प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी! मैंने ट्विटर पर नासा के ऑफिसियल (आधिकारिक) चैनल पर एक पोस्ट देखा था जिसने वो ये कह रहे हैं कि गैलेक्सी (आकाशगंगा) के जो क्लाउड्स (बादल) हैं उसमें उन्होंने साउंड (ध्वनि) डिटेक्ट (पता) कर ली है और उसका जो ऑडियो (श्रव्य) है वो ऑनलाइन रिलीज़ भी किया है जो काफ़ी चर्चा में है। तो वहीं पर कुछ कमेंट्स (टिप्पणियाँ) मैं पढ़ रहा था जिसमें देश के काफ़ी ऊँचे अधिकारियों के भी कमेंट्स हैं। वो ये कह रहे थे कि ये चीज़ तो हमारे ऋषियों ने हज़ारों साल पहले ही डिटेक्ट कर ली थी और उन्होंने इस ध्वनि को ॐ का नाम दिया था ताकि इसका हम जाप करें और जब हम जाप करते हैं तो उसी ध्वनि से रेजोनेट करते हैं और अपने ओरिजिन (मूल) तक पहुँचते हैं। उन्होंने ये भी कहा था कि अगर हमारे ऋषि ऐसा करते हैं तो वो इसे अंधविश्वास कहते हैं और अगर नासा करे तो वही साइंस (विज्ञान) हो गयी। तो कृपा इस पर प्रकाश डालें।
आचार्य प्रशांत: ये कह रहे हैं कि किन्हीं इंस्ट्रूमेंट्स (उपकरणों) के द्वारा कॉस्मोलॉजिकल रीसर्च (ब्रह्माण्ड सम्बन्धी अनुसंधान) करके कुछ गैलेक्टिक साउंड्स (आकाशगांगेय ध्वनियाँ) पकड़ी गयी हैं और उनको कह रहे हैं कि वो जो आवाज़ें आ रही हैं स्पेस (अन्तरिक्ष) में वो ॐ की ध्वनि जैसी हैं। तो बहुत सारे भारतीय लोग, धार्मिक लोग, बहुत ख़ुश हो रहे हैं और कह रहे हैं कि देखो यही बातें जब हम कहते हैं तो कह देते हो अंधविश्वास है पर अब तो नासा भी मान रहा है कि ये जो पूरा अंतरिक्ष है इसमें ॐ की ही ध्वनि गूँज रही है।
ॐ कोई ध्वनि नहीं होती, ॐ ध्वनि नहीं होती। ध्वनियाँ पशुओं के लिए होती हैं, मनुष्यों के लिए शब्द होते हैं और हर शब्द एक सूत्र होता है। ये अंतर समझिएगा साफ़-साफ़। हमारे लिए शब्द होते हैं और हर शब्द एक सूत्र, माने एक कोड (कूट) होता है, उस कोड को आप नहीं समझे तो वह शब्द भी एक ध्वनि हो जाता है। ठीक है? आपको हिंदी नहीं आती और मैं आपसे कहूँ, 'उठिए'। ये 'उठिए' क्या है आपके लिए सिर्फ़? ये ध्वनि है। पर अगर आप मनुष्य हैं और आपमें समझदारी है तो ‘उठिए’ अब एक कोड हो गया जिसको जब आप डीकोड करते हैं तो आपको पता चलता है कि आपको अपनी टाँगों की माँसपेशियों का इस्तेमाल करके वर्टिकल पोजिशन (ऊर्ध्वाधर स्थिति) में आने को कहा जा रहा है। ठीक?
मनुष्य ध्वनियों में नहीं बात करते, मनुष्य सूत्रों में बात करते हैं और उन सूत्रों का नाम होता है शब्द। हर शब्द एक कोड होता है, उसका एक अर्थ होता है और अगर आप उसकी भाषा को और व्याकरण को जानते हैं तो आप उसे डीकोड (व्याख्या) कर लेंगे। ठीक? तो ॐ भी कोई ध्वनि नहीं है। ॐ को ध्वनि कहकर ॐ का अपमान मत करिए। ध्वनियाँ, हमने कहा, किनके लिए होती हैं? पशुओं के लिए। ध्वनि कैसी होती है? 'शु-चु-चु-चु-चु-चु-चु'। आपको कोई पशु मिलता तो उसको क्या बोलते हो, जानवर को कैसे बुलाते हो? कोई शब्द बोल कर तो क्या ही बुलाओगे, तुम शब्द उसको बोल भी दोगे तो शब्द उसकी समझ में नहीं आएगा। शब्द बोल भी दो तो उसके लिए ध्वनि मात्र है। या कि जैसे छोटा बच्चा होता है जो शब्द नहीं समझ सकता, उसको भी ध्वनि से बुलाते हो, 'उ-लू-लू-लू-लू-लू लू'। तुम ॐ को इस श्रेणी में रख देना चाहते हो क्या, 'उ-लू-लू-लू-लू'?
