जीवन में अगर कई चीज़ें आकर्षित करती हों || आचार्य प्रशांत (2020)

Acharya Prashant

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जीवन में अगर कई चीज़ें आकर्षित करती हों || आचार्य प्रशांत (2020)

आचार्य प्रशांत: पूछते हैं कि युवा हूँ और अपने जीवन में कई अलग-अलग पहलुओं को पाता हूँ। फिर इनके जीवन में वो अलग अलग पहलू क्या है, उसकी छोटी सी सूची दी है। तो एक पहलू है पढ़ाई और कैरियर का। अगला है गर्लफ्रेंड और प्रेम प्रसंगों का। फिर अगला है अध्यात्म का। फिर अगला है फुटबॉल से लगाव का। और फिर एक और है कि संगीत से लगाव है गिटार से प्रेम है।

तो पूछते हैं कि मैं इन सब जीवन के पक्षों को प्रायरॉटाइज़ (प्राथमिकता) नहीं कर पा रहा, क्या कितना ज़रूरी है मुझे समझ नहीं आ रहा है। सन्तों ने कहा है, “एकै साधे सब सधै, सब साधै सब जाय।” मैं क्या साधूँ ? कृपया मुझे प्रायरॉटाइज़ करने का विज्ञान बताइए।

इतने ही नहीं हैं और भी होंगे पहलू। ये जिनको तुम जीवन के पहलू कह रहे हो ये सब इच्छाएँ हैं। है न? पढ़ाई कर लूँ कैरियर बन जाए वो एक तरह की इच्छा है। गर्लफ्रेंड दूसरी तरह की इच्छा है। अध्यात्म की ओर भी तुम्हें एक इच्छा खींचती है, फिर फुटबॉल है, संगीत है, गिटार है, ये सब इच्छाएँ है।

ये जितनी इच्छाएँ हैं सब तुमसे कहती हैं कि हमें पूरा करो और सब आकर्षक लगती हैं, सब लुभाती हैं। सब का वादा है कि पूरा करोगे तो बड़ा आनन्द रहेगा। उसको अपनी भाषा में कह सकते हो कि मज़ा ही आ जाएगा , बिलकुल सन्तुष्टि हो जाएगी, मन भर जाएगा, पेट भर जाएगा। ऐसा ही है न?

इच्छा आशा पर जीती है। आशा में एक धुँधलका होता है। धुँधलका इसलिए होता है क्योंकि बात आगत की है, भविष्य की न ? जिस चीज़ की आशा कर रहे हो, उसका अभी अनुभव तो हुआ नहीं। अनुभव नहीं हुआ तो इसीलिए अभी जानते नहीं हो पूरी तरह कि वो इच्छा पूरी होने पर तुम्हें क्या देगी?

और जब धुँधलका रहता है, अस्पष्टता रहती है, नहीं पता होता कि क्या मिल जाना है इच्छा के पूरे होने से तो फिर जैसे हमको अधिकार मिल जाता है, मौका मिल जाता है कि हम इच्छा की पूर्ति को लेकर के बहुत बड़े-बड़े अनुमान लगा लेते हैं। वो अनुमान अक्सर बड़े निराधार होते हैं। लेकिन रोका तो नहीं जा सकता न आपको यूँही कुछ भी सोच लेने से, सपने खड़े कर लेने से?

वर्तमान में और भविष्य में यही अन्तर होता है। वर्तमान में अनुमान का कोई स्थान नहीं होता न ? जो है सामने है, प्रत्यक्ष है, तथ्य है। आप छुप नहीं सकते। आप भविष्य को लेकर उम्मीद कर सकते हो कि खाना आएगा, बड़ा स्वादिष्ट होगा। और आप आँखें करके बिलकुल सपने सजा सकते हो कि सुस्वादु खाना आ गया है, क्या खुशबू उठ रही है और देखिए कैसा मज़ा आता है। देखिए लार कैसी बहती है।

कुछ मिला नहीं है, इसीलिए लार बह रही है। वो भोजन भी सामने आया नहीं है इसलिए आपको छूट मिल गयी है कि आपने छप्पन भोग सजा लिया है। आपने बहुत बड़ा अपने लिए थाल तैयार कर लिया, सिर्फ़ इसलिए कि आपके सामने अभी आपकी थाली आयी नहीं है।

वर्तमान में यह सहूलियत नहीं रहती। वर्तमान का मतलब होता है कि भैया जो है सो हैं, सामने आ गया है। अब दायें-बायें छुपने की, सपने सजाने की और गोल-मोल करने की कोई अब गुंजाइश नहीं बची। निवाला मुँह के अंदर है, अब सपने नहीं ले सकते कि भोजन स्वादिष्ट है, स्वादिष्ट है या नहीं वो बात अब सामने है। अनुभव में है। हाथ कंगन को आरसी क्या। है न ?

