मैं बहुत अच्छा आदमी हूँ और सबका भला चाहता हूँ, लेकिन... || आचार्य प्रशांत (2023)

Acharya Prashant

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मैं बहुत अच्छा आदमी हूँ और सबका भला चाहता हूँ, लेकिन... || आचार्य प्रशांत (2023)

प्रश्नकर्ता: नमस्ते आचार्य जी। प्रश्न ये है कि हमारे पास काफ़ी चीज़ों की कामनाएँ रहती हैं पर कुछ कामनाएँ मतलब अच्छी भी होती हैं।

आचार्य प्रशांत: नहीं, बुरी वाली भी होती हैं?

प्र १: नहीं मतलब जैसे…

आचार्य: सारी ही अच्छी होती हैं।

प्र १: कि जैसे हमें किसी की मदद करना चाहते हैं या कुछ भी…

आचार्य: ‘किसी,’ कौन है वो किसी?

प्र १: जैसे हम किसी एनजीओ में किसी ग़रीब बच्चे को पढ़ाना चाहते हैं उसके माध्यम से या ऐसे जैसे काफ़ी एनजीओज़ हैं जो सेक्स ट्रैफिकिंग के लिए काम करता है। ऐसी काफ़ी हैं तो हमारी आख़िरी चाहत यही होती है कि चीज़ें हल हो जाएँ और काफ़ी चीज़ें अलाइन हो जाएँ तो ये भी कामना था कि...

आचार्य: यहाँ बैठे न तीन चौथाई लोग मुस्कुरा रहे हैं अच्छी-अच्छी कामनाओं की बातें सुनकर। एक मैंने टिकटॉक देखा था, तो उसमें उन्होंने दिखाया था, सहायता वाली बात आती है न कि एक लड़की स्कूटी चला रही है और वो गिर जाती है, जब वो गिर जाती है तो छज्जों से कूदकर, खिड़कियों से रेंगकर इधर उधर से करके तीन सेकेंड में तीस लोग आ जाते हैं उसकी निःस्वार्थ सहायता करने के लिए और उसको तरह-तरह से उठाना शुरू कर देते हैं। अरे-अरे! क्या हो गया उसमें पुलिसवाले भी हैं उसमें ये है वो है दुनिया भर के, लड़की गिर गयी स्कूटी से तीस पुरुष भागकर आ गये उसकी निष्काम सहायता करने। अब वो एक मिनट का उसका होता है टिकटॉक वाला कई दो तीन साल पहले का मामला और फिर दिखाते हैं कि ऐसे ही दो लड़के चले जा रहे हैं, वो गिर जाते हैं, जब वो गिर जाते हैं तो वहाँ ठेला वाला आता है पहले तो लात मारता है, बोलता है, ‘साले, पीकर चला रहे होंगे। फिर पुलिसवाला आता है और डंडा मारता है, ‘हेलमेट कहाँ है? लाइसेंस कहाँ है?’ फिर बाप आता है, बोलता है, ‘ये मेरी स्कूटर बर्बाद कर दी।’

हम कितने अन्धे हैं कि हमें दिखता नहीं कि ये जो हम सब काम निष्काम होकर करते हैं, उनके पीछे कितना सड़ा हुआ काम घुसा रहता है। आज सुबह जो वीडियो पब्लिश हुआ है, उसका असली शीर्षक था कि त्योहारों का असली अर्थ समझो और क्या था? ‘मस्ती और छुट्टी नहीं हैं त्योहार’। तो उसका जो यूट्यूब में क्लिक थ्रू रेट होता है वो था कुछ ढ़ाई परसेंट, माने सौ लोगों के पास अगर जा रहा है तो उसमें से ढ़ाई लोग उसको देख रहे हैं तो उसके बाद केवल एकदम झनझना के जाग्रत हो गया और बोला, ‘अभी बताता हूँ।’ और उसने बनाया एक मस्त थम्बनेल जिसमें एक शर्टलेस आदमी ऐसे अपना खड़ा हुआ है पूरी भीड़ के सामने नाचता हुआ और उसके तीन इधर लड़कियाँ नाच रही तीन इधर लड़कियाँ तीन नाच रहीं और ऊपर पटाखे फूट रहे और मैंने कहा, ‘तू ठहर, मैं भी आ रहा हूँ, अर्जुन।’