ॐ बना है 'अ', 'उ' और 'म' से। कितनी ही बार तो समझा चुका हूँ। ॐ वेदांत का एक केंद्रीय सूत्र है। जैसे श्लोक होते हैं पूरे, फिर श्लोकों के भी छोटे अंश होते हैं, होते हैं न? जैसे आप कह देते हो “योगा कर्मसु कौशलम्” ये पूरा श्लोक नहीं है, ये एक श्लोक का एक छोटा हिस्सा भर है। तो इस तरीक़े से संक्षिप्तीकरण, प्रिसिशन पर, छोटा करने पर वेदान्त में बड़ा ज़ोर है कि हर चीज़ को जितना छोटा-से-छोटा करके बताओ उतना अच्छा है। इस बात को उत्कृष्टता की निशानी मानते हैं वेदांत में कि जो कुछ कहना है उसको कितने संक्षेप में कह दिया।
तो वेदांत के तीन स्तंभों में जैसे ब्रह्मसूत्र है, तो ब्रह्मसूत्र में आप पाएँगे कि अति संक्षिप्त सूत्र हैं। आप कहेंगे ये इतनी सी बात, कुल इसमें छः अक्षर, इसका अर्थ क्या निकालें। और उसकी जो व्याख्या होगी वो साठ पन्ने की होगी, छः अक्षर है बस। समझ में आ रही है बात? तो वैसा ही एक अति संक्षिप्त सूत्र है ॐ।
ॐ आपको चेतना की तीन अवस्थाएँ और तीनों अवस्थाओं के पार जो आत्मा है उसको याद रखने के लिए दिया गया है। अ-उ-म और मौन, ये ॐ के चार स्तंभ, चार अंश, चार हिस्से या चार अवयव हैं। चेतना की तीन अवस्थाएँ होती हैं। आपकी जो चेतना है वो तीन ही अवस्थाओं में होती है। या तो वो अवस्था जिसमें आप अभी हैं ‘जाग्रत अवस्था’ या आप सो रहे होते हैं, गहरी नहीं होती नींद आप सपने ले रहे हैं तो ‘स्वप्न अवस्था’ या और गहरी हो गयी नींद तो उसको कहते हैं ‘स्वप्न रहित सुषुप्ति।’ आप इन्हीं तीनों में कहीं-न-कहीं फँसे होते हैं। इन्हीं तीनों में फँसे होने का नाम है बंधन।
ॐ आपको बंधन से मुक्ति की याद दिलाने के लिए है, अ-उ-म और मौन, अ-उ-म और मौन। चाहे तुम 'अ' में हो, चाहे तुम 'उ' में हो, चाहे तुम 'म' में हो, उसके आगे भी कुछ है, उसके आगे जो है उसको भूल मत जाना। ॐ ये बताने के लिए है।
ॐ कोई ध्वनि नहीं है कि ॐ बोल दोगे। कोई बोलता है, 'नहीं, ॐ मत बोलो, औम बोलो,' ये फिज़ूल पागलपन है। ये वो लोग हैं जिन्होंने आजतक वेदान्त का 'व' नहीं पढ़ा, तो वो ॐ को ध्वनि बनाने पर तुले हुए हैं। एक सूत्र को आप ध्वनि बना रहे हो, ये वैसी-सी बात है, दोबारा उस उदाहरण पर जाइएगा कि मैं आपसे कहूँ 'उठिए' और आप कहें 'उठिए' तो एक ध्वनि है। अरे! ध्वनि नहीं है, वो एक सूचक है, एक प्रतीक है, एक बात है, एक अर्थपूर्ण वक्तव्य है पूरा, उठिए। उसका एक अर्थ है, ध्वनि मात्र नहीं है वो। पर जब हमें किसी चीज़ के अर्थ नहीं पता होते तो वो चीज़ हमारे लिए और क्या बन कर रह जाएगी, ध्वनि ही तो बन कर रह जाएगी न?
मैं आपसे फ्रेंच में या रस्सियन में कुछ बोलूँ, वो चीज़ आपके लिए क्या हो जाएगी? ध्वनि ही तो हो जाएगी क्योंकि आपको अर्थ नहीं पता। तो जब ॐ का भी अर्थ नहीं पता, तो कहने लग जाते हैं कि ॐ एक ध्वनि भर है। इसीलिए जब ॐ का उच्चारण होता है तो देखो कैसे होता है, अउममम…..; ये जो 'म' है, ये धीरे-धीरे लीन होता है, विलुप्त होता है, जैसे इसकी टेपरिंग (क्रमशः पतला होना) हो रही हो। समझ रहे हो? ये जल्दी से ख़त्म नहीं हो जाता है, ये टेन्डिंग टू ज़ीरो (शून्य की ओर बढ़ता) रहता है।
ये क्या बताने के लिए है?
