प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी। आईपीसीसी की सिंथेसिस रिपोर्ट आई है। और रिपोर्ट यह कहती है कि 2030 तक जो वैश्विक ग्रीन हाउस गैस है उसको 50% तक कम कर देना है और 2050 तक 100% कम कर देना है। तो चिंता जो भारत की एक है कि भारत जो अपना एनडीसी है यह तो 2017 तक किया है कि हमको मतलब 100% शून्य करना है और 2050 तक इसको 50% कम करना है। तो अभी एशिया की जो सबसे ह्यूज पॉपुलेशन है वो है भारत की और चाइना की, प्लस जो 3 अरब के मतलब वो है और 28% पूरे ग्लोब पे इनका मतलब अधिकार है। तो यह जो आईपीसीसी की जो रिपोर्ट है यह तो मतलब सबको जानना चाहिए।
आचार्य प्रशांत: जानना तो चाहिए पर आप समझ रहे हो ना?
तो आंकड़े आपस में मेल ही नहीं खा रहे।
प्रश्नकर्ता: तो सर मेरी चिंता ये है कि आईपीसीसी से कहती है कि 2050 तक आपको शून्य कर देना है।
आचार्य प्रशांत: कैसे? हो ही नहीं सकता ना।
प्रश्नकर्ता: तो जो गवर्नमेंट ये कह रही है कि मतलब
आचार्य प्रशांत: 2070 तक यह तो हो नहीं सकता
प्रश्नकर्ता: यह 2050 तक भी जो भारत का ग्रीन हाउस गैस है कोयला से 50% यह बिजली बनाएंगे
आचार्य प्रशांत: बिलकुल
प्रश्नकर्ता: तो अब जो पॉपुलेशन की बात किए हैं तो मेरे लिए मतलब मेरे पास एक मॉडल है। मेरा जो इंडिविजुअल मैं सोचता हूं हम शादी करेंगे लेकिन हम जिस लड़की के साथ रहेंगे, हम लोग एक मतलब एनवायरमेंट को बचाने के लिए काम करें, ना कि हम लोग बच्चा पैदा करेंगे तो उसके लिए तर्क क्या देते हैं लोग कि ऐसा कोई कुछ ऐसा कोई नहीं कर सकता, ऐसा कौन करता है ऐसा मतलब जो करेगा तो उसको बुढ़ापे में सिक्योरिटी कैसे मिलेगी वह कैसे सर्वाइव कर पाएगा?
आचार्य प्रशांत: हम बुढ़ापे तक पहुंचने वाले हैं? हम किस मुगालते में हैं? हमें नहीं कुछ समझ में आ रहा।
प्रश्नकर्ता: सर जो आईपीसी की रिपोर्ट है आपकी संस्था के माध्यम से जितने लोग आपको सुनते हैं YouTube पे टोटल तीन से चार करोड़ लोग हैं तो उनको तो कंप्लीट फॉलो करना चाहिए।
आचार्य प्रशांत: ये बहुत अच्छा विचार है जो आईपीसीसी की पूरी रिपोर्ट ही है। हम उसी पर एक चर्चा रख लेते हैं। उसको प्रकाशित कर देंगे। ये अच्छा है। अभी भी आप कहीं पढ़ोगे तो कि कितना बढ़ गया है तापमान तो 1.17 डिग्री का आपको आंकड़ा मिलेगा। वो झूठा आंकड़ा है। वो झूठा आंकड़ा है।
प्रश्नकर्ता: ये जो अंतरराष्ट्रीय यूएसए चाहे यूरोपियन कंट्री है तो उसको दबा रही हैं।
आचार्य प्रशांत: डेढ़ 1.5 तो पहले ही हो चुका है।
प्रश्नकर्ता: 1.7 क्रॉस कर जाएगा 2030 के बाद ही।
आचार्य प्रशांत: और जो 2023 था उसमें दो डिग्री था। उसको कह दिया एक्सेप्शन है। तो इसमें पूरा चर्चा करके उसको कर देंगे। अच्छा अच्छा आईडिया है।
प्रश्नकर्ता: थैंक यू सर।