तूने अपना काम किया मैं भी; तो मैंने टाइटल बदल दिया। मैंने कहा, ‘त्योहार मनाने के मस्त देसी तरीक़े।’ और उसका सीटीआर भागकर हो गया सात परसेंट। और अभी वो एकदम दनदनाकर भाग रहा है। लोग बिलकुल निष्काम होने के लिए ही हमारे आध्यात्मिक वीडियो देखते हैं। हम तो आचार्य जी का चैनल देखते हैं। अरे, तुम मेरा चैनल भी तब देखते हो जब मैं तुम्हें उसमें कामनापूर्ति का झाँसा देता हूँ। तुम्हें कृष्ण तक लाने के लिए भी मुझे चूहेदानी बिछानी पड़ती है, नहीं तो तुम वहाँ भी न आओ।

ये लोग किताबें छापते हैं अब उसके लिए कहते हैं अब वो किताब है शीर्षक मान लो ‘मुक्ति’ तो उसके लिए कहेंगे कि देखें मुक्ति पर कौन कौनसी बातें बोली हैं, उन्हीं को लेकर फिर उसकी किताब बनती है, अब वो मुक्ति खोजते हैं चैनल पर तो उन्हें मुक्ति के नाम से एक वीडियो नहीं मिलता क्योंकि बात भले ही उसमें पूरी तरह वीडियो में मुक्ति की गयी हो पर शीर्षक में ये लिखना पड़ता है, क्या?

असली प्रेम पाना हो तो ये पाँच चीज़ें करिए, ‘मुक्ति’ अगर लिख दिया तो आप जैसे निष्काम लोग उसपर कभी क्लिक ही नहीं करेंगे निष्काम तो सिर्फ़ तब होता है जब…। अरे, कामना कभी बोलकर आती है, ‘मैं अच्छी कामना हूँ’, ‘मैं बुरी कामना हूँ’? सारी कामनाएँ क्या बनकर आती हैं? सब-की-सब अच्छी हैं और कभी कामना बोलकर आती है कि मैं स्वार्थवश आयी हूँ? सब कामनाएँ यही बोलकर आती है कि इसमें तो जगत कल्याण भी निहित है। आप किसी की हत्या भी करने जाओगे न, ये आतंकवादी हत्याएँ करते हैं तो मालूम है क्या बोलते हैं? बोलते, ‘देखो, ये पाप की ज़िन्दगी जी रहा था ये जितने दिन ज़्यादा जीता उतना ही ये अपने लिए पाप इकट्ठा करता और पाप इकठ्ठा करता तो फिर जाकर जहन्नुम में सड़ता तो हमने इसको मार कर के इसके लिए अच्छा ही तो करा है, जल्दी मर गया तो अब इसको जहन्नुम में कम सज़ा भोगनी पड़ेगी।’ हम कभी बोलते हैं क्या कि हम अपने स्वार्थ के लिए किसी पर अत्याचार कर रहे हैं या कोई और कुकर्म कर रहे हैं?

जब जानवरों का गला रेता जाता है तो क्या बोलते हो? बोलते हो इसके गले पर जैसे ही छुरी चलती है वैसे हीं तुरन्त ये जन्नत पहुँच जाता है, ये थोड़े ही बोलते हो कि अपनी हवस के लिए कर दिया मैंने कुछ। कभी ज़िन्दगी में सचमुच कोई अच्छा काम करने निकलिए तो पता चलेगा कि उसमें सहायता, समर्थन जुटाना कितना मुश्किल होता है। ऐसा कुछ नहीं है कि अच्छी कामना, बुरी कामना है कि कुछ तो हम अच्छे हैं न, कुछ तो हम अच्छे काम अपनी ओर से भी करते हैं न। यही तो दिलासा दे-देकर अहंकार अपनेआप को बचाए रखता है कि देखो थोड़ा बुरा हूँ लेकिन थोड़ा मैं अच्छा भी हूँ।

