प्रश्नकर्ता: नमस्कार आचार्य जी। सर पिछले छह महीने से एच.आर रिक्रूटर में काम कर रही हूँ। तो जब हमारे पास कंपनीज की रिक्वायरमेंट आती है मेल के लिए तो वो अपनी रिक्वायरमेंट बताते हैं कि उसमें मेल कैंडिडेट में ये स्किल होनी चाहिए, इतना एक्सपीरियंस होना चाहिए, इतनी सैलरी बैंड में होनी चाहिए।
बट जब फीमेल कैंडिडेट की बारी आती है तो वो चाहे कोई भी प्रोफाइल हो— टेलीकॉलर रिसेप्शनिस्ट या एच.आर प्रोफाइल में, उनकी स्किल से ज़्यादा मेन फोकस होता है, ‘पर्सनालिटी शुड बी गुड।’ पर्सनालिटी जो है वो बहुत ज़्यादा अच्छी होनी चाहिए, मतलब लुक वाइज़ अच्छी होनी चाहिए, मतलब हम अगर जॉब करने जा रहे हैं तो हम वहाँ पे भी एक तरह से ऑब्जेक्ट ही बन गए ना।
तो कई बार तो वो ये कहते हैं कि मैम फोटो मंगाओ। टेलीकॉलर हुआ, रिसेप्शनिस्ट हुई। तो हमें ऐज अ फीमेल होने के नाते बहुत अजीब लगता है कि मैं कैसे सामने वाले से कहूँ कि सामने वो तुम्हें स्किल और एक्सपीरियंस के बेसिस पे आपको जो सेलेक्ट नहीं कर रहे हैं, आपकी पर्सनालिटी के बेसिस पे वो सिलेक्ट कर रहे हैं।
तो यहाँ पे मैं क्या मतलब कंपनी वालों को समझा सकती हूँ या क्या इन चीजों में कैसे?
आचार्य प्रशांत: उनको पता है लड़कियाँ ऐसे मिल जाएँगीं तो वह ऐसे ले लेते हैं। उन्हें पता होता नहीं मिलेंगी तो वो नहीं आते ऐसी बात करने ना। ये आपने बहुत कुटी चीज पर आपत्ति कर दी। ये तो नौकरी है, नौकरी तो हो सकता है चार महीने की हो दो साल की चार साल की हो। इसी तरीके से तो लड़कियाँ ब्याही जाना भी मंजूर कर लेती हैं। जब इस तरीके से उनका ब्याह हो सकता है तो इस तरीके से उनकी नौकरी क्यों नहीं लग सकती?
प्रश्नकर्ता: सर पर्सनालिटी के बेसिस पे फिर वो ऊपर पहुंच गए पर जो स्ट्रगल कर रही है जिन्हें एक्चुअल लाइफ में अपना जॉब चाहिए और स्किल के बेसिस पे उन्हें तो वो चीज़ें बहुत कचोटती है ना।
आचार्य प्रशांत: नहीं जो स्ट्रगल कर रही हैं जिन्हें अपनी काबिलियत के दम पर आगे बढ़ना है उनका खेल दूसरा है। आपने कहा कि यह बंद कैसे कराएँ? बंद कराने की बात तो तब आएगी जब हमें पता हो कि ये शुरू कैसे हो रहा है? ये शुरू ऐसे हो रहा है क्योंकि जिसकी बोली लग रही है, जिसकी तस्वीर जिसकी देह देखी जा रही है उसको खुद आपत्ति नहीं है। और मैं कह रहा हूँ कि शादी जैसी बड़ी चीज़ में जब वह इस बात पर आपत्ति नहीं करती तो नौकरी में क्यों आपत्ति करेगी?
