महत्वपूर्ण है महत्वपूर्ण को याद रखना || आचार्य प्रशांत (2015)

Acharya Prashant

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महत्वपूर्ण है महत्वपूर्ण को याद रखना || आचार्य प्रशांत (2015)

प्रश्नकर्ता: सर, हम अपने लक्ष्यों के पीछे हमेशा भागते रहते हैं और बहुत बेचैनी भी महसूस होती है, पर कुछ दिनों बाद शिथिल पड़ जाते हैं। दृढ़ इच्छा शक्ति को बरकरार कैसे रखें?

आचार्य प्रशांत: अब मैं तुम्हें जवाब तो दे दूँगा, पर जो जवाब होगा वो तुम्हारे लिए स्मृति मात्र होगा। स्मृति को बरकरार कैसे रखोगे? कैसे बरकरार रखोगे? मैं तो कुछ बोल दूँगा, पर जो बोलूँगा, उसको बरकरार कैसे रखोगे?

प्र: दोहरा करके।

आचार्य: दोहराने के लिए तो याद होना चाहिए न कि करना है। कुछ भी करने के लिए उसकी महत्ता याद तो रहनी चाहिए। तो सबसे बड़ी बात क्या होती है? याद, स्मृति।

स्मृति, याद। अब ये याद वैसी याद नहीं है जैसी आम तौर पर मन में घूमती है। अतीत की याद नहीं है ये। दो तरह की यादें होती हैं। एक वो, जो अतीत से आती है, वो साधारण स्मृति है। और एक याद होती है वर्तमान की याद। तुम्हें ये अजीब सी बात लगेगी कि वर्तमान की भी कोई याद होती है? हाँ। वर्तमान की ही असली याद होती है।

तुम्हें आम तौर पर नकली वाली याद रहती है। तुम्हें अतीत याद रहता है, वर्तमान को भूले रहते हो। वर्तमान की याद को ही संतो ने सुमिरन या सुरति कहा है। कि जो तुम साधारण स्मृतियों से भरे रहते हो, उसकी जगह वर्तमान की याद रखो। तो बस याद रखो। और वर्तमान की याद में कुछ याद नहीं करना है क्योंकि स्मृति को तो याद करना पड़ता है। तुम कहते हो न, “ज़रा याद करने दो।” कहते हो न, “याद करने दो!” वहाँ पर तुम्हारा कर्ता भाव होता है। तुम्हें याद करना पड़ता है।

वर्तमान की याद का इतना ही मतलब होता है कि अतीत से घिरे हुए नहीं हो। तो जब भी अतीत से घिर जाओ, उससे मुक्त रहो, वर्तमान याद रहेगा।

तुम ये मत कहो, कि मैं जो बोलता हूँ वो भूल जाते हो। मैं जो बोलता हूँ, वो तुम भूल सकते ही नहीं। क्योंकि वो बिलकुल तुम्हारे प्राण की बात है। उसे कैसे भूल सकते हो? जैसे तुम साँस लेना नहीं भूलते, जैसे तुम्हारा दिल धड़कना नहीं भूलता, वैसे ही तुम उस बात को भूल ही नहीं सकते जो तुमसे कही है। हाँ! इतना होता है कि इस बात के ऊपर दस बातें और छा जाती हैं। ये बात रहती है अपनी जगह, कहीं चली नहीं जाती। पर इसके ऊपर दस बातें और छा जाती हैं। जब वो बातें छाने लगें, तब देखना! तुम्हारा पूरा हक़ है देखने का तब क्योंकि तुम्हारी अनुमति के बिना छाती नहीं है। तुम्हारे लालच के कारण ही तो छाती हैं? तो उनको मत छाने देना। उनको नहीं छाने दोगे, तो ये अपनेआप याद रहेगी। इसको तुम्हें याद करना नहीं पड़ेगा।

अपनी जो बाकि प्राथमिकताएँ हैं, उनको नियंत्रण में रख लेना। देख लेना कि अब ये हावी हो रही हैं मेरे ऊपर, मेरी दूसरी वरीयताएँ। जब वो हावी होने लग जाए, तो समझ जाना गड़बड़ हो गई। ये मत पूछना, "क्या गड़बड़ हुई?" ये मत पूछना, "कैसे गड़बड़ हुई?" बस जैसे ही कुछ महत्वपूर्ण लगने लगे दुनिया में, समझ लेना गड़बड़ हो गई। जैसे ही ये लगने लग जाए, “ये ज़रूरी, वो ज़रूरी, ये करना है, वो करना है, और दस काम हैं”, समझ लेना गड़बड़ हो गई। तर्क नहीं साथ देगा क्योंकि तर्क कहेगा, “अरे यार! काम ज़रूरी तो है ही, तभी तो ज़रूरी लग रहा है।” पर तुम समझ जाना कि गड़बड़ हो गई है। क्योंकि जो कुछ भी ज़रूरी से ज़रूरी है, वो एक ही काम कर रहा है, कि कुछ ‘और’ है जिसकी याद मिटा रहा है। कुछ ‘और’ है जिसकी याद के ऊपर छा रहा है।

तुम कहते हो “अभी मुझे वहाँ जाना ज़रूरी है।” और इस वक्त तुम्हारे मन में एक ही बात छाई हुई है। क्या? “वहाँ जाना है।” और तुम ये नहीं देख पा रहे हो कि जब तुम्हारे मन में यह बात छा गई कि वहाँ जाना है, तो तुम्हें अब और कुछ याद नहीं रहा। वहाँ जाना याद रह गया, जो असली चीज़ थी वो भूल गए। असली चीज़ क्या थी? ये मत पूछो। बस इतना जान लो कि कुछ और छा गया। नहीं समझ में आ रही बात?

