मौत झूठ है

Acharya Prashant

9 min
200 reads
मौत झूठ है
आपको लगता है कि अब आपकी चीज आपसे छिन गई, वो छिनी नहीं है, वो कहीं और पहुँची है, बिखर गई है, हजार जगह पहुँच गई है, लेकिन वो जहाँ भी पहुँची है, वहाँ पर, तो आप भी मौजूद हो। तो आपसे भिन्न कहाँ हुआ वो आपसे अलग कहाँ हुआ आपसे बिछड़ा कहाँ, वो? जो आपको दिखाई देता है कि वो जहाँ भी जायेगा वो आपको ही पायेगा। तो फिर आपको दुख थोड़े ही होगा। यह सारांश प्रशांतअद्वैत फाउंडेशन के स्वयंसेवकों द्वारा बनाया गया है

प्रश्नकर्ता: जी प्रणाम आचार्य जी, मेरा प्रश्न यह था की जैसे आपने बताया की इस सूत्र, इस श्लोक में हमें अमरत्व का प्रमाण मिल रहा है। जैसे वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो यह भी पता चल रहा है की जैसे हमारी मृत्यु होती है, जीवन काल के दौरान भी हमारे सारे पार्ट जो होते है वो या तो जीव में स्थापित होते है, कभी कभी जड़ वस्तुओं में भी स्थापित हो जाते हैं। तो फिर इसमें अमरत्व का जो वो है उसमे क्या जड़ और चेतन में कोई फर्क नहीं किया गया है। मतलब जड़ वस्तु को भी हम…

आचार्य प्रशांत: अगर अहंकार नहीं है। तो जड़ और चेतन में कैसे फर्क हो गया? चेतन उसी को तो बोलते हो न, जो अहम अहम करे, उसको बोलते हो चेतन। जब अहम ही झूठ है तो जड़ और चेतन में अंतर कहा से आया? आगे बताइए।

प्रश्नकर्ता: एक फॉलोअप प्रश्न था वो कर सकता हूँ सर?

आचार्य प्रशांत: करो करो।

प्रश्नकर्ता: जी, जी। तो जैसे ज्ञान समझ आया की मृत्यु एक तरह से समझा जाए तो शरीर की होती है। पर हम जैसे ज्ञान के बावजूद हमारे जैसे अपनों की मृत्यु होती है, कभी तो उनके कुछ गुण उनके रिश्ते टाइप के होते है। तो ये हमें जानते हुए भी की इनकी क्या क्या जैसे इनके एक तरह से मृत्यु हुई नहीं है, वही संसार में वापस चले गए हैं, जो जगत है तो उसके बावजूद भी वो शोक रहता है। हमारे दिल में की जो गुणों के साथ जो व्यक्ति थे वो तो एक तरह से चले गए है, उस तरह से यह ज्ञान उस वक्त कैसे हमारे काम आ सकता है?

आचार्य प्रशांत: कोई है मेरे सामने, ठीक है। और जैसे मैं अपने आप को एक विभाजित व्यक्ति मानता हूँ वैसे उसको भी मानता हूँ, है न। और मेरा जो पड़ोसी है, चूँकि मैं विभाजित हूँ, मैं उससे अलग हूँ, तो उसको मैं यह तो मानता नहीं कि वो मैं ही हूँ। अब अगर आपको बता भी दिया जाए कि आपके सामने जो है उसका कुछ नहीं हुआ है, वो बस उसका एक बड़ा हिस्सा यहाँ से उठ कर के वहाँ चला गया है, और कुछ हिस्सा वहाँ चला गया, कुछ चला गया है, तो आपको पूरा सुकून पड़ जाता। अगर आप ये मानते होते आप और वो जिसके पास वो चला गया है आप, और वो एक ही है।

फिर आप कहते हैं की अभी ये मेरे पास था, मैं ए हूँ, वो बी है। अब बी उठ करके बी डैश और बी डबल डैश के पास हो गया है, मैं हूँ मैं वो बी है, हम दोनों में एक रिश्ता था, ए और बी में एक रिश्ता था, और ये अपने आप को यही मानता है, ये हूँ इतना मैं और बी भी इतना ही और ये और बी में एक रिश्ता है, इधर रहता है ए डैश, उधर आगे रहता है, ये डबल डैश, उधर रहता है, बी डैश और उधर रहता है बी डबल। और ये जो बी है, यह बी डैश हो गया और बी डबल डैश हो गया। अब बी डैश किसको मिल गया?

