मनुष्य और गधा || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

Acharya Prashant

5 min
49 reads
मनुष्य और गधा || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

प्रश्न: सर, मेहनत तो गधे भी करते हैं। मैं क्या करूँ जिससे जीवन जीने योग्य बने?

वक्ता: बात तो ठीक है, पर बचपन से तो तुमने सिखा यही है कि श्रम सफलता की कुंजी है। यही बताया गया है अब तक। तो अब तुम क्या करोगे ? गधा कम गधा है। जिस गधे की तुम बात कर रहे हो, उसमें गधापन बहुत कम है क्योंकि कम से कम वो गधा पैदा हुआ था, उसको गधा बनाया नहीं गया है। हमें तो गधा बनाया गया है, गधा होना हमारा स्वभाव नहीं था, हमें गधा बनाया गया है, ये बता-बता कर की श्रम करके सफलता मिलती है। किसी ने तुम्हें ये नहीं बताया कि आनंद सफलता की कुंजी है। सब ने कहा कि जितना श्रम करोगे, उतना पाओगे। क्या पाओगे ये नहीं बताया। वही पाओगे जो पा रहे हो और देखो पा-पा कर कैसे हो गए हो!

तुम्हें किसी ने नहीं बताया कि जब तक तुम्हें कुछ करने में आनंद अनुभव नहीं हो रहा, तब तक तुम उसमें श्रेष्ठता भी नहीं पा सकते। क्या तुम ऐसी किसी चीज़ में श्रेष्ठ हो सकते हो, जिसमें तुम आनंद महसूस नहीं करते? क्या ये संभव है? अरे! ये तो कभी बताया नहीं गया। वही गधे वाला हिसाब-किताब बता दिया गया और ये नहीं बताया गया कि वो बात पत्थरों पर लागू होती है, जीवित मनुष्यों पर नहीं। बाहरी प्रभाव पत्थरों पर काम करते हैं, और पत्थरों पर ही उन्हें काम करना चाहिए। मनुष्य की अपनी समझ है, उसे घिसने की ज़रुरत नहीं है, उसे समझने की ज़रूरत है।

न्यूटन का दूसरा नियम है की एक चीज़ लुढ़कती ही रहेगी जब तक बाहर से उसको रोक न दो या ठोकर न मार दो। तुमने सोचा की ये नियम तुम पर भी लागू होता है कि कोई बाहरी ताकत आए और हमको हिला दे, और सिर्फ बाहरी प्रभाव से हम जीवन में कुछ पा लेंगे, नहीं पा पाओगे। तुम्हारी सबसे बड़ी शक्ति है तुम्हारी चेतना, तुम्हारी जान पाने की काबिलियत और इसके बारे में कभी बात ही नहीं हुई हैं। मेहनत करने की चीज़ नहीं होती है, जब तुम मेहनत में डूबते हो, तो बहुत मेहनत हो जाती है, और तुम्हें पता भी नहीं चलता, तब वो मेहनत खेल बन जाती है। जब श्रम करना पड़े तो समझ लो गलत हो रहा है। जब श्रम करने की बहुत कोशिश करोगे, श्रम हो भी नहीं पायेगा और थकान बहुत हो जाएगी।

दिनभर कॉलेज में रहते हो, करते भी कुछ नहीं हो, पर शाम को बोलते हो कि बड़ा थक गए। फिर शाम को जाते हो दो घंटे फ़ुटबाल खेलते हो, जितनी ऊर्जा दिन भर खर्च की है, फुटबॉल के मैदान पर उससे दस गुनी खर्च कर देते हो, पर कहते नहीं की थक गए। जहाँ वाकई मेहनत करते हो, वहां कभी नहीं कहते कि करना पड़ा, और जहाँ कुछ नहीं हुआ वहाँ कहते हो कि …

श्रोता: थक गए ।

वक्ता: क्योंकि जहाँ आनंद है, वहाँ श्रम है ही नहीं। वहाँ पर कर्म है, जो अब खेल बन चुका है। अब वो खेल है, तुम खेल रहे हो और उस खेल-खेल में मेहनत हो जाएगी, तुम मेहनत कर नहीं रहे हो। बात समझ रहे हो? करने और होने, दोनों में अंतर होता है। श्रम करना नहीं है, श्रम करने देना है। जब किसी भी चीज़ में डूबोगे, पूरी तरह से तब श्रम होगा, अपने आप होगा और वो श्रम है ही नहीं। तब, वो नाच-गाना है, खेल है और उसमें मज़ा आएगा, थकान नहीं होगी। श्रम होता है, जब तुम्हें दोहराना पड़ता है, जब समझ में नहीं आ रहा पर दोहरा रहे हो। कोई आनंद नहीं अनुभव हो रहा उसमें। क्यों? क्योंकि जहाँ समझ नहीं है वहाँ आनंद नहीं है। जो तुम्हें समझ नहीं आ रहा, उसमें कभी तुम आनंदित हो ही नहीं सकते और तुम बैठ करके वो पहाडा रटे जा रहे हो, पर समझ में नहीं आ रहा है।

ठीक-ठीक देखो तो तुम श्रम को पूरे तरीके से जानते भी नहीं। टूट करके काम कैसे किया जाता है, कितनी ऊर्जा उसमें बह सकती है इसका तुम्हें कोई अनुभव भी नहीं है। जब भी तुम श्रम करोगे, अपने आप को बाध्य करोगे मेहनत करने के लिए, तो बहुत मेहनत नहीं कर पाओगे। आज पूरा इरादा था कि ये वाला अध्याय पूरा खत्म कर देंगे, पर खाना खाया, जमहाई ली और बाकि काम सुबह। फिर अलार्म लगाया सुबह ५ बजे का, और फिर सुबह क्या हुआ?

श्रोता: अलार्म बंद और फिर से सो गए।

वक्ता: ये तो तुम्हारा श्रम है। और इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं। जहाँ आनंद नहीं, वहाँ तुम श्रम कैसे कर सकते हो? एक स्थिति ऐसी भी होती है कि जो भी कुछ कर रहे हैं, पढ़ रहे हैं, ऐसे डूबे की समय कब गुजर गया पता ही नहीं चला। इतना मज़ा आ रहा था, समय देखने का वक्त किसके पास था? कार्य करते जा रहे हैं और जब देखा घड़ी की ओर, तो ताज्जुब हुआ कि ६ घंटे से कर रहे हैं और पता भी नहीं चला। श्रम हो गया, बहुत सारा श्रम हो गया, उपलब्धि भी हो गयी पर तुमने किया कुछ नहीं, तुमने होने दिया। बात समझ में आ रही है? श्रम करो मत, श्रम होने दो और श्रम तब होगा जब ध्यान से उस पल में डूबोगे।

– ‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
Comments
LIVE Sessions
Experience Transformation Everyday from the Convenience of your Home
Live Bhagavad Gita Sessions with Acharya Prashant
Categories