यह नहीं कि यह उसका दोष है। यह हमने अपनी लड़कियों का हाल बना दिया है। उनकी बचपन से परवरिश ही ऐसे करी जाती है कि तुम्हारी देह ही तुम्हारी सबसे बड़ी पूंजी है।
तो वो जो सबसे बड़ी पूंजी है उस पूंजी को दिखा के उनको पति मिल जाता है तो अच्छी बात है। क्या बुरा कर दिया हमने? यही तो हमारी पूंजी थी। हम स्त्री पैदा हुए हैं तो स्त्री माने तो देह ही होता है। स्त्री माने और क्या होता है? तो देह दिखा के पति मिल गया और देह ही दिखा के अगर बॉस भी मिल जाता है, नौकरी मिल जाती है तो क्या अनर्थ हो गया? जब तक आप बच्चियों की परवरिश ढंग से नहीं करोगे तब तक ऐसे ही खरीद-फरोख्त चलती रहेगी, भाई।
आप सोचिए ना जिस लड़की ने अपनी पूरी ज़िन्दगी ही अपने देह के केंद्र के इर्द-गिर्द खड़ी करी है, उसको यह क्यों बुरा लगेगा कि उसको नौकरी भी उसके लुक्स के आधार पर मिली है। उसको बिल्कुल आपत्ति नहीं लगेगी। आज उसकी ज़िन्दगी क्या है? उसके पास एक हसबेंड है। वो बहुत बार होता है कि बहुत साधारण पृष्ठभूमि की, आर्थिक पृष्ठभूमि की कोई लड़की है। वो ठीक से बहुत पढ़ी लिखी भी नहीं है पर वो दिखने में आकर्षक थी तो उसको डॉक्टर इंजीनियर मिल गया। पुरानी कहानी है और एक बहुत पैसे वाला घर मिल गया, अब उसके दो बच्चे भी हो गए।
तो देह के आधार पर उसको डॉक्टर इंजीनियर मिल गया और वह खुद बहुत पढ़ी लिखी है ही नहीं क्योंकि पढ़ने लिखने की उसको कभी प्रेरणा नहीं दी गई उसके समाज द्वारा परिवार द्वारा। ना वो पढ़ी लिखी है ना उसे कोई ज्ञान है, कुछ भी नहीं। आर्थिक पृष्ठभूमि भी उसकी बहुत साधारण है पर उसकी एक मोटे पैसे वाले घर में शादी हो जाती है। वहाँ वो रानी बनकर बैठी हुई है उसको पति मिल गया है और अब उसके बच्चे हो गए हैं और उसको बहुत सारा पैसा भी मिल गया है।
जब यह सब कुछ हो रहा है और उसको कुछ नहीं बुरा लग रहा, उसकी पूरी ज़िन्दगी ही उसकी देह पर आश्रित है और उसको नहीं बुरा लग रहा तो उसको यह कैसे बुरा लग सकता है कि उसको नौकरी मिल रही है देह दिखा के या अपनी ओर से नहीं दिखा रही तो कोई और कह रहा है कि मुझे अपनी शक्ल दिखा दो या अपनी फोटो। तो जिसको आप पर्सनालिटी बोल रही हो बस बॉडी है।
ठीक है कि मुझे अपनी बॉडी दिखा दो तो तुम्हें मैं नौकरी दे दूँगा। उसको क्यों बुरा लगेगा? और जिस दिन लड़कियों को ये बात बुरी लगनी बंद हो गई उस दिन इस तरह की नौकरियाँ ही बंद हो जाएँगीं। देखिए कोई बिकने को तैयार है तो खरीदार तो सौ खड़े हो जाएँगे ना। मैं हूँ, मेरा जीवन है, मैं मनुष्य हूँ, मेरी गरिमा है, मैं स्त्री हूँ, मुझे नहीं बिकना है, दायित्व मेरा है। और जब मैं छोटी थी, मैं बच्ची थी, तब दायित्व मेरे घर वालों का और मेरे शिक्षकों का, मेरे समाज का था कि मुझे ऐसी परवरिश दी जाती कि मैं बिल्कुल सीख जाती कि ज़िन्दगी बिकने के लिए नहीं होती है पर किसी ने मुझे ऐसी सीख दी नहीं है।
लेकिन अब मैं बड़ी हो गई हूँ, वयस्क हो गई हूँ ठीक है। मेरी पृष्ठभूमि में मुझे अच्छा नहीं पढ़ाया लिखाया गया, मुझे बोध किसी ने नहीं दिया। लेकिन अब मैं वयस्क हूँ तो अब दायित्व मेरा है कि मैं नहीं बिकूंगी। और अगर मैं बिकने को तैयार हो गई तो फिर पक्का है कि सौ खरीदार खड़े हो ही जाएँगे। मनुष्य की गरिमा उसको वापस लौटानी पड़ेगी।
मैं अखबारों वगैरह में देखता हूँ जर्नल्स में या मीडिया में वहाँ पर अगर मेल हो तो उसको पर्सन लिख देंगे। पर अगर महिला हो तो उसको वुमन ही लिखेंगे। पर्सन भी नहीं लिखते। अभी कुंभ में भगदड़ मची थी तो एक महिला को कुछ लोग ले जा रहे थे। वो या तो उसको चोट लगी थी या उसकी मौत हो गई थी तो बाकी सब जगह पर्सन्स, पर्सन्स लिखा हुआ था। और भी फोटो थी, उनमें भी था कि पर्सन्स पर जहाँ वह महिला वाली फोटो थी वहाँ लिखा हुआ था अ वुमन बीइंग कैरिड अवे। क्यों भाई, वुमन क्यों लिख रहे हो? वह पर्सन क्यों नहीं हो सकती?
