कोई साधारण कद-काठी का आदमी हो, और वो चला जा रहा है, और पीछे से कोई आवाज़ दे उसे, “ओ मोटे!” इस आदमी का दिल टूट जाएगा? इसका दिल टूट जाएगा? और दूसरी और हो कि सवा-सौ किलो का वो किसी तरह लुढ़कता-पुड़कता चला जा रहा हो, और पीछे से कोई उसको आवाज़ दे दे, “ओ मोटे!” इनका तो काँच की तरह दिल टूटेगा।
दूसरों की कही बात अगर तुम्हें चुभ जाती है कोई तो समझ लेना दूसरे जो बात कह रहे हैं उससे तुम सहमत हो। दूसरों की जो बात है, अगर वो पूर्णतया ग़लत, बेमतलब, व्यर्थ या झूठी प्रतीत हो रही होती तो तुम उस बात पर हल्के से मुस्कुरा कर आगे बढ़ जाते। तुम कहते, “मैं जानता हूँ, इस बात में कोई दम नहीं।“ जो अपनी नज़रों में गिरा हुआ नहीं है, कोई कैसे उसको गिरा लेगा? और जो अपनी नज़रों में गिरा हुआ है, उसको गिराने की किसी और को ज़रूरत भी क्या है!