जिस दिन आप जान जाओगे न कि ज़रा भी अच्छे नहीं हो उस दिन अच्छाई की शुरुआत हो जाएगी। अभी तो अपनेआप को झाँसा दे रखा है ये बोलकर कि कुछ तो मैं अच्छे काम भी करता हूँ, ‘अरे, वो जो अच्छे काम करते हो वो भी एक तरह का सौदा है ताकि बुरे काम चल सकें। एक-से-एक घूसखोर लोग होते हैं वो अपनी घूस का पाँच प्रतिशत जाकर धर्म स्थल पर चढ़ा आते हैं अब दिखने में तो यही लगेगा कि अच्छा काम कर रहा है, ‘वाह!’ अभी-अभी जाकर के वहाँ मन्दिर में दानपात्र में गड्डी डालकर आया है।’ यही लगेगा न अच्छा काम? पूरी बात भी तो समझो कि चल क्या रहा है सचमुच। एक काम दिखा दो जो निष्काम करा हो ज़िन्दगी में, चुनौती देकर बोल रहा हूँ।

आप तो यहाँ भी आते हो तो कामना से बिलकुल बजबजाते हुए आते हो। ये भी छोड़ दो कि आप कृष्ण की गीता के पास भी आये हो तो वहाँ भी निष्कामता है, कोई निष्कामता नहीं है। मेरे साथ कितनी बार हुआ है, अभी तो मैं फिर भी बोल पा रहा हूँ, कि मेरा गला बिलकुल बैठ गया है और आज भी वो सब रिकॉर्डिंग पड़ी होंगी, देख लीजिएगा, आवाज़ ही नहीं निकल रही है और सत्र के पाँच घंटे हो गये हैं लेकिन बोलने वाले अभी भी, पूछने वाले अभी भी पूछते जा रहे हैं। ठीक वैसे जैसे शायलॉक्स पाउंड ऑफ़ फ्लेश कि मुझे भी तो मेरा पाउंड ऑफ़ फ्लेश चाहिए न, मैं भी तो अब यहाँ आया हूँ तो वसूलूँगा भाई। आप यहाँ भी निष्काम होकर कहाँ आते हो? यहाँ भी यही रहता है कि वसूली करनी है। आपको नहीं कह रहा हूँ और न ये कह रहा हूँ कि प्रश्न मत पूछिए।

यहाँ जो लोग रह रहे होते हैं उनको भी अच्छे से पता होता है कि मैं दिन में तीन घंटे सोया हूँ और इन्हीं की वजह से नहीं सोया हूँ क्योंकि मैं सो जाऊँ तो ये काम करना छोड़ देते हैं। मैं यहाँ पर बड़े-से-बड़ा अपराध ये करता हूँ कि अगर मैं कभी थोड़ा भी सो जाऊँ, मैं सोया नहीं कि ये तुरन्त पीछे से सब छोड़-छाड़कर ग़ायब हो जाते हैं एकदम। तो इन्हें पता होगा मैं सोया नहीं हूँ उसके बाद मैं बैठा हूँ सत्र का चौथा-पाँचवा घंटा चल रहा होगा और फिर यही खड़े हो जाएँगे कि हमारा भी तो सवाल है उसका भी तो जवाब दो। ये निष्कामता है?

अब प्रश्न हो सकता है निष्कामता के विषय पर हो। प्रश्न का विषय हो सकता है निष्कामता पर, प्रश्न में तो कामना कूट-कूटकर भरी हुई है बाबा। हाँ, कोई आएगा दूर से देखेगा तो कहेगा देखो ये कितना अच्छा संवाद चल रहा है कितने तात्विक विषयों पर चर्चा चल रही है। ‘वाह, क्या प्रश्न पूछा है!’ उसको ये थोड़े ही पता है कि जो प्रश्न पूछ रहा है वो कितना हिंसक है और जहाँ कामना है वहाँ हिंसा तो होगी-ही-होगी। जो चीज़ें घोषित तौर पर, प्रकट तौर पर आपको बुरी लगती हैं, वो तो ठीक है, उनका तो राज़फ़ाश हो गया, पता ही चल गया कि वो चीज़ें बुरी हैं। ज़िन्दगी में उन चीज़ों से बहुत सतर्क, सावधान रहिए जो अच्छी लगती हैं। शैतान कभी शैतान बनकर नहीं आएगा वो हमेशा साधु का भेष बनाकर आएगा।

