प्रश्नकर्ता: मैं पिछले वर्ष से ही यूट्यूब के माध्यम से आपकी वीडियोज़ के सम्पर्क में आया। इसके पहले मैं यूपीएससी की तैयारी कर रहा था, लेकिन आपकी यूपीएससी से सम्बन्धित वीडियोज़ देखने के बाद, तैयारी को लेकर एक स्पष्टता आयी और मैं तैयारी छोड़कर फिर से काम-धन्धे में लग गया। मेरे काम की प्रकृति ऐसी है जिससे मैं खुश हूँ, लेकिन फिर भी मन जैसे किसी लक्ष्य को पाने के लिए भटकता रहता है कि कैसे किसी को लक्ष्य बना लूँ जीवन में। कृपया मार्गदर्शन करें।
आचार्य प्रशांत: दो दुनिया होती हैं, एक खाल के बाहर की, एक खाल के अन्दर की। होती दोनों एक हैं, पर आँखें चूँकि बाहर को देखती हैं तो भीतर वाली को हम बाहर वाली से अलग समझ लेते हैं। है न? जो भी आपको काम करना है, इन्हीं दोनों लोकों में से किसी लोक में करना पड़ेगा। या तो बाहर को देखिए, दुनिया को, और आप पूछिए अपनेआप से कि ये दुनिया इस वक़्त क्या माँग रही है। और दुनिया जो माँग रही हो और उसमें से जिस चीज़ को दे पाने की आपकी व्यावहारिक क़ुव्वत हो उसको अपना लक्ष्य बना लीजिए। ठीक है न? ये दूसरे की मदद का रास्ता है, करुणा का, प्रेम का रास्ता है। ये है काम चुनना, धन्धा चुनना या व्यवसाय चुनना प्रेमवश, कि मैं जो कुछ कर रहा हूँ, क्यों कर रहा हूँ? क्योंकि वो करा जाना चाहिए, दुनिया को ज़रूरत है इसकी।
और दूसरा तरीक़ा है कि खाल के अन्दर देख लीजिए, जिसको हम आन्तरिक दुनिया कहते हैं, मन की दुनिया। वहाँ देख लीजिए कि क्या गड़बड़ है, कौनसी चीज़ें हैं जो सुधार माँगती हैं। और काम ऐसा पकड़िए जो आपके भीतर जो कुछ भी गड़बड़ हो उसको चुनौती देता हो। समझ रहे हैं?
काम वो मत पकड़िए जिसमें आप निपुण हों, जो आपकी सामर्थ्य से मेल खाता हो। आमतौर पर हम ऐसा ही सोचते हैं न। हम कहते हैं कि काम वो पकड़ो जिसमें तुम हुनरमन्द हो। चूज़ वर्क्स अकार्डिंग टू योर स्ट्रेंथ्स (अपनी सामर्थ्य के अनुसार काम चुनिए)। यही कहते हैं न? पर ये लालच की भाषा है। ये काम चुनने का लाभ आधारित गणित है कि जहाँ तुम्हारी ताक़त है उसी से सम्बन्धित तुम काम चुन लो।
जो व्यक्ति सार्थक काम चुनना चाहता है, वो वो काम चुनता है जहाँ उसकी कमज़ोरी है, वो अपने लिए चुनौतियाँ आमन्त्रित करता है। मैं भीतर के जगत की बात कर रहा हूँ। उदाहरण के लिए, आप डरते हैं पैसे की कमी से, फिर काम आप वो चुनिए जो अपनेआप में सार्थक हो, भले ही उसमें पैसे कम मिलते हों। आप डरते हैं लोगों से बातचीत करने में, दुनिया का कोई अनजाना सा ख़ौफ़ पकड़ रखा है, तो काम वो पकड़िए जिसमें लोगों से जमकर बात करनी पड़ती हो। ठीक है? इन दोनों में से कोई भी तरीक़ा चुना जा सकता है सही काम का निर्धारण करने के लिए।
समझ में आ रही है बात?
