आचार्य प्रशांत: जब मैंने ड्राइविंग सीखी थी, मैं छोटा था काफ़ी, लाइसेंस की उम्र भी नहीं थी, तभी घर पर एक ड्राइवर होता था उसने शौकिया मुझे सिखा डाली। तो जाड़ों की सुबह जब गाड़ी स्टार्ट करे तो गाड़ी आवाज़ें करे, पुरानी प्रीमियर पद्मिनी, और आज से बात भी तीस साल पहले की है। गाड़ी आवाज़ करे तो मैं कहूँ, ‘ये आवाज़ कर रही है।’ तो ड्राइवर साहब मुझसे कहते थे, ‘कुछ आवाज़ें ऐसी होती हैं जो गाड़ी के गर्म होने के बाद गायब हो जाती हैं, ध्यान मत दीजिए, गाड़ी आगे बढ़ा दीजिए आवाज़ अपनेआप चली जाएगी।’ उनकी बात बिलकुल ठीक थी।
बेल्ट , बियरिंग , कई आवाज़ें ऐसी होती थी जो जब गाड़ी चलने लग जाती थी तो पाँच-दस मिनट बाद गायब हो जाती थीं। इसी तरीके से गाड़ी न्यूट्रल में खड़ी रहे तो साइलेंसर थोड़ा सा बजे उसका। मैं कहूँ, ‘ड्राइवर साहब, साइलेंसर की आवाज़!’ बोले, ‘ध्यान मत दीजिए, कुछ आवाज़ें ऐसी होती हैं जो जब गाड़ी चलने लगे, स्पीड पकड़ ले तो गायब हो जाती हैं। ये साइलेंसर बजेगा ही तब जब आरपीएम लो रहेगा, जैसे ही आप इंजन का आरपीएम बढ़ा देंगे साइलेंसर का बजना बन्द हो जाएगा।’ और मैंने पाया कि उनकी बात सही थी।
फिर गाड़ी आगे बढ़े तो उसका जो चेज़ी है वो भी आवाज़ करे, शॉकर कुछ बोल रहे हैं, दरवाज़ें कुछ बोल रहे हैं, सीट चूँ-चूँ कर रही है ये सब भी होता था, थोड़ी पुरानी गाड़ी थी। तो मैं कहूँ, ‘ड्राइवर साहब, ये सब आवाज़ें आ रही हैं गाड़ी में।’ तो बोले, ‘कुछ आवाजें ऐसी होती हैं जो बन्द हो जाती हैं जब गाड़ी लोडेड होती है।’ तो आपकी गाड़ी अगर आवाज़ कर रही है तो उस पर वज़न बढ़ाइए। भरी हुई गाड़ी सड़क को चिपक कर चलती है बिलकुल, पकड़कर चलती है, और भरी हुई गाड़ी कम आवाज़ करती है, खाली गाड़ी ज़्यादा आवाज़ करती है।
कुछ बात समझ में आ रही है?
जो लोग अपनी गाड़ी की आवाज़ों को लेकर के बड़े परेशान रहते हों, उनको इशारा दे रहा हूँ — तुम्हारी गाड़ी खाली बहुत है इसलिए बहुत आवाज़ कर रही है, उसको भरो, भर दो उसके बाद आवाज़ कम हो जाएगी। तुम्हारी गाड़ी खड़ी हुई है इसलिए आवाज़ कर रही है, उसको चलाओ, आवाज़ कम हो जाएगी। और तुम्हारी गाड़ी ठंडी है इसलिए आवाज़ कर रही है, उसको गर्म करो, आवाज़ कम हो जाएगी। शून्य कभी नहीं होगी, बन्द कभी नहीं होगी आवाज़, लेकिन कम हो जाएगी। इसी तरीके से वासना है।
तुम गाड़ी को मंज़िल की ओर बढ़ाओ वासना की ओर तुम्हारा ध्यान जाना अपनेआप कम हो जाएगा। जो सैनिक मोर्चे पर लड़ रहा है, तुम्हें क्या लग रहा है उसके दिमाग में वासना तैरेगी? उसे खयाल ही नहीं आएगा। और अगर वो मोर्चे पर छः महीने है तो उसे छः महीने नहीं खयाल आएगा भाई, या आएगा भी तो एकदम न्यून, कम आएगा। उसे फ़ुर्सत ही नहीं है ये सब सोचने की।
जो खाली बैठे हैं बिलकुल व्यर्थ, आज की भाषा में बेहले, उन्हीं के दिमाग में सेक्स ज़्यादा तैरता है। अगर ज़्यादा तैर रहा है तो उसका अर्थ ये नहीं है कि तुम्हारी देह में कुछ गलत है या तुम पापी हो, उसका अर्थ ये है कि तुमने जीवन में सार्थक काम से किनारा कर रखा है। तुम कोई ऊँचा और असली काम कर ही नहीं रहे, तो दिमाग में यही खुराफ़ात नाचती है। आ रही है बात समझ में?