नियमों का डर || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

Acharya Prashant

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नियमों का डर || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

वक्ता: राजीव का सवाल है कि डर और नियम में क्या संबंध है?

गुरुत्वाकर्षण का नियम ले लेते हैं। आपने नहीं बनाया, लेकिन नियम है। अभी हम यहाँ प्रथम फ्लोर पर बैठे हैं। ठीक है? हम में जो समझदार है उसके लिए ये गुरुत्वाकर्षण का नियम बड़े काम का है। गुरुत्वाकर्षण न हो तो मैं यहाँ ऐसे खड़ा नहीं रह सकता, फ्रिक्शन ना हो तो मैं अभी यहाँ से गिर जाऊंगा। गुरुत्वाकर्षण नहीं, तो फ्रिक्शन भी नहीं होगा, अभी गिरना पड़ेगा मुझे। पर जो नासमझ है उसके के लिए ये नियम भय का कारण भी हो सकता है। वो सोच सकता है कि मैं यहाँ से बाहर निकलने के बजाय वहां से कूद जाऊंगा, और जब वो कूदने की सोचेगा तो उसे लगेगा कि कूदूँगा तो हाथ-पाँव टूट जायेंगे। अब ये गुरुत्वाकर्षण का नियम तुम्हें डराने के लिए नहीं बनाया गया है। ये डर तुम्हारी अपनी नासमझी से निकल रहा है।

इसी तरह मन के भी कुछ नियम होते हैं। जो उन नियमों को समझ लेगा वो राजा बन जायेगा, जो नहीं समझेगा वो भुगतेगा और उसे पता भी नहीं चलेगा कि वो क्यों भुगत रहा है, पर भुगतेगा। बात समझ रहे हो? बात तुम्हारी ठीक है। सही बात तो ये है कि परम को भी बहुत सारे लोगों ने ‘भयानक’ ही कहा है। तुमने अक्सर सुना होगा कि लोग कहते हैं, ‘ईश्वर सुन्दर है, ईश्वर सत्य है’ परन्तु ऐसे बहुत से ध्यान-मग्न लोग हैं जिन्होंने यह भी कहा है कि ‘ईश्वर भयानक है’। बेशक भयानक है। उनके लिए जो नासमझी का जीवन बिता रहे हैं, उनके लिए जो पहले से ही डरे हुए हैं। जो डरा हुआ है नियम उसे और डराएगा। जो नियम को समझ रहा है, वो उसी नियम को उपयोग करके राजा बन जाएगा।

हम सब एक मायने में अनपढ़ ही हैं कि मन को नहीं समझते। मन के अपने कुछ नियम होते हैं। जब समझ जाते हैं तो जीवन बहुत आनंदमय हो जाता है और अगर नहीं समझते तो हम सोचते रह जाते हैं कि हमें किस बात की सज़ा मिल रही है। इसी बात की सजा मिल रही है कि तुमने कभी दृष्टि भीतर को की नहीं , उन नियमों को जाना नहीं। और याद रखना कि ये मनुष्य के बनाये नियम नही हैं। ये नियम हैं, बस हैं । इन्हें जाना जा सकता है, लेकिन इनके साथ छेड़खानी नहीं की जा सकती ।

तुम इन्हें जान सकते हो कि ये ऐसे काम करता है। ‘मैंने अवलोकन किया और जाना कि ये ऐसे काम करता है। ये हमेशा उम्मीद से भरा रहता है? इसका मतलब है कि ये हमेशा भविष्य की और देखता रहता है। ये भविष्य कहाँ से बनता है? हाँ, अतीत से बनता है’। अब हमने ये नियम पकड़ लिया जैसे न्यूटन ने सेब को गिरता देखकर गुरुत्वाकर्षण का नियम पकड़ लिया था। न्यूटन ने ये नियम ऐसे नहीं बनाया कि चलो आज बैठ कर कुछ नियम बनाते हैं, बल्कि उसने ये जाना। कैसे जाना? सिर्फ देखकर, ध्यान देकर। इसी तरह मन के नियमों को भी जाना जा सकता है, ध्यान देकर।

-‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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