Articles

जीवन क्या है?

Acharya Prashant

4 min
8.5k reads
जीवन क्या है?

प्रश्न: जीवन क्या है?

वक्ता: जीवन का क्या अर्थ है? क्या जीवन का अर्थ यही है- उठना, बैठना, खाना, पीना, चलना, सोना और मर जाना? क्या यही जीवन है, या जीवन कुछ और भी है, इसके अलावा, इसके परे, इससे आगे? समझेंगे इसको|

यह तुम जो कुछ भी कर रहे हो, या जो ये सब दिखाई देता है, भौतिक रूप से, याद रखना एक अच्छा यंत्र भी ये सब कुछ कर सकता है| अगर तुम अपनी भौतिक, जैविक क्रियाओं को ही जीवन समझ रहे हो, तो याद रखना एक ऐसा यंत्र बनाया जा सकता है जो साँस ले|

क्या है साँस लेना? हवा अंदर जाती है और उसकी ऑक्सीजन किन्हीं दूसरे अणु के साथ एक रासायनिक प्रतिक्रिया पैदा करती है, और कुछ बन जाता है| और एक पंप है जो इसको वापस बाहर भेज देता है| ठीक है? तो साँस लेना तो एक यांत्रिक कृत्य हुआ, कोई भी यंत्र कर सकता है| इसी प्रकार तुम जो कुछ भी कर सकते हो, वो कोई रोबॉट भी कर सकता है|

एक अच्छा सुविकसित रोबॉट वो सारे काम कर सकता है, जो हम जीवन भर करते रहते हैं| वो चल सकता है और उसमें भी सोचने की शक्ति लायी जा सकती है| सोच क्या है? तुम्हारे भीतर एक डेटाबेस है, और तुम्हारे भीतर एक प्रोग्राम (कार्य रचना) है| तुम सोचते वही हो जो तुम्हारे पुराने अनुभवों में शामिल है, नया तो तुम सोच भी नहीं सकते| एक रोबॉट में ये शक्ति भी डाली जा सकती है| देखना, सुनना तो साधारण-सी बात है, वो तो ये कैमरा भी कर रहा है| एक रोबॉट भी कर सकता है| समझ रहे हो बात को?

तो निश्चित रूप से इनका नाम तो जीवन नहीं हो सकता| जीवन कुछ और है, जीवन कुछ ऐसा है जो रोबॉट के लिए संभव नहीं है, पर तुम्हारे लिए संभव है| वो क्या है? चलो कैमरे का ही उदाहरण ले लेते हैं|

मैं जो कुछ कह रहा हूँ, वो कुछ नहीं है, सिर्फ तरंगें हैं, और मैं जो कुछ देख रहा हूँ, वो भी कुछ नहीं है, सिर्फ तरंगें हैं| वो तुम्हारी आँखों पर पड़ रही हैं, तुम्हारे कानों पर पड़ रही हैं, ठीक उसी तरह इस कैमरे पर भी पड़ रही हैं| तुम तो कुछ भुला भी दोगे, पर ये कैमरा सब कुछ रिकॉर्ड कर रहा है, एक-एक बात| लेकिन फिर भी इसे मिल कुछ नहीं रहा| तुम यहाँ से जाओगे तो कुछ ले कर जाओगे, पर इसे कुछ नहीं मिल रहा है|

वही मिलना है, जो तुम्हें इंसान बनाता है, कि तुम्हें कुछ मिल सकता है, तुम कुछ समझ सकते हो, और ये समझ किसी भी यंत्र के पास कभी-भी नहीं हो सकती| ये जो समझने की क्षमता है, इसी का नाम जीवन है| और ये नहीं है अगर, तो जीवन, जीवन नहीं, मरण के समान ही है|

जिस किसी में समझने की क्षमता नहीं, जो बंधी बंधाई धारणाओं पर, मान्यताओं पर, रूढ़ी रिवाज़ों पर, परंपराओं पर चलता चला जा रहा है, दूसरों का ग़ुलाम है, वो ज़िन्दा है ही नहीं| वो चल रहा है, सांस ले रहा है, पर उसको ज़िन्दा मत समझना| वो मरा हुआ है| इसीलिए जब किसी से एक बार पूछा गया, ‘क्या मृत्यु के बाद जीवन है?’, तो उसने कहा कि पहले ये पता करके आओ कि ‘मृत्यु से पहले जीवन है?’

हम में से ज़्यादातर मर चुके होते हैँ, पंद्रह-सोलह साल की उम्र में ही| उसके बाद बस हम अपनी लाश ढो रहे होते हैं| जो व्यक्ति विवेक पर नहीं चल रहा है, वो मरा हुआ ही है|

– ‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
Comments
Categories