तो बहुत सारी जो इच्छाएँ होती हैं हमारी, आशाएँ होती हैं जिनको यहाँ पर तुम जीवन के पहलू कहकर सम्बोधित कर रहे हो। वह ज़िन्दा ही इसीलिए रह पाती है क्योंकि वह अभी पूरी नहीं हुई। वो ज़िन्दा ही इसलिए रह पाती है क्योंकि उनकी पूर्णता तुमने कहीं भविष्य में स्थापित कर दी है। भविष्य में स्थापित कर दी है तो फिर तो कोई छोटी-मोटी चीज़ भी हो उसको भविष्य में धकेल दो और फिर उसके बारे में तुम कोई मान्यता बना लो। इससे तुम्हें रोका नहीं जा सकता न?

कौन रोक सकता है तुम्हें अगर तुम यहाँ बैठे-बैठे यह दावा कर दो कि कल आसमान से मोती झरेंगे। कल अभी आया नहीं तो बिलकुल सप्रमाण तुमको गलत नहीं ठहराया जा सकता। कल अभी जब आया ही नहीं है। तो तुमको कुछ तर्क दिये जा सकते हैं समझाया जा सकता है कि बात जो तुम कह रहे हो उसके होने की सम्भावना एकदम शून्य बराबर है। लेकिन फिर भी तुम कह सकते हो कि क्या पता हो ही जाए और अगर तुम कह दो कि क्या पता हो ही जाए। तो कोई तुम्हारी बातों को काट नहीं पाएगा, कि आज मैं भले ही गरीब हूँ पर कल आसमान से मोती झरेंगे ठीक है। ऐसी उम्मीद कोई कर सकता है। ऐसा दावा कोई कर सकता है।

तुम एक काम कर लो। अपनी ईमानदारी का सहारा लो। ये तुमने जितने यहाँ पक्ष लिखे हैं, इनको एक-एक करके चलो परखते हैं ईमानदारी के साथ। है न जानना चाहते हो कि इसमें प्रायोरिटी या वरीयता कैसे देनी है।

ऐसे करो कि मान लो कि कोई एक पक्ष उठाया। और कहा अपनेआप से कि ये जो मुझे अधिक-से-अधिक दे सकता है इसने वो दे दिया। ये एक विचार प्रयोग है, ये कल्पना प्रयोग है जो हम कर रहे हैं। ये जो मुझे अधिक-से-अधिक दे सकता है इसने दे दिया। ठीक है? तो भी क्या मिल गया? और अधिक-से-अधिक की कल्पना करना। ठीक है? पर बुद्धि के दायरे में रहते हुए, तर्क के दायरे में रहते हुए। ये नहीं मान लेना है कि कल आसमान से मोती झरेंगे, उतनी दूर मत चले जाना।

तो तुम पूछोगे कि फिर मैं अनुमान कैसे लगाऊँ कि कल इससे क्या मिल सकता है? उदाहरण के लिए पहला ही पक्ष है पढ़ाई, कैरियर , उसके बाद पक्ष है तुम्हारा गर्लफ्रेंड और प्रेम प्रसंग। वर्तमान का सहारा लो। भविष्य तुम्हें क्या दे जाएगा ये बात निश्चित रूप से अप्रत्याशित होती है। उसका अनुमान लगाना कठिन होता है लेकिन फिर भी एक चीज़ का तो सहारा ले सकते हो न क्या?

वो ये है कि जैसा तुम्हारा वर्तमान है। जब तक तुम अपनेआप को बिलकुल ही मिटा न देना चाहते हो, तोड़ न देना चाहते हो, तुम्हारा भविष्य तुम्हारे वर्तमान से बहुत भिन्न नहीं होने वाला। ये बात सीधी-सीधी समझो। तुम एक तरह से चल रहे हो, तुम्हारे पास ऐसा मानने का कोई कारण है क्या कि कल तुम दूसरे तरह से चलने लगोगे?

हाँ, तुम कोई घोर साधना कर रहे हो, कठोर तप कर रहे हो, तुमने अपनेआप को बदलने की शपथ ले ली हो, तुम रोज़ अभ्यास और व्यायाम करते हो तब तो फिर भी थोड़ी सम्भावना है कि कल तुम्हारी चाल बदल जाएगी, अन्यथा आज जैसी चाल है लगभग वैसे ही चाल कल भी रहेगी। ज़बरदस्ती ऐसी आशा क्यों करना कि कल एकदम कुछ अलग हो जाने वाला है। जादू थोड़ी हो जाएगा।

तो पढ़ाई कैरियर तुम्हें भविष्य में अधिक-से-अधिक क्या दे देगा? इसका अनुमान लगाने के लिए वर्तमान का सहारा ले लो। अपनेआप को देख लो। अभी तुम्हें पढ़ाई से और कैरियर से क्या मिल गया है? और अपने आसपास जो लोग हैं, दुनिया हैं उनको देख लो, देखो कि इन्होंने क्या पा लिया है। और जहाँ कहीं भी धुँधलका हो, वहाँ तुम अपनेआप को छूट दे दो कि जो अच्छी-से-अच्छी और मीठी-से-मीठी सम्भावना है, तो तुम उसे ही स्वीकार कर लो।

