श्रोता : सर, हम अपने मन से लालच कैसे कम करें?
वक्ता : मनलालची होता नहीं है, मन लालची बनाया जाता है। बच्चा पैदा होता है, उसमेंबीज होते हैं लालच के। पर लालची वो होता नहीं है। वहाँ पर संभावना होती हैकि वो लालची भी बन सकता है या कुछ और भी। बाकी तो कार्य-कारण का खेल चलताहै। क्या मिल गयी परिस्थितियाँ? कैसा हो गया?
लालच मन में डाला जाता है और अंततः मन ऐसा हो जाता है कि वो लालच ही मन है। मन माने लालच। कबीर कहते हैं:-
मन लालची मन लोभी, मन मूरख मन गंवार|
श्रम करने को आलसी, खाने को तैयार||
तोमन की जो ये स्थिति होती है, ये ऐसा नहीं है कि किसी ने तुम्हें श्राप देदिया है कि मन लालची भी होगा, मन लोभी भी होगा, मन मूरख भी होगा, मन गंवारभी होगा। तुम अभिशप्त नहीं हो। ये लालच आया। कैसे आया? समझते हैं। लालच काक्या अर्थ होता है? लालच का अर्थ होता है कि कुछ पाने की.…
श्रोता : इच्छा।
वक्ता : (मुस्कुरातेहुये) सब समझदार हो। कुछ भी पाने की इच्छा उठे, उसके लिए अनिवार्य शर्तक्या है? पेट तुम्हारा खूब भरा हुआ है। तुम्हारे सामने खाना है, जो तुम देखरहे हो। क्या तुम्हारे मन में इच्छा उठेगी कि और खा लूँ?
श्रोता : नहीं।
वक्ता : चलो, इच्छा उठी। तुमने और खा लिया। अब यहाँ (गले) तक भर गया। अब फिर सामने आ गया। अभी भी इच्छा उठेगी कि और खा लूँ?
श्रोता : नहीं।
वक्ता : तो इच्छा उठे, उसके लिए आवश्यक क्या है?
श्रोता : भूख।
वक्ता : भूख, या यूँ कहें कि कमी का भाव, कुछ कमी है। लालच के लिए अनिवार्य शर्त है कि पहले तुम्हें ये एहसास कराया जाये कि तुममें कोई.…
श्रोता : कमी है।
वक्ता : बच्चाइस भाव के साथ पैदा नहीं होता है कि मुझमे कोई कमी है। ये भाव उसमें ठूसदिया जाता है कि तुझमें कोई कमी है। और साथ ही साथ उसे ये भी बता दिया जाताहै कि कमी पूरी कैसे होगी। उसको ये बता दिया जाता है कि दो स्रोत हैं, जहाँ से ये कमी पूरी हो सकती हैं; पहला भविष्य और दूसरा वस्तुयें। बच्चे कोदो प्रकार की शिक्षा एक साथ दी जाती है। पहली शिक्षा है, जो उससे कहती हैकि*‘तुझमें कुछ कमी है,* तुझमें कुछ कमी है, *तुझमें कुछ कमी है*‘’। दूसरी शिक्षा कहती है कि*‘ ये कमी पूरी हो जायेगी,* ये कमी पूरी हो जायेगी, *ये कमी पूरी हो जायेगी*‘’। कब? भविष्य में। और किसके द्वारा? वस्तुओं के द्वारा।
भविष्यमें जब तू इतने अंक ले आयेगा, तो तेरी कमी पूरी होगी। भविष्य में जब तूइतना कमाने लगेगा, तब तेरी काबिलियत मानी जायेगी। भविष्य जब तेरी पहचानबनेगी, तब हम तुझे इज्जत दे पायेंगे। जब तू दुनिया में ये स्थान हासिल करलेगा, तभी हमारे प्रेम के काबिल बनेगा। तो दो बातें बोली जा रही हैं। पहला: ‘तू अभी हमारे प्रेम के लायक नहीं है। तू अभी इज्जत के काबिल नहीं है। अभी तुझमें कुछ भी सुन्दर नहीं है। तुझमें खोट ही खोट है, किसी काबिल नहीं है, *नालायक है*’। और दूसरी बात कि उसे समाधान भी बता दिया जा रहा है: ‘*चल कोशिश कर कि दो साल बाद तेरा भी कुछ हो सके। चल कोशिश कर दस साल बाद या बीस साल बाद तेरा भी कुछ हो सके*’। और क्या हो सके कि तू वस्तुओं का संग्रह कर सके। भविष्य और वस्तुयें। कमी पूरी हो जायेगी|कहाँ से? भविष्य से और…
श्रोता : वस्तुओं से।