सबसे पहले तो महिला को मनुष्य बनाना पड़ेगा। वो इतनी सी होती है छुटकी और उसको हम मिनी वूमन बना देते हैं।
अलग तरीके के कपड़े, अलग तरीके के बाल चोटी कंघी बिंदी टिकली पायल घुंघरू काजल नाक छिदवाना, कान छिदवाना। यह सब बातें क्या मन से और चेतना से रिश्ता रखती हैं? वह इतनी सी है और आप सारे काम उसके साथ वही कर रहे हो जो शरीर के हैं तो पूरा ही शरीर बन जाती है बड़ी होते होते।
आप जो टेक्स्ट बुक्स होती हैं उनको देखो। अब तो फिर भी बहुत सुधर गई हैं। जो बीस-तीस साल पहले की टेक्स्ट बुक्स थी उनको आप देखिए, वहाँ आपको इतना सेक्सिज्म मिलेगा। र से रसोई और रसोई का जो चित्र बना होगा उसमें एक महिला खड़ी होगी। वह रोटी बेल रही होगी र से रसोई और रसोई की वहाँ तस्वीर बनाई जाएगी, वहाँ पर एक महिला चित्र वो रोटी बेल रही है।
मतलब क्या है कि अगर तुम लड़की हो तो तुम्हारा ये चुपचाप उसके मन में संस्कार बैठा दिया गया कि तुम तो रोटी बेलने के लिए पैदा हुई हो। र से रसोई और रसोई में चित्र लगाया गया एक महिला का। साइंटिस्ट अब दिखाएँगे कि दो-तीन पुरुष हैं जो बैठ के कुछ प्रयोग कर रहे हैं। दो-तीन पुरुष ही होंगे। साइंटिस्ट में महिला की तस्वीर लगाई जाए बड़ा मुश्किल है। र से रसोई में महिला की तस्वीर होगी। एस फॉर साइंटिस्ट में महिला की तस्वीर नहीं होगी। बना दो ना उसको पूरा ही शरीर बना दो। विज्ञान का संबंध तो चेतना से है। क्यों उसको वैज्ञानिक बनाना है?
प्रश्नकर्ता: रिसेंटली अभी मेरी बेटी के स्कूल में स्पोर्ट्स डे हुआ था तो लड़के ने तो स्पोर्ट्स में पार्टिसिपेट किया, लड़कियों को चीयर गर्ल के लिए मैडम ने बोल दिया कि इन्हें ऐसे से मेकअप करके आना है और मैंने बोला कि मैम हमें पसंद नहीं है कि बच्चे इस उम्र में अभी मेकअप करते हैं। तो मैम कहे कोई बात नहीं चेंज है ये तो थोड़ा बहुत तो चलता है।
आचार्य प्रशांत: ये सब सुन के ना मुझे क्रोध भी आता है और राहत भी लगती है कि मेरी अपनी कोई व्यक्तिगत बेटी हुई नहीं। उसके स्कूल वाले यह सब कुछ कर रहे होते तो मैं मारपीट कर देता। और अगर एक सभ्य समाज हो तो वहाँ यह करने में कि स्पोर्ट्स डे है तो लड़के खेलेंगे और लड़कियाँ सज के आएँगी और चीयर गर्ल्स बनेंगी, यह करने पर जेल हो जानी चाहिए।
ज़्यादा समय नहीं लगता; आठ-दस साल बारह या चौदह साल के होते लड़की खुद ही इन संस्कारों को इतना आत्मसात कर लेती है कि अब बस यही पूंजी है, यही ऐसेट है, यही वेपन है और इसी के आधार पे अब मौज मारनी है दुनिया में।
वह एक आता है वहाँ एक एक आठवीं दसवीं की लड़की और लड़का आपस में बात कर रहे हैं। तो वह जो लड़की है वह लड़के से पूछती है कि तू क्या करेगा? बोलता है मैं बोर्ड टॉप करूंगा, बोलती है अच्छा। फिर तू क्या करेगा? बोलता है फिर मैं बारहवीं टॉप करूंगा। फिर क्या करेगा? फिर मैं एंट्रेंस एग्जाम क्रैक करूंगा। फिर क्या करेगा? मैं यह कुछ बनूंगा—डॉक्टर, इंजीनियर, वकील जो भी होगा वो बनूंगा। फिर क्या करेगा? फिर मैं और कुछ करूंगा— मैं यह एग्जाम दूंगा, मैं फलानी नौकरी लूंगा, मैं अमेरिका जाऊंगा, मैं वहाँ रहूँगा।
अच्छा तू यह सब करेगा, वाह। बोलता अच्छा तू क्या करेगी? तो बोलती है मैं तुझसे शादी कर लूंगी और यह बात बहुत मजाक की मानी जाती है। यह बात हिंसक है, क्रूर है बहुत घातक है यह मजाक की नहीं है और इसमें जो सबसे हैरानी की बात है जो सबसे ज़्यादा खौफनाक है इसमें जो बात वो यह है कि यह बात सिर्फ चुटकुला नहीं है।
करोड़ों लड़कियाँ इस आदर्श को आत्मसात कर चुकी हैं कि हमें करना ही क्या है? हमें एक बढ़िया सा लड़का पकड़ना है।
नब्बे प्रतिशत ब्यूटी प्रोडक्ट्स कॉस्मेटिक्स महिलाओं के लिए होते हैं। हमें समझ में नहीं आ रही यह बात? दुनिया की सत्ता में और दुनिया के धन में महिलाओं की भागीदारी कहीं दो प्रतिशत कहीं पाँच प्रतिशत और देह चमकाने के बाजार में महिलाओं की भागीदारी नब्बे प्रतिशत। हमें दिख नहीं रहा यह हमने क्या बना दिया है अपनी लड़कियों को?