अगर अपनी ओर से बेफ़िक्र हैं, तो वो काम चुनिए जो दुनिया को चाहिए। कहिए, ‘हम तो अन्दर से ठीक-ठाक ही हैं क़रीब-क़रीब, ऐसी हममें कोई आन्तरिक रुग्णता है नहीं कि अपना बहुत ख़याल रखें पहले। तो ज़रा हम देखें कि दुनिया को इस वक़्त किन चीज़ों की ज़रूरत है। एक बार समझ में आ गया कि इस समय क्या काम करने लायक़ है दुनिया में, फिर हम देख लेंगे कि उस काम में हमें कैसे प्रवेश मिल सकता है।' ठीक है न? घुसने के दरवाज़े तलाशे जा सकते हैं।
भई, आप किसी भी तरह के उद्योग, इंडस्ट्री (उद्योग) में घुसने के दरवाज़े तलाश लेते हो या नहीं तलाश लेते हो? एक बार आपने कह दिया कि फ़लानी इंडस्ट्री में काम करना है फिर आप कुछ जोड़-तोड़ जुगाड़ करके उसमें घुस ही जाते हो। चले जाते हो न? तो इसी तरीक़े से दुनिया में इतनी चीज़ें हैं इस वक़्त जो बहुत गड़बड़ हैं और वो सब चिल्ला-चिल्लाकर माँग कर रही हैं कि उनको सुधारने के लिए कोई आये, लोग आ नहीं रहे। आप जाइए न। वहाँ भी काम बढ़िया होगा, आपको भी तसल्ली रहेगी, दिल में दिलासा रहेगा।
और अगर बाहर से आप बहुत मतलब न रख पाते हों, आपकी प्रवृत्ति बहुत प्रेमपूर्ण न हो तो फिर आप अपने लिए कुछ कर लीजिए। अपने लिए करने में पहले देख लीजिए कि आपके चरित्र में, आपके मन में कौनसी दुर्बलताएँ हैं, और काम वो पकड़िए जो आपकी सब दुर्बलताओं को ठोंक-पीटकर सही कर दे।
मुझसे पूछेंगे, ‘कौनसा पकड़ना चाहिए रास्ता?’ तो मैं कहूँगा, 'वही पहले वाला ज़्यादा अच्छा है लेकिन पहले वाले लायक़ आपका जिगर न हो तो फिर दूसरे रास्ते में भी कोई बुराई नहीं।' जहाँ तक मैं समझता हूँ, यूपीएससी वगैरह की तैयारी छोड़ दी तो आप ऐसे आदमी तो हैं नहीं जो बहुत लालच रखता हो जीवन में। पद का, पैसे का कुछ ख़ास आप लालच तो रखते नहीं होंगे। तो जब पैसा बहुत ज़्यादा नहीं ही चाहिए जीवन में, तो सही काम चुन लो न। गुज़र-बसर लायक़ पैसा तो अच्छे काम में भी मिल जाएगा। कोई भी साधारण औसत काम करके जीवन क्यों ख़राब करना?