जैसे ए के साथ बी था, वैसे बी डैश अब किसके साथ है, ए डैश के साथ है और बी डबल डैश किसके साथ है, ए डबल डैश के साथ है। पर आपके देखे तो ए डैश आप नहीं है और ए डबल डैश भी आप नहीं है। तो आपके देखे ये जो आपका भी था, ये किनके पास पहुंच गया, परायों के पास पहुँच गया। तो इसलिए आपको सुकून नहीं आएगा, अगर आपको ये दिखाई दे जाए कि वो जो था आपका वो, अब जिनके पास भी पहुंचा है, वो आप हैं।

तो आपको क्या समस्या होगी? क्यूंकि आप अहंकार के कारण अपने आप को इतना मानते हो न इसलिए आपको लगता है कि अब आपकी चीज आपसे छिन गई, वो छिनी नहीं है, वो कहीं और पहुँची है, बिखर गई है, हजार जगह पहुँच गई है, लेकिन वो जहाँ भी पहुँची है, वहाँ पर, तो आप भी मौजूद हो। तो आपसे भिन्न कहाँ हुआ वो आपसे अलग कहाँ हुआ आपसे बिछड़ा कहाँ, वो?

नहीं समझ में आ रही बात क्यूंकि आप कौन हो? बस जो इस कुर्सी पर बैठा है, जो आपके साथ था। अब वो बगल वाले घर में पहुँच गए, और। उधर पहुँच गया और उधर पहुँच गया। और कहते मैं तो यहीं पर हूँ, मैं थोड़ी उधर पहुँचा हूँ। तो आप कहते हो, मुझसे बिछुड़ गया, परायों के पास पहुँच गया या कहीं पहुँच गया मुझे न मालूम कहाँ पहुँच गया, जहाँ गलत हो गया। जो आपको दिखाई देता है कि वो जहाँ भी जायेगा वो आपको ही पायेगा। तो फिर आपको दुख थोड़े ही होगा।

ये काफी भूतिया सा गाना है। तू जहाँ जहाँ चलेगा, मेरा साया साथ होगा। पत्नियां पतियों को धमकाने के लिए गाती हैं। अक्सर यह पर इस में बड़ी सत्यता है। वो जो जिसको आप कह रहे हो, जिसकी मृत्यु हो गई। वो जहाँ जहाँ पहुँच रहा है, वहाँ आप भी पहले से मौजूद हो। तो कहा जाएगा मर के मृत्यु से बचने के लिए अपनी और समष्टि की अभिन्नता देखनी जरूरी है मैं और ये जितने अलग होंगे उतना ज्यादा मौत का खौफ रहेगा।

अच्छा सुकून होता है न, जब ये लगता है, जब कोई अपना जा रहा होता है तो अक्सर हम बोलते हैं न कोई बात नहीं, तुम जा रहे, हम पीछे पीछे आ रहे हैं। मिलेंगे तो अच्छा सा लगता है न, थोड़ी राहत पड़ जाती है न, कोई अपना जा रहा है तो। तो खुद को दिलासा देने के लिए यह भाव कितना अच्छा रहता है कि तुम चलो आ रहे हैं हम पीछे पीछे या किसी घर में माँ की मृत्यु हो गई हो। फिर उसके दो-चार साल बाद पिता की हो जाए।

बच्चे ऐसे कहते है की आज मम्मी-पापा साथ बैठ के चाय पी रहे होंगे। अच्छा सा लगता है की वो दोनों अब मिल गए, यही लगता है, पर उसे सुकून रहता है कि हम कभी बाद में मिल जायेंगे, तुम चलो हमारे पीछे पीछे मिलन हो जाएगा। अगर ये पता चल जाए की तुम जहाँ भी जा रहे हो वह पहले मौजूद है। तो कोई भी दुख बचेगा? थोड़ा दुख इसी बात से कम हो जाता है।