जब भी तुम्हारे लिए कुछ महत्वपूर्ण हुआ, ‘कुछ’ महत्वपूर्ण हो गया न? इस ‘कुछ’ को कुछ और जानना। कि, "मेरे लिए 'कुछ और' महत्वपूर्ण हो गया।" जो वास्तव में महत्वपूर्ण है वो हर वक़्त तुम्हारे साथ है, उसे महत्वपूर्ण होना नहीं होता।

ज्यों ही तुम्हारे लिए कुछ और महत्वपूर्ण होता है, तो जो वास्तव में महत्वपूर्ण है वो हटा और कुछ और महत्वपूर्ण हो गया।

तो फर्क नहीं पड़ता कि तुम्हारे लिए क्या महत्वपूर्ण हुआ है। बिलकुल फर्क नहीं पड़ता। किसी के लिए अस्पताल जाना महत्वपूर्ण हो सकता है, किसी के लिए नौकरी पर जाना महत्वपूर्ण हो सकता है, किसी के लिए खाना, किसी से मिलना, कुछ करना, पैसे जमा कराना, ये काम, वो काम, ट्रेन पकड़ना, दुनिया भर के तुम्हारे काम महत्वपूर्ण हो गए। पर जो कुछ भी महत्वपूर्ण हुआ, कुछ महत्वपूर्ण हो गया न?

ज्यों ही ‘कुछ’ महत्वपूर्ण हुआ, ‘कुछ और’ महत्वपूर्ण हुआ। जो असली चीज़ थी, वो पीछे छूटी। उसकी याद भूल गए। तुम ट्रेन पकड़ने के लिए, पूरी ताकत से ट्रेन के पीछे भाग रहे हो। अभी तुम्हारे जीवन में सिर्फ एक चीज़ महत्वपूर्ण है, क्या? ट्रेन। हो गया न! और ऐसे ही तो होता है। जो चीज़ तुम्हारे सामने होती है, वो तुम्हारे लिए बिलकुल महत्वपूर्ण हो जाती है। किसी ने तुम्हें याद दिला दिया कि, “अरे! पाँच साल बाद फलाना खाता खुलेगा।” और तुम्हारे लिए वही महत्वपूर्ण हो गया। टीवी देख रहे हो तो वहाँ पर जो कुछ भी आकर्षक चल रहा है, वो ही महत्वपूर्ण हो गया।

‘कुछ’ तुम्हारे लिए हमेशा महत्वपूर्ण बना रहता है। ऐसा है या नहीं है? जल्दी बोलो। मन कभी खाली तो नहीं होता न? जब भी कुछ महत्वपूर्ण होगा तुम्हारे लिए, तुम वो भूल जाओगे जो मैंने तुमसे कहा है। मैंने तुमसे क्या कहा है? कुछ भी नहीं कहा है। जो भी मैंने तुमसे कहा है वो बिलकुल कुछ खाली सी बात है। एकदम साफ़। कुछ उसमें विशेष नहीं है, शून्य है। तुम समझ लो कि एक थाली हो, और यहाँ आना ऐसा है कि जैसे उस थाली को धो देना। अब उसके बाद तुम उसमें कुछ भी रखो, फर्क नहीं पड़ता। जो भी रखोगे, वो थाली को…?

प्र: गन्दा करेगा।

आचार्य: गंदा ही करेगा। कुछ महत्वपूर्ण ही होगा, तभी तो रखोगे थाली पर। कचरा तो रखते नहीं। तुम्हें कुछ अच्छा ही लगता होगा, स्वादिष्ट। तभी उसे रख रहे हो खाने में। तुम बैंगन रख सकते हो, तुम रोटी रख सखते हो। कोई चावल या दाल रख सकता है। कोई और पकवान रख सकता है। कोई खीर रख सकता है, कोई माँस रख सकता है। थाली पर हज़ारों तरीकें की चीज़े हैं जो रखी जा सकती हैं। पर एक बात पक्की है, जो भी रखोगे वो थाली के खालीपन को, थाली की शुद्धता को खराब कर देगा। इसी को मैं भूलना कह रहा हूँ कि असली चीज़ भूल गए। असली चीज़ क्या थी? वो खालीपन, वो शुद्धता, वो भूल गए। वो गई। अपनी थाली पर, ये है तुम्हारी थाली। अपनी थाली पर जब भी कुछ रखो, सतर्क हो जाओ, फर्क नहीं पड़ता कि क्या रखा, यही पर बुरा है कि रखा।

फर्क नहीं पड़ता कि क्या सोच रहे हो, यही बुरा है कि सोच रहे हो।

फर्क नहीं पड़ता कि तुम्हारे लिए क्या महत्वपूर्ण है और किस बारे में गंभीर हो, यही बुरा है कि किसी बारे में तो गंभीर हो गए न।

कुछ तो कीमती बना लिया न? किसी चीज़ में तो उलझ गए न?

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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