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जीसस की अनोखी कहानी || आचार्य प्रशांत (2016)

Acharya Prashant

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जीसस की अनोखी कहानी || आचार्य प्रशांत (2016)

आचार्य प्रशांत: जीसस एक जवान आदमी है। एक साधारण से घर में पैदा हुआ है, पेशे से गरेड़िया है; और वास्तव में जवान है। और एक जवान आदमी की सारी आग मौजूद है उसमें।

उत्श्रृंखल-उन्मुक्त घूमता है, छोटी-सी उसकी एक टोली है। इधर-उधर, सड़कों पर घूम-घूम के बजा रहा है लोगों की! जो बात जैसी दिखती है जस-का-तस वैसा बोल देता है।

जो भौतिक, पार्थिव बाप है उसका, उसको लेकर बहुत मज़ा नहीं है उसको, इसलिए कह देता है, “हम तो ‘उसके’ (परमात्मा के) बेटे हैं। कौन इन बापू जी से अपनी पहचान बाँधे! यह पसंद ही नहीं आते हमें! इस जहाँ के हैं ही नहीं हम, क्योंकि इस जहाँ का तो हम जिसको भी देखते हैं, बेड़ियों में जकड़ा हुआ ही देखते हैं। तो यहाँ के नहीं, कहीं और के हैं हम। हम पर नियम-कायदे मत थोपने आना।”

अपनी बात कहनी है उसे। पाँच लोग मिले तो पाँच ही सही, जाकर बैठ जाता है एक टीले पर, और दस-बीस इकट्ठा हो गए तो उनसे भी बोल दिया। जो प्रचलित यहूदी धर्म है, उसको बहुत अहमियत नहीं देता।

यहूदियों के कमांडमेंट्स होते हैं। ‘कमांडमेंट्स’ माने अनुदेश; दस प्रमुख अनुदेश हैं। उनका पालन हीं नही करता।पालन क्या नहीं करता, उनकी धज्जियाँ ही उड़ा देता है। कहता है, “छोड़ो ये पुरानी बातें हैं, मैं नई बताता हूँ। तुम कहाँ पुरानी किताब के चक्कर में पड़े हो, ‘ओल्ड टेस्टामेंट’। हम नई किताब देते हैं, जिसमें पुरानी किताब से आगे बढ़कर कुछ है।”

तो जीसस का जीवन समझ लीजिए नई किताब लिखने में है। जीसस को एक लेखक मान लीजिए, जो कभी लिखता नहीं है; उसका जीवन ही किताब है, उसका बोलना ही किताब है। और वो शुरुआत भी यहीं से करता है कि – “पुरानी किताब ऐसा बोलती थी, पर हम तुम्हें उससे आगे की कुछ बात बताते हैं।”

इसीलिए तो यहूदी उससे चिढ़ते थे।

जीसस कहते कि पुरानी किताब में लिखा है कि अगर कोई तुम्हारी एक आँख फोड़े, तो तुम भी पलट के बदला लो। मैं तुमसे कुछ और कहना चाहता हूँ – “क्षमा उसके आगे की बात है।” फिर वो ये भी कहता है कि – “मैं पुरानी किताब का विरोध करने नहीं आया, मैं पुरानी किताब को आगे बढ़ाने आया हूँ। मुझे पुराने पैगम्बरों से कोई शत्रुता नहीं है, मैं तो उन्हीं के अधूरे काम को पूरा कर रहा हूँ।”

जवान है, तो थोड़ा गुस्सैल भी है। और वो जवानी क्या जिसमें थोड़ा गुस्सा न हो!