वक्ता : वस्तुओंमें व्यक्ति भी शामिल है। क्योंकि व्यक्ति भी बेहोश चित्त के लिए वस्तु हीहै। तो कुछ नहीं है तेरे पास जब तक तूने अपने लिए दूल्हा नहीं खोज लिया।अब ये वस्तु ही है। कि जैसे तुम और कई चीजों की तलाश करते हो; एक अच्छाघर, एक अच्छा मोबाइल फ़ोन, उसी तरीके से तुम एक अच्छे साथी की भी तलाश कररहे हो। तो वस्तु, भविष्य और वस्तु। अब इसमें कोई ताज्जुब नहीं होना चाहिएतुमको कि जब तुम्हारे मन में ये बात भर ही दी गयी है कि तुम नाकाबिल हो, तुम अपूर्ण हो और तुमको पूर्णता सिर्फ भविष्य में और दूसरे लोगों से औरदूसरी वस्तुओं से मिलेगी। तो तुम लगातार किसके पीछे भागते हो? भविष्य केपीछे और वस्तुओं, व्यक्तियों के पीछे। इसी का नाम लालच है।जिसे लालच से पीछा छुड़ाना हो, उसे ये समझना पड़ेगा कि ‘ मैं अपूर्ण हूँ ही नहीं’ । मेरे भीतर मूलभूत रूप से कोई खोट है ही नहीं। और जब मेरे भीतर कोई खोट है ही नहीं, तो उसको पूरा करने का तो कोई प्रश्न ही नहीं उठता। लालच तो वो करे जिसे भूख लगी हो। मैं भूखा हूँ ही नहीं, तो लालच का सवाल ही नहीं उठता ।नहीं, हम ये नहीं कह रहे है कि हमने लालच का त्याग कर दिया है। हम बिलकुलविपरीत बात कह रहे हैं। हम कह रहे हैं कि हम इतने भरे हुए हैं कि लालच कीजरुरत ही नहीं है। यहाँ पर त्याग जैसी चीजों की बात नहीं हो रही है। यहाँतो पाने की बात हो रही है कि हमें इतना मिला हुआ है कि लालच-वालच क्याकरें? इतना पाया हुआ है पहले से कि और की अब आकांक्षा करना बेमानी है। बात आरही है समझ में?
तुमअगर लालच को समझोगे नहीं, अगर सिर्फ उससे लड़ते रहोगे, उसको घृणित नज़र भरसे देखते रहोगे, उसको एक बीमारी समझोगे जो तुम्हें लग गई है, तो कभी भी आगेबढ़ नहीं पाओगे। कभी भी समाधान नहीं हो पायेगा। क्योंकि लालच कोई बीमारीनहीं है जो तुम्हें बाहर से लग गई है। मन के रेशे-रेशे में यही समाया गयाहै। वो हमारा गहरे से गहरा संस्कार है। क्योंकि हर संस्कार के मूल में यहीबात बैठी है कि तुम अपूर्ण हो। जब तक तुम इन संस्कारों से ही मुक्त नहींहोते, लालच से मुक्त नहीं हो सकते। मैं फिर से कह रहा हर संस्कार केबुनियाद में यही धारणा है कि तुममें कोई कमी है और उस कमी को पूरा करने केलिए तुम्हे संस्कारित किया जा रहा है। जब तक तुम बुनयादी तौर पर ही इसधारणा से मुक्त नहीं हो जाते, जीवन में लालच बना ही रहेगा और लालच बड़ा दुखहै। लालच कहता है कि ‘है नहीं मेरे पास कुछ, मैं दुखी हूँ इसीलिए मुझे पानाहै। लालच की तो शुरुआत में ही दुख है। समझ रहे हो?
*‘हैं नहीं, पाना है’*। ‘हैं नहीं’, दुख है। उसी लालच के और बड़े शब्द अब इस्तेमाल किये जाते हैं। लालच को गौरवान्वित कर दिया गया है।
‘महत्वकांक्षा’ | और बड़े खुश होकर कहते हो कि महत्वकांक्षा तो होनी ही चाहिए।
‘एम्बिशन’। और क्या है वो लालच के अलावा?
हर महत्वकांक्षा के मूल में भी वही धारणा बैठी हुई है कि*मुझमें कोई खोट है। मुझे कुछ और बन कर दिखाना है*।
‘प्रगति’। इंसान को जीवन में तरक्की करनी चाहिए।
तरक्की का क्या मतलब है बेटा? पाना। और पाने के पीछे क्या है? ‘है नहीं, पाना है’।
देखो, ज्ञान पाया जा सकता है। जो जिंदगी की छोटी-मोटी चीज़े हैं, उन्हें पा लो।उनके लिए नहीं कह रहा हूँ। पर जो कुछ मूलभूत है, वो नहीं पाया जा सकताक्योंकि वो मिला ही हुआ है, उपलब्ध है।शर्ट पा लो, बोध नहीं पाया जा सकता। रोटी पा लो, प्रेम नहीं पाया जा सकता। रुपया-पैसा थोड़ा पा लो, मुक्ति नहीं पायी जा सकती। जो कुछ भी केन्द्रीय है, वो पाया नहीं जा सकता। परिधि पर जो चीजें है जिनकी कोई विशेष कीमत नहीं, उनको पाते रहो। उनको पाने से भी विशेष कुछ होता नहीं। पा लो उनको कोई बड़ी बात नहीं। पर तुम परिधि की चीजों को नहीं पाना चाहते। तुम तो केन्द्रीय को ही पाने में लगे हुये हो। तुम्हारा दावा है कि तुम आत्मा को भी बाहर से पा लोगे। कैसे पा लोगे? अन्न बाहर से पा लोगे, स्वास्थ्य थोड़े ही बाहर से पा लोगे।
श्रोता : सर, अन्न के जरिये से तो स्वास्थ्य को पाया जा सकता है?
