माँ-बाप मुझे समझते क्यों नहीं || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

Acharya Prashant

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माँ-बाप मुझे समझते क्यों नहीं || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

प्रश्न : माँ-बाप मुझे समझते क्यों नहीं?

वक्ता : माँ-बाप की बात नहीं है।

*विचारों से,* *पूर्वाग्रहों ,* धारणाओं से लदा मन कुछ नहीं समझ सकता।

और यह मन सिर्फ माँ-बाप के भीतर होता हो ऐसा नहीं है। हम सबके भीतर वही मन है। यह प्रश्न ही गलत है कि माँ-बाप क्यों नहीं समझते।

प्रश्न : यह होना चाहिए कि कोई भी कुछ भी क्यों नहीं समझता? यह कैसी दुनिया है? सब नासमझ। उन्ही नासमझों में से कुछ लोग माँ-बाप हैं जो कुछ नहीं समझते। यह बीमारी माँ-बाप तक थोड़े ही सीमित है।

समझता है कौन? कौन है जो कुछ भी समझता है? क्या कोई भी कुछ भी समझ रहा है? सब सिर्फ एक सोच के गुलाम हैं। माँ-बाप भी ऐसे ही लोगों में से हैं। तो इसमें ताजुब्ब क्या है कि उन्हें कुछ भी क्यों नहीं समझ आता? माँ-बाप हो जाने से अचानक आप में कोई दैविक गुण तो आ नहीं जाएंगे। माँ-बाप हो जाना तो सिर्फ एक शारीरिक प्रक्रिया है। जानवर दिन रात माँ-बाप बन रहे होते हैं। सर्दियों का मौसम है,सड़क पर देख रहे होंगे, बच्चे घूम रहे हैं।

तुम्हारी यह अपेक्षा ही गलत है कि माँ-बाप हैं तो उन्हें कुछ समझना ही चाहिए। माँ-बाप बाद में हैं,साधारण इंसान हैं पहले तो। तो उनको वही सब बीमारियाँ हैं जो बाकी हम सब लोगों को हैं। यह मत पूछो कि मेरी कोई भी बात माँ-बाप को समझ में क्यों नहीं आती। उन्हें कुछ भी समझ में नहीं आता। माँ-बाप आपस में एक दूसरे को नहीं समझते, तुम्हें क्या समझेंगे? किसी को कुछ समझ में नहीं आता। ना तुम्हे यहाँ बैठे कुछ समझ में आता है, न सड़क पर चलते आदमी को कुछ समझ में आता है। यह पूरी दुनिया ऐसे ही चल रही है। बिन समझे, अंधी दौड़ एक। तो कोई इसमें घबराने की बात नहीं है।

तुम यह अपेक्षा रखो ही मत कि माँ-बाप हैं तो कुछ समझेंगे। तुम यह अपेक्षा इसलिए रखते हो क्योंकि तुम्हें बता दिया गया है कि माँ-बाप भगवान के अवतार हैं। तो तुम्हें लगता है कि इतने ऊंचे हैं, तो उन्हें कुछ समझना भी चाहिए। भई क्यों समझें और कैसे समझें? अंधों की दुनिया में अन्धें हैं, वह समझ कैसे जाएंगे कुछ भी।

श्रोता : पर सर जब हमें ज़िन्दगी में कुछ करना होता है तो हम कहते हैं कि हमारे माँ -बाप ही आगे आयें हैं।

वक्ता : क्यों कहते हो?