बहुत गंदा शब्द होता है इस काम के लिए। जहाँ आपके पास कुछ नहीं है पर नब्बे प्रतिशत ब्यूटी प्रोडक्ट्स आपके लिए हैं। वो काम आप भरपूर करते हैं। पीएचडीस में कितनी है? बहुत कम है। संसद में कितनी है? बहुत कम है। कॉर्पोरेट बोर्ड रूम्स में कितनी है? बहुत कम है। नोबेल प्राइज में कितनी है? बहुत कम है। ब्यूटी प्रोडक्ट्स के बाजार में कितनी है? वही वही है। यह हमें दिख नहीं रहा। यह क्या हो रहा है? यह कौन-सा व्यवसाय है? और यह हमने तैयार करा है।
इस व्यक्ति को इस मनुष्य को स्वयं ही अपनी गरिमा वापस छीननी पड़ेगी, रिक्लेम करना पड़ेगा। पुरुष नहीं आकर देने वाला पुरुष नहीं देगा क्योंकि महिला को मनुष्य की तरह देखने के लिए पुरुष को भी पहले मनुष्य होना चाहिए ना। पुरुष मनुष्य है ही नहीं पुरुष तो पुरुष है तो वह नारी को भी फिर बस देह की तरह देखता है, चेतना की तरह नहीं देखता।
और नारी इंतजार नहीं कर सकती कि नर चैतन्य होगा तो हमें हमारी गरिमा प्रदान करेगा। वह कभी होगा चैतन्य नहीं होगा क्या पता? आप अपनी ज़िन्दगी देखिए ना। इतने सारी प्रजातियाँ हैं अस्तित्व में। किनहीं में भी नर और मादा के बीच ऐसा ज़बरदस्त अंतर, ऐसा भारी घपला होता ही नहीं है जितना मनुष्य प्रजाति में होता है। और कोई कितना भी शोषण की उत्पीड़न की बात कर ले, मैं तो हमेशा जाकर के जो शोषित होता है उसको को ही ललकारता हूँ। मैं कहता हूँ अपनी जंजीरों को काटने का जिम्मा प्राथमिक रूप से तुम्हारा है।
तुम किसी और की बाट क्यों जोते हो? किसी और का मुँह क्यों देखते हो? कोई आकर के बाहर से सहायता कर दे अच्छी बात। कोई नहीं भी सहायता कर रहा तो अपने दम पर खड़े हो जाओ ना। शिकायत क्या कर रहे हो? शिकायतों से कभी मुक्ति मिलती है? थोड़ा खून बहाना पड़ता है थोड़े खतरे उठाने पड़ते हैं तब जाकर के मुक्ति मिलती है ना। शिकायत करके पिटीशन बाजी से थोड़ी काम चलेगा और वो भी पिटीशन दरखास्त प्रार्थना पत्र किसके सामने?
वही जो तुम्हारा शोषक है, तुम्हारा ग्राहक है उसको जाकर के तुम आवेदन पत्र दे रहे हो। देखिए आप हमें हमारे लुक्स के बेसिस पर मत हायर करिए। वो क्यों सुने तुम्हारी? वो क्यों सुने तुम्हारी? बताओ ना। वो चेतना तो है नहीं ना कि उसमें संवेदनशीलता होगी, करुणा होगी। वो तो पशु है और पशु तो ताकत की भाषा ही समझता है। ताकत पैदा करो, दुनिया तुम्हारी बात और भाषा सुनेगी।
मैं उल्टा देखता हूँ, मैं देखता हूँ कि संस्कारित होके लड़की इतनी कमज़ोर हो जाती है कि आज़ादी के लिए जब लड़ाई लड़नी होती है तो वो लड़ाई भी नहीं ठीक से लड़ पाती। उसको माहौल भी दे दो कह दो कि अब ये जो है एक लेवल प्लेइंग फील्ड है यहाँ कोई तेरे साथ अन्याय नहीं करेगा चल तू अब लड़।
बराबरी का मामला है तू अब लड़ वो लड़ भी नहीं पाती। वो गिर जाती है कहती है, 'अरे मुझसे नहीं हो रहा मेरे बस की नहीं है।'
आज आप लोगों को री-इनरोल कराने के लिए संस्था में बड़ी इमरजेंसी लगी। आप लोग भाग रहे थे। नहीं करेंगे नहीं करेंगे। तो संस्था में भी कौन लोग थे जो कि काम के दबाव में बिल्कुल बिखरने लग गए। अधिकांश लड़कियाँ थी। हमसे नहीं हो पाएगा हमारी तबियत खराब हो जाएगी। या तो तबियत बचा लो या आज़ादी पा लो। और यह जो कमज़ोरी है तुम्हारे भीतर ये तुम्हारी नहीं है यह तुम्हारे भीतर डाली गई है।
हर हफ्ते हर महीने कमज़ोर होना है गिर जाना है आज हम बीमार हैं आज हमने काम नहीं किया। ऐसा होता है सैनिक कि जो लड़ाई का खास दिन हो उस दिन बोले आज मैंने काम नहीं किया आज मैं बीमार हूँ? आज मेरा ऐसा हो गया, आज मेरा यह हो गया ऐसा होता है सैनिक? और कंगना बजा के तो मुक्ति मिलने से रही, तलवार खनका के ही मिलेगी और जब तलवार खनकाने का समय आता है तो कह देती है मेरी तबियत खराब हो गई।
आफत में बेचारा वह पड़ता है जिसने तुम्हारे हाथ में तलवार दी है। वह कह रहा है यह देखो मैंने महिला सशस्त्र सेना तैयार करी है और पीछे मुड़ के देखता है तो उसमें से आधी बोल रही हैं आज हमें यह हो गया आज हमें वो हो गया, वी कैन नॉट टेक दिस, ओ दिस इज टू मच तो क्या होगा फिर?