झूठ कभी अपने माथे पर खुदवाकर नहीं आएगा, ‘मैं झूठ हूँ।’ वो सच्चा बनकर आएगा और स्वार्थ हमेशा निःस्वार्थता बनकर आएगा। मैं पढ़ाई करता था न हमारे यहाँ पर एक-से-एक लोग थे वो एनजीओ जाते थे पढ़ाने के लिए। पढ़ाने, कुछ करने। दो चीज़ें होती थीं एनएसएस , एनसीसी उनमें खूब कर लो तो नौकरी अच्छी मिलती थी। सीवी में लिखते थे, ‘मैंने एनएसएस में इतने पेड़ लगाए, इतने घंटा पढ़ाया।’ कम्पनियाँ खुश हो जाती थीं, कहती थीं, इसका टाइम मैनेजमेंट (समय प्रबन्धन) बहुत अच्छा है आइआइटी में होकर भी ये सब कुछ कर पा रहा था। एनएसएस का काम इसका मतलब ये कई काम एक साथ कर सकता है। इसका मतलब जब हमारे यहाँ आएगा तो बढ़िया बैल बनेगा। कई काम एक साथ करके देगा तो वो सब लिखने से नौकरी बढ़िया।

अब आप उसमें अगर एक बिलकुल मायोपिक तरीक़े से देखोगे तो ऐसा लगेगा देखो निःस्वार्थ होकर के वो जा रहा है बेचारा अशिक्षित महिलाओं की मदद करने। वो वहाँ इसलिए जा रहा है की वो सब करके वो सीवी पर लिखेगा और उससे उसके रोकड़ा अच्छा आएगा। एक काम बताओ न, निष्काम करते हो। कहाँ से खड़े हो गये कि मेरी कुछ अच्छी कामनाएँ हैं? कहीं कोई आदमी दिख जाए न ग़रीबों को मुफ़्त कम्बल बाँटता हुआ, बहुत सावधान हो जाना। ये कम्बल में खटमल है। बुरा आदमी फिर भी ठीक है क्योंकि उसकी बुराई प्रकट है। ईमानदारी है एक तरह की बुरे आदमी में। ‘हाँ साहब, हम तो बुरे हैं।’

ये जो अच्छे लोग होते हैं इनसे बचना ये जो अच्छाइयाँ किया करते हैं कि मैं तो देखिए कुछ चाहता नहीं हूँ बस आपको यूँ ही दे रहा हूँ। इसीलिए मैंने एक बार एक शब्द बोला था, सरल काम। निष्काम होने से पहले सरल काम होना ज़रूरी है सरल काम वो जिसके भीतर अगर कामना है तो खुलकर बोल ही दे कि कामना है। छद्म काम सबसे ख़तरनाक होता है जो है तो कामी पर बन रहा है निष्कामी।

हम छद्म काम हैं। सब कामना रखकर बैठे हुए हैं, ठूसठूस भरे लेकिन बन क्या रहे, निष्कामी। इससे अच्छा सरल काम हो जाओ। भूख लगी है तो बोल दो, ‘भूख लगी है, दे दो।’ ये काहे को बोल रहे हो, ‘नहीं, भाभी जी मैं तो बस यूँही टहलने आ गया था, वैसे खाना बन रहा है क्या? नहीं चाहिए तो नहीं पर अगर बन ही रहा है तो।’ अरे सीधे बोलो न, ‘भूख लगी है, खाना नहीं था, आये हैं खाना दे दो हमें भी।’ माँग लो।

सरल काम जो सरल काम हो गया वो धीरे-धीरे निष्काम भी हो जाएगा। समझ में आ रही है बात? जैसे छोटे बच्चे होते हैं वो सरल काम होते हैं निष्काम नहीं होते, कामना उनमें खूब होती है पर उसको चाहिए तो खड़ा हो जाता है (बच्चे की तरह हाथ फैलाकर माँगने का संकेत)। फिर धीरे-धीरे हम उसको छद्म आचरण सिखा देते हैं कि कामना हो तो स्वाँग करो, ऐसे बनो कि चाहिए नहीं, फिर धीरे से निकाल लो।

प्र १: जैसे कि आपकी बात बिलकुल समझ आयी कि हम जो भी करते हैं उसमें भी कुछ छिपा होता है बिलकुल। जैसे वीगनिज़्म है अगर उसको अपना रहे हैं या उसका प्रचार कर रहे हैं, तो उसमें भी हम कैसे देखें?