यही सोच कर के कि तुम जहाँ जा रहे हो, एक दिन हम भी वहीं पहुँच जायेंगे। है न कि तुम्हारी जीवात्मा जा रही है। ऊपर तुम बैठोगे और तुम टेबल रिज़र्व करके रखना आ रहे हैं पीछे से, और ऑर्डर ऑर्डर दे कर रखना बढ़िया तो आ रहे हैं पीछे से। यही सोच कर के थोड़ा दुख कम हो जाता है। और अगर ये ख्याल कर लो की वो जहाँ जा रहा है वहाँ तुम पहले ही बैठे हुए हो। तो कोई दुख बचेगा? नहीं समझ में आ रही बात?

एक गा रहा था, ब्रेकअप के बाद सारा और सारा सितारों के जहां में मिलेंगे हम दोबारा। और बिल्कुल कहेंगे ऐसे राहत आ जाती है, ऐसी नहीं मिली ससुरे मर के तो मिलेगी। जो भी कोई जहाँ भी जायेगा आप वहाँ मौजूद हो। कोई किसी से भिन्न नहीं है। तो बताओ कोई बिछड़ कैसे सकता है? बिछड़ने का भाव ही अहंकार है कि मैं इतना सा हूँ। तो जो यहाँ पर है वो मेरे साथ है। और जो इधर इस स्पेस में, इस लोकलाइज्ड ज्योमेट्री में, जो मेरे पास नहीं है, वो मेरे पास नहीं है। नहीं, कोई कहीं भी जाए, आप वहां मौजूद हों। लेकिन ये बात आप बस।

किसी की मौत पर सहसा नहीं मानने लग जाओगे। ऐसा जीवन जीना पड़ेगा, जिसमें प्रथकता न हो, जिसमें ये न हो कि वो लोग पराए हैं, उनको मार। दो वो देश हमारा दुश्मन है, उस पर मिसाइल छोड़ दो, वो प्रजातियां हमसे भिन्न हैं, उनका संहार कर दो, जब इस भाव के साथ जी रहे हो, तो तुमने अपने आप को फिर लोकलाइज्ड बना ही दिया, न स्थानीय बना दिया। एक स्थान पर तुमने स्वयं को केंद्रित कर दिया। तो फिर तो मौत अब बहुत खौफनाक हुई जाएगी। जो व्यक्ति समझते से एकत्व में जीता है, उसके लिए मौत उतनी ही छोटी चीज होती जाती है। वो कहता है सब एक ही है। वो कहा जा रहा है जहाँ भी जा रहा है, हमें ही पा रहा है।

एक होता है हमशकल और एक होता है गुम शकल, जितनी गुम शकलें आज देखने को मिल रही है। कहीं तो एक दूसरे को अच्छे से देख रहे हैं। आऊँगा न जाऊँगा मैं जीऊँगा, न मरूँगा, यह हैं कहाँ आए कहाँ जाए क्या घर खोजना पूरा ब्रह्माण्ड ही घर है, यह घर है, कहीं जा ही नहीं सकते हम, जितने लोग आज तक हो चुके हैं, सब यहाँ मौजूद है, सब, सब माने, सब एक भी अपवाद नहीं, अरे वो नहीं बोल रहा हूँ। माल डिलीवर मत कर देना।

ये, ये हवा में नहीं, यही, हम में से हर एक व्यक्ति अपने आप में पूरा अस्तित्व रखे हुए हैं। सिर्फ रिटोरिकली नहीं, मुहावरे के तौर पे नहीं, तथ्य के तौर पर आपमें अकबर भी थोड़ा सा मौजूद है, अशोक भी है, ऐसा? नहीं अशोक तक ठीक था। यह मुगल बीगल बीच में मत लाया करो। वो हमारे शरीर में कैसे शुद्धि करनी पड़ेगी हम क्या करें भाई, अस्तित्व तो तुम्हारी मान्यताओं पर नहीं चलता। हिटलर भी मौजूद है। हमारे ही, हम क्या करें? बढ़िए आगे।

प्रश्नकर्ता: धन्यवाद।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
Comments
LIVE Sessions
Experience Transformation Everyday from the Convenience of your Home
Live Bhagavad Gita Sessions with Acharya Prashant
Categories