वक्ता : बिलकुलबेटा। अच्छा बताओ, कितना खाते हो महीने भर में? कितने रुपये का खा लेतेहो? कोई दो हजार का खा लेता होगा, कोई चार हजार का। इससे अधिक का तो नहींखाते हो? और आज जितने का खाते हो, आज से दस साल बाद भी बहुत ज्यादा तो नहींही खाओगे या ये कहोगे कि ‘*मेरी भूख अब तीस गुना हो गयी है। उम्र बढ़ने के साथ भूख तीस गुना हो गयी है’*।हम जिस अन्न की बात कर रहे हैं, वो पाना तो इतनी छोटी बात है कि मिल हीजायेगा। इतने गये-गुजरे नहीं हो तुम कि दो-चार हजार कमाना चाहो और तुम्हेंना मिले। पर जो तुम्हारा लालच है, वो अन्न का नहीं है, वो परिधि का नहींहै। वो किसी परिधि की चीज का नहीं है, वो केन्द्रीय चीज का है। तुम कमानाइसलिए चाहते हो क्योंकि तुम्हें इज्जत की भूख है। तुमको आत्मा की भूख है।तुम अपनेआप को नहीं जानते हो। तुम चाहते हो कि तुम्हें तुम्हारी पहचान कोईदूसरा दे दे और ये देख कर दे कि लड़का अच्छा कमाता है। तुम क्या रोटी कमानेके लिए उत्सुक हो? रोटी तो दो-चार हजार में आ जानी है। मुद्दे को समझो।तुममें से कोई भी रोटी को कमाने के लिए उत्सुक नहीं है। भूखा तुममें से कोईनहीं मरने वाला, तुम कुछ भी कर लो। तुम पूरी कोशिश भी कर लो, तब भी भूखेनहीं मर सकते। तुम कमा इसलिए रहे हो कि तुम्हें ‘आत्मा’ की तलाश है। ‘आत्मा’ समझते हो, अपने आप को जानना। तुम अपनेआप को जानते नहीं, तो तुमइसीलिए दूसरों पर निर्भर रहते हो कि वो तुम्हारी तारीफ कर दें, वो तुम्हेंएक पहचान दे दें। वो क्या बोलें? वो बोलें, ‘वो बड़ा काबिल आदमी है, वो महीने का *इतना कमाता है*’।
मुद्दे की बात को समझा करो। इधर- उधर मत भटका करो। तो भिखारी की तरह खड़े हो जाते हो। ‘मैं इतना कमाता हूँ, *मुझे स्वीकृति दीजिये। किसी प्रकार की मान्यता दीजिये*‘।कौन है जो रोटी के लिए कमा रहा है? तुम कमा रहे हो ताकि भविष्य के लिएजुगाड़ कर सको। तुम कमा रहे हो ताकि समाज तुम्हें अनुमोदन दे सके। तुम तोकमा इसलिए भी रहे हो कि ताकि तुम्हें प्रेम मिल सके। समझो बात को। प्रेम केलिए भी तुम कमाने पर निर्भर हो|यही कह रहा हूँ कि अगर कोई रोटी के लिए कमारहा हो, तो उसके ऊपर तो कोई तनाव ही नहीं रहेगा। क्योंकि रोटी के लिएकमाना ही कितना होता है? कमा लोगे कैसे भी। तुम तो आत्मा के लिए कमाने कीसोचते हो। तुम प्रेम के लिए कमाने की सोचते हो। और कमा=कमा के ना किसी कोआत्मा उपलब्ध हुई है और ना प्रेम। जीवन भर कमाते रहो, तो भी ये नहीमिलेंगे। समझ रहे हो? कमा लो जितना कमा सकते हो, ये नहीं मिलेंगे। ये तोमिले ही हुए हैं। पर बचपन से जैसा कहा मैंने कि शिक्षा ऐसी मिल गयी है कि ‘ये नहीं है तुममें, कि खोट है तुममें। कि प्रेम भी तुम्हें तब उपलब्ध होगा, जब पहले इतने नंबर लेकर आओगे। फेल हो गये, तो घर से निकाल दिये जाओगे। दोस्त=यार भी पीछे हट जायेंगे, *अगर समाज में इज्जत नहीं है’*। इन सब बातों के कारण हमारे भीतर ये भावना बैठ गयी है कि हममें कोई मूलभूत अपूर्णता है।
– ‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।