मान लो कुछ तय नहीं है कि कल तुम्हारे अस्सी प्रतिशत आएँगे अंक या सत्तर प्रतिशत आएँगे। तो भई तुम निस्संदेह अपनेआप को छूट दे लो कि तुम मान लो कि तुम्हारे अस्सी प्रतिशत ही आएँगे । कर लो इतना क्योंकि क्या पता अस्सी प्रतिशत आ ही जाएँ , हम क्यों उस सम्भावना को खारिज करें।

तो अब तुमने बाकी सब चीज़ों को एक तरफ़ रख दिया है, तुम पढ़ाई और कैरियर के बारे में सोच रहे हो। और तुमने अपनेआप को सुविधा दे दी है कल्पना करने की। पढ़ाई और कैरियर तुमको ज़िन्दगी जो कुछ दे सकती थी ज़िन्दगी ने दे दिया।

देख लो कि कहाँ पहुँच गये , देख लो कितना पा लिया। निस्संदेह अच्छा लगेगा, बढ़िया लगेगा ज़िन्दगी ने बहुत कुछ दे दिया है तुमको, पर फिर भी कितना दे दिया है उसमें थोड़ी देर रुको, बात को समझो। मान लो कि पाँच बरस आगे का खयाल कर रहे हो, मान लो दस बरस आगे का खयाल कर रहे हो, कर लो।

इसी तरीके से अगले प्रसंग पर आ जाओ यहाँ तुम कह रहे हो कि गर्लफ्रेंड है और प्रेम इत्यादि के जितने तुम्हारे प्रसंग हैं , वो हैं । अब यहाँ भी यही करो। मान लो कि तुम जो मीठे-से-मीठा खयाल बना सकते हो प्रेमिका को लेकर प्रेम को वो तुम्हारा खयाल यथार्थ में बदल गया, जो कुछ तुम चाहते हो वह हो ही गया।

जो लड़की तुमको पसन्द है वो तुमको मिल गयी । जिसको कुछ भी मिलना कहते हैं सांसारिक भाषा में, विवाह हो गया। तो ये सब जो तुम्हारी ऊँची-से-ऊँची उम्मीद होती हैं प्रेम को ले करके वो पूरी हो गयी। ठीक है? मान लो, अपनेआप को जता लो। अब बताओ कहाँ पहुँचे?

कर लो कल्पना। पाँच साल, सात साल बीत चुके हैं, जो लड़की तुमको बड़ी प्यारी है वो तुम्हें मिल ही गयी है। तुम्हारे घर में तुम्हारी पत्नी बनकर बैठी है और मैं नहीं कह रहा हूँ कि तुम कुछ विपरीत सोचो। तुम कुछ कड़वा-कसैला सोचो। बहुत मीठा-मीठा सोचो एकदम। वो विवाह के बाद और सुन्दर हो गयी है। वो विवाह के बाद और छरहरी हो गयी है।

स्वर्ग-तुल्य है तुम्हारा दाम्पत्य जीवन और जो भी कुछ तुम्हारी आशाएँ , अभिलाषाएँ हैं वो सब पूरी हो रही है। जो कुछ भी तुमने बच्चों वगैरह के बारे में सोचा हो, वो भी मिल गया। पत्नी के साथ इतने मधुर सम्बन्ध हैं कि क्या कहना? कभी कोई झगड़ा, बहस, कलह होती नहीं, जो उससे तुम चाहते हो तुम को प्राप्त हो रहा है।

तुम उसका सान्निध्य चाहते हो वो तुमको मिल रहा है। तुम चाहते हो कि वो समाज में ऊँची नज़रों से देखी जाए, वो भी हो रहा है। तुम चाहते हो कि वह कमाए, वो कमा भी रही है। तुम चाहते हो कि वो तुम्हारे परिवारजनों की इज़्ज़त करे, वो भी हो रहा है। वो तुम्हारी इच्छाएँ रूपों में पूरी कर सकती है वो पूरी कर रही है।

सब मान लो तुम, सारी ऐसी कल्पना कर लो। भाई हम अपनेआप को पूरी छूट देना चाहते हैं ना ऊँची से ऊँची कल्पना करने की तो कर लो। ये सब कर ली कल्पना। ये सब कुछ मिल गया है तुम्हें तुम्हारे प्रेम प्रसंग से और काफ़ी कुछ मिल गया तुम्हें तुम्हारे प्रेम प्रसंग से, तुम्हारी कल्पना में।

