जीवन्मुक्त होने की शुरुआत कहाँ से करें? || आचार्य प्रशांत, जीवन्मुक्त गीता पर (2020)

Acharya Prashant

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गर्भध्यानेन पश्यन्ति ज्ञानिनां मन उच्यते। सोऽहं मनो विलीयन्ते जीवन्मक्त: स उच्यते॥

अन्तःध्यान के द्वारा जिसे ज्ञानीजन देख पाते हैं वह “मन” कहा जाता है। उस मन को सोऽहं की भावना में जो विलीन कर देता है, वही जीवनमुक्त है।

~ जीवन्मुक्त गीता श्लोक 13

ऊर्ध्वध्यानेन पश्यन्ति विज्ञानं मन उच्यते। शून्यं लयं च विलयं जीवन्मुक्तः स उच्यते॥

उच्च ध्यान में स्थित होकर जिस चैतन्य का दर्शन योगीजन करते हैं वो ‘मन’ कहा जाता है। उस मन को शुन्य, लय तथा विलय की प्रक्रिया से जो युक्त कर लेता है, वो जीवनमुक्त कहा जाता है।

~ जीवन्मुक्त गीता श्लोक 14

प्रसंग:

  • जीवनमुक्त होने की दिशा में कदम आगे कैसे बढ़ाएं?
  • मन को सोऽहं की भावना में विलीन कैसे करें?
  • बंधन से मुक्ति कैसे मिले?
  • माया क्या है?

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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