अपनी आज़ादी का जिम्मा खुद उठाना पड़ता है। आप एडल्ट हो। दूसरा अधिक से अधिक प्रेरणा दे सकता है, सहायता कर सकता है पर आप ही कहीं ना कहीं अगर रज़ामंद हो कि क्यों ना वो पुरानी ज़िन्दगी में वापस लौट जाए वो इतना भी बुरा नहीं था। यू नो वी विल गेट अ नाइस हबी एंड ही विल टेक केयर ऑफ अस। जाओ फिर नाइस हबी के पास।
दो तरह के लोग होते हैं। लोग कह रहा हूँ लोग नर या नारी नहीं। नर भी ऐसे हो सकते हैं नारियाँ भी ऐसी हो सकती हैं। एक वो कि जिनके सामने जब चुनौती होती है तो उनका तेज और विकराल हो जाता है। जब चुनौती आती है सामने खतरा आता है, दुश्मन आता है सामने तो उनके भीतर और प्रचंड लहर उठती है। इन द मोमेंट ऑफ चैलेंज दे फील इनविगरेटेड।
एक ये लोग होते हैं और दूसरे लोग होते हैं कि जिनके सामने जब खतरा आता है चुनौती का पल आता है तो ढेर हो जाते हैं। दोनों के सामने एक ही चीज़ आई है, एक खतरा देख के और ज़्यादा कहता है आ अब आएगा मजा। आ गई लहर अब आएगा मजा। और दूसरा होता है जो खतरा देख के बिल्कुल रेत के घरौंदे की तरह गिर जाता है। ऐसे करोगी तो कैसे लड़ोगी? और बैठे-बठाए तो तुम्हें कोई आज़ादी का ना उपहार देने वाला ना प्रसाद देने वाला।
यह समाज भी पुरुषों का है यह धर्म भी पुरुषों का है यह कथाएँ और सब देवी देवता भी पुरुषों के हैं। कोई आकर के तुमको मुक्ति नहीं देने वाला।
न जाने कितनी तो धार्मिक धाराएँ हैं जो बोलती हैं कि महिलाओं को मुक्ति तो क्या, स्वर्ग भी नहीं मिल सकता जब तक वह पुरुष के शरीर में पुनर्जन्म नहीं लेती। ये तो तुम्हें धर्म ने दिया है और धर्म के चरण चाटे पड़ी हो। महिला हो ना अगर महिलाएँ स्वर्ग में जाती होती तो महिलाओं के लिए स्वर्ग में कुछ बंदोबस्त होता, सुना है कि स्वर्ग में महिलाओं के लिए भी कोई बंदोबस्त है?
