आचार्य प्रशांत: जब भी कभी मन में ये प्रश्न आये कि आचार्य जी क्या करूँ, किसी भी सन्दर्भ में जब ये प्रश्न आये, ठीक है? वो किस्सा कुछ भी हो सकता है। वो ये भी हो सकता है कि पुरानी गाड़ी अब हटाकर नयी गाड़ी लेनी है। वो ये भी हो सकता है, कि ‘नया घर बनवाना है।’ वो ये भी हो सकता है कि बेटे को शिक्षा कैसी दिलवानी है।
कोई भी मुद्दा, कोई भी किस्सा हो सकता है। उस किस्से के अंत में अगर प्रश्न है कि क्या करूँ, तो क्या करना है, ये सब अच्छे से समझ लीजिए। जो कर रहे हैं; उस पर गौरऱ करना है। कुछ नया नहीं करना है।
अच्छा ऐसे समझिए, एक व्यक्ति है जिसकी आँखों पर पट्टी बन्धी हुई है। वो कैसे चल रहा है?
श्रोतागण: ठोकरें खाता हुआ।
आचार्य प्रशांत: ठोकरें खाता हुआ, किसी भी दिशा में आड़ा-–तिरछा, टेढ़ा चल रहा है न। अब वो पूछे कि आचार्य जी, क्या करूँ और मैं उसे कुछ सुझा दूँ कि अब ये करो। ऐसा करो कि अब तुम बायें जाओ।
थोड़ी देर पहले तक वो किस दिशा जा रहा था? मान लीजिए दायें जा रहा था। वो दायें जब जा रहा था तो कैसे चल रहा था?
श्रोतागण: ठोकरें खाता हुआ।
आचार्य प्रशांत: अब मैं कह दूँ, ‘बायें जाओ।’ वो बायें भी जाएगा तो कैसा चलेगा?
श्रोतागण: ठोकरें खाता हुआ।
आचार्य प्रशांत: पहले भी क्या खा रहे थे?
श्रोतागण: ठोकरें।
आचार्य प्रशांत: अभी भी क्या खा रहे हो?
श्रोतागण: ठोकरें।
आचार्य प्रशांत: नया कर्म पुराने कर्म से बहुत भिन्न नहीं हुआ क्योंकि कौन नहीं बदला? कर्म करने वाला नहीं बदला न, कर्ता नहीं बदला। तो जब भी कहो कि कोई समस्या है और प्रश्न आये, कि ‘अब क्या करें?’। तो क्या करना है? कुछ नया नहीं करना है। क्योंकि अभी हम नया कर ही नहीं सकते। वो लगेगा नया, होगा नहीं।
हमें क्या करना है? हमें रुक जाना है। हमें पूछना है कि अभी मैं क्या कर रहा हूँ। अभी मैं ठोकरें खा रहा हूँ। फिलहाल मैं क्या कर रहा हूँ? ठोकरें खा रहा हूँ। उस पर गौग़ौर करना, ये ठोकरें खा क्यों रहा हूँ। बार- बार, बार-बार गौग़ौर करोगे ठोकरें क्यों रहा हूँ। हाथ खुद ही जाएगा, पट्टी खोल दोगे।
अब जो कर्म होगा वो वास्तव में नवीन होगा। अब कोई नया कर्म हो पाएयेगा। ठोकरें खाना बन्द हो जाएगा। लेकिन अगर पट्टी बाँधे-बाँधे तुम बार-बार यही पूछो, ‘अब क्या करें?, अब क्या करें?।’ तो तुम आगे चलो, पीछे चलो, दायें जाओ, बायें जाओ, ऊपर जाओ, नीचे जाओ, जहाँ भी जाओगे;। ठोकर ही खाओगे। तो जब भी प्रश्न उठे, ‘क्या करें?’, लालच मेंैं मत पड़िएयेगा कि कुछ नया उपाय पता चल जाए कुछ और करने का। थामिएगा और कहिएगा, ‘कर तो बहुत कुछ अभी ही रहा हूँ।’ चूँकि कुछ कर रहा हूँ, तभी तो समस्या है भाई। कोई समस्या न होती तो क्या मैं ये पूछता कि क्या करें।
तो ये मत पूछो कि क्या करें। देखो, कि जो कर रहे हो उसमें गड़बड़ हो क्यों रही है। गड़बड़ करने वाले तुम्हीं हो। जब तक तुम्हारा बदलाव नहीं होगा, तुम कुछ भी करते चलो, उसकी मूलभूत गुणवत्ता सुधरेगी नहीं। समस्या की जड़ तक जाओ,। समस्या से भागो नहीं। तुम ही्हीं समस्या हो। भाग कर जहाँ भी जाओगे, समस्या को साथ लेकर जाओगे। भागने से क्या होगा?। देखो कि जो कर रहे हो उसमें ठोकरें क्यों लग रही हैं।