प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, किसी व्यक्ति को उसके जीवन का उद्देश्य कैसे पता चले?
आचार्य प्रशांत: आप जहाँ बैठे हो, वहाँ पीछे दीवार आपको चुभ रही हो। मान लीजिए दीवार में कील है। और आप बैठे हैं और दीवार की टेक ले रहे है और वह कील चुभ रही है। तो आपके लिए पर्पस ऑफ़ लाइफ़ (जीवन का उद्देश्य) क्या है ? क्या है पर्पस आपके लिए? कील को हटाओ या खुद हट जाओ। तो बस ये देखिए कि क्या है जो चुभ रहा है। उसको हटाना ही जीवन का उद्देश्य है।
अब मै इस कुर्सी पर बैठा हूँ और इसमें मुझे दस कीलें चुभ रही हों और मैं विचार करूँ कि जीवन का उद्देश्य क्या है। आह! और कील ससुरी घुसी जा रही है और मैं बैठकर के गहन आत्मविमर्श मे संग्लग्न हूँ कि जीवन का अन्तिम उद्देश्य क्या है, तो ये बात बेढंगी है।
भाई सबसे पहले देखो कि अभी क्या है जो तुम्हें तंग कर रहा है? उसी से आज़ाद हो जाओ यही उद्देश्य है और कुछ नहीं।
प्रश्नकर्ता: तंग करने वाली तो बहुत सारी चीज़े हैं जीवन में।
आचार्य प्रशांत: हाँ तो, सबसे आज़ाद हो जाओ।
प्रश्नकर्ता: सबसे आज़ाद हो जाएँ?
आचार्य प्रशांत: हाँ और क्या...दस कील हो तो क्या कहोगे? जिस कुर्सी पर बैठे हो उसी से आज़ाद हो जाओ भाई। ये बात तो सुनने में ही हास्यास्पद लगती है, आज़ादी और हम! ये तो आपने चुटकुला बता दिया, ये देख रहे हो हमे हँसी भी किस बात पर आती है। हम और आज़ादी, अरे छोड़िए न! आप हमें कोई मलहम बता दीजिए। तो कील चुभती जाएँ और हम मलहम लगाते जाएँ।
ऐसो को तो कई बार मैं सौ कील और ठोक देता हूँ। मैं कहता हूँ, दस तुम्हें काफ़ी नहीं पड़ रही हैं कुर्सी से उठाने के लिए तुम्हारा इलाज एक है।
या तो तुममे अपने प्रति इतनी संवेदना हो, इतना प्रेम हो कि तुम कहो मुझे नहीं बर्दाश्त करना दस कीलें चुभ रहीं हैं, मैं भाग रहा हूँ। या ईश्वर करे कि तुम्हें सौ कीलें चुभें तब तो भागोगे।
जब हम कहते हैं, जीवन का उद्देश्य है मुक्ति, तो मुक्ति माने क्या? थोड़ा ज़मीन पर आकर बताओ मुझे मुक्ति माने क्या? दो फ़रिश्ते उतरेंगे आसमान से? एक का नाम होगा ‘मुक’ और एक का नाम होगा ‘ती।‘ मुक्ति माने क्या, ये जो तुमको लगातार चिढ़ में रखे हुए है, बन्धन में रखे हुए है, जो तुम्हारे सिर पर नाचता है, तुम्हें चैन से जीने नहीं देता। इसी से पिंड छुड़ाने का नाम है मुक्ति।
मुक्ति कोई बहुत दूर की बात नहीं होती है। मुक्ति बहुत निकट की, मुक्ति बड़े वर्तमान की बात होती है। तुम शारीरिक रूप से बीमार हो, मुक्ति माने — अरे! बीमारी हटाओ न अपनी। तुम किसी सम्बन्ध से परेशान हो। उस सम्बन्ध को ठीक करो न। तुम कर्ज़ से परेशान हो, उसे ख़तम करो न।
जो भी चीज़ तुम्हारे दिमाग पर चढ़ी बैठी है, देखो कि वो तुम्हें किस तरह से पकड़े हुए है और फिर कहो कि न बाबा। हमने जो भी लालच बाँध रखा है तेरे साथ, हम नहीं बाँधना चाहते। हमारी तुमसे कोई इच्छा ही नहीं है अब हमें तू छोड़ दे।
जो कुछ भी तुम्हें पकड़े हुए हो तुम उससे कहते हो मुझे तुझसे कुछ नहीं चाहिए वो तुम्हें छोड़ देता है। क्योंकि तुमसे पूछता हूँ कि कुछ तुम्हें क्यों पकड़े हुए है, क्योंकि वो अन्यायी है, वो रख्त पिपासु है, वो हमारी गर्दन पकड़े है, वो हमें लूट लेना चाहता है। पर अगर मै उससे पूछूँ कि तूने इनकी गर्दन क्यों पकड़ी है? वो कहता है क्योंकि इन्होनें मेरी गर्दन पकड़ रखी है।
जब भी तुम्हें कुछ पकड़ता है तो उसका कारण ये होता है, की तुमने भी उसे पकड़ रखा होता है। तुम उसे छोड़ दो वो तुम्हें छोड़ देगा। और जब भी तुम कुछ पकड़ते हो लालचवश पकड़ते हो। तुम अपने लालच की व्यर्थता देख लो मुक्ति मिल जाएगी।