माँ के पराँठे || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

Acharya Prashant

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माँ के पराँठे || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

आचार्य प्रशांत: कभी पूछा है अपनेआप से कि माँ पराँठे तो बहुत अच्छा बनाती है, पर माँ का जन्म क्या पराँठे ही बनाने के लिए हुआ था? तुम बोलते हो, ‘माँ, प्यारी माँ, भोली माँ।’ तुरन्त तुम्हारे आँखों में क्या छवि आती है? बोलो। साड़ी लपेटे, घूँघट डाले, एक औरत घर में है, रसोई में, तुम्हारे लिए स्वादिष्ट खाना पका रही है। और तुम आँखों में आँसू कहकर कहते हो, ‘मैं अपनी माँ के प्रति बहुत भावुक हूँ।’

तुम समझ रहे हो तुमने अपनी माँ की हालत क्या कर दी है? तुम स्वयं तो अमरीका, जापान, जर्मनी घूमना चाहते हो। तुम स्वयं तो कहते हो, ‘मुझे इंजीनियर बनना है, मैनेजर बनना है।’

माँ को तुमने घर में क़ैद करके रखा हुआ है और माँ का यशोगान तुम ये कहकर कहते हो कि माँ पुलाव बहुत अच्छा बनाती है। माँ के हाथ के पराँठे, आ-हा-हा!

माँ का जन्म तुम्हारा रसोइया बनने के लिए हुआ था? माँ देवी है, माँ की सब्ज़ी का रस अमृत समान है। माँ सब्ज़ी बनाने के लिए पैदा हुई है? तुम तो पैदा हुए हो दुनिया घूमने के लिए, अपना सर्वांगीण विकास करने के लिए। माँ को हक़ नहीं है? पर नहीं, माँ देवी है। माँ थोड़ी जापान, जर्मनी घूमना चाहती है! माँ को ये इच्छा ही नहीं है। माँ को अधिकार ही नहीं है दुनिया देखने का, जानने का, समझने का! माँ की तो फ़ितरत ही कुछ ऐसी होती है कि उसे बस रसोई में ही सुख मिलता है!

और निकल आये कोई माँ जो कहे कि मुझे रसोई में नहीं रहना, मैं दुनिया देखूँगी, मैं जानूँगी, मैं घूमूँगी-फिरूँगी, मैं भी नौकरी करुँगी तो तुम कहोगे, ‘लानत है ऐसी माँ पर ये घर छोड़ना चाहती है, बच्चों का ख़याल नहीं कर रही।’

माँ को देवी बनाकर के, माँ को मार ही डाला तुमने। आमतौर पर घरों में माएँ होती हैं, मैं अपवादों की बात नहीं कर रहा,उनको न कई भाषाओं का ज्ञान होता है, न देश-जहान का कुछ पता होता है। अख़बार भी नहीं पढ़तीं। टीवी भी वो देखती हैं तो घर पर रहते-रहते उनको गन्दी लत लग गयी होती है घरेलू क़िस्म के धारावाहिक ही देखने की। और बाज़ार उनको उसी तरह की सामग्री बार-बार परोसता भी रहता है।

घरेलू स्त्रियाँ दुनिया-जहान को लेकर कितनी सजग होती हैं बताओ मुझे? सौ गृहणियों को खड़ा करके पूछा जाए कि बताओ ब्लॉक चेन क्या है। बताओ, आर्टिफिशियल इंटेलिजेजेंस (कृत्रिम होशियारी) क्या है? बताओ, ईरान और अमरीका के बीच मुद्दे क्या हैं? बताओ, ये क्लाइमेट चेंज क्यों होता है, कैसे होता है, कैसे रोका जाएगा? बताओ, यूरोप का रेनेसां (पुनर्जागरण) क्या था? बताओ, अमरीका का गृह युद्ध क्या था? बताओ, रूसी क्रान्ति क्या थी? ईमानदारी से बताना कितनी गृहणियाँ बता पाएँगी? कितनी बता पाएँगी? नहीं बता पाएँगी न।

और यही तुम्हारी देवी तुल्य माएँ हैं जिन्हें हमने अज्ञान के अन्धे कुँए में उठाकर गर्त कर दिया है। बस इतना बोलते रहते हैं, ‘मेरी माँ देवी समान है, मेरी माँ देवी समान है।’ और माँ देवी समान तभी तक है जब तक माँ आवाज़ न उठाये। माँ को अज्ञान के अँधेरे में किसने डुबो दिया? हम ही ने न? हाँ, माँ कपड़े अच्छा धोती है। माँ से कपड़े धुलवा लो, माँ से चावल-दाल बनवा लो और माँ ये सब कर रही है तो बोलो, ‘माँ के चरणों में स्वर्ग होता है।’

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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