अब बताओ क्या मिल गया तुम्हें? और जो तुम्हें मिल गया वो चीज़ें ऐसी हैं जिसके लिए दुनिया मरती हैं। ये चीज़ कि पसन्द की लड़की हासिल हो जाए। हासिल हो जाए, जो भी इसका अर्थ होता है। वो कहते है न , इश्क का कामिल हो जाना। मैंने उसे हासिल कर लिया, वो मेरी हो गयी, वगैरह वगैरह। बेवकूफ़ी की बात है पर दुनिया के लिए यही सपना है तो ठीक है।

तो तुम्हें तुम्हारी पसन्द की लड़की हासिल हो गयी है, तुमने कर लिया उस पर कब्ज़ा। तुम ले आये उसे अपने घर, वो अब है। जो चाहते वो सब मिल रहा है; उससे तन का सुख, मन का सुख। जितनी तुम उसकी फोटो खींचना चाहते हो खींच रहे हो, दुनिया भर में ढिंढोरा पीट रहे हो। अब खाना-वाना भी तुम्हारे लिए बढ़िया बना देती है। जो कुछ भी तुम उससे चाहते हो सब कर रही है तुम्हारे लिए।

भई जो भी तुम्हारी प्रवृत्ति है, जिस भी रूप में तुम स्त्रियों को, महिलाओं को देखते हो, जो कोई तुम्हारी उनसे ले करके तमन्नाएँ होती हैं, वो सब पूरी हो रही है। तुम दोनों विदेशों में भ्रमण कर रहे हो। तुम दोनों किसी जहाज़ पर बिलकुल अकेले अटलांटिक के मध्य तैर रहे हो। जो भी कुछ तुम्हारी फैंटसीज़ (कल्पनाएँ) हो सकती हैं, सब मान लो कि एकदम पूरी हो रही है सब बिलकुल। अप्सरा मिल गयी है और अप्सरा बिलकुल सावित्री है। ठीक है! ऐसी तुम्हारी जो भी फैंटसी हो, सपना हो मान लो पूरा हो गया।

सन्तुष्ट हो? सन्तुष्ट हो तो पूरा कर लो। भई जिस भी रास्ते परम सुख मिलता हो आदमी को उस रास्ते चले जाना चाहिए ना। तुम्हें इस रास्ते अगर परम सुख मिल रहा है तो चले जाओ। तुम्हें नौकरी वाले रास्ते अगर कुछ ऐसा मिल रहा हो जो दिल बिलकुल भर दें तुम्हारा तो नौकरी वाले रास्ते चले जाओ।

सन्तुष्ट हो? इतना मिल जाएगा तो बिलकुल अघा जाओगे, तर जाओगे? बोलो और ये हम किसी छोटी-मोटी उपलब्धि की बात नहीं कर रहे हैं। हम कह रहे हैं , भाई तुम अपनी तमन्नाओं को जितनी ऊँची उड़ान दे सकते हो, दे लो। तुम अपनी कल्पनाओं को जितना विस्तार दे सकते हो, दे लो। दे लिया? और मान लो कि तुम्हारी तमन्ना, कल्पना सब पूरी हो गयी। अब बताओ? कुछ देर को तो बड़ा अच्छा लगेगा, ‘हैं! सब पूरा हो गया बिलकुल, अच्छा है, वैसा है।‘ हाँ सब बिलकुल। बिन्दिया से लेकर बिकिनी तक तुम जो चाहते हो उससे सब पूरा हो गया। अब बताओ। बोलो!

और भूलना नहीं ये हमने इतना ऊँचा सपना करा है जिसके पूरा होने की सम्भावना नगण्य है। पूरा क्या होता है? पूरा वही होता है जो तुम वर्तमान में अपने भीतर देख रहे हो और दुनिया में देख रहे हो। तुम कोई पहले आशिक नहीं टपके हो। दुनिया में प्रेमियों की कमी नहीं। उनमें से बहुतों का विवाह भी हो जाता है अपनी चुनी हुई प्रेमिका से ही। मिला करो न । तथ्य झूठी कल्पना के विरुद्ध एक अच्छी दवा होते हैं।

मान लो तुम कॉलेज में हो और तुमसे दो साल, तीन साल कोई सीनियर आशिक हुआ करते थे। और उनकी आशिकी बिलकुल किंवदन्ती बन गयी थी, जनश्रुति बन गयी थी। हवाओं में उनकी आशिकी के अफ़साने तैरा करते थे कि हा-हा-हा आशिक हो तो भोसले साहब जैसा! जितने नये-नये फ्रेशर आया करते थे कॉलेज में उन सबको भोसले साहब की प्रेम कथा बिलकुल रामायण, महाभारत की तरह चटायी जाती थी कि ये देखो उन्होंने ऐसी आशिकी करी और ऐसा सब कॉलेजों में होता है। सब कॉलेजों में कुछ बिलकुल धुरन्धर पहुँचे हुए आशिक ज़रूर होते हैं। ठीक है?

