपने निष्कर्ष निकाला कि दो सही है और चार भी गलत है और एक भी गलत है। घूम-फिरकर के आप ये कह रहीं हैं कि आप जो कहें, वो सही है बाकी सब गलत है। तो महाअहंकार की बात हो गयी न। सबकुछ वैसा चले जैसा मैं चाहती हूँ। न चार चले, न एक चले, दो चले क्योंकि दो मैं चाहती हूँ। ये क्या बात है?

अगर आप के आसपास कोई ऐसा हो जो वाकई सोचने-समझने लग गया हो, ज़िन्दगी को साफ़ आँखों से देखने लग गया हो, तो उस पर आरोप मत लगाइए। वो जो देख रहा है कोशिश करिए कि आप भी वो देख सकें। कई बार ऐसा गीता इत्यादि ग्रन्थों को पढ़कर होता है, कई बार बिना पढ़े भी हो जाता है।

तेरह-चौदह साल का मान लीजिए लड़का है या लड़की है घर में, वो ऐसे ही अपना टीनएजर (किशोर) की तरह, किशोर की तरह घूम रहा है। कुछ नहीं उसको सोचना-समझना नहीं, मज़े हैं इधर-उधर घूम रहा है। फिर उम्र बढ़ी, कुछ अनुभव हुए कॉलेज में गया, कुछ चीज़ें देखीं समझी, उसकी सोच का दायरा बढ़ा तो उसने कुछ नयी बातें घर पर करनी शुरू की। उसको दोष देना मत शुरू कर दो कि ये तूने कौनसी नयी बातें करनी शुरू कर दी हैं, ये तू क्या कह रहा है।

वो जो कह रहा है उस पर गौर तो करिए। सम्भावना यही है कि आप जो कुछ सोचते हैं, आप जिस तल पर जीते हैं उससे आगे की बात कह रहा है वो या कह रही है वो। दोष मत देने लग जाइये कि अरे! ये तो कोई और हो गया। अच्छा अब तू इतना बड़ा हो गया, ऐसी बड़ी-बड़ी बातें करेगा ये सब चलता है न खूब। अच्छा तेरे पर (पंख) निकल आये हैं। ये सब ज्ञान किसी और को देना, बाप को मत सीखा। ये क्या है बाप को मत सीखा?

वो एक आया और बोला - किसान को धान और बाप को ज्ञान नहीं बतातें। वो कुछ और था पर मैं ऐसे बता रहा हूँ। ये क्या है? ये कौनसा मुहावरा गढ़ा है? ऐसे ही ये है। पति जब तक कामुकता में भरकर पत्नी के पीछे-पीछे लार टपकाता घूम रहा हो तब तक परेशानी तो है। लेकिन एक सुख भी है। मेरा पति कुत्ता है और उसकी लगाम मेरे हाथ में है। मैं अपने पति को पकड़कर के उसका पट्टा घुमाती रहती हूँ, अब गड़बड़ हो गई है।

इस पूरी इतनी लम्बी-चौड़ी कहानी में आपने कहीं नहीं लिखा कि आपको भी गीता से, बोध से,विज़्‌डम्‌ (बुद्धिमत्ता) से कोई सरोकार है। क्यों? आपने यहाँ भी कही हैं, मुझे मेरी फ्रेंड ने आपके माने, ‘आचार्य प्रशांत’ के मेडिटेशन और गीता के कोर्सेज के बारे में बताया। तो जो फ्रेंड ने बताया उसनें ये भी बताया कि ‘आचार्य प्रशांत’ के जो कोर्सेज हैं, वो सिर्फ़ पुरुषों के लिए होतें हैं या सिर्फ़ पतियों के लिए होते हैं या सिर्फ़ कामुक लोगों के लिए होते हैं। उसने ये भी कहा था क्या कि आप नहीं कर सकती वो कोर्स। आपने खुद क्यों नहीं किया? पति को ही क्यो एनरोल (नामांकन) कराया? आप क्यों नहीं आयीं? और पति जब लॉगिन करते होंगे उनकें बगल में ही बैठकर कर लेतीं।

जो आगे बढ़ रहा हो उसकी शिक़ायत मत करो, उसका साथ दो और उससे सिखो। बार-बार पुरानी स्थितियों की,अतीत की दुहाई मत दो कि पहले तो ये ऐसा होता था, अब ये ऐसा हो गया। अरे! जैसा भी हो गया है बेहतर ही हो गया है। कृष्ण किसी को गिराते नहीं हैं, उठाते ही हैं। वो बेहतर ही हो गया है। और अगर उसकी बातें तुम्हें अब समझ में नहीं आतीं, तो ज़िम्मेदारी तुम्हारी है कि तुम कोशिश करो सीखने की, एक वयस्क महिला हैं आप।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
Comments
LIVE Sessions
Experience Transformation Everyday from the Convenience of your Home
Live Bhagavad Gita Sessions with Acharya Prashant
Categories