सारा बंदोबस्त पुरुषों के लिए है। बढ़िया वाली अप्सराएँ। तो मुक्ति तो छोड़ दो स्वर्ग तक नहीं मिलेगा महिला को। पुरुष को है यह सब कुछ और बहुत सारी जगह हैं बहुत अलग-अलग धाराओं में सब कहते हैं कि मरो, दोबारा पुरुष बन के पैदा होना। अच्छे-अच्छे पुण्य करो ताकि अगले जन्म में पुरुष बन के पैदा हो फिर स्वर्ग मिलेगा लेकिन कोई आएगा और हमारा उद्धार कर देगा, कोई नहीं आने वाला उद्धार करने के लिए।
तुम्हें अपना उद्धार खुद करना पड़ेगा अपनी ताकत से खुद लड़ना पड़ेगा। सबसे ज़्यादा लोक धर्म में पीछे पीछे कौन लगी रहती हैं? महिलाएँ। कहीं कोई मूर्खता चल रही होगी गजब अंधविश्वास की और वहाँ देखना सबसे ज़्यादा महिलाएँ इकट्ठा होंगी। कॉस्मेटिक्स की दुकान में कौन है? महिलाएँ। भूत प्रेत, अंधविश्वास, जादू, टोना, टोटका महिलाएँ।
मूर्ख बनते हैं मेरे जैसे लोग जो आस टिकाते हैं कि यह उठेंगी, यह लड़ेंगी, यह कुछ करके दिखाएँगी। वो जिस दिन करके दिखाने का समय होता है, उस दिन वो और ढेर हो जाती हैं। क्या करें शिकायत करके? हाँ, महिलाओं की ये दुर्दशा उनकी गलत परवरिश के कारण हुई है। महिलाओं की ये दुर्दशा गलत शिक्षा के कारण हुई है मीडिया में जो गलत उनका चित्रण है उसके कारण हुई है। बिल्कुल हम जानते हैं किसने यह सब करा है अनर्थ लेकिन अब शिकायत करके क्या होगा? जिसे जो अनर्थ करना था वो कर गया अब सुधारना तो अपनी जिम्मेदारी है ना।
प्रश्नकर्ता: अपने तल पे तो सुधार ले पर वही है ना, हम तो इस चीज के लिए रेडी रहते हैं पर अगर सामने वाले कितना इंटरेस्टेड है वो चीज़ सुनने में।
आचार्य प्रशांत: नहीं नहीं सुन रहा, तो? नहीं सुन रहा तो नहीं सुन रहा। आप कह रहे हो मैं आज़ाद हूँ वो नहीं सुन रहा तो आप गुलाम बन जाओगे। बात खत्म मत सुन। तू मेरी मत सुन। मैं तेरी नहीं सुनूंगी। तू भी इंसान है मैं भी इंसान हूँ, जिऊंगी। क्यों सुने कोई? ये उम्मीद ही क्यों है कि आपको सहानुभूति मिलेगी या सहारा मिलेगा। छोड़िए यह उम्मीद कोई नहीं देने वाला सहानुभूति।
कहा तो मैंने ना समाज से मिलेगी ना धर्म से मिलेगी। अकेले हो बिल्कुल और अपने इस अकेलेपन को स्वीकार करो। कोई नहीं आने वाला सहारा देने के लिए। क्या होगा? बुरे से बुरा क्या होगा? मर जाओगे। तो फालतू ज़िन्दगी जी के मरो इससे अच्छा संघर्ष करते हुए एक दिन जान चली जाए।
मरने से भी नहीं उतना डरती, डरती हैं कि कहीं हम सड़क पर ना आ जाए। अच्छा सड़क पे आ जाओगे तो क्या हो जाएगा? क्या हो जाएगा? वहाँ भी देह की बात आती है। कोई हमारी देह को ना छू ले। छू ले तो क्या हो जाएगा? कोई तुम्हारी चेतना को मैला करे दे रहा है एक सुरक्षित इमारत के भीतर, उससे ज़्यादा बुरा है क्या कि अगर कोई तुम्हारे शरीर को मैला कर दे उस इमारत के बाहर? सुरक्षित इमारत के भीतर रहती हो, रोज़ चेतना बिकती रहती है ज़मीर का सौदा होता रहता है वो कम बुरा है? और डर क्या लगता है?
बट व्हाट यू नो इफ देयर इज नोबडी टू सपोर्ट मी व्हाट अबाउट सिक्योरिटी? क्या सिक्योरिटी? क्या सिक्योरिटी क्या हो जाएगा। गोरा रंग काला ना पड़ जाए। हाँ। फिल्मी गाने खूब चढ़ गए ना। समाज ने बनाए गाने और लड़की ने बैठा लिए भीतर धूप में निकला ना करो रूप की रानी गोरा रंग काला ना पड़ जाए। धूप में निकलना सीखो धूल फांकना सीखो रंग काला करना सीखो। पाकीजा नहीं बनना है कि आपके पांव बहुत खूबसूरत है इनको जमीन पर मत रखिएगा मैले हो जाएँगे पांव मैले करना सीखो चप्पलें भी घिसे पांव भी घिसे। इंसान हो, खूबसूरत तबायफ थोड़ी बनना है।