तुम्हारे लिए अच्छा है अगर तुम को इस तरह के नमूने अपने आसपास उपलब्ध हो तो। अब इतने वो पहुँचे हुए हैं तो वो जो चाहते हैं उसको पूरा भी कर ही लेंगे आमतौर पर। उनकी जाकर देखो कि गृहस्थी कैसी चल रही है। अच्छा रहता है। तो ये जो भोसले सीनियर हैं । इनकी अब शादी हुए तीन वर्ष बीत चुके हैं। जाओ इनके घर जाओ न, थोड़ा देखकर आओ क्या चल रहा है। देख कर आओ।

जो ख्वाब तुम सजा रहे हो वो ख्वाब भोसले साहब के पूरे हो गये । देख के तो आओ क्या चल रहा है। पहली बात तो अगर इनसे तुम तीन-एक साल बाद मिलोगे, भई तुम कॉलेज में रह गयी तुम से 3 साल वरिष्ठ थे ये पास आउट हो गये और अब तुम्हारा भी बाहर निकलने का वक्त आ रहा है। तुम भी सोच रहे हो कि अब करें क्या अपने प्रेम प्रसंग का।

तुम्हें भोसले की याद आयी। चले जाओ, उनके घर चले जाओ, पहली बात तो पहचान नहीं पाओगे भोसले और मिसेज़ भोसले को। एक का कुछ बढ़ चुका होगा, एक का कुछ घट चुका होगा। दीदी का वज़न बीस प्रतिशत बढ़ चुका होगा। और दादा के बाल चालीस प्रतिशत कम हो चुके होंगे। ये सब तीन साल के अन्दर-अन्दर हो जाता है।

पहले जहाँ शेर-ओ-शायरी की महफिलें हुआ करती थी भोसलें के इर्द गिर्द, वहाँ अब वहाँ घुसोगे तो बर्तनों की खनखनाहट और एकाध कोई नुन्नू-पुन्नू पैदा हो गया होगा उसकी मधुर कविता, प्राकृतिक कविता! जाओ तो उनके घर थोड़ा।

पहले घूम रहे होते थे सीनियर साहब तो क्या खुशबूएँ उठा करती थी उनके बदन से। आधा-पौन घंटा तो खुशबू ही चुनने में लगाते रहे होंगे। अभी जाओ देखो कि कैसी-कैसी खुशबूएँ हैं यहाँ पर । रसोई से दो दिन पहले के खाने की खुशबू उठ रही होगी। नुन्नू जगह-जगह अपने स्पर्श से पवित्र करता घूम रहा है, पृथ्वी को पृथ्वी का प्रसाद देता हुआ, उसकी खुशबूएँ उठ रही होंगी! जाओ तो थोड़ा।

ये है तुम्हारे सपनो का यथार्थ। नहीं, तुम बिलकुल कह सकते हो कि ये तो भोसले था, इसलिए ये सब हो गया इसके साथ। मेरे साथ थोड़ी होगा। बेटा, एक बात बताओ। तुम भोसले नहीं हो? दसवी में तुम्हारे कितने प्रतिशत थे? पिचहत्तर। भोसले के कितने थे? छिहत्तर। ठीक। बारहवी में तुम्हारे कितने थे? बहत्तर। भोसले के कितने थे? इकहत्तर। उसके बाद दोनों एक ही कॉलेज में पढ़ने आये । दोनों ने एक समान आशिकी फैलायी । ठीक? दोनों ही एक समान मूरख रहे हो आज तक।

बिलकुल तुम्हारा और भोसले का जो जीवन का ग्राफ है वो समानान्तर चला है। जैसे रेल की पटरी होती है, वैसे तुम्हारा और भोसले का जीवन चला है, दो बिलकुल समानान्तर लकीरें जैसे। जब आज तक तुम्हारा और उसका सब कुछ एक जैसा रहा तो तुमने ये उम्मीद कैसे कर ली कि आगे तुम्हारा और उसका जीवन बिलकुल अलग-अलग हो जाएगा? बताओ मुझे।

जीवन बिलकुल अलग हो सकता है अगर तुम्हारे जीवन में कुछ जादू आ जाए , कोई ज़बरदस्त परिवर्तन आ जाए। पर जादू ऐसे थोड़े ही आता है कि तुम जीवन में एक लड़की उठा कर ले आये तो यही जादू होगा। वो काम तो भोसले ने भी करा है, जादू होना होता तो उसके साथ भी हो गया होता। क्यों नहीं हुआ?

