मज़बूत इंसान की पहचान || नीम लड्डू

Acharya Prashant

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मज़बूत इंसान की पहचान || नीम लड्डू

जो अपनी ग़लती स्वीकारेगा नहीं, उसकी सज़ा ये होगी कि वही अपनी ग़लती दोहराएगा। ग़लती स्वीकार लो, ग़लती से मुक्त हो जाओगे। दूसरों को दोष देते रहोगे, मानोगे ही नहीं कि ग़लती तुमने करी तो उसी ग़लती को बाध्य हो जाओगे दोहराने के लिए। ग़लती मानना बड़ी बहादुरी का काम है। ग़लती मानना बड़ी ज़िम्मेदारी का काम है। “हाँ, हमारी ज़िम्मेदारी थी”, और जिसने मान लिया है कि हमारी ज़िम्मेदारी थी, हमारी ज़िम्मेदारी है, उसके पास आ जाती है ताक़त, क्योंकि ताक़त का ही दूसरा नाम ज़िम्मेदारी है।

जो मान ही नहीं रहा कि उसकी ग़लती थी, वो अपनी ज़िम्मेदारी नहीं मान रहा, और ज़िम्मेदारी नहीं मान रहा तो उसमें क्या नहीं आएगी? ताक़त। जहाँ ज़िम्मेदारी नहीं, वहाँ ताक़त नहीं। आम-आदमी तो भूल स्वीकार कर ही नहीं सकता। असल में कमज़ोर की बड़ी-से-बड़ी निशानी यह है कि उससे भूल नहीं मानी जाएगी। तुम्हें अगर कमज़ोर ढूँढना हो तो तुरंत ऐसे आदमी पर उँगली रख देना जो अपनी भूल को छिपाने के लिए बहस करे जाता हो और तर्क दिए जाता हो।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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