आचार्य प्रशांत: आप थोड़ा सा ना मैं जो बोल रहा हूं उसको अलग करके एक बार आप खुद ही सोचिए कि वैश्विक तापमान हमारे ही जीवन काल में 50 साल बाद नहीं उसे बहुत पहले होगा। मैं 10-20 साल का समय देता हूं। अगर 4-5 डिग्री औसतन अभी जितना है उससे ऊपर है तो उससे क्या-क्या होगा? आप सोचो।
बात यह नहीं है कि मैं मेरा पड़ोसी मेरा देश मेरा धर्म, मेरे स्वार्थ, मेरा सरोकार इसका क्या होना है? मेरा घर इसका क्या होना है? हम हम समझ रहे हैं क्या बात कर रहे? हम कह रहे हैं ग्रह। इस पूरे ग्रह पर ही क्या बचेगा? आप बताओ तो? और आप बच भी गए क्योंकि आपके पास ताकत है, पैसा सामर्थ्य है, घर है, एयर कंडीशनर है। तो आपने सोचा कि सबसे ज्यादा मरेगा कौन? इंसानों में भी वो मरेगा जो सबसे गरीब है। और वो इतनी तादाद में मरेंगे कि लाशें गिनना मुश्किल है। और जो गरीबों में गरीब होते हैं हमारे पशुपक्षी उनका क्या बोले? वो मरेंगे नहीं। वो विलुप्त हमेशा के लिए एक्सटिंक्ट यह बात है। और यह हम अपनी आंखों से देखने जा रहे हैं और हम इस बारे में ना सोचते ना कुछ करते।
हवा महल हम बनाते रहते हैं कि ये वो फलानी बात। एक था वो बोला कि बड़ी बढ़िया बात है फलानी मेरी नौकरी लग गई। चार पांच साल उसने कोशिश की लग गई। मैंने कहा क्या क्या बात है। क्यों? इतने खुश किस बात पर? उसने कई बातें बताई जिसमें एक महत्वपूर्ण चीज थी पेंशन। मैंने कहा तू बचेगा तब तक पेंशन लेने के लिए? पेंशन देने वाले बचेंगे? यह व्यवस्था बचेगी? तुम किस गलतफहमी में हो? उसकी जो वह आसन्न है, सामने है। यह हम नहीं समझ पा रहे हैं कि कितना सामने है। हमें लगा अभी भी लग रहा है कि एक आध दो पीढ़ी बाद की बात है।
अभी मालदीव के साथ हुआ। अब वो एक तरह का ब्लैक ह्यूमर हो गया। तो एक मेरे बैच के लोग वो सब बात कर रहे थे, मालदीव ने बड़ा बुरा करा, ऐसा बोल दिया, वैसा बोल दिया चीन की तरफ जा रहा है। हमें इनका यह कर देना चाहिए। हमें उनका वो कर देना चाहिए। मैं आमतौर पे कुछ बोलता नहीं हूं। पर इस किस्म की वहां नादानी बिखरी हुई थी मालदीव को लेके। मैंने कहा बेटा ये जो मालदीव है ना इसका जो इसका जो सबसे ऊंचा बिंदु है इन सारे ग्रुप ऑफ आइलैंड्स है वो। उसमें जो सबसे ऊंची जगह है वो भी समुद्र तल से इतनी सी ऊंची है बस। हां हां इतनी सी है बोल रहे तुम क्या उनके पीछे पड़े हो बेचारे तो खुद ही नहीं बचने वाले जरा सा जलस्तर उठेगा और कुछ भी नहीं बचेगा मालदीव में वो इतनी भयानक नाजुक हालत में है। और तुम क्या ऐसे जो लोग खुद ही एक मरणासन स्थिति में है तुम क्या उनके पीछे पड़ रहे हो? पर शायद वह लोग भी नहीं समझते हो किस हालत में है ना आप समझ रहे हो किस हालत में है।
जैसे आप बोलते हो ना कि आपसे कोई पूछे आपके देश का सबसे ऊंचा क्या बिंदु है तो आप किसी पहाड़ की चोटी पे चले जाओगे। है ना? आप बोलोगे 8000 फीट यही हम करते हैं ना? मालदीव में जो सबसे ऊंची जगह है ये अगर समुद्र तल है इतना कुछ इंच ऊपर, सिर्फ कुछ ये सबसे ऊंच अच्छी जगह, बताओ वहां क्या बचने वाला है? ये हमारे चेन्नई और ये हमारा मुंबई हमें समझ में ही नहीं आ रही बात।
