प्रश्नकर्ता: सर, प्रगति का क्या मतलब होता है ?
आचार्य प्रशांत: खुद सोचो। यह जो तरक्क़ी, प्रगति, विकास है, अर्थ क्या है इसका? और क्या यह हो भी रहा है वास्तव में?
उदित, एक बात समझो साफ़ साफ़, अगर मैं वाहन(कार) बनाता हूँ, मैं एक व्यापारी हूँ, बिज़नेसमैन हूँ, जो कारें बनाता है, तो मुझे कारें ही नहीं बनानी हैं, मुझे अपनी फैक्ट्री में वो मन भी बनाना पड़ेगा जो यह समझता हो कि कार खरीदना तरक्की की निशानी है। मुझे एक साथ दो चीजें बनानी पड़ेंगी, एक कार और कार को खरीदने वाला मन। यह बात उस व्यापारी ने तुम्हारे दिमाग में भर दी है कि तरक्की का मतलब है चीजें, तरक्की मतलब है कार, तरक्की का मतलब है AC, तरक्की का मतलब है बड़ा घर, बंगला, फॉरेन ट्रिप। जिसे तुम्हें चीज़ें बेचनी हों, वो तो तुम्हें बताएगा ही ना कि तरक्की का मतलब है चीज़ें खरीदो और यही तुम्हें लगातार बताया जा रहा है। और तुम ज़रा सा अपनी चेतना का प्रयोग करते नहीं, तुम ज़रा सा अपने आप से पूछते नहीं कि कार से तरक्की का क्या सम्बन्ध है? और तरक्की माने क्या? क्या हासिल करना है? तरक्की माने क्या होता है? कुछ लालची और पागल लोगों का शिकार यह पूरी दुनिया बनी हुई है क्योंकि मीडिया पर उनका कब्ज़ा है, सरकारों पर उनका कब्ज़ा है और तुम ज़रा सा जाँच-पड़ताल करते नहीं।
देखो ना, पूरा तंत्र कैसे चलता है। एक लालची आदमी है जिसकी ज़िंदगी में प्यार नहीं, जिसकी ज़िंदगी में कोई खुशी नहीं, उसे सिर्फ नोट गिनने हैं। वो कारें बना रहा है, कारें बिक सकें इसके लिए वो जबरदस्त तरह से मीडिया का इस्तेमाल कर रहा है, कारें बनाई जा सकें इसके लिए वो मैकेनिकल इंजीनियर पैदा करवा रहा है, उसके लिए बी. टेक. कॉलेजेस खुल रहे हैं, बेचारे गरीब किसान अपनी जमीन बेच-बेच कर बच्चों को इंजीनियर बना रहे हैं ताकि वो उस लालची व्यापारी के नौकर बन कर कारें और कंप्यूटर पैदा कर सकें और इसको तुम कह रहे हो तरक्की हो रही है। क्या यह तुम्हें दिख नहीं रहा है?
दुनिया की पचास प्रतिशत दौलत एक प्रतिशत से भी कम लोगों के हाथों में है। यही वो लालची लोग हैं जिन्होंने तुम्हारे दिमाग में भर दिया है कि तरक्की क्या होती है। और तुम अपना सुख-चैन सब गवां कर तरक्की के पीछे भाग रहे हो और तुम्हें बड़ा बुरा लगता जब तुम्हें तरक्की न मिल रही हो। देखो न, मूर्खों को। घर में नया पलंग आ गया तो कैसे मिठाई बाँटते घूमते हैं, ‘हे हे तरक्की हो गयी’। शक्ल देखो बेवकूफों की। शॉपिंग मॉल से आंटी लौट रहीं होंगी पांच-छः झोले लटका कर, उसकी शक्ल देखना, जैसे उसे दुनिया मिल गयी है। उसने पांच झोले लटका रखे हैं। ‘सो व्हाट्स न्यू दिस समर?’ और कोई आ रहा है, फैशन विशेषज्ञ, वो तुम्हें बता रहा है, ‘दिस समर दिस काइंड ऑफ़ क्लोथिंग इज़ इन्’ और तुम कह रहे हो, ‘अच्छा, अच्छा दिस इस डी ट्रेंड दिस सीजन, लेट मी चेंज माय वार्डरोब’। अरे दिल बदलो अपना, वार्डरोब बदलते हैं। और तुम कह रहे हो तरक्की हुई है। ‘अब हम डिज़ाइनर क्लोथ्स पहनते हैं, तरक्की हुई है।'