आचार्य: ये देख लो कि क्या नहीं मिलेगा तो बुरा लगेगा। जो भी कर रहे हो उसमें ये देख लो कि क्या नहीं मिलेगा तो बड़ा बुरा लगेगा। उदाहरण के लिए, वीगन एक्टिविज़्म कर रहे हो उसमें इज़्ज़त नहीं मिली, अगर कहो कि इज़्ज़त नहीं भी मिली तो भी बुरा नहीं लग रहा तो ठीक, पर पाओ कि एक्टिविज़्म करने निकले थे, बेइज़्ज़ती मिल गयी तो बुरा लग रहा है तो जान लेना कि वहाँ पर कामना बैठी हुई थी।

झुन्नूलाल की अचानक अटेंडेंस कक्षा बारह में शत प्रतिशत हो गयी और झुन्नूलाल आधी क्लास पहले अटेंड कर ले बड़ी बात होती थी। ये कैसे हो गयी? और जा रहे हैं और बिलकुल ध्यान से नोट्स बना रहे हैं और एक-एक कक्षा में मौजूद हैं। कैसे चल रहा है? एक दिन झुनूलाल एकदम बेज़ार नज़र आये क्लास में पढ़ाई में मन ही नहीं लग रहा, आ तो गये हैं नोट्स-वोट्स कुछ नहीं बना रहे। उस दिन झुनिया एबसेंट थी।

जिसके न होने से तकलीफ़ होने लगे, जान लो जो कर रहे हो उसी के लिए कर रहे हो। ये काहे के लिए स्कूल जाया करते थे? झुनिया के लिए। हो सकता है इन्हें ख़ुद ही लगता हो कि अब हम बहुत अच्छे स्टूडेंट हो गये हैं। ‘अब तो मैं जाता हूँ।’ और नोट्स-वोट्स पूरा बनाते थे सब करते थे, अब गये हैं तो करेंगे क्या। लेकिन इन्हें कोई तकलीफ़ नहीं हुई जिस दिन शिक्षक अनुपस्थित हो गया इन्हें बड़ी तकलीफ़ हुई जिस दिन झुनिया अनुपस्थित हो गयी तो बात फिर सीधी है कि तुम किसके लिए जा रहे थे। तो जो भी कर रहे हो देख लो कि उसमें कौनसी चीज़ है जो नहीं मिली तो बड़ी समस्या हो जाएगी।

कौनसी चीज़ है नहीं मिली या अगर उसका विपरीत मिल गया तो बड़ा बुरा लग जाएगा। निष्काम का तो अर्थ होता है परिणाम की परवाह नहीं है जहाँ पर किसी विशेष परिणाम से अच्छा या बुरा लगता हो, वहीं पर पकड़ लेना अपना स्वार्थ। जिस विशेष परिणाम से अच्छा लगता हो वहाँ स्वार्थ है, जिस विशेष परिणाम से बुरा लगता हो वहाँ स्वार्थ है। बहुत निष्काम होकर के भिखारियों में पैसे बाँट रहे थे तभी एक भिखारी ने बहन की गाली दे दी, अब पगला था वो, उसका क्या है। और बड़ा बुरा लग गया दिल में खंजर उतर गया तो जान लेना कि इज़्ज़त के लिए बाँट रहे थे।

नहीं तो बुरा क्या लगना है? वो पगला है वो कुछ भी बक सकता है वो बक गया, गाली दे दी। बुरा क्यों लगा? बुरा इसीलिए लगा क्योंकि उम्मीद ये थी कि इज़्ज़त मिलेगी। इज़्ज़त की जगह वो गरिया गया। अब बड़ा बुरा लग गया इसका मतलब ही यही है कि कोई निष्कामता वगैरह कुछ नहीं थी, इज़्ज़त पाने के लिए बाँट रहे थे।