इससे पहले कि तुम ये बोलो कि साहब सबके साथ होता है, मेरे साथ नहीं होगा। मुझे ये तो बता दो कि तुम्हारे पच्चीस साल के जीवन में आज तक तुम्हारे साथ सब कुछ वहीं हुआ है जो दूसरों के साथ हुआ है। ठीक? तुम किसी भी अर्थ में दूसरों से अलग, खास, विशिष्ट नहीं रहे हो। लेकिन भविष्य को लेकर के तुम तुरन्त दावा ठोक देते हो कि नहीं, नहीं, जो दूसरों के साथ हो रहा है, मेरे साथ थोड़ी होगा।

बेटा जितनी बदबू भोसले के जीवन में फैली हुई है न, ठीक उतनी ही तुम्हारे जीवन में फैलेगी। भूलना नहीं, दसवी में तुम्हारे पिचहत्तर आये थे, उसके छिहत्तर आये थे। बारहवी में तुम्हारे सत्तर-बहत्तर आये थे, उसके भी इतने ही आये थे। तुम दोनों एक ही हो, एकदम ही एक हो, एक सी भाषा बोलते हों, एक से विचार रखते हो, एक सी तुम्हारी मान्यताएँ हैं, एक सा खाना तुम्हें पसन्द है और एक सी आशिकी पसारते हो। तुम दोनों बिलकुल एक ही हो ।

तो मिल जाए जो अपने से कोई तीन-चार साल बड़ा हो। उसकी हालत देखकर के करीब-करीब नब्बे प्रतिशत सत्यता के साथ अनुमान लगाया जा सकता है कि बेटा तुम्हारी भी हालत यही होने वाली है। भविष्य तुम्हारा भी ऐसा ही है। कॉलेज में कोई ऐसा न मिले तो घर-परिवार में तो होता ही है ना कोई अपना बड़ा भैया मिल गया है ऐसा। अपना बड़ा भैया नहीं मिला तो कोई चचेरा भाई मिल गया, कोई ममेरा भाई मिल गया।

रिश्तेदारी और किसलिए होती है। रिश्तेदारी इसीलिए होती है कम-से-कम उनकी मूर्खता से तुम सबक ले लो। अब वो तुम्हारे रिश्ते में हैं, रिश्ते में मतलब उनमें और तुम में बहुत कुछ साझा है। ठीक? खानपान साझा होगा। बोलचाल साझी होगी। जिसको तुम कहते हो जाति और रक्त और संस्कार वो भी बहुत कुछ साझे होंगे, होंगे न ? क्योंकि भाई रिश्ते के लोग हो।

जो तुम्हारा बड़ा भाई है, उसकी जो हालत हुई है, वो तुम्हारी क्यों नहीं होगी अगर तुम वही काम करोगे जो तुम्हारे बड़े भैया ने करे हैं? तुम मुझे बता दो। तुम्हारे बड़े भाई ने आशिकी फैलायी और अभी उसका हश्र तुम देख रहे हो और अपने बारे में तुम्हारा खयाल है कि नहीं, नहीं, मेरा मामला तो अलग निकलने वाला है, मैं बड़ा होशियार हूँ। तुमने आज तक ऐसी कौनसी होशियारी दिखाई है जो तुम्हारे बड़े भाई से आगे की थी? ये बता दो।

बल्कि बहुत मामलों में वो तुमसे श्रेष्ठ था, था कि नहीं? या तो वो तुम जैसा ही था या वो तुम से बेहतर था। तुम से बेहतर होते हुए भी आज उसकी दुर्गति देख लो। लेकिन तुम्हारा मानना ये है कि तुम भी वही सब कुछ करोगे जो उसने करा लेकिन तुम बच जाओगे? बच ही नहीं जाओगे, तुमको तो अप्सरा निवास हासिल हो जाएगा। कैसे? कोई वजह है तुम्हारे पास इस तरह की मान्यता रखने की, उम्मीद रखने की? पर हम रखते हैं।

इतिहास किस लिए पढ़ाया जाता है हमको? बोलो। जब इतिहास पढ़ाया जाता है तो ये भी बताया जाता है न कि इतिहास अपनेआप को दोहराता है। इसीलिए पढ़ाया जाता है कि बेटा जो इन सब के साथ हुआ है न आज तक, चाहे वह आज से पाँच हज़ार साल पहले का कोई हो, चाहे पाँच सौ साल पहले का कोई हो या बिलकुल तुम्हारे आसपास का कोई हो तुम से पाँच ही साल बड़ा उन सबके साथ जो कुछ हुआ है, वो तुम्हारे साथ भी होगा क्योंकि आदमी आदमी एक हैं।

हमारी सबकी मूल वृत्ति बिलकुल एक है, जो उसने करा वो बिलकुल तैयार है तुम्हारे साथ भी होने के लिए। जो कुछ भी उसके साथ हुआ वो निश्चित ही तुम्हारे साथ भी होने जा रहा है। किसी गलतफ़हमी में मत रहना। इतिहास तुम्हें इसीलिए पढ़ाया जाता है पर हम सबक लेते नहीं हैं। हमें लगता है इतिहास हमें इसलिए पढ़ाया जा रहा है ताकि हम उनके बारे में कुछ जान जाएं।