बहुत इस बात का खौफ रहता है, कहीं सड़क पर निकलना पड़ गया तो? कहीं दुनिया की धूल फकनी पड़ गई तो? तो तो क्या? कहीं अकेले रहना पड़ गया तो? तो क्या? अकेले ही आई थी, अकेले ही मरोगी और अगर आज़ादी के लिए अकेले जीना पड़े तो कुछ नहीं। हाँ आज़ादी में अगर कोई साथी मिल जाए तो बहुत अच्छी बात है। पर गुलामी की कीमत पर तो साथ नहीं करेंगे ना किसी का।
सजी बजी गुड़िया भाभी स्पॉटलेस ब्लेमिशलेस स्किन। गुलामी का ज़िन्दगी का सौदा डॉल्स हाउस बाई हेनरिक इबसन। और एक बात और बता देता हूँ, यह जो सजी बजी गुड़िया बनने का सौदा कर लेते हो ना। यह जो सोने चांदी के लालच में गुलामी स्वीकार कर लेते हो ना, इसकी एक बहुत बड़ी सजा यह मिलेगी कि कभी कोई आज़ाद साथी भी नहीं मिलेगा क्योंकि आज़ाद पंछियों को पिंजरे वाले सुहाते नहीं है। यह जो गुलामी का सौदा कर लेती हो तो फिर कोई आज़ाद मिलेगा भी नहीं कभी तब अपने ही जैसे मिलेंगे।
क्रेता विक्रेता, ग्राहक-व्यापारी। बोले आकाश में उड़ो तो वहाँ आकाशों वाला भी शायद कोई मिल जाए। और नहीं भी मिले तो कोई बात नहीं आकाश तो मिला। खौफ होता रहता है चेहरे पर, मेरा क्या होगा? मेरा क्या होगा? मेरा क्या होगा माने क्या होगा? हवा में ऑक्सीजन कम होने जा रही है। सांस नहीं आएगी बाजार में गेहूँ चावल बिकना बंद होने जा रहा है खाने को नहीं पाओगी। तो ये क्या खौफ है? मेरा क्या होगा? कुछ नहीं होगा। जिओ खुल के जिओ, क्या होगा?
अगर मैंने उनके हुक्म नहीं माने अगर मैं उन्हीं के डरों पर नहीं चली अगर मैंने पैटर्न्स तोड़ने की कोशिश की ओ माय गॉड सोसाइटी के तो साथ चलना पड़ता है ना सोसाइटी मेरे लिए है। इंसान ने समाज बनाया है अपनी बेहतरी के लिए और समाज अगर इंसान के काम नहीं आ रहा है तो समाज की फिक्र की कोई जरूरत नहीं है। अपनी फिक्र करो पहले सब इंसान अगर बीमार हो तो समाज स्वस्थ कैसे हो जाएगा? अपनी फिक्र करो पहले। सोसाइटी को देखना पड़ता है, नहीं पहले खुद को देखना पड़ता है।
प्रश्नकर्ता: ये शायद मिडिल क्लास से ज़्यादा प्रिविलेज क्लास होती है ना, वो ऐसा लगता है कि जैसे हमारे साथ एक लड़की थी, जो वो पढ़ी थी तो हमने सीएस जब करी थी गाड़ी ले आती थी अच्छे परिवार से थी और आज ही के टाइम में हमने सोचा था कि हमें तो शायद वो सुविधाएँ नहीं मिली है तो हम शायद उस लेवल पर ना पहुंच पाए पर आज ही के टाइम में उनकी रील्स देखते हैं तो वही अपने वही बॉडी वाला वही अपना कहीं घूमने जा रहे हैं, ऐसे कपड़े पहन रहे हैं उनकी रील्स लगा रहे हैं।
हमने तो सोचा था कि शायद वो जॉब करेंगे अभी अच्छे उसके होंगे पर वो लोग अभी भी यही कर रहे हैं। मतलब हम मिडिल क्लास में हम ये बोल सकते हैं कि हमें जरूरत होती है या कुछ भी हम स्ट्रगल करने के लिए एटलीस्ट बाहर निकलते हैं पर वो लगता है कि ज़्यादा वो ट्रैप हो जाती है।
आचार्य प्रशांत: उसमें मिडिल अपर क्लास की बात ही नहीं है। चाहे निम्न वर्ग हो चाहे उच्चतम वर्ग हो— महिलाओं का अलग वर्ग है और उस वर्ग का नाम है देह और यह पुरुषों ने बनाई है व्यवस्था। यह जो सब वर्ग है ना यह पुरुषों के वर्ग होते हैं। महिलाओं का अलग वर्ग होता है। उसका नाम होता है देह। अब ये व्यवस्था स्वीकार हो तो ठीक है पर स्वीकार रहती है, निन्यानवे प्रतिशत महिलाओं को बहुत स्वीकार रहती है क्योंकि इस व्यवस्था में सुख सुविधा स्वार्थ भरपूर है।
करना क्या है? देह का सौदा ही तो करना है सम्मान भी मिलता है बहुत। यह सब कभी खत्म होगा ना अगर तो महिलाओं की ओर से ही खत्म होगा। वह जिस दिन देखने लग जाएँगी कि ऐसे जीने में कोई ज़िन्दगी नहीं, कोई गरिमा नहीं, उसी दिन यह खत्म होगा। और जब तक महिलाएँ इसी व्यवस्था में बराबर की भागीदार हैं, यह सब ऐसे ही चलेगा। पुरुष के पास मसल है महिला के पास यूटेरस है यह है सौदा। पुरुष के पास ब्रेन है, महिला के पास वुम्ब है यह है सौदा।