और यह नहीं कि गर्मी हो जानी है। पूरे वायुमंडल में एनर्जी बढ़ जानी है और वह बढ़ी हुई एनर्जी न जाने कितने तरीकों से हम पर ही बरसने वाली है। बारिश होगी तो फिर ऐसी होगी कि रुकेगी नहीं। उस एनर्जी से जब तूफान आएंगे तो ऐसे होंगे कि बहु मंजिला इमारतें धराशाई हो जाए। हीट एनर्जी होती है एनर्जी। आप जब हीट बढ़ा रहे हो तो हीट तो ना जाने कितने तरीकों से अपना काम करेगी ना एनर्जी। और जो जिनको नहीं समझ में आती हो गंभीर बातें उनसे बोलता हूं, क्रिकेट का खेल समाप्त हो जाएगा क्योंकि वो इंडोर नहीं खेला जा सकता। टेनिस आदि बचे रहेंगे बैडमिंटन बचा रहेगा टीटी बचा रहेगा स्विमिंग ये फिर भी बच जाएंगे क्योंकि इंडोर हो सकते हैं क्रिकेट नहीं हो सकता खासकर टेस्ट क्रिकेट समाप्त हो जाएगा।
पांच दिन ऐसे मिलना जब मौसम शांत रहे असंभव हो जाएगा। मिलेगा ही नहीं। खेल लो टेस्ट क्रिकेट। और ये एकदम ट्रिविया बता रहा हूं। यह कोई सबसे गंभीर बात नहीं है। ये ट्रिविया है क्लाइमेट चेंज के बारे में। पर वो ट्रिविया भी ऐसा है कि एक खेल ही समाप्त हो जाने वाला है। यह आपकी बिजली की ट्रांसमिशन लाइन से ही काम करना बंद कर देंगी। या आपके एयर कंडीशनर सारे काम करना बंद कर देंगे। आपकी गाड़ियां खड़ी हैं। आप उनमें घुस नहीं सकते। गाड़ी खड़ी है पर आप कहीं जा नहीं सकते। आप घुस ही नहीं सकते उसमें। आप उसके पास ही नहीं पहुंच सकते। वो अभी गाड़ी नहीं है वो क्या बन गई? 50-52 डिग्री। और गाड़ी के अंदर फिर अलग होता है ग्रीन हाउस इफेक्ट।
अच्छा मौसम बदलता है तो बीमार पड़ते हो ना आप? जो तापमान बढ़ेगा वह अधिकांशत दिन का बढ़ेगा रात का नहीं। तो हर दिन ऐसा होगा जैसे मौसम बदल रहा है 3:00 बजे आप ऐसे हो रहे होंगे कि ए-सी भी काम नहीं कर रहा है और 9:00 बजते-बचते ठंड सी आ गई है। आप रोज बीमार पड़ोगे। कितने ही सारे ऐसे बैक्टीरिया हैं वायरस हैं जिनको हम जानते ही नहीं क्योंकि वो डोरेंट पड़े हैं क्योंकि उनको उतना तापमान नहीं मिल रहा है जिस तापमान पे वो एक्टिव हो सकें। यह तापमान बढ़ते ही वो सक्रिय हो जाएंगे और हम उनको जानते नहीं हमने उनके खिलाफ कोई दवाई आज तक बनाई ही नहीं है। हमारे पास उनके विरुद्ध ना इम्यूनिटी है ना वैक्सीन ना दवाई। यह सब सक्रिय हो जाने हैं। एक कोविड नहीं हजार कोविड बरसने हैं।
जंगल बायोडायवर्सिटी का केंद्र होते हैं। इतना तो हम समझते हैं। आप जब जंगल काटोगे तो वहां जो जिस दिशा में भाग सकता है भागेगा, ये भी समझते हो। ज्यादातर कहीं कोई भागेंगे बचेंगे नहीं। अब हिरण कहां को जाके बचेगा? वो मरेगा। हाथी कहां जाएगा? मरेगा। पर जंगल में कुछ ऐसे हैं जो नहीं मरेंगे बल्कि वो खुश हो जाएंगे कि जंगल कट गया। वो कौन है जानते हो? वो वायरस हैं। जो करोड़ों सालों से जंगलों में रहते हैं। वो चाहते नहीं जंगल में रहना पर उन्हें कोई मिल नहीं रहा है नया होस्ट। वो जिसके शरीर को कॉलोनाइज कर सके। आप जंगल काटोगे पेड़ नहीं रहा तो उनको नया होस्ट मिल गया। कौन? जंगल काटने वाला। वो पहले पेड़ में रहता था या कहीं और रहता था वो आप में रहेगा।