रिश्ते में जिस चीज़ के न होने से रिश्ता काँपना शुरू कर दे जान लेना वही चीज़ रिश्ते का आधार है, केन्द्र है। आपका रिश्ता है किसी भी चीज़ से, रिश्तों में ही तो निष्कामता की बात होती है न रिलेशनशिप , कोई भी चीज़ हो सकती है, चाहे वो ग़रीब को कम्बल बाटना हो या कुछ भी एक रिश्ता है ग़रीब के साथ आपका रिश्ता। उस रिश्ते में जिस चीज़ की कमी से वो रिश्ता ही काँपना शुरू कर दे जान लेना कि वो पूरा रिश्ता है ही उसी चीज़ के लिए। बस वहीं पर अपना स्वार्थ पकड़ में आ जाएगा।

प्र १: मतलब आप कह रहे हैं कि एक तरीक़े से प्रक्रिया ही अन्तिम चीज़ है। और अगर फाइनल रिज़ल्ट (अन्तिम परिणाम) के लिए हम कर रहे हैं तो वो निष्कामता नहीं है।

आचार्य: अरे, फाइनल रिज़ल्ट हो, इंटरमीजिएट रिज़ल्ट (बीच का परिणाम) हो कामना तो हर जगह कुछ-न-कुछ चुगना चाहती है न बीच में भी चुगेगी, बाद में भी चुगेगी। पहले हर जगह चुगेगी। जिस भी चुग्गे की ख़ातिर लालयित हो वही चुग्गा तुमसे तुम्हारा काम करवा रहा है, तो वो निष्काम कैसे हो गया? और वो नहीं पता चलता। वो पता अपनी अनुपस्थिति में चलता है। जब वो न रहे तब पता चलता है कि इसी के लिए तो कर रहे थे वरना लगता है हम अपनेआप को झाँसा देने में माहिर होते है न। झुलूलाल अपनेआप को क्या बोले हुए थे कि मैं अब बहुत पढ़ाकू हो गया हूँ इसलिए आया करता हूँ नियमित रूप से।

झुन्नूलाल को यही लगता था वो पढ़ाई के लिए आते हैं। पर उस दिन उनकी उतरी हुई तबीयत देखकर समझ में आ गया कि ये किसके लिए आते हैं। एकदम उदास, विकल कहीं मन नहीं लग रहा।

प्र २: सर, अभी जो मैंने सीखा है कि कामना सच्चाई नहीं देखने देती। पर कामना पूर्ति के लिए मैंने कुछ मेनिफेस्टेशन टेक्नीक्स (प्रदर्शन तकनीक) के बारे में भी सुना और रोंडा कुछ किताबें हैं, ’लॉ ऑफ़ अट्रैक्शन’ और ’द पॉवर’। इन सबको भी पढ़ा था तो उसमें ये बताया गया है कि आप जो हैं उसे नहीं सोचना है और जो आप होना चाहते हैं उसके बारे में आप सोचिए या आपको उन चीज़ों की कल्पना करनी है और मैंने उन चीज़ों की प्रैक्टिस भी की थी। तो क्या ये झूठ है या मेरी समझने की भूल है? मैं नहीं समझ पा रही सर।

आचार्य: दुकान है आपको कुछ सुनना है कोई सुना देगा तो बेस्ट सेलर बन जाएगी उसमें से। ये कोई भी किताबें आपको कुछ ऐसा बताती हैं जो आपको अप्रिय लगे?

प्र २: नहीं सर।

आचार्य: ये सब किताबें आपको वही बताते हैं जो आपको सुनना है। रॉयल्टी का मामला है, भाई। वो आपको कुछ कड़वा बता देंगी उसकी किताब नहीं बिकेगी। वो जो भी हैं वो भूखे मरेंगे बेचारे तो आपको वही तो बताएँगे जिसमें आपकी कामना पूर्ति होती हो। कोई आपकी कामना पूरी करता है तभी तो आप उसको रुपया देते हो, कोई आपको रसगुल्ला देता है तो आप उसको रुपया देते हो और कोई आपको पत्थर मारे तो आप उसको रुपया दोगे क्या? तो ये इतनी सी नहीं समझ में आ रही बात। आप काहे के लिए गयी थीं ये सब पढ़ने के लिए? गीता आउट ऑफ़ प्रिंट (मुद्रण न होना) चली गई थी?