भई! घटिया काम करने के पीछे एक तर्क ये होता है कि काम घटिया है, पर पैसा बहुत मिलता है। जो पैसे का लालची हो उसके लिए तो फिर भी घटिया काम की कुछ सार्थकता हुई। पर आपको देखूँ और दिखाई दे कि इनको तो पैसा भी बहुत नहीं चाहिए, तो फिर क्यों करें कुछ औसत दर्ज़े का साधारण काम? फिर तो कोई अनूठा काम चुनिए, भले ही उसमें आप पायें कि ज़्यादा लोग हैं ही नहीं, या कोई नहीं कर रहा उस काम को, या वो काम मुख्य धारा का काम है ही नहीं। या उस काम को करने के लिए आपको आप जहाँ हो वहाँ से सैकड़ों-हज़ारों किलोमीटर दूर जाना पड़े, तो भी क्या फ़र्क पड़ता है, पूरी दुनिया घर है अपना। जहाँ ज़रूरत होगी वहाँ पहुँच जाऍंगे।
भई, एम्बुलेंस होती है वो अस्पताल में ही खड़ी रह जाए तो कैसा रहेगा? एम्बुलेंस का क्या काम है? वो कहीं भी पहुँच जाती है। इसी तरीक़े से जो अग्निशमन यान होता है, वो फ़ायर-स्टेशन में ही खड़ा रहे तो? वो वहाँ जाता है न जहाँ आग लगी हुई है। आप भी देखो दुनिया में आग कहाँ लगी हुई है, आप वहाँ पहुँचो। हो सकता है पड़ोस में ही लगी हो, कहीं न जाना पड़े। ये भी हो सकता है, बहुत दूर जाना पड़े।
लेकिन एक बात मैं आपको बताये देता हूँ, सही काम चुन लो, उसके बाद जीवन भर ज़िन्दगी से ये शिकायत तो नहीं कर पाओगे कि यार काम क्या है ये! न ज़िन्दगी से ये शिकायत कर पाओगे कि अभी खाली बैठा हूँ क्या करूँ, अकेलापन, अधूरापन लग रहा है। सही काम की पहचान ये है कि वो इतना बड़ा होता है, इतना विराट और इतना अनन्त होता है कि वो कभी ख़त्म ही नहीं होता। काम अगर सही है तो वो कभी ख़त्म ही नहीं होने को आएगा। जब ख़त्म नहीं होगा तो आप चौबीस घंटे क्या कर रहे होगे?
श्रोता: काम।
आचार्य: तो ये शिकायत करने के लिए फ़ुर्सत कहाँ पाओगे कि अभी करें क्या? अब खाली बैठे हैं, दफ़्तर से घर आ गये, अब उदासी है, अधूरापन है, कोई है नहीं साथ में। फिर ये शिकायत भले कर लो कि करे ही जा रहे हैं, करे ही जा रहे हैं, पहाड़ जैसा काम है ये, टूटेगा कब। लेकिन वैसे काम नौकरी डॉट कॉम पर नहीं मिलने के, सम्भावना कम है, मिल भी सकते हैं। वैसे काम तो आपको एक खोजी की तरह, बल्कि प्रेमी की तरह दिल से तलाशने पड़ेंगे। थोड़ी दौड़-धूप करनी पड़ेगी, लोगों से मिलना पड़ेगा क्योंकि वो कोई साधारण प्रचलित और जनता द्वारा स्वीकार्य काम नहीं है न। वो ऐसे काम हैं ही नहीं जिनको आम आदमी कहे कि ये मेरा कैरियर ऑप्शन (रोज़गार का अवसर) है। कुछ पता तो है? कुछ आ रहा है न ख़याल में?
सबको पता होता है। इसी से तो मुझे मदद मिलती है। आप जितने यहाँ बैठे हो न, सब जानते हो, सब समझते हो — मेरा काम आसान हो जाता है, मुझे कोई ख़ास, नयी, अद्भुत बात बतानी नहीं होती। मेरा तो बस इतना ही है कि थोड़ा ठोंक-पीट दो, तो ऊपर-ऊपर जो रेत, बालू, कचरा, जंग इकट्ठी कर रखी हो वो सब थोड़ा हट जाए। अन्दर का माल तो आपका अपना है। कौन यहाँ बैठा है जो रोशन नहीं है अन्दर से? और जो न हो अन्दर से रोशन, उसे बाहर से रोशन कौन कर देगा भाई? मैं कौन, मेरी हस्ती क्या? मुझे तो आपका ही सहारा है। आपके भीतर जो बोध बैठा हुआ है, वही असली चीज़ है, वो सबमें है।