जैन धर्म में अनेकांतवाद सिद्धांत क्या है?

Acharya Prashant

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जैन धर्म में अनेकांतवाद सिद्धांत क्या है?
जैन धर्म का अनेकांतवाद या स्यादवाद, अहिंसा की बुनियाद है। मैं दूसरे के विपरीत तभी खड़ा होऊंगा जब मुझे अपनी हस्ती में दृढ़ विश्वास होगा — और यही बड़ा विश्वास ही हिंसा है। अनेकांतवाद का अर्थ है: कुछ भी पूरी तरह पक्का या निश्चित नहीं। जब कुछ निश्चित नहीं, तो दूसरे को गलत कैसे ठहराएं? और जब दूसरे को गलत नहीं ठहरा सकते, तो उनके प्रति हिंसक कैसे हो सकते हैं? अनेकांतवाद अहंकार की जड़ पर चोट करता है। दूसरे के प्रति तुम हिंसक तभी हो सकते हो, जब कहोगे — मैं सही, दूसरा गलत। यह सारांश प्रशांतअद्वैत फाउंडेशन के स्वयंसेवकों द्वारा बनाया गया है

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, जैनिज्म फिलॉसोफी में अनेकांतवाद सिद्धांत है — वो क्या है?

आचार्य प्रशांत: विनम्रता — निष्कर्ष मत निकाल लेना। अनेकांतवाद या स्यादवाद, अहिंसा की बुनियाद है। मैं दूसरे के विपरीत तो तब खड़ा होऊंगा ना जब पहले मुझे अपनी हस्ती में दृढ़ विश्वास होगा — और अपनी हस्ती में बड़ा विश्वास रखना ही हिंसा है।

ये कहना कि मैं ऐसा हूं या मैं जानता हूं, किसी भी बात को निष्कर्ष के साथ तय करके कहना हिंसा की शुरुआत है।

अनेकांतवाद का अर्थ होता है, कुछ पक्का नहीं, कुछ निश्चित नहीं। जब कुछ पक्का नहीं, कुछ निश्चित नहीं, तो दूसरे को गलत कैसे ठहराएं? जब दूसरे को गलत नहीं ठहरा सकते, तो दूसरे के प्रति हिंसक कैसे हो सकते हैं अनेकांतवाद अहंकार की जड़ पर चोट करता है। अहम निष्कर्ष मांगता है। अहम एक आखिरी वक्तव्य मांगता है, जिस पर वह टिक सके। अनेकांतवाद अहम के पांव के नीचे से ज़मीन खींच लेता है। दूसरे के प्रति तुम हिंसक तो तब होगे ना जब कहोगे, मैं सही, दूसरा गलत।

स्यादवाद कहता है, क्या मैं सही हूं? हो सकता है, नहीं भी हो सकता है। अब दूसरे के प्रति तुम्हारे रवैये में धार नहीं रह जाएगी। अब तुम खोजी रहोगे सदा। कभी अपने आप को ज्ञानी नहीं घोषित कर पाओगे। अब तुम नहीं कह पाओगे कि मुझे तो पता ही है। और अगर तुम्हें कुछ पता नहीं, तो तुम्हें दुख भी नहीं हो सकता, क्योंकि दुख भी ज्ञान ही है, निष्कर्ष ही है।

मेरा दोस्त छूट गया। मुझे बड़ा दुख है। अनेकांतवादी कहेगा, दोस्त छूट गया, कैसे पता कि बुरा ही हुआ? अब दुख कैसे होगा? दुख मनाने के लिए भी एक आंतरिक आश्वस्ति चाहिए कि कुछ बुरा निश्चित रूप से हुआ है। अनेकांतवाद कहता है, तुम्हें क्या पता कि बुरा हुआ ही है? और जब अभी निश्चित नहीं कि बुरा हुआ कि अच्छा हुआ, तो ना तो तुम दुख में स्थापित हो सकते हो, ना तुम सुख में स्थापित हो सकते हो, तुम मुक्त हो।

समझे? ये लो, ये तो समझ गए, जैन नहीं हो तुम पक्का! कोई पक्का जैन होता तो कहता — पता नहीं, विनम्रता की बात है, पूछा जाए। समझे? तो कहना, पता नहीं।

हमारी इतनी हैसियत नहीं कि हम कह दें, समझ गए, और हमारी इतनी भी हैसियत नहीं कि हम कह दें, नहीं समझे।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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