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जूझो नहीं, निश्छल मांगो || आचार्य प्रशांत, जीसस क्राइस्ट पर (2014)
Author Acharya Prashant
Acharya Prashant
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Ask and it will be given to you; seek and you will find;knock and the door will be opened to you. For everyone who asks receives; the one who seeks finds;and to the one who knocks, the door will be opened.

– Bible, Matthew 7:7-8

वक्ता: बात सिर्फ़ तुम्हारी मर्ज़ी की है। “जिन खोजा तिन पाइया”। ये नहीं कहा गया है कि जिन्होंने खोजा, उनमें से कुछ लोगों ने पाया। “जिन खोजा तिन पाइया,” बात सीधी है- खोजो और पाअो। असफलता का कोई प्रश्न ही नहीं है।

कबीर कहते हैं:

जिन खोजा तिन पाइया गहरे पानी पैठ। जो बौरा डूबन डरा रहा किनारे बैठ।।

“मांगो, और मिलेगा *(आस्क एंड इट शैल बी गिवन) “। ठुकराए जाने का कोई प्रश्न ही नहीं है। “खटखटाओ और दरवाज़ा खुलेगा (नॉक, एंड इट शैल बी ओपन)*“। दरवाज़े के बंद रहने का कोई प्रश्न ही नहीं है। सारी बात तुम्हारी मर्ज़ी की है। कल एक मित्र से बात हो रही थी, तो वो मुझसे कह रहे थे कि ध्यान का महत्व पता है, लेकिन पता रहते हुए भी ध्यान के कुछ ही क्षण उपलब्ध हो पाते हैं, और मन फ़िर इधर-उधर चला जाता है, तमाम चीज़ें हैं जो हावी हो जाती हैं, जो महत्वपूर्ण लगने लगती हैं। मैंने उनसे यही कहा कि आपको जब वास्तव में उसकी आकांक्षा होगी, तो मिल जाएगा। क्योंकि तब आप उसका महत्व समझोगे, तब आप उसे उसे प्रथम वरीयता दोगे, दिल और जान से उसको मांगोगे।

जब उसे पहली वरीयता दी जाती है, जब उसे सर्वोच्च पायदान पर रखा जाता है, जब कहा जाता है कि यह नहीं तो कुछ नहीं, जब यह कहा जाता है, “एक तू न मिला, सारी दुनिया मिली भी तो क्या है?”, जब मन स्पष्टता से इस भाव को अनुभव करने लगता है, तब दरवाज़ा खुल जाता है।

तुमने पूरी शिद्दत से अभी खटखटाया कहाँ है, और पूरी शिद्दत से खटखटाने का मतलब यह मत समझ लेना कि उसमें बहुत श्रम लगता है। पूरी शिद्दत से खटखटाने का मतलब इतना ही है कि साफ़ मन से खटखटना। उसका मतलब यह नहीं कि लाठी-डंडा लेकर उस दरवाज़े को तोड़ रहे हो। हम से जब कहा जाता है कि दिल और जान से काम करो, तो ऐसी हमारी कुछ मानसिकता है कि हम उसका मतलब समझते हैं कि बल का प्रयोग करना है। कुछ इसी तरह की छवियाँ मन में उठती हैं। नहीं, यह बात नहीं हो रही है। “मांगो, और मिलेगा” माँगो, तो व्यापार नहीं करो। और मागँने का अर्थ जानते हो क्या होता है? माँगने का अर्थ होता है- पूर्ण समर्पण।

हमें माँगना आता ही नहीं है। याद करो आख़िरी बार तुमने कब किसी से कुछ वास्तव में माँगा था। तुम्हें तो जब माँगना होता है तो तुम ऐसा दिखाते हो कि जैसे बदले में कुछ दे सकते हो। एक भिखारी भी तुम्हारी गाड़ी के पास आता है चौराहे पर, तो कहता है कि पैसे दे दो और दुआएँ ले लो। वो कभी ये नहीं कहता कि माँग रहा हूँ, वो कहता है कि व्यापार कर रहा हूँ। “तुम एक पैसा दोगे, वो दस लाख देगा, तुम मुझे नहीं दे रहे हो, तुम अपना ही भला कर रहे हो, एक पैसा दो दस लाख लो।”

माँगने का अर्थ है स्पष्ट कहना कि दो। और याद रखना जब तुम वास्तव मे माँगोगे तो उसमें याचना का भाव नहीं रहेगा। जब तुम झूठा व्यापार करने निकलते हो तब तुम बनते हो भिखारी। एक बच्चा जब अपनी माँ से माँगता है, तो उस में न विनय होता है, और न याचना होती है। “माँ है, माँग सकता हूँ। माँग रहा हूँ हक़ है मेरा। न व्यापार कर रहा हूँ न याचना कर रहा हूँ। भीख नहीं माँग रहा हूँ। तूने जन्म दिया है, अब तू ही ख्याल भी रख। तू नहीं रखेगी तो और कौन रखेगा?” और किसका ख्याल रखने को कह रहा है? कल क्या कह रहे थे बुल्ले शाह? “तुम ही तुम व्याप्त हो चारों तरफ, तुस्सी आप ही आप सारे हो। तुम ही तुम तो व्याप्त हो चारों तरफ, अपना ही ख्याल रखोगे। मेरा ख्याल रखो तो अपना ही ख्याल रखोगे।”