जो नोवेल कोरोना वायरस था वो भी ऐसे ही आया था। वो भी ऐसा नहीं कि पूरे तरीके से चीन ने उसको लैब में ही तैयार करा था। वो पहले से था। कहां था? वो जंगल में गुफा में रहता था। कोई उसको छेड़ने वाला नहीं था। वो चमगादड़ में रहता था। कोई उसे छेड़ने वाला नहीं था। हम उस गुफा में घुस गए। हम चमगादड़ को ले आए। हमने उसे इंसानों में डाल दिया।
प्रश्नकर्ता: और जो पुराने पुराने जो अभी वायरस विलुप्त हो चुके हैं वो भी
आचार्य प्रशांत: बिल्कुल वापस आएंगे क्योंकि वायरस जो है वो स्ट्रिक्टली एक एक लिविंग ऑर्गेनिज्म नहीं होता है। वो 50-50 जैसा होता है। केमिकल मान सकते हो उसको आधा। तो वो कोई भी लिविंग चीज जो होती है ना उसकी एक उम्र होती है। उस उम्र के बाद वो मर जाती है। वायरस स्टोर हो सकता है एक केमिकल की तरह। करोड़ों सालों तक स्टर्ड रह सकता है। वो स्टर्ड है ग्लेशियर्स के नीचे और बहुत और जगहों पर बर्फ पिघलेगी वो सब वहां से निकल निकल के आएंगे। वो स्टर्ड पड़े हुए हैं वहां पर और वहां कभी बर्फ पिघली नहीं थी तो कभी बाहर आए नहीं थे। वो चुपचाप वहां पड़े हुए थे डोरेंट अब अब आएंगे।
एक वायरस ने पूरी दुनिया हिला दी दो साल तक। ऐसे कितने निकलने हैं और हमारी करतूतों से फिर कर लेना भोग विलास कि खुशी मना रहे हैं। हम तो कंजमशन के लिए ही पैदा हुए हैं। कोविड बीमारी भी जो हुई थी वो कोई चली थोड़ी गई है। क्या आपके वायरल लोड अब नहीं है पर बीमारी है। ये दो अलग-अलग बातें होती हैं। जिस किसी को भी एक बार हुआ था उसको कम से कम 5-10% संभावना है कि वह अभी भी बीमार है। पर वो ऐसे तरीकों से बीमार है कि बीमारी अभी पता नहीं चल रही है।
दिल पर प्रभाव पड़ रहा है उसका। कई और तरीके से कुछ प्रभाव वायरस का बचा हुआ है। कुछ प्रभाव उस वैक्सीन का भी बचा हुआ है। इन दोनों का ही प्रभाव बचा हुआ है। हम कितने मूर्ख जैसे लगेंगे ना जब यह सब हो रहा होगा क्योंकि हमने करा है। हम अपनी करनी भुगत रहे होंगे।
जीडीपी जीडीपी करते हो। थोड़ा पढ़ लेना कि अगर सिर्फ जीडीपी की भी बात करो तो जीडीपी पे कितने प्रतिशत का असर पड़ेगा। भारत का जीडीपी 35% गिरेगा सिर्फ क्लाइमेट चेंज से। जो क्लाइमेट चेंज की कॉस्ट है प्रतिवर्ष की दैट्स इक्विवेलेंट टू 35% ऑफ इंडियास जीडीपी। बढ़ा लो जीडीपी। आपके सिस्टम्स बने ही नहीं है इतनी एनर्जी झेलने के लिए ना तो शरीर के सिस्टम्स, ना समाज के सिस्टम्स ना आपकी जो टेक्नोलॉजी के सिस्टम्स हैं कुछ भी नहीं बना इतनी गर्मी झेलने को।
