दुनिया की ताक़तों से, और घरवालों से, और पचास लोगों से डरते हो इस बात से भी तो डरो कि, ‘जन्म ही व्यर्थ हो गया तो?’
जीवन से छोटे-मोटे डर सब हटाने हों तो बड़ा डर ले आओ। और बड़ा डर यही है – कल्पना में तो खोए ही रहते हो, एक कल्पना यह भी कर लिया करो कि अस्सी साल का हो जाने पर अचानक पता चला कि अस्सी साल बर्बाद किए हैं। फिर कैसा लगेगा?
ग़लत नौकरी करते गए, करते गए और पैंतीस साल बाद पता चला कि, “यह नौकरी तो मुझे कभी करनी ही नहीं चाहिए थी।“ अब पैंतीस साल वापस ला पाओगे? विवाह भी कर लिया, बच्चे भी कर लिए और फिर एहसास हुआ, कुछ ग़लत हो गया है।
अब रिवर्स गियर लगा पाओगे?
डरो!