इतने हक़ से माँगने के लिए सिर्फ़ आत्मीयता चाहिए, प्रगाढ़ प्रेम। और जब उतना प्रेम होता है तो अक्सर माँगने की ज़रुरत ही नहीं पड़ती। अस्तित्व खुद समझ जाता है कि तुम्हारी ज़रूरतें क्या हैं, वास्तविक ज़रूरतें, और उन्हें पूरा कर देता है तुम्हारे बिना माँगे। और वो बात हमारे छोटे-से मन की समझ से बाहर की होती है। तुम देखना, जब तुम इस समस्त सृष्टि के साथ एक अनुभव करोगे, तो तुम्हारी ज़रूरतें कैसे पूरी होने लगेंगी। तुम उसका कोई कारण नहीं खोज पाओगे। वो बात तर्क में नहीं समाएगी।

तुम कह दोगे कि चमत्कार है, जादू है। हाँ, जादू ही है। जादू ही तो है कि हम साँस ले पा रहे हैं। क्या यह जादू नहीं है? जादू ही तो है कि हम यहाँ बैठे हुए हैं। क्या ये जादू नहीं है? हाँ उसमें ओछे अहंकार को तृप्ति नहीं मिलती है, कि मैंने कमाया नहीं और मुझे मिल गया। हमें अच्छा लगता है कि हम अर्जित करें, पुरुषार्थ दिखाएँ। पर अस्तित्व ऐसे नहीं चलता है। जो तुम्हें चाहिए वो धीरे से, चुपके से आकर कोई तुम्हें दे जाता है। तुम्हरी सारी ज़रूरतें तुमसे ज़्यादा किसी और को पता हैं, वो दे जाएगा। धीरे से आकर दे जाएगा और तुम्हें पता भी नहीं चलेगा।

अगर कुछ ऐसा है जिसके लिए तुम्हें बहुत यत्न करना पड़ रहा है, तो साफ़ समझ लो कि शायद वो तुम्हें मिलना ही नहीं चाहिए। यहाँ हम लोग बैठे हुए हैं, हम में से कई लोग किसी लक्ष्य की तरफ़ बहुत कोशिश कर रहे होंगे, कमर कस रहे होंगे, मेहनत कर रहे होंगे। और कई बार वो पाएँगे कि उन्हें वो मिल नहीं रहा है, बहुत कोशिश करके भी मिल नहीं रहा है। व्यर्थ ही ऊर्जा मत गंवाओ, व्यर्थ ही मन ख़राब न करो, शायद वो तुम्हें मिलना चाहिए ही नहीं। छोड़ दो। क्या ज़रूरत है? एक सीमा के बाद जो हो नहीं रहा हो, उसके होने का प्रयास करना नहीं चाहिए।

“अनहोनी होनी नहीं, होनी होए सो होए।”

इस सीमा को जानना ही विवेक है। कोशिश करो पर एक सीमा तक ही करो, उसके बाद भी अगर कुछ नहीं हो रहा हो तो शायद अस्तित्व की यही मर्ज़ी है, उसे मान लो। न दुखी हो, और न छटपटाओ, उसके आगे तुम्हें सिर्फ़ तड़प ही मिलनी है। असंभवों को परिणीत कर देना चाहते हो, वो होगा नहीं। तुम विपरीत प्रवाह बहाना चाहते हो, ऐसा होगा नहीं। उन मौकों पर थोड़ा बुरा लगेगा कि- मैं जो चाहता था वो हुआ नहीं।

जब बुरा लगे तब अपने मन से बात करना, उससे कहना कि तुझसे ज़्यादा बड़ी मर्ज़ी किसी और की है, और वो तेरा बड़ा हितैषी है, अच्छा हुआ कि तू जो चाहता था वो हुआ नहीं। “भला हुआ मेरी गगरी फूटी, अब मैं पनिया भरन से छूटी”। तुम्हारी मर्ज़ी के अनुसार हो जाए बहुत बढ़िया, तुम्हारी मर्ज़ी के अनुसार न हो तो उससे भी बढ़िया। समझ रहे हो बात को?