प्र २: सर, तब आप नहीं मिले थे।

आचार्य: ज्ञान वाले हम रहे हैं, हमारी बात उनको पढ़नी चाहिए, है न? पश्चिम तक ये बात पहुँचनी चाहिए, उसकी जगह पश्चिम का कूड़ा यहाँ पर आ रहा है। ‘लॉ ऑफ़ अट्रैक्शन’, ‘मैनीफेस्टेशन’ ये बिलकुल क्या गाली दूँ इसको? दिल में दे दी वैसे मैंने। (श्रोतागण हँसते हैं)

इस पर बहुत बार बोला है। बहुत प्रश्न आये हैं इसको आप वीडियो पर खोजेंगे तो मिल जाएँगे बहुत इसमें मैंने पूरी भड़ास निकाली हुई है अतीत में। तो मिल जाएगा ये सब। खोज लीजिएगा ख़ुद भी और वो जो आपको वीडियो मिले हैं वो ऐप पर उसका लिंक डाल दीजिएगा। हिंदी में भी बोला है, अंग्रेजी में भी बोला है। पूरा सब डाल दीजिएगा आज। सबकी मदद हो जाएगी।

प्र २: जी सर। धन्यवाद, सर।

(भजन मंडली द्वारा गाया जाता है):

निष्काम हो यज्ञ करे वो पाप मुक्त हो जाता है स्वार्थ हेतु जो जिए नाश को ही पाता है। संसार के कुलज्ञान के, मूल में बस काम है नित्य हो निष्काम हो निर्द्वंद हो, जो सत्यस्थ है आत्मवान है

प्र ३: नमस्ते आचार्य जी, जैसे हमने आज समझा कि जब कामना होती है भीतर तो जो बाहर दिखता है वो साफ़ नहीं दिखता तो जैसे मेरा प्रश्न ये है कि अगर किसी चीज़ को हम अनुभव कर चुके हैं और पता है कि वहाँ पर निराशा है और दिख जाता है कि वहाँ पर कामना है तो फिर भी ऐसा क्यों होता है कि जब भी वो विषय पुनः हमारे सामने आता है तो हम भीतर से विचलित हो जाते हैं?

आचार्य: कुछ नहीं है ऐसे हीं आदत है लतखोरी की। लातों के भूत। एक बार पिटे फिर लात खाने का जी मचल रहा है। दो महीना हो गया, पीठ में खुजली है, कोई मालिश करेगा क्या? और क्या कोई बताए? जो आदमी अपने प्रति प्रेम रखेगा या सम्मान रखेगा या दोनों रखेगा या दोनों एक ही चीज़ होते होंगे, वो तो नहीं एक ही गड्ढे में पाँच बार गिरेगा। इसके लिए और कोई विश्लेषण हो नहीं सकता और ये बात लोगों ने बहुत बार पूछी है। बोलते हैं, ‘हमें पता होता है, हम ग़लती कर रहे हैं।’ वही दोहरा रहे हैं पुरानी ग़लती फिर करते हैं। तो ले-देकर के मेरा तो यही इसमें निकला निश्कर्ष कि लतखोरी है और कुछ नहीं। इसका कोई गहरा आध्यात्मिक सूत्र नहीं हो सकता। इसका तो यही जवाब है। किसी को किसी में मज़ा आता है किसी को किसी में मज़ा आता है।

बुद्ध कहते थे, ‘तीन तरह के घोड़े होते हैं।’ हमारे यहाँ भी तीन तरह के हैं। मान लो सफ़ेद घोड़ा, भूरा घोड़ा और काला घोड़ा, तो बोले एक घोड़ा है मान लो सफेद घोड़ा, बोले वो इशारे से चलता है, आप इशारा कर दीजिए वो समझ जाएगा क्या करना है, वो कर डालेगा। पहाड़ी घोड़ा होगा मान लो। एक मान लो भूरा घोड़ा होता है। जग जाओ, जग जाओ तुम्हारी ही बात हो रही है (एक कार्यकर्ता को सम्बोधित करते हुए)। अब तो कोई राज़ भी नहीं बचा किस घोड़े की बात हो रही है। तो एक भूरा घोड़ा होता है, वो बोले, ‘उसके पास जाकर के उसको ऐसे थपथपाओ और ये सब करो तो फिर वो चल देता है।’ बोले, ‘एक तीसरे तरह के होते हैं, काले घोड़े। उसको वहीं जाना है जहाँ उसको रोज़ जाना है, कोई नयी बात नहीं है। पर वो रोज़ सुबह कहता है कि मुझे लगाओ और दिनभर लगाओ तब चलूँगा और जहाँ लगाना बन्द करो, चलना बन्द कर देता है। फिर लगाओ फिर चलेगा, फिर लगाओ फिर चलेगा। तो ये तो अब अपनी अपनी वृत्ति है। तुम इसका क्या करोगे? आज से नहीं है बुद्ध के समय से हैं, घोड़े तीन प्रकार के।