बाबा, इतिहास तुम्हें इसलिए बताया जाता है ताकि तुम अपने बारे में कुछ जान जाओ। वो जो हैं तुम से भिन्न थोड़े ही हैं। वो जिनके बारे में तुम इतिहास में पढ़ते हो तुम से अलग थोड़ी हैं। उनकी वृत्तियाँ , उनकी कामनाएँ , आकांक्षाएँ , उनके लालच, उनके डर, सब बिलकुल तुम्हारे ही जैसे थे। अब उनके जीवन की पूरी कहानी तुम्हारे सामने रख दी जाती है कि देखो बेटा इसने ऐसा करा तो ये अंजाम हुआ। फिर ये हुआ, फिर ये हुआ, फिर ये हुआ, फिर ये हुआ और ठीक यही सब कुछ तुम्हारे साथ होने के लिए तैयार खड़ा है। क्योंकि हो तुम भी बिलकुल उसी के जैसे।

हम सीखते नहीं हैं। हमारे भीतर गुरूर रहता है कि दूसरे के साथ जो हुआ है, हमारे साथ थोड़ी होगा। निराधार गुरूर, बेवजह गुरूर। क्यों नहीं होगा बताओ? क्यों नहीं होगा? मुझे बड़ा ताज्जुब होता है जब लोग आते हैं और कहते हैं, ‘मेरे न घर वाले ऐसे हैं,मेरे माँ -बाप हैं ऐसे हैं । ठीक नहीं है, तंग-खयाली हैं। खुले विचार के नहीं है और बड़ी गलतियाँ करते हैं। मैं तो इतना समझाता हूँ पर बिलकुल सीधी-सीधी बात भी मेरे माँ -बाप को समझ में आती नहीं है।’ जवान लोग हैं, इसी तरह की बातें बोलते हैं।

मैं कहता हूँ, ‘पागल! तू समझ ही नहीं रहा तू क्या बोल रहा है। तू ये बोल रहा है कि तू बहुत खतरे में है, खतरे में इसलिए है क्योंकि तू उन्हीं माँ -बाप की औलाद हैं, उन्हीं का अंश है तुझमें। तेरे माँ -बाप अगर इतने अन्धेरे में है, तो निश्चित रूप से अन्धेरा तेरे भीतर भी है, तू समझ ही नहीं रहा बात को। तू इसीलिए नहीं समझ रहा है बात को, क्योंकि तू ये तो कह रहा है कि माँ -बाप नहीं समझते बात को पर तू नहीं समझता इस बात को कि अगर तेरे माँ बाप नहीं समझते बात को तो बहुत सम्भावना है कि तू भी नहीं समझता बात को।’

सामने खड़ा होकर के माँ बाप की बात किये जा रहा है। ठीक वैसे जैसे तेरे माँ -बाप दुनिया भर की बात करते हैं, अपनी बात नहीं करते। तेरे माँ -बाप दुनिया भर की बात करते हैं, अपनी बात नहीं करते न? ठीक उसी तरीके से तू भी अपने माँ -बाप की तो बात कर रहा है, अपनी बात नहीं कर रहा।

जो कुछ तुम अपने आसपास होता देख रहे हो, तुम्हारे आसपास नहीं हो रहा है, वो तुम्हारे भीतर है और वो तुम्हारे साथ भी होने के लिए बिलकुल तैयार हैं, भागो जान बचाओ। तुम अगर अपने उदाहरण के लिए पिताजी में कई तरह के दोष पाते हो तो बाबा वो तुम्हारे पिताजी के दोष थोड़े ही हैं। तुमने अपनी आँखें देखी हैं? पिताजी जैसी हैं। तुमने अपना कद देखा है? पिताजी जैसा है। तुमने अपनी भाषा-बोलचाल देखी है? पिताजी जैसी है।

इतना कुछ हैं तुम्हें उनसे मिला है जैविक तौर पर और संस्कारों के तौर पर तो बहुत कुछ ही मिला है। लगातार उनके साथ रहे हो। पिताजी में तुम इतनी खोट गिना देते हो और भूल जाते हो कि अगर वहाँ है तो तुम में भी तो होंगी। ये तुम बिलकुल भूल जाते हो। दूसरों को देख करके अपना अनुमान लगा लिया करो न । मैं भविष्य की बात कर रहा हूँ। दूसरों के वर्तमान को देखकर अपने भविष्य का अनुमान लगा लिया करो, बिलकुल। जो तुमसे उम्र में बड़े हैं, उनको देखो। और उनको देखकर पता चल जाएगा कि तुम्हारे साथ भविष्य में क्या होने जा रहा है।

लेकिन इसके लिए जैसा मैंने कहा ईमानदारी चाहिए, ईमानदारी नहीं होगी तो तत्काल बोल दोगे कि ये सब तो बेवकूफ़ थे इसलिए फँस । ये मेरे भैया हैं, इन्हें कभी कोई अक्ल ही नहीं थी। ये मेरे पिताजी हैं ये तो ऐसे ही हैं बिलकुल भोन्दू! ये, ये तो भोसले हैं, इनको तो मारा जानता ही था। मैं थोड़ी मारा जाऊँगा । मैं तो होशियार हूँ। देख लेते हैं होशियारी। हाँ।

