लफंगों को तुमने हीरो बना लिया? || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

Acharya Prashant

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लफंगों को तुमने हीरो बना लिया? || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

आचार्य प्रशांत: कौन है तुम्हारा नायक? मुझे बताना कि ये जो तुम्हारे सबसे ज़्यादा प्रचलित हीरो हैं, इन्होंने श्रद्धा दर्शाता कोई पात्र अभिनीत किया है कभी? कर सकते भी हैं? बताओ मुझे? यहाँ बैठे हो तो तुम सब, कहते हो कि श्रद्धा सबसे ऊँची चीज़ है, तुम्हारे इन नायक-नायिकाओं ने किसी श्रद्धालु का कोई किरदार अदा किया है कभी? हाँ, अहंकार का ख़ूब किया है। “मैं ऐसा हूँ, मैं वैसा हूँ, मैं ऐसी हूँ, मैं वैसी हूँ, मैं ये कर दूँगी, मैं वो कर दूँगी।” फिर तुम्हें ताज्जुब है कि दुनिया में इतना अहंकार क्यों फैला हुआ है, क्योंकि जिनको तुमने अपना हीरो बना रखा है, जिनको तुम अपनी हीरोइन बोलते हो, वही ऐसे हैं। समाज का अधिक-से-अधिक ज़हर सिनेमाघरों से आ रहा है।

तुम्हारे बहुत सारे हीरो-हीरोइन तो ऐसे हैं जो कोई ढंग का किरदार अदा ही नहीं कर सकते। मुझे बताना तुम्हारे आज के कलाकारों में कौन है जो कबीर साहब का किरदार अदा भी कर पाए? कम-से-कम तुम्हारे जो टॉप के हीरो हैं, इनमें तो कोई भी नहीं है। तुम कल्पना भी नहीं कर पाओगे कि उनमें से कोई...

कबीर का किरदार अदा करने के लिए कबीर साहब की कुछ समझ तो होनी चाहिए। निर्देशक भी नायक को क्या बताएगा कि कबीर कैसे थे, जब कबीर से उसकी कोई समीपता ही नहीं। हाँ, उनकी समीपता लुच्चों और लफ़ंगों से है, तो ये वो बड़ी आसानी से बता देते हैं कि—लफंगई कैसे करनी है, बदतमीज़ी कैसे करनी है स्क्रीन पर, किसी की गाड़ी कैसे ठोकनी है, लड़की कैसे उठानी है, घूँसा कैसे मारना है, अश्लीलता कैसे करनी है—ये निर्देशक आसानी से बता भी लेते हैं, और नायक और नायिका आसानी से अभिनीत भी कर लेते हैं क्योंकि वो ऐसी ही दुनिया से आ रहे हैं। उनकी दुनिया में कबीरों की कोई जगह नहीं। इसीलिए तुम्हारी पिक्चरों में ना मीराबाई पाई जाएँगी, ना कबीर पाए जाएँगे, ना अष्टावक्र पाए जाएँगे, ना बुद्ध पाए जाएँगे, ना जीज़स पाए जाएँगे।

पश्चिम में तो फिर भी कोई पिक्चर बन जाए जिसमें जीज़स का कुछ नाम हो, भारत में तुम नहीं बना पाओगे कोई पिक्चर याज्ञवल्क्य के ऊपर, अरुणि के ऊपर, गौतम के ऊपर, भारद्वाज के ऊपर, कश्यप के ऊपर। तुम्हारे पटकथा लेखकों ने ये नाम ही नहीं सुने होंगे। वो दाऊद इब्राहिम पर पिक्चर बना लेंगे, क्योंकि उन्हें दाऊद इब्राहिम का सब कुछ पता है। वो उसी माहौल में रहे हैं। वही उनका चुनिंदा माहौल है। उनसे कहा जाए, “अष्टावक्र पर बना देना”, वो कहेंगे, “कौन सा वक्र?” उच्चारण भी नहीं कर पाएँगे। और तुम चले जाते हो इनकी पिक्चरों को सुपरहिट बनाते हो। सौ, दो-सौ, चार-सौ, आठ-सौ करोड़ का व्यापार कराते हो। साँप को दूध पिलाते हो।

ये कुछ दिखा रहे हैं पर्दे पर, ऐसा जो तुम्हारी चेतना को ऊँचाई दे? देखे जाते हो, देखे जाते हो। और कह देते हो 'मनोरंजन’—ये मनोरंजन नहीं है; ये मनोविकार है।