बुढ़ापे में तो अक्सर आग ठंडी पड़ ही जाती है। और उन लोगों से उसे विशेष सहानुभूति नहीं है जो पैसे वालों के पीछे भागते हैं, तो पूँजी-पतियों की पिटाई लगा देता है। पता है न यहूदियों में बहुत चलता था – ऊँची ब्याज की दरों पर उधार देना, और जब कोई लौटा न पाए तो उसका पूरा माल, घर, सब ज़ब्त कर लेना। तो जो ये ‘*मनी-लैंडर्स*‘ (साहूकार), ‘*मनी-चार्जर्स*‘ कहलाते थे, इनसे जीसस झगड़ा कर लेते थे। और ‘झगड़ा’ माने झगड़ा! उन्हें उपदेश नहीं देते हैं, झगड़ा ही कर आते हैं।

मंदिरों में कुप्रथाएँ चलती थीं। जीसस नहीं कहते थे कि – “मंदिर है, कौन इसकी सत्ता से बैर ले!” मंदिर के भीतर घुस कर फटकारते हैं और पिटाई लगाते हैं।

फिर देखते हैं कि इतना कुछ है करने को, बड़ा अंधेरा फैला हुआ है, तो शहर से बाहर निकल कर आसपास के गाँव में घूमना भी शुरू कर देते हैं। उन्हें और लोग मिलने लगते हैं। और जीसस के साथ ज़्यादातर जवान लोग ही जुड़े। जीसस का प्रभाव कुछ उनपर ऐसा पड़ता था कि – विश्वास से आगे की बात, यकीन न हो। कायाकल्प हो जाए, कुछ-का-कुछ हो जाए इंसान। तो जीसस के साथ बहुत सारे जादू जुड़ने लगे, कथाएँ जुड़ने लगीं।

लज़ारस की कथा है कि मुर्दे को ज़िंदा कर दिया। जिंदा करना सांकेतिक है कि आदमी अपना जीवन ऐसा जी रहा था कि मृतप्राय; कुछ था ही नहीं, काठ, मृतप्राय, पत्थर। जीसस के संपर्क में आकर जी उठा, उसकी आँखों में रोशनी आ गई, उसके चेहरे पर नूर आ गया।

कहीं कोई लड़की मरी हुई थी, जीसस ने उसके माथे पर हाथ रख दिया, वो जिंदा हो गई। फिर जीसस के साथ ऐसी ही कहानियाँ चल निकलती हैं, क्योंकि लोग कहानियों के दीवाने होते हैं। और लोग जुड़ने लगते हैं, बात सुनने लगते हैं।

और एक बात ज़रूर होती थी – जो कोई जीसस को सुनता था, वो सत्ता का, प्रथा का, रस्म का, रिवाज़ का विरोधी हो जाता था। प्रार्थना भी अगर करने को कहते हैं जीसस, कहते हैं कि – “प्रार्थना करना, मगर मूर्खता में शब्द मत दोहराते रह जाना। ये कौन-सी प्रार्थना है जो तुम करते हो।”

धर्म को आमूल-चूल हिला देते हैं। धर्म की पूरी प्रचलित अवधारणा को हिलाकर रख देते हैं। ईश्वर का जो रूप प्रचलन में आ गया था, वो गिरने लगता है। प्रेम के नए अर्थ, सत्य के नए अर्थ, प्रार्थना के नए अर्थ सामने आने लगते हैं।

सत्ताधीशों के लिए मुसीबत हो जाती है, – “कुछ तो करना पड़ेगा इस आदमी का! बहुत परेशान कर रहा है! ये अगर बोलता रहा, ये अगर घूमता रहा, इसका जादू अगर फैलता रहा, तो हम कहीं के नही रहेंगे!” षडयंत्र करा जाता है, साजिश करी जाती है। जीसस के साथ का ही कोई फूट जाता है, टूट जाता है, वो साजिश का हिस्सा बन जाता है। वो जीसस को बेच देता है।

ऐसा नहीं था कि वो मरना चाहते थे। पर अब मौत सामने आ ही गई है, तो भागना भी कैसा? जीते रहते तो बढ़िया ही रहता, मौज आ रही थी जीने में। पर मर भी गए तो कोई बुराई नहीं, क्योंकि जितना जिए, पूरा जिए।

और हँसते-हँसते जीसस एक दिन सूली चढ़ जाते हैं।

हँस नहीं रहे थे, परेशान हो रहे थे। इंसान ही थे, सूली चढ़ो तो चुभती है भाई! ख़ून निकलता है, दर्द होता है। पुकारते हैं (ऊपर की तरफ़ इंगित करते हुए) “अरे, क्या कर रहे हो यार? लग रही है।” फिर कहते हैं, “ठीक है भाई! जो करना है कर ले। अब यही करवाता है तो यही ठीक।”

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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