जैसे ये विगलित हो रहा है ॐ, वैसे ही चेतना धीरे-धीरे ख़त्म होती जाए, शून्य होती जाए और बचे क्या सिर्फ़? जो चेतना के पार की आत्मा है, सत्य है। ये जो तीनों अवस्थाओं में आपको दिख रहा है, इनमें से कुछ भी सत्य नहीं, इनको पार करके निकल जाना है मौन में। तो वो जो मौन है वो ॐ का सबसे केंद्रीय भाग है। भाग भी कहना ग़लत है, वो जो मौन है वो ॐ के केंद्र में बैठा हुआ है। आपने ॐ बोल दिया न, उसके बाद जो मौन है आपको उसमें ही जीना है। ॐ तो बीत गया, अ-उ-म तो बीत गये। जीना किसमें है? जो ॐ के बाद बचा। ॐ के बाद क्या बचा? मौन बचा।
ॐ आपको यही याद दिलाने के लिए है, उस मौन में जीना सीखो जहाँ चेतना की कोई गतिविधि नहीं है, जहाँ कोई आवाज़ नहीं, कोई दृश्य नहीं, कोई वस्तु नहीं, कोई संसार नहीं, कोई व्यक्ति नहीं, कोई काम नहीं, कोई कर्तव्य नहीं, उस मौन में जीना है तुमको, ये ॐ की सीख है। समझ में आ रही है बात? इसलिए ॐ, जिसको प्रणव भी कहते हैं, उसका उच्चारण या उसका जप इतना अनिवार्य बताया गया, उसका इतना महत्व रखा गया, क्योंकि उस मौन में, जिसको आत्मा या सत्य कहते हैं, उसमें जी करके ही तृप्ति और आनंद है।
लेकिन ॐ आपके लिए उपयोगी, असरदार, प्रभावी सिर्फ़ तब होगा जब आपको ॐ का अर्थ पता हो। ॐ का अर्थ नहीं पता तो ॐ-ॐ करते रह जाओगे, ॐ आपके लिए वही बन कर रह जाएगा, बस एक ध्वनि मात्र। ध्वनियों से कभी किसी का कोई लाभ नहीं हुआ। आप सौ मंत्र सुन लीजिए, आपका क्या लाभ होगा अगर आपको पता ही नहीं कि उसमें कहा क्या जा रहा है! लेकिन जिन लोगों के लिए अर्थ ख़तरनाक होते हैं, उनका अहंकार उन्हें अर्थ सुनने की, जानने की अनुमति नहीं देता, वो मंत्रों को भी ध्वनि मात्र बना देते हैं। वो कहते है, 'मंत्रों की ध्वनियों में कुछ वाइब्रेशन (कंपन) होते हैं, उन वाइब्रेशन से फ़ायदा हो जाता है।' जहाँ कहीं भी ऐसी बात सुनिएगा, समझ जाइएगा कि अज्ञान-ही-अज्ञान है। यह व्यक्ति मंत्रों से डरता है। ये अर्थ नहीं जानना चाहता, तो अर्थ न जानने के लिए ये कह रहा है 'अर्थ जानने की ज़रूरत ही नहीं है, ध्वनि काफ़ी है, अर्थ जान कर क्या करोगे, जो साउंड है वो काफ़ी है, सफीशिएंट (पर्याप्त) है।'
अरे बाबा! अगर सिर्फ़ ध्वनि से काम चलता होता तो मंत्र भी ऐसे ही होते न “टिका पोका लो लो लो पो?” फिर उसमें ऐसे शब्द क्यों रखे जाते जिनके अर्थ होते हैं? अगर ध्वनियों से ही काम चल रहा होता है तो फिर तो कह दिया जाता है कि इतने एंप्लीट्यूड (आयाम) की और इतने फ़्रिक्वेंसी (आवृत्ति) की वेव (तरंग) है, ये सुन लो, फिर अगली ये सुन लो, फिर अगली ये सुन लो, ये सुन लो। फिर तो खेल बस वेवलेंथ (तरंगदैर्ध्य) और एंप्लीट्यूड का रह जात। नहीं, वहाँ अर्थ निहित है, अर्थ। ये खेल सारा ज्ञान का है, अर्थ नहीं जानोगे तो कोई मंत्र कोई लाभ नहीं देगा। इसीलिए इतने लोग ॐ-ॐ करते रह जाते हैं, 'ॐ शांति, ॐ शांति' और उन्हें ॐ का मतलब पता है नहीं तो काहे की शांति! ॐ अपनेआप नहीं शांति ला देगा अगर तुम उसके अर्थ में ही नहीं उतरना चाहते तो। शांति बोध में है, ध्वनि में नहीं शांति होती। समझ में कुछ आ रही है बात?