श्रोता : सर मेरे माँ-बाप ही हैं जो मुझे पढ़ा रहे हैं। तो इसलिए पहली प्राथमिकता माँ -बाप होते हैं, चाहे कुछ भी हो, मेरी सफलता हो, मेरी पहली तन्ख्वाह पिता को दूँ। क्योंकि मैं समझती हूँ कि मेरी ज़िन्दगी का जो भी भावुक हिस्सा है, मैं जो भी हूँ वह उनकी वजह से हूँ।

वक्ता : देखो इस बात के दो पहलू हैं, दोनों को देखना पड़ेगा। पहली बात तो यह है कि निश्चित रूप से तुम्हारे ऊपर उन्होंने खर्च भी किया है, ध्यान भी दिया है और समय भी दिया है। इसमें कोई दो राय नहीं कि माँ-बाप ने अपने जीवन का और आमदनी का बड़ा हिस्सा तुम्हारे ऊपर लगाया है। इसमें कोई शक़ नहीं है। और एक अच्छा इंसान होने के नाते जो कुछ भी तुम्हारे ऊपर खर्च किया गया है वह तुम्हें अपनी सामर्थ्य के अनुसार लौटाने की पूरी-पूरी कोशिश करनी चाहिए। लेकिन दूसरी बात मत भूलना। एक बच्चा बोलता नहीं है माँ-बाप को कि आओ मुझ पर खर्च करो। माँ-बाप अपनी ख़ुशी पर खर्च करते हैं। तुमने जाकर याचना नहीं की थी कि आओ मुझ पर खर्च करो।

अब एक बच्चा है छोटा सा, उसे एक होटल वाले अपने यहाँ एक होटल में ले जाएं, उसे खिलाए-पिलाएं और फिर उसके सामने एक हज़ार का बिल रख दें कि भर, वह बच्चा अपनी मर्ज़ी से गया भी नहीं। तो बच्चा कहेगा, मैंने कब कहा था मेरे ऊपर यह सब करो? और तुमने किया तो अपनी मौज के लिए किया, तुम्हें आनंद आता था। मैं तुम्हारा खिलौना था, तुम्हे आनंद आता था मेरे ऊपर खर्च करने में। और अब तुम मुझे बिल दिखा रहे हो कि क्या खर्च किया है ज़िन्दगी भर। क्या मैंने कहा था कि खर्च करो?

हाँ, तुमने खर्च किया और हम इस बात की क़द्र करते हैं और जितना हो सकेगा हम उसे चुकाने की कोशिश भी करेंगे। पर अहसान मत जताना। क्योंकि हम आवेदन देकर नहीं पैदा हुए थे। तुमने अपनी ख़ुशी के लिए हमें पैदा किया। तुम्हारे सुख के क्षणों में हम पैदा हुए, तो जब हम पैदा हुए, तुमने हमारे पैदा होने का सुख मनाया। हमको एक छोटी सी गुड़िया बनाकर के सजाते थे, तुमने उसका भी सुख मनाया।

ठीक है, यह हमारी इंसानियत का तकाज़ा है कि जितना सम्भव हो अच्छा होने की कोशिश करेंगे, पर इसे व्यापार मत बना लेना कि हमने तुम्हारे ऊपर इतना सब खर्च किया है तो तुम सब लौटाओ। प्रेम में तुमने दिया, यदि, तो प्रेम में हम भी लौटाएंगे। और प्रेम शर्त नहीं रखता कि इतना खर्चा आया तो तुम भी इतना ही दो। वह व्यापार होता है। इसमें छोटा महसूस करने की कोई भी ज़रुरत नहीं है।

तुम माँ-बाप की मदद भी तभी कर पाओगी जब तुम किसी काबिल होगी। अपनी काबिलियत को जगाओ वह ज्यादा ज़रूरी है।

*पहला कदम है तुम्हारा अपने आप को देखना*, अपने आप को विकसित करना। जब तुम विकसित होगे तभी माँ-बाप की भी मदद कर पाओगे।

जीवन अहसान नहीं है किसी का। जीवन किसी के क़र्ज़ में डूबा हुआ नहीं होता। तुम माँ-बाप के माध्यम से आये हो पर उन्होंने तुम्हें पैदा नहीं किया है।

*उन्होंने तुम्हें शरीर दिया है*, समझ नहीं।

–‘संवाद’ पर आधारित।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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