पैसा ख़ुद कमाना पड़ता है न तो ज़िम्मेदारी अपने-आप आ जाती है। अधिकांश मामलों में जहाँ पर आज हम महिला को शोषक के तौर पर देख रहे हैं, वहाँ बात यह है कि ख़ुद वो कमा नहीं रही है।
पैसा कमाने बाहर अगर निकलो, सड़क पर जाओ तो आटे-दाल का भाव पता चल जाता है। लेकिन अगर आप किसी के पैसों पर – चाहे माँ-बाप के पैसों पर, चाहे पति के पैसों पर – मज़े में अपना जीवन-यापन कर रहे हैं तो फिर आपको बहुत सारी बेहूदा हरकतें करने का समय भी मिल जाता है, आपकी ऊर्जा भी बची रहती है कि ‘चलो अब खाली समय पड़ा है और खाली एनर्जी (ऊर्जा) है तो इन्हीं सब चीज़ों में लगाते हैं।‘ और आप में विनम्रता की भी बहुत कमी हो जाती है, क्योंकि जो पैसा कमाने निकलता है न उसको बड़ी लड़ाई करनी पड़ती है, बड़ा संघर्ष करना पड़ता है। वो संघर्ष उसे विनम्र बना देता है। वह जानता है कि किन उलझनों को पार करके कुछ पैसा आता है।