और सूर्य से नहीं ॐ की ध्वनि निकलेगी, पागल। ॐ की ध्वनि, ॐ की बात, ये जो सूत्र है ॐ का, ये चेतना के लिए है। वो चेतना जो देख पाये कि सूर्य, जिससे तुम कह रहे हो कि ॐ प्रतिध्वनित हो रहा है, वो सूर्य स्वयं क्या है? चेतना का एक विषय मात्र है। हमें ये देखना है कि चेतना के जितने विषय हैं वो मिथ्या हैं। और यहाँ आपने कह दिया कि चेतना की ही एक विषय से ॐ आ रहा है, ये पागलपन है न बिलकुल?
लेकिन हमें बड़े गौरव का अनुभव होता है कि देखो हमारा ॐ नासा ने बताया कि सूर्य से आ रहा है। और नासा ने बता दिया, इससे हमारे अंधविश्वासों की और पुष्टि हो गयी। अब अंधविश्वास एक साधारण मध्यमवर्गीय अंधविश्वास नहीं रहा, वो उच्चवर्गीय अंधविश्वास हो गया क्योंकि गोरे लोगों की नासा से आ रहा है। हमें बहुत अच्छा नहीं लगता अगर हमें पता चलता है कि अफ्रीका का कोई कबीला है और वो लोग भी ॐ जैसी कोई ध्वनि निकालते हैं। हम कहते, नहीं-नहीं-नहीं इसमें क्या ख़ास है, ये तो कोई बात ही नहीं है। पर नासा है नासा, पैसे वाले अमेरिकी लोगों की नासा। एक तो गोरे, ऊपर से इतने सारे पैसे। तो उन्होंने अगर ॐ की बात करी तो इसमें ॐ का सम्मान है। माने ॐ का सम्मान भी इस पर निर्भर करता है कि गोरे और पैसे वाले लोग उसका सम्मान कर रहे हैं कि नहीं।
इससे पता चलता है कि हम ज़्यादा सम्मान किसका करते हैं, ॐ का या पैसे का। जब पैसा आकर के ॐ की गवाही दे तो हम कहते हैं ॐ का सत्यापन, वेरिफिकेशन हो गया। तो बताओ तुम ज़्यादा महत्व किसको देते हो, ॐ को या पैसे को? पैसे को न? वरना तो ये होना चाहिए था कि ॐ पहले आता है, ॐ बताएगा कि हमें कितना पैसा चाहिए, ॐ बताएगा कि हमें किस आदमी को कितना सम्मान देना है, गोरा या काला, नर या नारी, कुछ भी। लेकिन नहीं, हमारे लिए ॐ पहले नहीं आता, हमारे लिए नासा और अमेरिका और पैसा और टेक्नोलॉजी (तकनीक) ये पहले आते हैं। हम ऐसे लोग हैं और हमें ये बात पता भी नहीं है क्योंकि हम अपने को ही लेकर के बड़े अनभिज्ञ हैं। तो जैसे ही इस तरह की बातें चलती हैं और नासा को लेकर के तो हिन्दुस्तानियों में कुछ ख़ास कशिश है।
दिवाली पर बताएँगे कि वहाँ ऊपर सैटेलाइट (उपग्रह) से इमेजरी ली गयी है और देखो पूरे भारत का नक्शा दैदीप्यमान है, एकदम जल रहा है भारत, दिवाली है न, वो एकदम जगमग-जगमग जगमग-जगमग। ये वो लोग हैं जिन्होंने पी एच ऑप्टिक्स कभी करा नहीं था ठीक से, 'एफ' लगा होगा इनका। आजकल फ्लोट होता है कि नहीं, होता है? (श्रोताओं से पूछते हैं)
इन्हें ये नहीं पता कि ऑप्टिकल रिज़ॉल्यूशन जैसी भी कोई चीज़ होती है। तुमने अपने घर में चीनी झालर लगा रखी है, उसको कोई सेटेलाइट नहीं रिसॉल्व कर पाएगा। पर नहीं, ये बताते हैं ऊपर से सैटलाइट ने लिया है और नीचे दीये दिखाई पड़ रहे हैं। और बड़ा आनंद आता है, क्या बात है!
जो अहंकार भीतर बैठा होता है न, वो हर चीज़ का उपयोग बस अपनेआप को मोटा करने के लिए करता है। अंधविश्वास किसलिए है? अपनेआप को मोटा करने के लिए। और ज्ञान भी किसलिए है? अपनेआप को मोटा करने के लिए। जो कुछ भी संभव है उसका उपयोग कर लो बस अपनेआप को सही साबित करने के लिए। अपनेआप को सही साबित करना क्यों ज़रूरी है? क्योंकि कहीं-न-कहीं हम जानते हैं कि हम बहुत ग़लत हैं। समझ में आ रही है बात?