कोई तय ही करके बैठा हो कि बिना खाये दिन पूरा ही नहीं होता तो तुम क्या करोगे? खिलाओगे उसको, और क्या करोगे? वो तुम्हें खिलाता है तुम उसको खिलाते हो। नहीं तो क्या जवाब है इस बात का, सेल्फ़ लव हो चाहे सेल्फ़ रिस्पेक्ट हो एक आदमी ग़लती दोहराना नहीं चाहेगा। कोई कष्टप्रद अनुभव था, आप उससे दोबारा क्यों गुज़रना चाहोगे? अब हम बोध प्रत्यूषा में नागार्जुन के साथ हैं, वो मुझे पसन्द ही इसीलिए हैं उनका सूक्ष्म हास्य। वो बोलते हैं, ‘संसारी सुख का मतलब होता है कि खुजली हो गयी, उसको खुजलाओ।’ ये सांसारिक सुख है कि खुजली है और उसको खुजलाओ बड़ा सुख मिलता है, कभी खुजली खुजलायी है। ‘आ हा हा! क्या सुख मिलता है!’ और कहते हैं कि तब तक खुजलाता है संसारी जब तक खाल फट नहीं जाती, खून नहीं बहने लगता लेकिन वो फिर भी खुजलाता रहता है। सुख मिल रहा है उसको फिर बोलते हैं, ‘निर्वाण है खुजली का न होना।’

सुख है — खुजली को खुजलाना, और निर्वाण है — खुजली का न होना। ये सुख में और मुक्ति में अन्तर होता है। ये सुख और आनन्द में अन्तर होता है। सुख है कि खुजली है और उसको खुजला रहे हैं क्या सुख मिलता है ग़ज़ब सुख मिलता है। और आनन्द इसमें है कि अब खुजली है ही नहीं। अब ये आपको चुनना पड़ेगा कि आपको खुजलाने वाला सुख चाहिए या निवृत्ति वाला। जो चुन ले कि उसको तो खुजली ही चाहिए भले खून निकल आता हो उसके चुनाव का आप कुछ नहीं कर सकते।

देखिए, चेतना के पास चुनाव का स्वतन्त्र अधिकार है। कोई अगर ये चुने बैठा है कि ज़िन्दगी में उसको ग़लतियाँ हीं करनी है, ठोकरें ही खानी है, कष्ट ही झेलने हैं, दुरदुराया ही जाना है तो आप उसका क्या कर लोगे? कुछ नहीं। तो अब आपके लिए ये जो बुद्ध के तीन घोड़ों की मैंने बात करी है, ये खोजिएगा कि पूरी बात क्या है और ऐप पर डाल दीजिएगा। ठीक है?

इसका कोई छुपा हुआ आध्यात्मिक कारण नहीं है ये अपना चुनाव है बस। एक आदमी अगर चुने बैठा हो कि मुझे तो बदहाली की और लतखोरी की ही ज़िन्दगी जीनी है तो आप उसके चुनाव में हस्तक्षेप नहीं कर सकते। उसकी ज़िन्दगी, उसका फैसला। आप क्या करोगे? सहायता भी उसकी करी जाती है जो सहायता पाने का इच्छुक हो। जो चुने कि हाँ, मैं सहायता स्वीकार करता हूँ। अब सहायता देने जाओ वो पलटकर आपको काट ले, ऐसे में क्या सहायता करोगे? कुछ नहीं।

अहंकार में अंधकार में अज्ञान में मतिभ्रष्ट हैं कल उन्हें क्या कष्ट हो वो आज ही जब नष्ट हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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