इतना तुम्हें बता देते हैं कि जितने लोग तुम अपने आसपास दुर्दशा में देख रहे हो वो सब अपनेआप को होशियार ही समझते थे कभी तुम्हारे ही तरह। आ रही बात समझ में? तुम कोई पहले पैदा हुए हो, जिसको गर्लफ्रेंड बहुत लुभाती है? तुम कोई पहले पैदा हुए हो जो पढ़ाई और कैरियर को लेकर के असुरक्षा और महत्वाकांक्षा के बीच झूलता रहता है? बोलो ये सब औरों के साथ भी हुआ है न ? उनकी हालत से सबक लो।

ऐसे ही फिर अध्यात्म। तुमने तीसरी चीज़ लिखी है। अध्यात्ममें भी सोच लो कि अगर पूर्णता पा जाते हो। तो क्या है जो छूट जाएगा? देखो बाकी सब जो तुम्हारे सपने होते हैं, वो पाने के बारे में होते हैं। कुछ पा लिया, कुछ पा लिया। अध्यात्म को ले करके अगर सपना रखोगे तो पाने के बारे में नहीं हो सकता, वो छोड़ने के बारे में होता है। इसीलिए अध्यात्म को लेकर के भविष्य की कल्पना करना मुश्किल काम है।

जो तुम हो वो रहते हुए ये कल्पना कर लो कि तुम्हारे हाथ भर गए, तुम्हारी जेब भर गयी वो तो करी जा सकती है न कल्पना। लेकिन ये कल्पना कैसे करोगे कि कल्पना करने वाला ही बदल गया? अगर कल्पना करने वाला ही बदल गया तो फिर कल्पना का कोई आधार नहीं बचा न । तो अध्यात्म की कल्पना करी नहीं जा सकती।

अध्यात्म हो, आध्यात्मिक हो गये तुम तो भविष्य में कैसे हो जाओगे इसको लेकर के बहुत छवि बनाई नहीं जा सकती। लेकिन फिर भी चलो अब तुम प्रयोग कर रहे हो तो इतना कर लो कि ये सोच लो कि है तुम्हारे भीतर से जो चला जाएगा अगर आध्यात्मिक रहे आए तुम, साधना के प्रति ईमानदार रहे आये तुम। क्या क्या है जो नहीं बचेगा? किन-किन चीज़ों से मुक्त हो जाओगे?

फिर पूछो अपनेआप से, अगर इन सब चीज़ों से मुक्त हो गया तो फिर पाने को और कितना शेष बचेगा? क्या है जो अभी और चाहिए होगा? वो खाका भी खींच लो, देखो कितना आकर्षक लगता है।

वैसे ही पूछ रहे हो फुटबॉल, वैसे ही पूछ रहे हो संगीत। अधिकतम ये सब क्षेत्र तुम्हें क्या दे सकते हैं अपनेआप से पूछ लो। अधिकतम। वो अधिकतम अगर काफ़ी है तुम्हारे जीवन को पूर्णता दे देने के लिए, तुमको अपरिमित तृप्ति दे देने के लिए। तो फिर तुम उस क्षेत्र का बिलकुल चुनाव कर लो, बाकी सब क्षेत्रों को त्याग करके। लेकिन पाओ कि अधिकतम जो भी एक क्षेत्र दे सकता है, वो भी काफ़ी नहीं है तुम्हारे मन को भरने के लिए तो फिर उस क्षेत्र की ओर जा करके क्यों अपनी ऊर्जा, समय खराब करोगे?

बात समझ रहे हो?

अच्छा तरीका है न? तुम ये मत देखो कि व्यावहारिक रूप से क्या सम्भव है किस क्षेत्र में पाना। तुम तो ये देख लो कि अधिकतम क्या सम्भव है किस क्षेत्र में पाना। वो भी अच्छा न लगे तो इसका मतलब है कि वह क्षेत्र फिर तो बिलकुल ही तुम्हारे लिए उपयोगी नहीं रहा। भई वो अधिक-से-अधिक जो दे सकता है वो भी काफ़ी नहीं है तो क्यों जाएँ उधर?

आ रही है बात समझ में?

ऐसे देख लिया करो और जैसा मैंने वार्ता के शुरू में कहा था, ये विधि सिर्फ़ जीवन के इन पाँच-सात पहलुओं पर नहीं लागू होती जिनका उल्लेख यहाँ किया है। कोई भी इच्छा उठती हो तुमको, उससे यही पूछ लिया करो, ‘बता अधिक-से-अधिक क्या देगी? बता अधिक-से-अधिक क्या देगी?’

जो वो अधिक-से-अधिक देगी मान लो कि वो मिल गया। मिल गया, उसके बाद भी मन सूना हैं। तो फिर उस इच्छा को बिलकुल भगा दो। भगाने की वास्तव में ज़रूरत पड़ेगी नहीं, वो खुद ही भाग जाएगी, खुद ही भाग जाएगी।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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