आपकी गाड़ियों के टायर भी नहीं बने हैं। पिघलते टायर देखे हैं कभी? चला लो गाड़ी। ये जो एक्सप्रेसवे है सीमेंट से बना है। इस पर दुर्घटनाओं का एक बड़ा कारण यह होता है कि टायर फट जाता है। वो टायर क्यों फट जाता है? हीट से। क्योंकि वो टायर बना नहीं है। सीमेंट की सरफेस पर ज्यादा देर के लिए उतनी गति झेलने को। एक्सप्रेसवे पर ज्यादा देर तक आप एक हाई स्पीड सस्टेन कर पाते हो। टायर फट जाता है। ये काम करती है हीट। आपका जो ब्लड प्रेशर है ना, ब्लड प्रेशर आप अच्छे तरीके से जानते हो कि कोई भी सिस्टम हो उसके भीतर का प्रेशर कई वेरिएबल्स पर डिपेंड करता है जिसमें एक इंपॉर्टेंट वेरिएबल क्या होता है? टेंपरेचर। PV = NRT इतना तो याद होगा बहुत पुरानी बात।
टेंपरेचर बदलेगा तो प्रेशर उतना ही रहेगा? और यह प्रेशर बदलेगा तो इसका क्या होगा? आपको पता है आपकी आंख के भीतर भी प्रेशर होता है आप जानते हो? और आंख का प्रेशर भी अगर बढ़ जाए तो बीमारियां होती हैं। यह प्रेशर भी टेंपरेचर डिपेंडेंट होता है। थोड़ा बहुत टेंपरेचर बढ़ गया, थोड़ी देर को बढ़ गया, फर्क नहीं पड़ता। पर अगर वो लगातार बढ़ा हुआ ही है सालों तक और बढ़ता ही जा रहा है, तो आपको लग रहा है यह आंखें काम करेंगी? और ठंडे देशों में इस चीज का उतना फर्क नहीं पड़ेगा। जहां 10° तापमान होता था, वहां 14° हो गया, 10°-14° दोनों झेले जा सकते हैं। भारत का क्या होगा? जहां 48° पहले ही रहता था, जब वहां 52 हो जाएगा, तो कैसे झेलोगे? और सिर्फ गर्म नहीं होता है।
और सुनिए, गल्फ स्ट्रीम का नाम सुना है? गल्फ स्ट्रीम वो ओशन करंट है, हॉट करंट है, वार्म करंट है जिसकी वजह से ब्रिटेन जी पाता है जाड़ों में। वो ब्रिटेन के कोस्टल इलाकों को गर्म रखती है। और जो पूरा नेवल ट्रैफिक होता है उसको भी वो अलऊ करती है, नहीं तो पोर्ट्स पर ही बर्फ जम जाएगी। जितना ट्रेड होता है जितनी शिपिंग होती है वो हो नहीं पाएगी। गल्फ स्ट्रीम से होती है। ग्लोबल वार्मिंग से। अभी मैंने बोल दिया कि ठंडे देशों में 10 से 14 हो जाएगा। उल्टा भी होता है। ये जो नॉर्दर्न यूरोप के देश हैं ये और ठंडे होने वाले हैं। आप गर्म हो के मरोगे और ठंडे होकर मरेंगे। गल्फ स्ट्रीम मर रही है। गल्फ स्ट्रीम मर रही है। गल्फ स्ट्रीम गर्म पानी लेकर के जाती है। अमेरिका की तरफ से अक्रॉस द अटलांटिक नॉर्दर्न यूरोप की तरफ। वो मर रही है क्लाइमेट चेंज की वजह से तो नॉर्दन यूरोप और ठंडा होने वाला है। आप और गर्म होने वाले हो। जिओगे कैसे? बहुत साधारण से आंकड़े होते हैं। भरतपुर यहां पास में ही है। हर साल माइग्रेटरी बर्ड्स की संख्या में क्या हो रहा है? थोड़ा पढ़िए तो सही। और भरतपुर पास है। यहां अपना एनसीआर में अपना भी तो है सूरजपुर। पढ़िए कि वहां क्या बचा?
बच्चों को लेकर के तो हम इतने ज्यादा ममतामई रहते हैं और अपने बच्चों को यह दुनिया छोड़ के जाओगे? आप चले जाओगे वह बच्चा वो कहेगा मुझे क्यों पैदा करा है? वो जवाब मांगेगा भाई। और दुनिया भर के बच्चों के प्रति हम जवाबदेह हैं दुनिया भर के बच्चों के प्रति तो हमें कुछ करना होगा।