मनोरंजन ही है, असल में 'रंजन' शब्द का दो तरफ़ा अर्थ होता है; 'रंजन' का एक अर्थ होता है - खेल; रंजन का दूसरा अर्थ होता है - गंदगी। जब किसी चीज़ पर कोई दाग-धब्बा लग जाता है तो उसको कहते हो कि वो चीज़ रंजित हो गई। तो ये मनोरंजन ही है। ये मन को गंदा करने के काम हैं। और उनको आगे बढ़ाने का काम कर रहा है तुम्हारा बाकी का मीडिया। तुम कोई अभी न्यूज़ वेबसाइट खोल लो, उसमें हर तीसरी ख़बर में एक अर्ध-नग्न नारी का चित्र होगा-ही-होगा। और ऐसी-ऐसी नारियों की ख़बरें होंगी जिनका तुमने नाम नहीं सुना। पर उनका नाम तुम्हें बताया जा रहा है। उन नारियों को तुम्हारे लिए प्रासंगिक बनाया जा रहा है, जबकि उनसे तुम्हारा कोई लेना-देना नहीं।

तुमसे कहा जा रहा है, “ये है लेडी बेबी की नवीनतम बिकिनी।” इससे पहले तुम्हें पता भी नहीं था कि लेडी बेबी है कौन! ये कहाँ की देवी हैं जिनका हमें नाम ज़रूर पता होना चाहिए? पर तुमसे कहा जा रहा है, “क्या तुमने लेडी बेबी की नवीनतम बिकिनी तस्वीरें देखीं हैं?” या "लेडी बेबी की ये नवीनतम बिकिनी तस्वीरें आपके अंदर आग लगा देंगी।" तुम्हें पहले से ही पता है कि मुझे आग कैसी लगती है? तुम तो बड़े त्रिकालदर्शी हो भाई।

प्र: दस बातें जो आपको पता होनी चाहिए लेडी बेबी के बारे में।

आचार्य: "दस बातें जो आपको पता होनी चाहिए लेडी बेबी के बारे में।" मुझे पता होना चाहिए? दस बातों में तुमने कभी बताया कि भैया उपनिषद भी पढ़ लो, ध्यान भी कर लो, भजन भी कर लो? ये तुम कभी नहीं बताओगे कि "दस चीज़ें जो तुम्हें अवश्य करनी चाहिए", लेकिन “लेडी बेबी के बारे में दस बातें जो आपको पता होनी चाहिए।" दस नंगी तस्वीरें लगी रहेंगी और उसी के नीचे एक और ख़बर होगी, “लेडी बेबी ने ट्रोल्स को कैसे चुप किया!” क्योंकि किसी ने लेडी बेबी को बता दिया कि, "देवी जी, कपड़ों की कमी हो तो हम दे दें। एक-दो तस्वीरें, बस एक-दो कपड़े पहनकर भी खिंचवा दिया करिए।" किसी ने इतना लिख दिया लेडी बेबी को और ये दुनिया भर की स्त्रियों पर आक्रमण हो गया, ‘नारीवाद’ पर आक्रमण हो गया। तो लेडी बेबी उसका कुछ अध-कतरा जबाव लिखेंगी। और पूरा मीडिया लेडी बेबी के समर्थन में उतरेगा; “लेडी बेबी का सैवेज रेसपौंस कुछ ट्रोलर्स को!” तुम कहोगे, “यही तो ख़बर है! क्या ख़बरें हैं!”

अब चित्त वासना से नहीं भरेगा तो काहे से भरेगा? इसी की तो ख़ुराक भीतर जा रही है। तुम मुझे खोज के दिखा दो किसी न्यूज़ वेबसाइट पर जिद्दू कृष्णमूर्ति का नाम। वो नाम नहीं लेना चाहते। वो इन बातों को छुपा कर रखना चाहते हैं कि किसी को ख़बर ना लगे। वो एक-से-एक भद्दे और बेकार आदमी का नाम छापेंगे, बल्कि तुम जितने भद्दे, जितने बेकार और जितने ज़्यादा दूसरों को नर्क में डालने वाले हो, उतना वो तुमको और ज़्यादा प्रोत्साहित करेंगे।

बताना, किसी अखबार में तुमने रमण महर्षि का नाम आख़िरी बार कब पढ़ा था? या निसर्गदत्त का? ये साज़िश है, इसको समझो। यह जानबूझकर के उनके नामों को छुपा रहे हैं, दबा रहे हैं। जिनके नाम सबसे ऊपर होने चाहिए, ये उनके नामों को सामने नहीं आने देना चाहते हैं। और ये किनके नाम सामने ला रहे हैं? कोई आँख मार दे, उसको ये जी-जान से प्रमोट करेंगे। आँख मारी! पूरे ब्रह्मांड में हलचल मच गई, ऋषि जन, देवता जन, मुनि जन सब काँप उठे! “आँख मारी रे!” ये चीज़ें आगे बढ़ाई जा रही हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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