तरक्की हुई है। क्यों? ‘हमारे ऑफीस के सामने बहुत बड़ा अस्पताल है, उन्होंने अपना इतना बड़ा होर्डिंग लगवा रखा है, ‘वर्ल्ड क्लास कैंसर केयर’; तरक्की है। क्या तरक्की है? अब हम कैंसर का इलाज़ करा सकते हैं। यह समझ नहीं आ रहा है कि कैंसर पिछले पचास-सौ साल में आई बीमारी है, पहले कैंसर होता ही नहीं था। तुम्हारी तरक्की ही कैंसर है। पर तुम खुश हो जाते हो कि, ‘वर्ल्ड क्लास कैंसर केयर, अरे मर भी रहे हैं तो वर्ल्ड क्लास मरें न’। (सभी श्रोतागण हँसते हैं)। खूबसूरत नर्स हैं (सभी श्रोतागण फिर हँसते हैं)। मरते-मरते भी वासना हिलोरे मार ही रही है। ‘वर्ल्ड क्लास कैंसर केयर’, यह तरक्की है। और तरक्की करने तुम अपने गाँव, शहर छोड़ कर यहाँ आते हो। क्यों? ताकि तुम्हे कैंसर हो सके। मिट्टी यहाँ की ख़राब, लोग यहाँ के चालाक, पानी यहाँ का ख़राब, हवा यहाँ की प्रदूषित, मरने आये भी वर्ल्ड क्लास कैंसर केयर लेने आये हो। समझ में नहीं आ रही बात। बात इतनी सीधी-सीधी है कि वो जो वहाँ पर बैठा है बिजनेसमैन, वो बहुत चालाक है, उसने पूरा इंतज़ाम कर लिया है कि तुम्हारे समझ में कुछ भी ना आये। पूरा इंतज़ाम कर रखा है उसने कि सोचने समझने के सारे तरीके बंद कर दो। पूरे गुलाम हो तुम, उसके। इतना ही नहीं, तुम उसे अपना आदर्श और मानते हो। क्यों? क्योंकि उन्होंने खूब पैसा इकट्ठा किया है। कैसे किया है? हमें ही शोषित कर के किया है इसलिए तो वो महान हैं। तुम्हारा ही शोषण कर के वो पैसा इकट्ठा कर रहे हैं, और इसी बात पर उनकी इज्जत करते हो कि उन्होंने पैसा इकट्ठा किया है। यह पागलपन देख रहे हो?
कभी किसी शॉपिंग माल में जाओ और लोगों की शक्लें देखो। जो पिज़्ज़ा हट के सामने लाइन लगी होती है, शांति से खड़े हो जाओ और बस देखो। और वो नयी-नवेली शादीशुदा लड़की, जो हाथ में चूड़ा डाल कर घूम रही होती है, उधर यह जोड़े हाथ में हाथ डाल कर घूम रहे होते हैं, इनकी शक्ल देखो। तुम्हें प्रेम दिखाई देता है? नहीं, कुछ नहीं। इन्हें बता दिया गया है कि प्रेम इसको कहते हैं कि हाथ में हाथ डाल लो और घूमो। और ज्वेलरी शॉप में यह जो स्त्रियाँ बैठी होती हैं, उनको देखो। और जो पीछे उनके पति पैसा गिनते हुए खड़े होते हैं, उनको देखो, फिर तुम्हें समझ में आएगा कि हम कैसी दुनिया में जी रहे हैं। यह सब दिखायी नहीं देता? ऐसा हो ही नहीं सकता। कभी शादियों में जाओ, वहाँ देखो। स्त्रियाँ कैसे कपड़े पहनती हैं? किसी रेड लाइट एरिया में ठीक वही काम हो रहा हो, तो रेड पड़ जायेगी पर वैसे ही कपड़े पहनकर के शादियों में आती हैं और इज्ज़तदार कहलाती हैं। यह सब इज्ज़तदार माताएँ और बहनें हैं। तरक्की हुई है?