“माँगो और मिलेगा; खटखटाओ और दरवाज़ा खुलेगा; ढूँढो और मिलेगा *(आस्क एंड इट शैल बी गिवन; नौक एंड द डोर शैल बी ओपन; सीक एंड यू शैल फाइंड)*” इसमें यहाँ कहीं पर भी नहीं कहा गया है कि माँगते रहो, या ढूँढ़ते रहो। माँगो, बात सहज है, सरल है। कमरतोड़ मेहनत करने की बात नहीं हो रही है, पचास साल तक साधना करने की बात नहीं हो रही है। सहज भाव से बच्चे की तरह माँ से एक हो जाने की बात हो रही है। और माँ पर थोड़ी श्रद्धा रखने की बात हो रही है।

मैं दोहरा रहा हूँ इस बात को- अगर तुम पाते हो कि कुछ माँग रहे हो और वो मिल नहीं रहा, तो यह जान लो उसका माँगा जाना ही उचित नहीं था। नहीं तो तुम बहुत बड़ा कुतर्क कर सकते हो कि- मैं तो कब से माँग रहा हूँ कि अचानक से मेरे घर में कोई दो करोड़ रुपये कोई रख जाये, ऐसा तो कोई रख कर नहीं जा रहा, पर जीसस तो बोल गए हैं, “माँगो, और मिलेगा,” ऐसा तो होता नहीं दिख रहा। नहीं, जब कहा गया है, “माँगो, और मिलेगा,” तो उसमें यह मान कर कहा गया है कि तुम बच्चे की तरह, निर्मल मन से, आत्मीयता से माँगो। तुम्हारी भ्रष्ट कामनाओं के लिए नहीं कहा गया है।

कौन-सी कामना भ्रष्ट है वो समझ लो। जिस कमाना की पूर्ति में बड़ा श्रम लगे, वही कामना अनुचित है। यह बात हमारी रोज़मर्रा की व्यवहारिक बुद्धि के विपरीत जाती है, क्योंकि हमें सिखाया यह गया है, “अपनी कामना को पूरा करने के लिए धरती-आसमान एक कर दो, पहाड़ों को चीर दो, उनके बीच से रास्ता बना दो,” और ऐसी ही कहानियों को सुनकर हमारा बचपन बीता है। ऐसे लोगों की हम बड़ी पूजा करते हैं, उन्हें परम पुरुषार्थी मानते हैं। लेकिन अस्तित्व का सत्य कुछ और है।

अस्तित्व कहता है, “जो तुम्हें वास्तव में चाहिए उसके लिए बहुत श्रम की, बहुत आवश्यकताओं की जरूरत नहीं है। ‘माँगो और मिलेगा’, श्रम तो तुम फ़िज़ूल किये जाते हो।” तुम अपने चारों ओर देखो, पानी को देखो, सूरज को देखो, इन पेड़ों को देखो, इन छोटे-छोटे पौधों को देखो, इनमें से कौन तुमको श्रमिक वर्ग का लग रहा है? कौन ऐसा लग रहा है जो खून-पसीना एक करता है? कौन? तुम इनकी शक्लें देखो। क्या ऐसा लग रहा है कि शाम के पाँच बजे हैं, और ये अपने दफ़्तर से लौट कर आए हैं, और थके हुए हैं?

अस्तित्व में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे इतना कर्ताभाव दिखाना पड़ता हो | देखो, इन्हें तो माँगना भी नहीं पड़ रहा और इन्हें मिल रहा है। माँगते भी नहीं हैं, इतनी आत्मीयता है कि माँगते भी नहीं और मिल भी जाता है। और हम ऐसे भिखारी हैं कि जीवन भर माँगते ही रहते हैं, और फ़िर भी भी यदा-कदा ही मिलता है। और जब यदा-कदा मिलता है तो हम उसका बड़ा उत्सव मनाते हैं। हम कहते हैं, “आज सफलता मिली है, हमारी सफलताओं का महत्व ही इसलिए है क्योंकि हज़ार बार यत्न करते हैं, और एक बार सफल होते हैं।

बड़ा अजीब मन है हमारा। वो कहता है, “हज़ार बार कोशिश की और एक बार वो चीज़ मिली, तो वो चीज़ बड़ी अद्भुत होगी, बड़ी कीमती होगी। हम यह देख ही नहीं पाते कि जब हज़ार बार कोशिश करके एक बार मिलती है, तो शायद वो कोशिशें ही व्यर्थ थीं। क्यों यह कोशिश की? यह जो एक बार का मिलना था, यह बस संयोग भर हो गया, वरना नियम तो यही है कि नहीं मिलता। तुम हज़ार बार कुछ करो और नौसौ निन्यावें बार न मिले, तो नियम क्या है? कि नहीं मिलेगा। और अपवाद क्या है? कि मिल गया। पर जो अपवाद है उसका हम उत्सव मनाते हैं, और जो नियम है उसको हम अनदेखा कर जाते हैं। अस्तित्व के नियमों के विपरीत जी कर तुम्हें कौन-सा आनंद मिल जाना है?

कबीर ने कहा है:

सहज मिले सो दूध है मांग मिले सो पानी। कहें कबीर सो रक्त है जामें खींचा तानी।।

जीसस भी वही बात कह रहे हैं। जो सहजता से मिल गया वो खीर और जो खींचा-तानी मिला वो रक्त। एक भूल कभी मत कर देना, संघर्ष के संस्कार अपने छात्रों में कभी मत डाल देना। यह उन्हें मत बता देना कि हज़ार बार हारो फिर भी लगे रहो। उनसे यह कहो, “तुम मज़े में खेल रहे थे, वही जीत है तुम्हारी।”

“जब मज़े में खेल रहे होते हो, वही जीत होती है। आगे के परिणाम की परवाह क्यों करते हो?”

– ‘बोध-सत्र’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

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