और इस सौदे को, इस समझौते को महिला को ही तोड़ना पड़ेगा अपनी ओर से। भाई ब्रेन मेरे पास भी है चेतना मेरे पास भी है मैं मनुष्य हूँ। हर उस चीज को ज़िन्दगी से नकार दीजिए जो आपको मनुष्य से ज़्यादा बनाती हो। बस यह एक सूत्र दे रहा हूँ।
ज़िन्दगी में हर वो विषय जो आपको मनुष्य की बजाय महिला बनाता हो उसको नकार दीजिए। इतने से काम हो जाएगा।
एक सूत्र वह कोई व्यक्ति हो सकता है जो आपको इंसान की तरह नहीं शरीर की तरह देखता है नकार दीजिए। वह कोई घर की चीज हो सकती है। वह कोई सौंदर्य प्रसाधन हो सकता है। वह कुछ भी हो सकता है। वह कोई भावना हो सकती है कोई विचार हो सकता है। हिलना कूदना, जिम जाना यह तो पुरुषों का काम है मैं तो महिला हूँ यह विचार है। इसको नकार दीजिए क्योंकि यह विचार आपको मनुष्य की तरह नहीं महिला की तरह देख रहा है।
पढ़ बाद में लूंगी पहले मैं खाना तो बना लूं सेशन। अरे नहीं सेशन नहीं भाभी और बेबी भी तो देखने होते हैं सेशन थोड़ी देखना होता है। इसने आपको मनुष्य की तरह नहीं देखा, इस बात ने आपको देह की तरह महिला की तरह देखा, नकारिए।
यही बात मैं पुरुषों से भी बोलूंगा कि जो कुछ तुम्हें चेतना की जगह देह बनाता हो तुम भी नकारो। पर अभी बात पुरुषों की नहीं हो रही अभी महिलाओं की हो रही है। यह क्या है? होठ लाल करना यह क्या है? क्यों है? पूछना पड़ेगा हमें अपने आप से होठ होठ तो लाल होते ही हैं गुलाबी होते ही हैं। उसमें क्या ये क्या कर रहे हो? क्यों कर रहे हो? आज़ाद जिओगे यह सब करके?
हाँ दोनों के शरीर में अंतर होता है। जिस हद तक अंतर होता है, उस हद तक उनकी पोशाक में भी अंतर हो सकता है पर इतना भी अंतर नहीं होता जितना उनकी पोशाकों में अंतर हमने बना दिया है। ये खोपड़े में तो कोई ज़्यादा अंतर होता नहीं दाढ़ी के अलावा या होता है? कुछ भी नहीं होता। तीस पैंतीस बरस की महिला है, पुरुष भी है और पुरुष अभी टकला नहीं हुआ है तो बाल तो उसके भी वैसे ही होते हैं जैसे महिला के होते हैं। बस दाढ़ी का अंतर होता है दाढ़ी का ही अंतर है और बाकी तो कुछ है नहीं दाढ़ी का भी उतना नहीं होता। महिलाओं के भी दाढ़ी मूछ होती है बहुतों के होती है।
जैसे बहुत पुरुषों के दाढ़ी मूछ कम आती है वैसे ही कुछ महिलाओं के ज़्यादा आती है तो काहे के लिए अपने चेहरे को बहुत ज़्यादा स्त्रेण बनाते हो। इतना ज़्यादा फेमिनिन बनाने की जरूरत क्या है अपने चेहरे को? काजल कर लिया ये इतना भारी यहाँ कुछ लगा दिया यहाँ लगा दिया। यहाँ ये यहाँ ये यहाँ ये क्या कर रहे हो? क्यों कर रहे हो? इंसान का मुँह बर्दाश्त नहीं होता। ये क्या नमूना तैयार कर रहे हो? ये ये हैंड्स इनमें क्या अंतर होता है?
आदमी में औरत में क्या अंतर होता है बताओ होता है? बाजुओं में क्या अंतर होता है कोई अंतर होता है? तो ये नाखून रंगने का क्या मतलब है कोई मुझे मतलब बताओ? आदमी का हाथ हो, औरत का हाथ हो लगभग एक ही जैसा होता है। यह नाखून रंगने का मतलब क्या है मतलब बताओ? क्यों रंग रहे हो क्यों बढ़ा रहे हो कॉम्बैट वेपन है? अगर है तो फिर ठीक है इसलिए है कि इससे लड़ाई लड़नी है वो अलग बात है पर वो तो करना नहीं है ये काहे के लिए ये क्यों है? ज़बरदस्ती की एक्सेसिव जेंडर आइडेंटिटी।
पुरुष भी उस दिन बहुत बेहतर हो जाएगा जिस दिन स्त्री अपनी बेहतरी को पाएगी। आंतरिक आज़ादी पुरुष को भी उसी दिन मिलेगी जिस दिन स्त्री को मिलेगी। है तो दोनों मनुष्य ही ना।